बेटी का बदला — वर्दी वाले दरिंदे को सिखाया कानून का असली मतलब” वर्दी का घमंड चकनाचूर
.
.
नवजीविता की पहली किरण जैसे ही छप्पनगाँव के खेतों पर चमकी, तहसील परिसर की पुरानी ईंटों से बनी इमारत की टूटी फिसलन भरी सीढ़ियाँ अपनी पुरानी यादों को सहेजे हुए खड़ी थीं। वहाँ के लोग कई सालों से भ्रष्टाचार, अवैध कब्जा और अधिकारीयों की मिलीभगत से जूझ रहे थे, पर किसी ने आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई। इस शहर की ख़ बर राजधानी से आती थी—ये जिला जनता की सुनवाई के दफ़्तर में फाइलों की लंबी कतार के नाम पर खेल था, ज़मींदारों और दलालों को संरक्षण देने का खेल। गाँव के किसान, सीमांत मजदूर और छोटे दुकानदार सब बेबस थे।
पर उस सुबह तहसील परिसर में हवा कुछ अलग सी थी। दरवाज़ा खुला, और अंदर से कदमों की ठोकरों की गूँज आई—नए तहसीलदार आईआरएस अनुजा मिश्रा अपने दमकते चश्मे और काले कॉटन सूट में लिखने की फाइल थामे आई थीं। उनके साथ सहायक आर्यन सिंह थे, जो थोड़े झिझकते हुए पर उत्सुक थे। अनुजा ने अपनी टीम से कहा, “आज से इस तहसील में जो भी अवैध कब्जा, रिश्वत और घूसखोरी का मामला होगा, मैं खुद उसकी छानबीन करूँगी। फिलहाल मैं सबसे पहले परिचय कराना चाहती हूँ।” चश्मे के पीछे उनकी आँखों में संतुलित उत्साह था—न्याय की आग जिसे भड़कना अब बाकी था।
पहले ही दिन उन्हें मिली शिकायतों की फ़ाइलें देखकर अंदाज़ा हो गया कि यहाँ की गंदी नीयत कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी है। किसान राजबीर सिंह की याचिका में लिखा था कि छह महीने पहले उनके बंजर पड़े एक एकड़ को लेकर अवैध कब्जा हो गया, और जब वे तहसील आए तो खान साहब नाम के ज़मींदार ने बड़े क्रूर लहजे में धमकाया कि वह इस मामले में दखलबाज़ी न करें। राजबीर ने दावा किया कि तहसीलदार के चश्मदार बाबू ने उनसे पैसे लिए पर मामला आगे नहीं बढ़ाया। दुकानदार राधेश्याम पांडेय की शिकायत में बताया गया कि छोटे-छोटे दस्तावेज बनवाने पर भी पंद्रह-पंद्रह सौ रुपये रिश्वत अदा करने पड़ते थे।
अनुजा ने एक-एक फ़ाइल ध्यान से पढ़ी, फोटो कॉपी निकाली और बोले, “हम इन्हें मिटने नहीं देंगे। कल सुबह स्वयं राजबीर सिंह का खेत देखना है, साथ में सरकारी सर्वेयर भी बुलाऊँगी।” सहायक आर्यन ने तुरंत ज़रूरी विभागों को फोन मिलाया, और अगले ही दिन एक सर्वे टीम तहसील की जीप में बैठकर खड़े राजबीर के खेत पहुंची। वहाँ मकान तो नहीं था, पर धान की फसल के साथ सघन बबूल के पेड़ भी उग आए थे, और बीच-बीच में लोहे की लोहे की ऊँची बाड़ बनाई गई थी, जिस पर लिखा था—“कब्जा अवैध है, जाँच रोके/गुमराह करे तो जेल होगी।” राजबीर ने अपनी पुरानी टोपी सीधी की, चश्मे में परिश्रम की धूल थी, आँखों में आशा का अंजन। उसने बताया कि छह महीने पहले कोई “बड़का साहब” आया, उसने पैसा लिया, और तब से तहसील का स्टांप तक नहीं लगा।
अनुजा ने सर्वेयर से कहा, “अभी यह पूरा नाप-जोख खुद लाइए, सभी काग़जात पेश कीजिए।” सर्वेयर ने काग़ज़ तैयार करने की बात कहकर पैसों का हिसाब करने शुरू किया तो अनुजा ने उसकी टोपी छीन कर रख दी और बोली, “आप यहाँ रिश्वत लेने आए थे? तुरंत मुझे एक-एक दस्तावेज़ की असल कापियाँ और डिजिटल रिकॉर्ड दिखाइए।” सर्वेयर की साँसें फूल गईं, उसने जेब से पैसे गिनने की बात यहीँ स्वीकार कर ली। अनुजा ने फोन करके एसपी महोदय को बुलाया और खुलेआम सर्वेयर को रिश्वत लेते गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया। आसपास खड़े किसान-लोगों ने तालियाँ बजाईं—पहली बार किसी अधिकारी ने उनके दर्द को अपना समझा था।
उस वहीं से पहला झटका मिला। तहसील के चश्मदार बाबू लालकिशोर ने सुबह चुपके से अनुजा का फोन बंद करवा दिया और उनके ब्रेकफ़ास्ट के लिए सेट की कॉफ़ी में कुछ मिलाने की कोशिश की। अनुजा के स्टाफ ने समय रहते पहचान लिया, और जब उन्होंने ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर रखी कॉफ़ी का सैंपल लैब भेजा, तो वहाँ जहर का अंश मिला। अनुजा ने खुद अपने कड़े तेवर में बाबू और रसोइये को पकड़ा, और कहा, “अगर आप यहाँ खून का खेल खेलने आए हैं, तो समझ लीजिए जितना आप सोचे उससे दुगना जवाब मिलेगा।” भयभीत बाबू लालकिशोर ने कुर्सी पर सिर रख लिया। अनुजा ने उसका मोबाइल जब्त कर लिया और डिटेल्ज के साथ आला दर्जे के अधिकारी को रिपोर्ट लिखी।

तहसील परिसर में धुआँ-धड़ाका मचा दिया। कोई समझ न पा रहा था कि इस महिला अधिकारी ने इतनी जल्दी कैसे नियंत्रण कर लिया। गाँव वालों ने धीरे-धीरे पटरी पकड़ ली कि अब यहाँ सिर्फ फाइलों का सौदा नहीं बल्कि हक़ के दस्तावेज़ों की लड़ाई लड़ने वाले आया है। राजबीर सिंह के कब्जे का मामला पहला सफल बना, उसका रजिस्टर तहसील में ठीक सामने बोर्ड पर पेंच करवाकर लगाया गया कि “यह क्षेत्र अवैध कब्जाधारियों से मुक्त किया गया”।
पर सत्ता के अंधेरे कोनों में जो लोग रोज़ी-रोटी कमाते थे, उनके पैर किचेन भुट्टे की तरह बिखर गए। जैसे ही बाबू लालकिशोर को अस्थायी निलंबन का नोटिस भेजा गया, तहसील के बाहर आये उनके सहयोगी—पाँच-छः भू-माफिया, दलाल और बाबुओं ने जाम लगाया। उन्होंने जूते-चप्पल उछाले, प्रशासकीय इमारत की खिड़कियाँ तोड़ दीं, और पार्किडज कारों की टकटकी में हाथ उठाकर धमकियाँ दीं। “ये सब रोको, वरना तहसील में रक्त वर्षा करवा दूँगे”—शोर इतना मचाया कि आसपास की पुलिस चौकी तक में अफसर कांप गए।
लेकिन अनुजा ने पीछे न हटने का फैसला कर लिया। उसने जिला मजिस्ट्रेट से फोन पर कहा, “यहां राज्य शासन का राज स्थापित होना है, निजी गुंडों का नहीं।” दो ही घंटे में अधीनस्थ आईटीबीपी पोस्ट से बीएसएफ के जवान बुला लिए गए, और तहसील के चारों ओर कड़ी सुरक्षा परिपाटी लग गई। गुंडे देख कर बौखलाए, और धीरे-धीरे भीड़ तितर-बितर हो गई। अनुजा ने अपने स्टाफ से कहा, “कि अब ठोस कार्रवाई की बारी है।” तहसील के दस्तावेज़ों की छानबीन की—हर फ़ाइल, हर हिसाब, हर जमा-निकासी, और तय पाए गए करीब बीस मकानों पर अवैध कब्जों के खिलाफ नोटिस चस्पा किए गए।
तभी एक नया मोड़ आया। रात को अनुजा को अपराह्न नौ बजे एक अज्ञात नंबर से कॉल आया, आवाज़ कर्कश थी—“तुम्हें हटवा देंगे, कहीं भी हो, याद रखना कौड़ियों की वर्दी तक तुम्हें बचा नहीं पाएगी।” अनुजा ने सर्दी से चिल्ला कर कहा, “वर्दी का अकबँदगी से महत्त्व तभी है जब आपके इरादे निष्ठावान हों। झूठे डर मुझे नहीं भगाएंगे।” उसने तुरंत थाने में एफआईआर दर्ज करवाई और फोन की कॉल-डिटेल प्राप्त करने के लिए एसपी से मदद मांगी। अगले दिन रविवारी फोरेंसिक टीम आई, कॉल-रिकार्ड जमा किए गए, और तहसील परिसर में सीसीटीवी फुटेज खोले गए। गठबंधन दलालों के नाम सामने आने लगे—एल्डर लोहार, मनोहर भगत, लालजी पटेल—जिन्होंने मिलकर तहसील परिसर को अराजकता का अड्डा बना रखा था।
इसी बीच जिले के दंडाधिकारी (एसडीएम) ने अचानक समीक्षा के लिए वहां आने का निणय किया। उनका नाम थियो: डॉ. अरुण कुमार जो खुद आईएएस प्री-टीयर टॉपर रह चुके थे। अनुजा की रिपोर्टों को पढ़कर वे चौंके कि यहाँ हालात कितने भयावह हैं। उन्होंने अनुजा से कहा, “आपके द्वारा किए गए काम अचंभित करने वाले हैं, पर जमीन पर और भी बड़े बदलाव की ज़रूरत है। हमें तहसील को मॉडर्न टेक्नोलॉजी से लैस करना होगा—डिजिटल मैपिंग, ऑनलाइन फाइलिंग, और जनता के लिए ‘वन-स्टॉप पोर्टल’ खोलना होगा।” अनुजा के चेहरे पर चमक थी—“अगर आप आज हाँ कहें तो कल से हम काम पर लग सकते हैं।”
तब से अगले तीन सप्ताह में तहसील ने लीक़ी जेल बॉण्ड्स को डिजिटल सिस्टम में तब्दील किया; रजिस्ट्रार की पुरानी आलमारियाँ खंगालीं और डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया। जो दस्तावेज गायब थे, उनका भी बैकअप इंटरनेट से ढूँढ़ा गया। एमपीएसएस और पंचायतों के साथ मिलकर ‘ग्राम-ग्रीड मैपिंग’ लागू की गई, जिससे हर खेत-खसरा का ऑनलाइन नक्शा तहसील पोर्टल पर उपलब्ध हुआ। जनता मोबाइल ऐप के ज़रिए अपने फाइल स्टेटस और योजनाओं के लाभ देख सकती थी। तहसील की नई डिजिटलीकरण व्यवस्था से जिन दलालों की चमचमटी रंगत और किकबैक कमाई रुकी, उन्हें समझ में आ गया कि अब रिश्वत की वैल्यू खत्म हो गई।
लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी लालाबी राजस्व इकट्ठा करने का माफिया, जिसने नियमों को हलके में लिया था। वह तहसील प्रशासन और क्षेत्रीय विधायक के बीच गठजोड़ कर चुका था। अनुजा और अरुण ने मिलकर पिछले पांच साल की सभी रजिस्ट्रेशन फीस और पैनल्टी की लिस्ट बनवाई। जब जुर्माना और बकाया राशि का पूरा हिसाब जनता के सामने सार्वजनिक पोर्टल पर डाल दिया गया, तो विपक्षी दलों और मीडिया का ध्यान झट से उसी ओर गया। अख़बारों ने पहले पेज पर कोई कम नहीं बताया कि “छप्पनगाँव तहसील में करोड़ों की गड़बड़” और “क़ानून के सरताजों ने माफिया को घेर लिया”।

उसके बाद राज्य सरकार ने तुरन्त नोडल ऑफ़िस तैयार किया, जिसमें अनुजा को ‘डिजिटल तहसील मिशन’ की इंचार्ज नियुक्त कर दिया गया। कलेक्टर ने उसके लिए स्पेशल बजट दिया, और अगले दो महीनों में तहसील स्टाफ ट्रेनिंग के लिए ले गए—कस्टमर केयर, डिजिटल प्रमाणीकरण, GIS मैपिंग, और ऑनलाइन शिकायत निवारण। पल-पल में जनता की सकारात्मक प्रतिक्रिया आने लगी—“अब बाबू डरते नहीं, रिकॉर्ड खुलकर जनता के हाथ में है”।
जब पूरा सिस्टम सुचारू हुआ, तब गुंडे-भू-माफिया की सांसे उखड़ने लगीं। जिसने जितनी दलाली की, उसकी कनेक्शन लिस्ट सार्वजनिक हुई। उस लिस्ट में स्थानीय विधायक का भी नाम था। कलक्ट्रेट चकरावर्ती गेट पर बड़े बुलबुले से नारे लिखे गए—“विधायक को ईमानदारी से जवाब!”—और एक शिष्टाचार नोटिस नोटिस चस्पा किया गया कि वे तहसील आएँ और अपने खिलाफ लगे आरोपों का जवाब दें। विधायक के लोग घबड़ाए, और विधायक ने खुद आते-आते ‘गलती से कुछ सुरुचिपूर्ण दस्तावेज नहीं लौटा पाए’ का बहाना बनाया। लेकिन तब तक मीडिया ने उनकी रफ़्तार पकड़ ली थी—बैठकों की वीडियोग्राफी हुई, सवाल पूछे गए, जवाब न मिलने पर कानूनन स्पष्टीकरण माँगा गया।
कुछ ही समय में प्रदेश सतर्कता आयुक्त ने भी संलिप्तता की जांच शुरू की, और तीन दिनों में विधायक के बैंक ट्रांजैक्शन्स की किताबें जब्त कर लीं। जैसे-जैसे तथ्य बाहर आते गए, विधायक का बचाव खत्म होता गया। सरकार ने नो-कंजेशन ज़ोन बनाकर विधायक की सभी सरकारी योजनाओं को रोक दिया। विधानसभा में विपक्षी दल हंगामा कर बैठा, और अंततः विधायक को इस्तीफा देना पड़ा। छप्पनगाँव तहसील की जनता ने पहली बार सीधा महसूस किया कि अगर एक अधिकारी ने अपने इरादे पुख्ता कर लिए तो भ्रष्टाचार की दीवार को चीर कर नया सूरज उग सकता है।
अनुजा मिश्रा का समापन समारोह तहसील प्रांगण में आमंत्रित किसान-मज़दूर, दुकानदार, छात्र, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि सभी उपस्थित थे। उन्होंने तहसील के चौक पर एक आमसभा बुलाई, जहाँ उन्होंने कहा, “सही मायने में शासन वही जहाँ जनता के हाथ में शासन का औजार हो। हम सिर्फ प्रशासन नहीं, आपका साथी बनेंगे। यह सिर्फ एक शुरूआत है—अब गाँव का विकास, शिक्षा, स्वच्छता, महिला सुरक्षा, हर मोर्चे पर हमें इसी तरह काम करना है।”
उस दिन धूप में मौसम गुनगुना था, पर छप्पनगाँव के लोगों की धड़कनें ठंडी हो चुकी थीं—धरती को बचाने तथा मानवता को संवारने की ठोस योजनाओं की ठंडी तासीर थी। तहसीलदार अनुजा मिश्रा ने लोगों की तालियों के बीच एक छोटा-सा तोहफ़ा भी दिया—एक किसान-उपज बाज़ार का प्रस्ताव, जहाँ बिना बिचौलिए के किसान अपनी फसल सीधे बेच सकें, और महिला उद्यमिता केंद्र की स्वीकृति, जहाँ ग्रामीण महिलाएँ सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटी और डिज़ाइन सीखकर आत्मनिर्भर बनें।
आज जब आप छप्पनगाँव तहसील के पुराने रिकॉर्ड देखेंगे, तो न सिर्फ भांडाफोड़ के पन्ने मिलेंगे, बल्कि एक नए युग के आरम्भ की कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी—हर गिरफ़्तारी, हर डिजिटल रजिस्ट्रेशन, और हर नए जन-कल्याण योजना की तारीख़ अंकित होगी। गाँव के बच्चे अब स्कूल की छुट्टी के बाद तहसील के ओपन हॉल में कंप्यूटर सीखते हैं, किशोरियाँ अपने सिलाई-कढ़ाई केंद्र में रोज़ाना आती हैं, और किसान चौपाल में मिल-जुल कर अपनी समस्याएँ तहसील तक सुनाते हैं।
और सबसे बड़ी बात यह कि छप्पनगाँव तहसील अब सिर्फ एक प्रशासनिक इकाई नहीं रही, बल्कि एक प्रेरणा बन गई—यह कहानी है अनुजा मिश्रा जैसी एक अधिकारी की, जिसने भ्रष्टाचार की दीवारों को तोड़ा, जनता के हाथों में सशक्त औज़ार थमा दिये, और साबित कर दिया कि जब इरादे नेक हों, तो कितनी भी अँधेरी दीवारें हों, एक चिराग की लौ उससे रंगीन कर सकती है।
News
मासूम बच्चे ने सिर्फ खाना मांगा था, करोड़पति पति–पत्नी ने जो किया… पूरी इंसानियत रो पड़ी
मासूम बच्चे ने सिर्फ खाना मांगा था, करोड़पति पति–पत्नी ने जो किया… पूरी इंसानियत रो पड़ी . अगली सुबह जब…
पुनर्जन्म | 8 साल की लड़की ने बताई अपने पिछले जन्म की कहानी | 8 साल की लड़की निकली दो बच्चों की माँ
पुनर्जन्म | 8 साल की लड़की ने बताई अपने पिछले जन्म की कहानी | 8 साल की लड़की निकली दो…
जब पुलिसवालों ने डीएम की बूढ़ी मां को आम औरत समझकर बर्तनों के पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ?
जब पुलिसवालों ने डीएम की बूढ़ी मां को आम औरत समझकर बर्तनों के पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ? ….
अंधी बनकर थाने पहुँची IPS मैडम के साथ , दरोगा ने बदतमीजी की ; फिर मैडम ने जो किया …..
अंधी बनकर थाने पहुँची IPS मैडम के साथ , दरोगा ने बदतमीजी की ; फिर मैडम ने जो किया ……..
“IPS ने लाल जोड़ा पहनकर किया भ्रष्ट दरोगा का पर्दाफाश – आगे जो हुआ आपको हैरान कर देगा!”
“IPS ने लाल जोड़ा पहनकर किया भ्रष्ट दरोगा का पर्दाफाश – आगे जो हुआ आपको हैरान कर देगा!” . ….
“IPS मैडम ने थप्पड़ मारा तो मंत्री का बेटा बोला – जानती हो मेरा बाप कौन है”
“IPS मैडम ने थप्पड़ मारा तो मंत्री का बेटा बोला – जानती हो मेरा बाप कौन है” . . दोपहर…
End of content
No more pages to load

 
 
 
 
 
 


