राजस्थान की धूप में आफिया की बहादुरी
प्रस्तावना
राजस्थान की दोपहर का सूरज अपने चरम पर था। रेगिस्तान की तपती धूप सड़क के पत्थरों और पगडंडियों को आग की तरह झुलसा रही थी। हवा भी ठहरी हुई थी, और जब कभी कोई झोंका आता, तो रेत के कणों को उड़ाकर माहौल और ज़्यादा बोझिल कर देता। ऐसे कठिन मौसम में एक पुराना स्कूटर धीरे-धीरे सड़क पर आगे बढ़ रहा था। उस पर बैठी थी 24 साल की आफिया – मोहल्ले के मकतब में कुरान और दीन पढ़ाने वाली सादा मगर मजबूत दिल की उस्ताजा। उसके कपड़ों में सादगी थी, सिर पर सियाह दुपट्टा मजबूती से लिपटा हुआ और बैग में बच्चों के लिए नोट्स व कुरान के पन्ने थे।
आफिया गरीब घराने से थी, लेकिन उसने अपनी तालीम पूरी की थी। वह जानती थी कि गरीबी के बावजूद इज्जत और वकार कायम रखना सबसे बड़ी कामयाबी है। उसकी मां उसकी ताकत थी, और आफिया अपनी मां की खिदमत को इबादत मानती थी। हर दिन बच्चों को पढ़ाकर वह घर लौटती थी, और आज भी वही दिन था।
सड़क पर अजनबी मंजर
सड़क पर चलते हुए आफिया जेरे-लब कुरान की आयतें दोहरा रही थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, जो उसके अंदरूनी सुकून का अक्स था। तभी दूर सड़क के मोड़ पर कुछ अजनबी नजर आए। उनकी खाकी वर्दियां धूप में चमक रही थीं, मगर उनके हाव-भाव में वह अनुशासन नहीं था जो असली पुलिस वालों में होता है। कुछ लोग बीड़ियां सुलगा रहे थे, कुछ जोर-जोर से हंस रहे थे। वहीं दो-तीन मोटरसाइकिलें रुकी हुई थीं, जिन पर बैठे लोग परेशान और घबराए हुए थे।
आफिया ने समझ लिया कि यह कोई आम नाकाबंदी नहीं, बल्कि गैरकानूनी खेल है। राजस्थान के देहाती इलाकों में नकली पुलिस वालों द्वारा लूटपाट की खबरें अक्सर मिलती थीं। उसने स्कूटर की रफ्तार धीमी की, दिल में अल्लाह का नाम लिया और खुद को मजबूत किया।
नकली पुलिस वालों का सामना
उन नकली पुलिस वालों में सबसे आगे था राजेश – लंबा, चौड़ा, चेहरे पर गुरूर और आंखों में तकब्बुर। इलाके में उसकी बदनामी थी। वह असली पुलिस में भर्ती होना चाहता था, मगर नाकाम रहा। अब उसने वर्दी पहनकर अपने कुछ बदमाश साथियों के साथ सड़क पर जाली हुकूमत चलाना शुरू कर दिया था।
जैसे ही आफिया पास पहुंची, राजेश ने हाथ उठाकर उसे रुकने का इशारा किया। बाकी साथी सड़क पर खड़े हो गए। राजेश ने हुक्म भरे लहजे में पूछा, “कहां जा रही हो लड़की?”
“घर जा रही हूं,” आफिया ने सीधा जवाब दिया।
“यह सरकारी चेकिंग है। कागजात दिखाओ।”
आफिया ने बैग से लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन निकाले और उसे दे दिए। उसके हाथों में कोई लरजिश नहीं थी। राजेश ने कागज देखे, तंजिया मुस्कुराया और बोला, “कागज तो हैं, लेकिन गाड़ी की लाइट डिम है, टायर घिसे हुए हैं। केस बनेगा तो जेल जाना पड़ेगा। सीधा रास्ता है, दो लाख दो और निकल जाओ।”
यह सुनकर उसके साथी हंसने लगे। लोग हैरान थे कि एक अकेली लड़की से इस तरह खुलेआम पैसा मांगा जा रहा है। आफिया ने काबू रखा और बोली, “अगर गलती है तो चालान करें, रिश्वत नहीं दूंगी।”
सब्र और बहादुरी
राजेश के साथी फिर हंसने लगे। माहौल में बिजली सी कड़क उठी। राजेश के चेहरे पर गुस्सा आ गया। उसने कहा, “सीधी बात है, दो लाख दो वरना स्कूटर जब्त, थाना और केस। इज्जत बचानी है या चक्कर काटने हैं?”
आफिया के दिल में गुस्से की लहर उठी, मगर उसने खुद को संभाला। “कागजात मुकम्मल हैं। गलती है तो कानून के मुताबिक चालान करें। रिश्वत देना मुमकिन नहीं और ना ही दूंगी।”
राजेश का रंग बदल गया। वह आदि था कि लोग डरते, पैसे निकालते। आज पहली बार एक लड़की सामने डट गई थी। उसके साथी हैरान होकर हंस पड़े। एक ने कहा, “राजेश भाई, यह तो बड़ी बहादुर है।”
अपमान और संघर्ष
राजेश ने अचानक गंदा पानी आफिया के ऊपर फेंक दिया। दुपट्टा और कपड़े तर-बतर हो गए। हुजूम से चीख उठी, मगर कोई आगे नहीं आया। राजेश ने कहखा लगाया, “कैसा लगा यह पानी? अब समझ आया राजेश से टकराने का अंजाम?” साथ ही तंज करने लगे, गालियां दीं। आफिया के चेहरे पर ठंडे पानी की झुरझुरी दौड़ गई, मगर उसने चेहरा साफ किया और आंखों में गुस्से व अज्म की लालिमा आ गई।
राजेश ने फिर धमकी दी, “अब भी वक्त है, दो लाख दे दो वरना और जलील करूंगा।” फिर उसने जोर का थप्पड़ जड़ दिया। आफिया का गाल सुर्ख हो गया, होंठ से खून निकल आया। मगर वह जमीन पर ना गिरी। उसने हैंडल मजबूती से थामे रखा। यह लम्हा उसके सब्र की आखिरी हद थी।
आफिया का पलटवार
आफिया ने कपड़े ठीक किए, खून साफ किया और भारी आवाज में बोली, “बस बहुत हो गया। अब और बर्दाश्त नहीं करूंगी।” राजेश हंसा, “ओ शेरनी बनने का शौक है? देख लेते हैं तुझे।”
“हां, ललकार रही हूं। जुल्म के आगे खामोशी बुजदिली है और मैं बुज़दिल नहीं।”
हुजूम में बिजली सी दौड़ गई। औरतें दुआएं पढ़ने लगीं। नौजवान वीडियो बनाने लगे। सब जान गए थे कि यह आम झगड़ा नहीं, बल्कि हक और बातिल की लड़ाई है।
राजेश ने हमला किया, मगर आफिया ने अपने हौसले और ताकत से मुकाबला किया। उसने राजेश को मुक्का मारा, राजेश लड़खड़ा गया। हुजूम से तालियां बजने लगीं। फिर आफिया ने घुटना उसके पेट में मारा, राजेश झुक गया। आफिया ने जूते की नोक से किक मारी, राजेश जमीन पर गिर गया। उसके साथी सहम गए।
इंसाफ की जीत
असली पुलिस की जीप आई। असली पुलिस वालों ने राजेश और उसके साथियों को गिरफ्तार किया। हुजूम में खुशी की लहर दौड़ गई। औरतें आगे बढ़कर आफिया के हाथ चूमने लगीं, “बेटी, तूने हमें दिखा दिया कि इज्जत की हिफाजत कैसे की जाती है।” नौजवान नारे लगाने लगे, “राजेश मुर्दाबाद, आफिया जिंदाबाद!”
असली पुलिस ने ऐलान किया, “यह जाली नाकाबंदी गैर कानूनी थी। हम इंसाफ करेंगे।” राजेश और उसके साथी जेल चले गए। आफिया ने कोई जश्न नहीं मनाया, बस खामोश वकार उसके चेहरे पर था।
समाज में बदलाव
अब लोग आफिया को सिर्फ उस्ताजा नहीं, बल्कि बहादुरी की अलामत मानने लगे थे। कस्बे के सरपंच ने पंचायत में ऐलान किया, “आज से आफिया सिर्फ मकतब की उस्ताजा नहीं, बेटियों और बहनों की ढाल है।” मर्द भी मानने लगे कि औरत कमजोर नहीं। असली पुलिस ने सख्त कदम उठाए, अब कोई वर्दी का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकता। राजेश और उसके साथियों पर मुकदमा चला, उनके नाम अखबारों में छपे।
आफिया की सादगी
आफिया ने कभी खुद को हीरो नहीं समझा। वह हमेशा कहती रही, “मैंने सिर्फ सच और हिम्मत से काम लिया है। ताकत सिर्फ अल्लाह की है।” अब औरतें बाजार जाती थीं, नौजवानों ने अहद किया कि अब किसी गुंडे के आगे सर नहीं झुकाएंगे। बच्चे खेलते-खेलते कहते, “मैं आफिया बनूंगा।”
निष्कर्ष
आफिया की कहानी कस्बे की तारीख में मोड़ बन गई। अब लोग उस जगह को फक्र से दिखाते जहां आफिया ने राजेश को पछाड़ा था और कहते, “यह वही मकाम है जहां जुल्म गिरा और इंसाफ खड़ा हुआ।” आफिया अब भी सादा जिंदगी जीती थी, मगर उसके किरदार में नई रोशनी थी। वह जानती थी कि उसकी बहादुरी अब दूसरों के लिए मिसाल बन चुकी है।
रात को तिलावत करते हुए वह शुक्र अदा करती, “ऐ अल्लाह, तेरा करम है कि मैंने इज्जत और हिम्मत के साथ हक का साथ दिया।”
यूँ एक आम सी दीनदार उस्ताजा, जो कभी सुनसान सड़क पर खामोशी से स्कूटर चला रही थी, आज पूरे इलाके की बहादुरी और सच्चाई की पहचान बन गई।
सीख:
सच और हिम्मत सबसे बड़ी ताकत है।
इज्जत पेशे या लिबास से नहीं, किरदार से मिलती है।
औरत कमजोर नहीं, अगर वह डट जाए तो जुल्म हार जाता है।
समाज में बदलाव लाने के लिए एक की हिम्मत काफी है।
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