हेमा की वजह से गई धर्मेन्द्र की जान ! सनी देओल ने बताया सारा सच !

धर्मेंद्र देओल के अंतिम संस्कार पर उठे सवाल: राजकीय सम्मान क्यों नहीं मिला? परिवार में बंटा शोक, जानिए पूरी रिपोर्ट

मुंबई।
बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र देओल के निधन के बाद न सिर्फ उनके फैंस बल्कि पूरा फिल्म जगत शोक में डूबा है। 24 नवंबर 2025 को धर्मेंद्र ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके अंतिम संस्कार को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

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राजकीय सम्मान से वंचित क्यों रहे धर्मेंद्र?

भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण या पद्मश्री से सम्मानित कलाकारों को आमतौर पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाती है। लता मंगेशकर जैसी महान हस्ती को तिरंगे में लपेटकर, फैंस को अंतिम दर्शन का मौका दिया गया था। लेकिन धर्मेंद्र देओल के साथ ऐसा नहीं हुआ।
उनका अंतिम संस्कार बेहद जल्दी और साधारण तरीके से कर दिया गया। एंबुलेंस में पार्थिव शरीर को जूहू स्थित उनके रेजिडेंस से शमशान ले जाया गया और परिवार ने फैंस को अंतिम दर्शन का मौका नहीं दिया। एंबुलेंस को फूलों से नहीं सजाया गया, न ही शोभायात्रा निकाली गई।

परिवार में दो शोक सभाएं, एकता की कमी क्यों?

धर्मेंद्र के परिवार में दो अलग-अलग शोक सभाएं रखी गईं:

पहली पत्नी प्रकाश कौर के घर पर, जहां सनी देओल, बॉबी देओल, अजीता और विजेता मौजूद थे।
दूसरी पत्नी हेमा मालिनी के घर पर, जहां ईशा देओल थीं, जबकि अहाना ऑस्ट्रेलिया में होने के कारण अंतिम दर्शन के लिए नहीं आईं।

फैंस का सवाल है कि धर्मेंद्र की आखिरी इच्छा थी कि परिवार एकजुट रहे, तो उनकी 13वीं पर सभी एक साथ क्यों नहीं आए? क्या दो जगह पर शोक सभा रखना उचित है?

धर्मेंद्र की बिगड़ती तबीयत और अंतिम समय

31 अक्टूबर 2025 को धर्मेंद्र को अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई, और ब्रिज कैंडी हॉस्पिटल के एक स्टाफ द्वारा बनाई गई वीडियो से साफ था कि वे बहुत कमजोर हो चुके थे। परिवार ने शायद इसी वजह से फैंस को अंतिम दर्शन नहीं दिया, ताकि उनकी कमजोर हालत देखकर कोई आहत न हो।

सोशल मीडिया पर उठे सवाल

फैंस और सेलिब्रिटीज लगातार सोशल मीडिया पर सवाल पूछ रहे हैं कि धर्मेंद्र को राजकीय सम्मान क्यों नहीं मिला? क्या परिवार को उनके योगदान को देखते हुए उन्हें सम्मानित तरीके से विदाई नहीं देनी चाहिए थी?

शायरी के रंग में श्रद्धांजलि

धर्मेंद्र के चाहने वालों के लिए कुछ शेर:

लहर खुशी की आते ही चली जाती है,
और घड़ी गम की जाते-जाते है।
बदी का अंत है कहीं आसपास,
नेकी का कहीं कोई अंत नहीं।
किताब नेकी की पढ़ ले बंदे,
इससे बड़ा कोई ग्रंथ नहीं।
देख मुझे अपना ही कातबे तकदीर,
मेरा मालिक भी मेरे साथ हो गया।
आहिस्ता-आहिस्ता जीत तो होती है एक दिन।

निष्कर्ष

धर्मेंद्र देओल के निधन के बाद उनके परिवार में बंटा शोक और राजकीय सम्मान ना मिलने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। फैंस चाहते हैं कि धर्मेंद्र की 13वीं पर पूरा परिवार एकजुट होकर उन्हें अंतिम विदाई दे।
क्या आपको लगता है कि धर्मेंद्र देओल के योगदान को देखते हुए उन्हें राजकीय सम्मान मिलना चाहिए था? अपनी राय कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें।

जिंदगी मेरी दिलचस्प एक दास्तान,
जो बनके बुजारत पलों में बीत गई।
खामोशी को मेरी बदजाजी ना समझना,
चाहत सबसे बदस्तूर बरकरार है दोस्तों।