सब कुछ बेच कर पत्नी को डॉक्टर बनाया, फिर पति को लात मार कर निकाला, फिर जो हुआ

नमस्कार साथियों। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो आपके दिल को छू जाएगी। यह कहानी है रायगढ़ शहर की, माही और विप्लव की कहानी। माही के पिताजी रेलवे में छोटी सी नौकरी करते थे। घर का किराया, राशन, बिजली का बिल—महीने के आखिर तक पैसे हमेशा तंग रहते थे। उसकी मां सिलाई का काम करके थोड़ा बहुत जोड़ लेती थी। पर माही के दिल में एक सपना था, डॉक्टर बनने का सपना। जब भी वह सरकारी अस्पताल में लंबी लाइनों में खड़े लोगों को देखती, उनकी बेबसी उसे अंदर तक हिला देती थी। लेकिन घर की हालत देखकर यह सपना बस सपना ही लगता था।

माही का संघर्ष

एमबीबीएस की पढ़ाई, कोचिंग, किताबें—इतना खर्च कहां से आता? एक दिन उसके पिताजी ने साफ शब्दों में कह दिया, “बेटी, हमारे बस की नहीं है यह सब।” माही का दिल टूट गया उस दिन। पर साथियों, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उसकी जिंदगी में विप्लव का आना किसी चमत्कार से कम नहीं था। रायगढ़ के मुख्य बाजार में उसकी छोटी सी किराना की दुकान थी। कोई बड़ी दुकान नहीं, समझिए बस 10-12 फुट की। सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक वह वहीं रहता।

विप्लव की कहानी

विप्लव की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं थी। उसके पिता की मौत बचपन में ही हो गई थी। मां और छोटी बहन को पालने की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी। पहली बार माही की उससे मुलाकात तब हुई जब वह दुकान पर मसाले लेने गई। सीधा-सादा चेहरा, आंखों में एक अजीब सी ईमानदारी झलकती थी। वह हर ग्राहक से इतनी विनम्रता से बात करता कि मन को छू जाए।

धीरे-धीरे उनकी बातचीत बढ़ी। जब विप्लव को पता चला कि माही डॉक्टर बनना चाहती है, तो उसकी आंखें खुशी से चमक उठीं। उसने कहा, “तुम्हें जरूर बनना चाहिए। तुम्हारी आंखों में वो जुनून दिखता है।” प्यार कब हो गया, किसी को पता ही नहीं चला। जब विप्लव ने शादी का प्रस्ताव रखा, तो माही घबरा गई। उसने कहा, “विप्लव, मैं तो अभी पढ़ना चाहती हूं। शादी के बाद कैसे होगा यह सब?”

विप्लव का वादा

उस दिन विप्लव ने माही का हाथ पकड़ा और पूरे विश्वास के साथ कहा, “माही, मैं तुम्हारा सपना पूरा करवाऊंगा। कसम खाता हूं।” पर साथियों, इतना आसान नहीं था। दोनों परिवारों ने जबरदस्त विरोध किया। माही के पिताजी बोले, “दुकानदार से शादी और बेटी की पढ़ाई का क्या होगा?” दूसरी तरफ विप्लव की मां चिंतित थी। उन्होंने कहा, “बहू को डॉक्टर बनाने का इतना खर्च हम कहां से लाएंगे, बेटा?”

शादी का दिन

पर विप्लव अड़ा रहा। उसने दोनों परिवारों को किसी तरह मना लिया। सन 2018 में उनकी शादी हो गई। बस 15-20 लोग मौजूद थे। ना कोई बारात, ना बैंड बाजा। एकदम सादी सी शादी। और साथियों, अब शुरू हुआ असली संघर्ष। शादी के बाद की जिंदगी किसी युद्ध से कम नहीं थी। दोनों किराए के एक छोटे से कमरे में रहते थे। दुकान से महीने में बस 12 से 15 हजार बचते। उसमें से घर का खर्च, विप्लव की मां और बहन को पैसे भेजना और फिर माही की पढ़ाई।

विप्लव की मेहनत

विप्लव की दिनचर्या सुनकर आपका दिल पिघल जाएगा। सुबह 5:00 बजे उठना, सबसे पहले माही के लिए चाय बनाना, फिर खुद तैयार होकर दुकान पर पहुंच जाना। दोपहर को घर आकर जल्दी से खाना खाना और फिर रात 10:00 बजे तक काम। रविवार को भी दुकान बंद नहीं करता था। एक भी दिन की छुट्टी नहीं। माही ने कोचिंग ज्वाइन कर ली। किताबें, नोट्स, फीस—हर चीज का इंतजाम विप्लव करता।

कई बार माही ने देखा कि उसने अपने लिए नए कपड़े तक नहीं खरीदे। वही पुरानी शर्ट पहनकर दुकान पर बैठा रहता। जब माही कहती, “अपने लिए भी कुछ खरीदो,” तो वह बस मुस्कुरा कर बोलता, “मेरे पास तो सब कुछ है। तुम्हारी नई किताबें आ गईं।” आसपास की औरतें तरह-तरह के ताने मारतीं। “अरे भाई, बीवी को इतना पढ़ा रहे हो। डॉक्टर बन गई, ना तो तुम्हें लात मारकर निकाल देगी।”

माही की पढ़ाई

विप्लव हमेशा हंसकर टाल देता। पर माही जानती थी कि अंदर से उसे यह बातें बहुत चुभती थीं। माही की पढ़ाई का तीसरा साल चल रहा था। परीक्षा नजदीक आ रही थी। एक रात की बात है साथियों। माही देर रात तक अपनी किताबों में डूबी हुई थी। तभी विप्लव दुकान से लौटा। थका हुआ, बिल्कुल टूटा हुआ। उसने चुपचाप खाना गर्म किया, माही के लिए दूध लाया और फिर बिना कुछ बोले बिस्तर पर लेट गया।

माही ने पूछा, “तुम बहुत थके हुए लग रहे हो?” और साथियों सुनिए, विप्लव ने क्या कहा। उसने आंखें बंद किए हुए कहा, “थकान तो होती है। पर जब तुम्हें पढ़ते देखता हूं तो सब दूर हो जाती है। सोचता हूं, एक दिन तुम सफेद कोट पहनोगी। उस दिन मेरी सारी मेहनत सार्थक हो जाएगी।”

विप्लव का त्याग

उस रात माही ने उसे सोते हुए देखा। उसके हाथों में छाले पड़े हुए थे। सामान उठाते उठाते चेहरे पर गहरी थकान की लकीरें दिख रही थीं। फिर भी होठों पर हल्की सी मुस्कान थी। माही ने सोचा, “कितना प्यार करता है यह मुझसे। कितना बड़ा त्याग कर रहा है।” पर साथियों, उस वक्त माही को नहीं पता था कि आने वाला कल क्या लेकर आएगा।

परीक्षा का समय

पढ़ाई जारी थी। परीक्षा की तैयारी अब चरम पर थी। विप्लव वो अब भी उसी छोटी सी दुकान पर बैठा हुआ था। अपनी पत्नी के सपने बुन रहा था। अपने सपनों को दफन करके 4 साल की कड़ी मेहनत के बाद वह दिन आ गया। परीक्षा का रिजल्ट आने वाला था। माही की धड़कने तेज थी। विप्लव उससे भी ज्यादा घबराया हुआ था। सुबह से ही वह बार-बार कह रहा था, “कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ हूं।”

सफलता का पल

दोपहर को रिजल्ट आया। माही का नाम सूची में था। वह पास हो गई थी और साथियों, उस पल की खुशी बयान नहीं की जा सकती। विप्लव की आंखों में आंसू आ गए। उसने माही को गले लगा लिया। “तुमने कर दिखाया। मुझे पता था, तुम जरूर करोगी।” पूरे मोहल्ले में खबर फैल गई। जिन लोगों ने कभी ताने दिए थे, वही अब बधाई देने आ रहे थे। विप्लव की मां ने दुआएं दीं। माही के पिताजी को अपनी बेटी पर गर्व हुआ।

नए सपनों की शुरुआत

विप्लव ने उस दिन दुकान बंद कर दी। उसने अपनी बचत से मिठाई बंटवाई। छोटा सा जश्न मनाया। वो इतना खुश था कि उसका चेहरा दमक रहा था। माही को रायगढ़ से बाहर एक अच्छे मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया। अब असली जिंदगी शुरू होने वाली थी।

बदलाव की शुरुआत

साथियों, नई दुनिया, नए लोग, नए सपने, शुरुआत के महीने सब कुछ ठीक चला। माही हफ्ते में एक बार घर आती। विप्लव उसे स्टेशन तक छोड़ने और लेने जाता। दोनों साथ बैठकर खाना खाते। बातें करते, सब कुछ पहले जैसा था। पर साथियों, धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। कॉलेज में माही की नई सहेलियां बनीं। डॉक्टरों की बेटियां, इंजीनियरों के घर की लड़कियां, उनकी बातें अलग थीं। उनका रहन-सहन अलग था। महंगे कपड़े, ब्रांडेड बैग, कैफे में घूमना।

माही का परिवर्तन

और देखिए साथियों, माही भी धीरे-धीरे उनके रंग में रंगने लगी। उसने नए कपड़े खरीदे, बाल कटवाए, मेकअप करना सीखा। अंग्रेजी में बात करना शुरू किया। एक दिन उसकी सहेली रीना ने पूछा, “माही, तुम्हारे पति क्या करते हैं?” और सुनिए साथियों, माही ने क्या जवाब दिया? वह थोड़ी रुकी। फिर बोली, “वो थोड़ी सी दुकान चलाते हैं।”

विप्लव का अपमान

विप्लव की कहानी सुनकर माही ने पहली बार उसके बारे में सच नहीं बताया। शायद डर था कि सब क्या सोचेंगे। दुकानदार की पत्नी घर आकर उसने विप्लव से कहा, “तुम थोड़ा अच्छे कपड़े क्यों नहीं पहनते?” विप्लव हैरान रह गया। “क्यों, क्या हुआ अचानक?” बस ऐसे ही, लोग क्या कहेंगे, माही ने कहा।

विप्लव की समझदारी

विप्लव समझ गया कि कुछ बदल रहा है पर उसने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप नए कपड़े खरीद लाया, उसी बचत से जो माही की फीस के लिए रखी थी। महीने बीतते गए साथियों, माही अब महीने में एक बार भी घर नहीं आती थी। फोन पर बात करती तो उसकी आवाज में वो पुरानी गर्मजोशी नहीं रहती। “हां, ठीक हूं। बाद में बात करती हूं। व्यस्त हूं।”

विप्लव का दर्द

विप्लव को चोट लगती पर वो खुद को समझाता, “पढ़ाई का दबाव होगा। व्यस्त होगी।” एक दिन माही के कॉलेज में कोई फंक्शन था। विप्लव ने उसे चौंकाना चाहता था। उसने दुकान का काम छोड़कर कॉलेज पहुंचा। उसके हाथ में माही की पसंदीदा मिठाई थी। कॉलेज के गेट पर उसने माही को देखा। वह अपनी सहेलियों के साथ हंस रही थी। बिल्कुल अलग दिख रही थी। महंगी साड़ी में मेकअप किए हुए।

माही का अनदेखा

विप्लव पास गया। माही और सहेलियों ने उसे देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आया। “तुम यहां कैसे?” उसने धीरे से पूछा। “तुमसे मिलने आया, तुम्हारे लिए,” विप्लव ने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ाया। माही ने इधर-उधर देखा। उसकी सहेलियां उन्हें देख रही थीं। “अभी फंक्शन है। तुम जाओ। बाद में मिलती हूं।”

विप्लव का दिल टूटना

“पर मैं तो…” विप्लव ने कहना चाहा। “प्लीज विप्लव, अभी नहीं।” माही की आवाज में झुंझुलाहट थी। विप्लव वापस चला गया। साथियों, उस दिन उसका दिल टूट गया। रास्ते भर वह सोचता रहा, “मैंने क्या गलत किया?”

माही का इंटर्नशिप

अगले महीने माही का इंटर्नशिप शुरू हो गया। अब वह अस्पताल में काम करती। सफेद कोट पहनती। डॉक्टर माही। एक दिन विप्लव ने उससे मिलने की कोशिश की। उसने कहा, “माही, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” “क्या बात है?” माही ने ठंडे स्वर में पूछा। “तुम बदल गई हो, मुझसे दूरी बना रही हो। क्यों?” विप्लव की आवाज कांप रही थी।

माही की सच्चाई

माही ने गहरी सांस ली और साथियों फिर जो शब्द उसके मुंह से निकले वो विप्लव के लिए तलवार से भी तेज थे। “सुनिए ध्यान से विप्लव, सच कहूं, तुम मेरे स्टैंडर्ड के नहीं हो। मेरे साथी डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं और तुम, तुम बस एक दुकानदार हो। मुझे शर्म आती है तुम्हारे साथ।”

विप्लव का आघात

विप्लव स्तब्ध रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। यह वही माही थी जिसके लिए उसने अपनी जवानी खपा दी। जिसके लिए उसने खुद को भूल गया। “माही, तुम यह क्या कह रही हो? मैंने तुम्हारे लिए…” उसकी आवाज टूट गई। “तुमने जो किया उसके लिए शुक्रिया। पर अब मैं आगे बढ़ चुकी हूं। और तुम, तुम वहीं खड़े हो। लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे? डॉक्टर की पत्नी, दुकानदार?”

तलाक का निर्णय

माही के शब्द तीर की तरह चुभ रहे थे। साथियों, विप्लव ने आखिरी बार कोशिश की। “माही, मैं बदल जाऊंगा। जो तुम कहोगी…” “नहीं विप्लव, बात बदलने की नहीं है। बात है कि हम दोनों अलग-अलग दुनिया के लोग हैं। मुझे तलाक चाहिए।”

विप्लव का त्याग

और साथियों, उस दिन विप्लव की दुनिया उजड़ गई। जिस औरत के लिए उसने सब कुछ दांव पर लगाया, वही उसे छोड़कर जा रही थी। सिर्फ इसलिए कि वह एक छोटी सी दुकान चलाता था। तलाक की कागजी कार्रवाई शुरू हो गई। और देखिए साथियों, विप्लव ने कोई विरोध नहीं किया। उसने चुपचाप सारे कागजों पर दस्तखत कर दिए। माही को आजाद कर दिया। बिना कोई सवाल पूछे, बिना कुछ मांगे।

विप्लव की स्थिति

जिस दिन तलाक फाइनल हुआ, विप्लव अपनी उसी छोटी सी दुकान पर बैठा था। उसके हाथ कांप रहे थे। आंखों में आंसू नहीं थे। शायद रोने के लिए भी आंसू खत्म हो गए थे। उसकी मां ने उससे पूछा, “बेटा, तूने विरोध क्यों नहीं किया? लड़ना चाहिए था।”

विप्लव की समझ

और साथियों, सुनिए विप्लव ने क्या कहा। उसने मुस्कुराने की कोशिश की। “मां, जिसे जाना है, उसे कैसे रोकूं। मैंने उसे खुश देखना चाहा था। अगर वह मेरे बिना खुश रह सकती है, तो यही सही है।” पर अंदर से वह पूरी तरह टूट चुका था।

माही का नया जीवन

दूसरी तरफ, माही अब पूरी तरह आजाद थी। अपने सपनों की दुनिया में एक प्रतिष्ठित अस्पताल में डॉक्टर बन गई। अच्छी सैलरी, बड़ा फ्लैट, गाड़ी—सब कुछ था जो वह चाहती थी। उसके आसपास अब डॉक्टर्स और बड़े लोगों की दुनिया थी। पार्टियां, सेमिनार, सोशल गैदरिंग—सब कुछ शानदार था। सब कुछ परफेक्ट लग रहा था।

माही का खालीपन

पर साथियों, रातों में जब वो अकेली होती तो एक अजीब सा खालीपन महसूस करती। कुछ कमी लगती। पर वो इसे नजरअंदाज कर देती। 6 महीने बीत गए। एक दिन माही की तबीयत खराब हो गई। तेज बुखार। उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उसकी सहेलियां मिलने आईं। दो-चार मिनट रुकीं। फिर चली गईं। सब व्यस्त थे।

विप्लव की याद

साथियों, रात को जब माही अकेली अस्पताल के बेड पर लेटी थी तो उसे विप्लव की याद आई। जब भी वह बीमार पड़ती थी, विप्लव रात भर जागता था। उसके माथे पर पट्टी रखता, दवा समय पर देता, खाना खिलाता। आज कोई नहीं था। बस नर्स आकर दवा दे जाती और चली जाती। उस रात माही ने पहली बार अपने फैसले पर सवाल उठाया। “क्या मैंने गलत किया?”

माही का आत्मविश्लेषण

धीरे-धीरे महीने बीतते गए। माही ने अपने करियर में बहुत नाम कमाया। अखबारों में उसकी तस्वीरें छपतीं। लोग उसे पहचानने लगे। पर जिंदगी में कुछ था जो गायब था। वो सुकून, वो चैन। एक दिन अस्पताल में एक बुजुर्ग मरीज आया। उसकी पत्नी उसके साथ थी। बहुत गरीब लोग थे। फटे पुराने कपड़े, पर साथियों उनकी आंखों में एक दूसरे के लिए जो प्यार था, वो साफ दिखता था।

बुजुर्ग दंपति का प्यार

बूढ़े ने अपनी पत्नी से कहा, “तू चिंता मत कर। मैं ठीक हो जाऊंगा। तेरे बिना तू जी ही नहीं सकता।” बुढ़िया रो पड़ी। “60 साल से साथ हैं हम। एक पल भी अलग नहीं हुए।” और देखिए साथियों, माही उन दोनों को देखती रह गई। उसे अचानक विप्लव की याद आई। वो विप्लव जिसने उसके लिए अपनी जवानी न्योछावर कर दी थी।

माही का निर्णय

उसने क्या किया? उसे सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वह दुकानदार था। उस दिन के बाद से माही बेचैन रहने लगी। उसकी नींद उड़ गई। काम पर ध्यान नहीं लगता। बार-बार विप्लव की यादें आतीं। एक दिन उसने हिम्मत करके रायगढ़ जाने का फैसला किया। उसे विप्लव से माफी मांगनी थी।

रायगढ़ की यात्रा

रायगढ़ पहुंचकर वह सीधे उस दुकान पर गई। पर साथियों, दुकान बंद थी। ताला लगा हुआ था। पड़ोस की एक दुकान वाले से पूछा, “विप्लव भाई कहां है?” वो बोला, “अरे बहन जी, विप्लव तो 6 महीने पहले यहां से चला गया। दुकान बेचकर कहीं दूसरे शहर चला गया।”

विप्लव का नया जीवन

माही ने पूछा, “कहां गया? पता है?” “हां। उसकी मां ने बताया था। अहमदाबाद। वहां किसी कंपनी में नौकरी मिल गई है उसे।” माही के पैरों तले जमीन खिसक गई। विप्लव चला गया, शायद उस दर्द से दूर जाने के लिए। उन यादों से भागने के लिए।

अहमदाबाद की खोज

उसने फौरन अहमदाबाद का टिकट लिया। उसे विप्लव से मिलना था। चाहे जो हो जाए। तीन दिन की खोजबीन के बाद उसे विप्लव का पता मिल गया। एक छोटे से फ्लैट में वह रहता था। अकेला।

विप्लव से पुनर्मिलन

माही दरवाजे के सामने खड़ी थी। हाथ कांप रहे थे। दिल तेजी से धड़क रहा था। उसने घंटी बजाई। दरवाजा खुला और सामने विप्लव खड़ा था। पहले की तरह सीधा साधा, पर आंखों में वह चमक नहीं थी। चेहरे पर थकान थी। उम्र से ज्यादा बूढ़ा लग रहा था।

माही का पछतावा

विप्लव ने माही को देखा। कुछ पल के लिए वह सन्न रह गया। फिर धीरे से बोला, “माही, तुम यहां?” माही की आवाज गले में अटक गई। आंखों से आंसू बहने लगे। “विप्लव, मुझे माफ कर दो।”

विप्लव का दर्द

विप्लव ने कुछ नहीं कहा। बस खड़ा रहा। माही फूट-फूट कर रोने लगी। “मैंने बहुत बड़ी गलती की। मैं अंधी हो गई थी। मुझे सिर्फ अपनी सफलता दिखी। तुम्हारे त्याग को, तुम्हारे प्यार को मैं भूल गई। माफ कर दो मुझे।”

प्यार का पुनर्निर्माण

विप्लव की आंखों में भी नमी आ गई। उसने धीरे से कहा, “माही, तुमने मुझे तोड़ दिया था। तुम्हारे वो शब्द मुझे शर्म आती हैं। तुम्हारे साथ। वो शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं। मुझे पता है। मैं बहुत गलत था।”

माही का संकल्प

“मैं बदल गई थी। पर अब मुझे समझ आ गया है कि असली खजाना मैंने खो दिया। तुम्हारे बिना मेरे पास सब कुछ है पर कुछ भी नहीं है।” विप्लव ने गहरी सांस ली। “माही, क्या तुम सच में बदल गई हो या फिर से?”

पुनर्मिलन का क्षण

माही ने उसका हाथ पकड़ लिया। “नहीं विप्लव, मैं वादा करती हूं। अब मुझे समझ आ गया है कि इज्जत किसी के पद से नहीं, उसके दिल से मिलती है। तुम्हारा दिल सोने से भी कीमती है। मुझे एक मौका दो। बस एक मौका।”

विप्लव का पुनः विश्वास

साथियों, विप्लव की आंखों से आंसू बह निकले। इतने दिनों का दर्द, अकेलापन सब बाहर आने लगा। “माही, मैं टूट गया था। पूरी तरह टूट गया था। मुझे पता है और यह सब मेरी वजह से हुआ। पर अब मैं तुम्हें फिर से जोड़ना चाहता हूं। अगर तुम मुझे मौका दो।”

नई शुरुआत

कुछ पलों की खामोशी रही। फिर विप्लव ने धीरे से कहा, “माही, प्यार खत्म नहीं हुआ था, बस दब गया था। तुम आज भी मेरे दिल में हो।” माही ने उसे गले लगा लिया। दोनों रोते रहे। इतने दिनों का दर्द, पछतावा सब बह गया।

सुखद अंत

उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया। माही ने अपनी नौकरी अहमदाबाद ट्रांसफर करवा ली। दोनों ने फिर से साथ रहना शुरू किया। पर अब माही बदल चुकी थी। असली माही लौट आई थी। अब वो विप्लव का सम्मान करती। उसकी कदर करती। दोस्तों से गर्व से कहती, “यह मेरे पति हैं, विप्लव। जिन्होंने मुझे आज का माही बनाया।”

विप्लव ने भी अपनी मेहनत से अहमदाबाद में एक अच्छी नौकरी कर ली। अब दोनों साथ थे। खुश थे।

निष्कर्ष

तो साथियों, यह थी माही और विप्लव की कहानी। एक ऐसी कहानी जो हमें सिखाती है कि गलतियां हो सकती हैं, पर उन्हें सुधारना हमारे हाथ में है। माही को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने उसे सुधारने की हिम्मत दिखाई। जिंदगी में असली चीजों की कदर करनी चाहिए। जो लोग हमारे लिए सब कुछ करते हैं, उन्हें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। और अगर गलती हो भी जाए, तो माफी मांगने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। सच्चा प्यार वो है जो गलतियों को माफ कर दे, जो टूटकर फिर से जुड़ जाए। विप्लव ने माही को माफ किया क्योंकि प्यार कभी मरता नहीं।

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