संजय खान की पत्नी जरीन खान का अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से क्यों हुआ? Funeral Hindu Rituals

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जरीन खान: पारसी परंपरा से बॉलीवुड तक, और अंत में एक शांत विदाई

बॉलीवुड की दुनिया में कई चेहरे ऐसे रहे हैं जो पर्दे पर भले ही ज्यादा नहीं दिखे, लेकिन पर्दे के पीछे उनका व्यक्तित्व, उनका संस्कार और उनकी कहानी हमेशा याद की जाती है। ऐसी ही शख्सियत थीं जरीन खान, मशहूर अभिनेता और फिल्म निर्माता संजय खान की पत्नी, अभिनेता जायद खान की मां और इंटीरियर डिजाइन की दुनिया में एक सम्मानित नाम।

6 नवंबर 2025 को जब खबर आई कि जरीन खान का निधन हो गया है, तो पूरे फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई। लेकिन उनके निधन के बाद जिस बात ने सभी को हैरान किया, वह यह थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया।
लोगों के मन में सवाल उठा कि जब संजय खान मुस्लिम धर्म को मानते हैं, तो फिर उनकी पत्नी जरीन का संस्कार हिंदू परंपरा के अनुसार क्यों किया गया। बाद में इस रहस्य से पर्दा उठा — जरीन खान पारसी थीं और उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले यही इच्छा जताई थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू विधि से किया जाए।


पारसी परिवार में जन्म

जरीन खान का असली नाम जरीन कतरक था। उनका जन्म एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। पारसी समुदाय अपनी धार्मिक परंपराओं, सादगी और शिक्षा-प्रेम के लिए जाना जाता है, और जरीन ने भी इन्हीं मूल्यों को अपने जीवन में अपनाया।

पारसी समाज में पहले एक विशेष अंतिम संस्कार पद्धति होती थी, जिसे “दख्मिनाशिनी” या “टॉवर ऑफ साइलेंस” कहा जाता था। इसमें मृतक का शरीर एक ऊंचे टॉवर पर रखा जाता था और पक्षी (विशेषकर गिद्ध) उस शरीर को खा लेते थे — इसे आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता था।
समय के साथ यह प्रथा खत्म हो गई और आधुनिक पारसी या तो दफनाए जाने लगे या अग्नि संस्कार करने लगे। इसी धार्मिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में जरीन खान की अपनी अंतिम इच्छा भी जुड़ी थी।


बॉलीवुड में शुरुआती कदम

बहुत कम लोग जानते हैं कि जरीन खान ने भी अपने करियर की शुरुआत फिल्मों से की थी। उन्होंने 1960 के दशक में कुछ फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें तेरे घर के सामने और एक फूल दो माली जैसी फ़िल्में शामिल थीं। हालांकि वह लंबे समय तक फिल्मों में सक्रिय नहीं रहीं, लेकिन अपने सौम्य व्यक्तित्व और सादगी भरे अभिनय के कारण उन्होंने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।

बाद में उन्होंने अभिनय से दूरी बना ली और कला, डिज़ाइन और लेखन की दुनिया में कदम रखा। वह एक सफल इंटीरियर डिज़ाइनर बनीं और कई फिल्मी सितारों के घरों की डिजाइनिंग में योगदान दिया।


संजय खान से मुलाकात और प्रेम

फिल्मी दुनिया में काम करते हुए जरीन की मुलाकात अभिनेता संजय खान से हुई। दोनों के बीच आकर्षण पनपा और यह रिश्ता धीरे-धीरे गहराई में बदल गया।
कुछ समय के प्रेम संबंध के बाद दोनों ने शादी कर ली। जरीन पारसी थीं और संजय मुस्लिम, लेकिन दोनों ने अपने रिश्ते को धर्म से ऊपर रखा।

शादी के बाद उन्होंने अपना नाम जरीन कतरक से बदलकर जरीन खान रखा, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने अपना धर्म नहीं बदला। उन्होंने इस्लाम नहीं अपनाया, बल्कि पारसी परंपराओं के साथ जीवन जीना जारी रखा।


एक प्यार भरा परिवार

संजय और जरीन खान के चार बच्चे हुए —

    सुज़ैन खान, जिन्होंने बाद में सुपरस्टार ऋतिक रोशन से शादी की।

    सिमोन अरोरा, जो एक बिजनेसवुमन हैं।

    फरा अली खान, जो फैशन इंडस्ट्री में सक्रिय हैं।

    जायद खान, जो बॉलीवुड अभिनेता हैं।

यह परिवार लंबे समय तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे संस्कारी और प्रतिष्ठित परिवारों में गिना गया। संजय खान की लोकप्रियता और जरीन की सादगी ने इस घर को एक आदर्श जोड़े की पहचान दी।


धर्म पर अपनी स्पष्ट सोच

जरीन खान का जीवन इस बात की मिसाल था कि इंसान का धर्म उसकी इंसानियत से बड़ा नहीं होता।
उन्होंने न तो अपने पति के धर्म को ठुकराया और न अपने धर्म को छोड़ा।
वह हमेशा दोनों परंपराओं का सम्मान करती थीं। ईद हो या नवरोज़, वह दोनों उत्सव पूरे दिल से मनाती थीं।

उनकी यही सोच उनके बच्चों में भी दिखाई दी। परिवार में किसी पर भी धर्म का दबाव नहीं था। यह आधुनिक भारत के उस उदार चेहरों में से एक परिवार था, जो धार्मिक विविधता को जीवन का हिस्सा मानता था।


स्वास्थ्य और जीवन के अंतिम वर्ष

पिछले कुछ वर्षों से जरीन खान स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थीं। बढ़ती उम्र के साथ उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया था। वह अक्सर अस्पताल में भर्ती होती रहीं।
उनकी बेटी सुज़ैन और बेटा जायद हमेशा उनके साथ रहते थे। परिवार ने उन्हें हर सुख-सुविधा दी और उनके अंतिम दिनों को शांतिपूर्ण बनाने की पूरी कोशिश की।

हालांकि, जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती गई, उनका शरीर कमजोर होता गया। 2025 के नवंबर महीने की शुरुआत में उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी, और 6 नवंबर की रात उन्होंने अंतिम सांस ली।


अंतिम संस्कार को लेकर उठे सवाल

उनके निधन के बाद सबसे ज्यादा चर्चा उनके अंतिम संस्कार को लेकर हुई।
लोगों ने देखा कि जायद खान माथे पर तिलक लगाए, मटकी लेकर श्मशान घाट की ओर जा रहे हैं।
यह दृश्य देखकर सोशल मीडिया पर सवाल उठे —
“जब परिवार मुस्लिम है, तो फिर हिंदू रीति से अंतिम संस्कार क्यों?”

बाद में यह स्पष्ट हुआ कि जरीन खान ने खुद अपनी वसीयत में लिखा था कि वह चाहती हैं कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू परंपरा के अनुसार हो।
उनकी यह इच्छा पारसी धर्म की उस पुरानी परंपरा से जुड़ी थी, जिसमें अब विकल्प के तौर पर अग्नि संस्कार को भी स्वीकार किया जाने लगा है।

संजय खान और उनके बच्चों ने जरीन की अंतिम इच्छा का पूरा सम्मान किया।
उनका संस्कार मुंबई के श्मशान गृह में किया गया, और परिवार ने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार उन्हें विदाई दी।


सोशल मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया

इस खबर के फैलने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दीं।
कई लोगों ने परिवार के निर्णय का सम्मान किया और कहा कि “यह जरीन जी की अपनी इच्छा थी, और इसका सम्मान किया जाना चाहिए।”
वहीं, कुछ लोगों ने धर्म के आधार पर आलोचना भी की।

हालांकि, परिवार ने इन विवादों पर कोई बयान नहीं दिया।
जायद खान ने केवल इतना कहा —
“हमने मां की आखिरी इच्छा का सम्मान किया। यही हमारा फर्ज था।”


बॉलीवुड की संवेदनाएं

जरीन खान के निधन की खबर सुनकर फिल्म जगत के कई बड़े कलाकार उनके घर पहुंचे।
संजय खान के पुराने दोस्त और सहकर्मी, साथ ही परिवार के रिश्तेदार ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड सबा आज़ाद के साथ पहुंचे।
सुज़ैन खान पूरी तरह से टूट चुकी थीं।
कई सितारों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

एक्टर धर्मेंद्र ने लिखा —
“जरीन बहुत ही प्यारी और सुसंस्कृत महिला थीं। उनका जाना एक युग का अंत है।”
फरहा खान ने कहा —
“उन्होंने हमें सिखाया कि हर धर्म की जड़ में प्रेम है।”


जरीन खान: कला, परिवार और आत्मसम्मान की प्रतीक

जरीन खान ने भले ही लंबे समय तक कैमरे के सामने काम नहीं किया, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तित्व से लोगों का दिल जीता।
वह एक क्लास, गरिमा और सौंदर्य की प्रतीक थीं।
उन्होंने अपने जीवन में हमेशा सादगी और विनम्रता बनाए रखी।
वह अपने बच्चों की प्रेरणा थीं — विशेषकर सुज़ैन और जायद खान के जीवन में उनका गहरा प्रभाव रहा।

वह कला और संस्कृति से बेहद जुड़ी हुई थीं। उन्होंने लेखन भी किया और कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लिया।
उनके जीवन की सबसे बड़ी सीख यही थी — “धर्म बदलने से नहीं, कर्म और संस्कारों से इंसान की पहचान बनती है।”


एक शांत विदाई

6 नवंबर की शाम को जब उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया, तो वातावरण शांत था।
सूर्य अस्त हो रहा था और हवा में धीमी-धीमी सुगंध थी।
उनके बेटे जायद ने मटकी लेकर अंतिम संस्कार की विधि पूरी की।
वह क्षण परिवार के लिए बेहद भावुक था, पर साथ ही गर्व का भी कि उन्होंने अपनी मां की इच्छा का सम्मान किया।


निष्कर्ष

जरीन खान की कहानी सिर्फ एक अभिनेता की पत्नी या फिल्मी परिवार की सदस्य की नहीं है।
यह उस औरत की कहानी है जिसने अपने जीवन में धर्म, प्रेम और आत्मसम्मान को बराबर महत्व दिया।
उन्होंने न किसी धर्म को ठुकराया, न किसी को ठेस पहुंचाई।
उनका जीवन यह संदेश देता है कि इंसान का धर्म उसकी आत्मा से बड़ा नहीं होता।

उनकी सादगी, गरिमा और इंसानियत हमेशा याद की जाएगी।
वह चली गईं, लेकिन अपने पीछे एक ऐसी मिसाल छोड़ गईं, जो आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि “सच्चे विश्वास में भेद नहीं होता।”

ओम शांति, जरीन खान।