अमीर लड़की ने गरीब लड़के को दी मदद, लेकिन जब उसे सच्चाई पता चली तो उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई!
मोहब्बत या इंतकाम?
क्या होता है जब दो दुनिया टकराती हैं? एक सोने के महलों की और दूसरी टूटी हुई झुग्गियों की? क्या इंसान की पहचान उसके कपड़ों और घर से होती है या उसके दिल और इरादों से? यह कहानी एक ऐसी ही अमीर लड़की की है, जिसकी आँखों ने कभी गरीबी का अंधेरा नहीं देखा था, और एक ऐसे गरीब लड़के की है जिसकी ज़िंदगी में उम्मीद की कोई किरण नहीं थी। जब उस लड़की ने दरियादिली दिखाकर उस लड़के की जिंदगी बदल दी तो उसे लगा कि उसने दुनिया की सबसे बड़ी नेकी की है। पर उसे कहाँ पता था कि जिस लड़के को वह अपनी दया का पात्र समझ रही है, उसकी आँखों में एक ऐसा गहरा राज़ दफ़न है, एक ऐसी सच्चाई छिपी है जो जब सामने आएगी तो सिर्फ उस लड़की के ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार के पैरों तले की ज़मीन खिसका देगी। यह कहानी उस धोखे, उस सच्चाई और उस मोहब्बत की है जो नियति के एक ऐसे चक्रव्यूह में उलझी थी जहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
दो दुनिया, एक शहर
दिल्ली, एक शहर, दो चेहरे। एक चेहरा लुटियंस की चौड़ी, हरी-भरी सड़कों पर बसता था, जहाँ आलीशान कोठियों के बंद दरवाज़ों के पीछे देश की किस्मत के फैसले होते थे। दूसरा चेहरा यमुना के किनारे बसी तंग, बदबूदार बस्तियों में साँस लेता था, जहाँ हर सुबह जिंदगी की एक नई जंग शुरू होती थी। इन्हीं दो चेहरों के बीच दो जिंदगियाँ पल रही थीं, एक-दूसरे से मीलों दूर, एक-दूसरे से पूरी तरह अनजान।
पहली जिंदगी थी आन्या मेहरा की। शहर के सबसे बड़े बिल्डर सिद्धार्थ मेहरा की इकलौती बेटी। आन्या की दुनिया किसी परिकथा से कम नहीं थी। उसका घर जोरबाग में बना एक महलनुमा बंगला था जिसके लॉन में दौड़ते हुए घोड़े भी थक जाएँ। उसकी सुबह विदेशी परिंदों की चहचहाट और बेड टी की खुशबू से होती थी। उसके दिन दोस्तों के साथ शॉपिंग करने, पॉश क्लबों में लंच करने और शामें ग्लैमरस पार्टियों में गुजरती थीं। उसे कभी किसी चीज़ के लिए ‘ना’ नहीं सुनना पड़ा था। दौलत उसके कदमों में बिछी थी और दुनिया उसकी एक मुस्कान पर फिदा थी। लेकिन इस सुनहरे पिंजरे के बावजूद, आन्या का दिल सोने का नहीं बल्कि मोम का था। वो नरम दिल थी, दयालु थी और दूसरों के दुख को महसूस कर सकती थी, भले ही उसने खुद कभी दुख देखा ना हो।
दूसरी जिंदगी थी रोहन की। वह उसी शहर के दूसरे कोने में एक गुमनाम सी झुग्गी बस्ती में रहता था। उसका घर टीन और तिरपाल से बनी एक छोटी सी झोपड़ी थी जो हर मॉनसून में टपकती और हर गर्मी में भट्टी की तरह तपती थी। उसकी सुबह पास की फैक्ट्री के सायरन और अपनी बीमार माँ की खाँसी से होती थी। उसके दिन कॉलेज की किताबों और पार्ट टाइम मजदूरी के बीच भागते हुए गुजरते थे और रातें माँ के पैरों को दबाते और अपनी किस्मत को कोसते हुए। रोहन की माँ शारदा, पिछले दो सालों से बीमार थी। डॉक्टरों ने कहा था कि उनके दिल में छेद है और ऑपरेशन के सिवा कोई चारा नहीं है। ऑपरेशन का खर्च इतना था कि रोहन अगर अपनी पूरी जिंदगी भी मजदूरी करता तो भी जमा नहीं कर पाता। लेकिन रोहन ने हार नहीं मानी थी। वह होनहार था, अपनी क्लास का टॉपर था। उसकी आँखों में बड़े सपने थे। वह एक बड़ा इंजीनियर बनना चाहता था, अपनी माँ को इस नर्क से निकालकर एक अच्छा सा घर देना चाहता था।
एक बारिश और दो अनजान अजनबी
एक दिन दिल्ली की बेरहम बारिश ने इन दोनों दुनियाओं को मिलाने का फैसला कर लिया। आन्या अपनी नई स्पोर्ट्स कार में अपनी दोस्त की बर्थडे पार्टी से लौट रही थी। उसका ड्राइवर छुट्टी पर था तो वह खुद ड्राइव कर रही थी। अचानक उसकी कार एक सुनसान सड़क पर बंद पड़ गई। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन कार स्टार्ट नहीं हुई। बारिश तेज होती जा रही थी और उसका फ़ोन भी नेटवर्क एरिया से बाहर था। वह परेशान होकर गाड़ी से उतरी। चारों तरफ अंधेरा और सन्नाटा था। पास ही में वह झुग्गी बस्ती थी जिसके बारे में उसने सिर्फ सुना था। उसे थोड़ा डर लगा, लेकिन उसके पास कोई और चारा भी नहीं था। वह मदद की तलाश में भीगते हुए बस्ती की तरफ बढ़ी। कीचड़ और गंदगी से बचाती-बचाती वह एक छोटी सी गली में पहुँची, जहाँ एक झोपड़ी के बाहर टिमटिमाते बल्ब की रोशनी में एक लड़का अपनी किताबों को बारिश से बचाने की कोशिश कर रहा था। वह रोहन था। उसके हाथ में इंजीनियरिंग की एक मोटी सी किताब थी, जिसका एक-एक पन्ना उसके लिए किसी खज़ाने से कम नहीं था।
आन्या ने झिझकते हुए आवाज़ दी, “एक्सक्यूज़ मी, क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मेरी कार खराब हो गई है।” रोहन ने नज़र उठाकर देखा। सामने खड़ी लड़की किसी दूसरी दुनिया की लग रही थी। भीगने के बावजूद उसके डिजाइनर कपड़े और चेहरे की मासूमियत उसकी अमीरी की गवाही दे रहे थे। रोहन ने एक पल सोचा, फिर अपनी किताबों को संभालकर अंदर रखते हुए बोला, “जी, बताइए।” आन्या ने उसे अपनी समस्या बताई। रोहन उसके साथ चलकर उसकी कार तक गया। उसने बोनट खोला और कुछ देर तक इंजन को देखता रहा। फिर उसने कुछ तारों को जोड़ा और आन्या से कार स्टार्ट करने को कहा। हैरानी की बात थी कि कार एक ही बार में स्टार्ट हो गई। आन्या की जान में जान आई। उसने मुस्कुराकर कहा, “थैंक यू सो मच। तुम तो बहुत जीनियस हो। मैं तुम्हें इसके लिए क्या दे सकती हूँ?” उसने अपने पर्स से 2000 का नोट निकाला और रोहन की तरफ बढ़ाया।
रोहन ने उस नोट को देखा, फिर आन्या की आँखों में। उसकी आँखों में एक अजीब सी स्वाभिमान की चमक थी। उसने हाथ जोड़ने का इशारा करते हुए कहा, “माफ़ कीजिए मैडम, मुझे पैसे नहीं चाहिए। मैंने बस एक इंसान के नाते आपकी मदद की।” आन्या को बहुत हैरानी हुई। आज तक उसे कोई ऐसा इंसान नहीं मिला था जिसने उसके दिए हुए पैसे लेने से मना कर दिया हो। वह उस लड़के के स्वाभिमान से बहुत प्रभावित हुई। उसने पूछा, “तुम करते क्या हो?”
“मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूँ, फाइनल ईयर में हूँ और अपनी माँ का ख्याल रखता हूँ। वह बीमार है।” रोहन की आवाज़ में एक उदासी थी जिसे आन्या ने महसूस कर लिया। “क्या हुआ है उन्हें?” आन्या ने नरमी से पूछा। रोहन ने झिझकते हुए अपनी माँ की बीमारी और ऑपरेशन के बारे में सब कुछ बता दिया। बताते हुए उसकी आँखें भर आईं। आन्या का दिल पसीज गया। उसे लगा जैसे यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह इस होनहार और स्वाभिमानी लड़के की मदद करे। उसने कहा, “तुम चिंता मत करो। तुम्हारी माँ का ऑपरेशन होगा, और देश के सबसे अच्छे अस्पताल में होगा। सारा खर्च मैं दूँगी और तुम्हारी पढ़ाई का खर्च भी।” रोहन को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। वह अविश्वास से आन्या को देखने लगा, “नहीं मैडम, मैं आपका इतना बड़ा एहसान नहीं ले सकता।”
“यह एहसान नहीं है। समझ लो कि यह तुम्हारे टैलेंट की फीस है जो तुमने अभी मेरी कार ठीक करके कमाई है। और अगर तुम मना करोगे तो मुझे लगेगा कि तुमने मेरी मदद को ठुकरा दिया।” आन्या की आवाज़ में एक ऐसी सच्चाई थी कि रोहन मना नहीं कर पाया। उसने नम आँखों से बस इतना कहा, “मैं आपका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।”
इश्क़ की शुरुआत और एक बड़ा मोड़
उस दिन के बाद आन्या की जिंदगी बदल गई। उसने रोहन की माँ को शहर के सबसे महंगे अस्पताल में भर्ती करवा दिया। देश के सबसे बड़े कार्डियोलॉजिस्ट ने उनका ऑपरेशन किया। आन्या हर रोज़ अस्पताल जाती, घंटों शारदा जी के पास बैठती, उनसे बातें करती। शारदा जी उसे अपनी बेटी की तरह मानने लगी थीं। वह हमेशा कहतीं, “तू मेरे लिए भगवान बनकर आई है, बेटी।”
रोहन और आन्या की दोस्ती भी गहरी होती जा रही थी। आन्या अक्सर रोहन से मिलने उसकी बस्ती में जाती। वह देखती कि कैसे रोहन एक छोटे से कमरे में बिना किसी सुविधा के दिन-रात पढ़ाई करता है। वह उसके जुनून और उसकी मेहनत की कायल हो गई थी। रोहन उसे अपनी दुनिया की कहानियाँ सुनाता, अपनी छोटी-छोटी खुशियों और बड़े-बड़े सपनों के बारे में बताता। आन्या को एहसास हुआ कि असली जिंदगी वह नहीं है जो वह जी रही है। असली जिंदगी तो इन संघर्षों में है। उसे रोहन से प्यार होने लगा था। एक ऐसा प्यार जो दौलत और शोहरत की सीमाओं से परे था।
आन्या के पिता सिद्धार्थ मेहरा को जब इस बारे में पता चला तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने आन्या को समझाने की बहुत कोशिश की, “एक झुग्गी में रहने वाले लड़के से तुम्हारा कोई मेल नहीं है, आन्या। दुनिया क्या कहेगी? लोग हँसेंगे हम पर।” लेकिन आन्या ने साफ कह दिया, “पापा, मुझे दुनिया की परवाह नहीं है। मैं रोहन से प्यार करती हूँ और उसी से शादी करूँगी।” सिद्धार्थ मेहरा ने अपनी बेटी की जिद के आगे हार मान ली। उन्होंने सोचा कि कुछ दिनों में यह बचपना खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। लेकिन वह गलत थे।
समय का पहिया घूमता रहा। देखते-देखते सात साल गुजर गए। इन सात सालों में गंगा में बहुत पानी बह चुका था। रोहन ने आन्या की मदद से एक छोटा सा सॉफ्टवेयर स्टार्टअप शुरू किया था। अपनी मेहनत और लगन से उसने उस छोटी सी कंपनी को देश की सबसे तेजी से बढ़ने वाली टेक कंपनीज़ में से एक बना दिया था। उसकी कंपनी का नाम आर्टिक सोल्यूशंस आज देश की टॉप 10 सॉफ्टवेयर कंपनीज़ में शामिल था। वह अब झुग्गी में नहीं, बल्कि एक पॉश इलाके के शानदार पेंट हाउस में रहता था। उसकी माँ पूरी तरह स्वस्थ थी और अपने बेटे की कामयाबी पर फूली नहीं समाती थी। रोहन आज एक सेल्फ मेड करोड़पति था जिसका नाम बिज़नेस मैगज़ीन के कवर पर छपता था।
और दूसरी तरफ सिद्धार्थ मेहरा का साम्राज्य ढह चुका था। शेयर बाजार में एक बड़े घोटाले में उनका नाम आया। उनकी कंपनी दिवालिया हो गई। रातोंरात वह अर्श से फर्श पर आ गए। जोर बाग वाला बंगला नीलाम हो गया, गाड़ियाँ बिक गईं, दोस्तों और रिश्तेदारों ने मुँह मोड़ लिया। इस सदमे से सिद्धार्थ मेहरा को दिल का दौरा पड़ गया और वह पैरालाइज़ हो गए। आन्या की दुनिया उजड़ चुकी थी। जिस लड़की ने कभी धूप नहीं देखी थी, आज वह अपने बीमार पिता को लेकर एक छोटे से किराए के मकान में रहने को मजबूर थी। पिता के इलाज और घर का खर्च चलाने के लिए उसे नौकरी की जरूरत थी। उसने हर जगह कोशिश की, लेकिन उसके पास कोई ख़ास डिग्री या अनुभव नहीं था। उसने रोहन से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उसका नंबर बदल चुका था और वह कहाँ रहता है, उसे पता नहीं था। सात सालों में दोनों के बीच संपर्क टूट चुका था। आन्या को लगता था कि शायद रोहन अब उसे भूल चुका होगा, वह अब एक बड़ा आदमी बन गया था।
सच्चाई का कड़वा घूँट
एक दिन एक अखबार में उसने आर्टिक सोल्यूशंस नाम की एक बड़ी कंपनी में वैकेंसी का इश्तहार देखा। उन्हें एक एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट की जरूरत थी और सैलरी इतनी थी कि उसकी सारी मुश्किलें हल हो सकती थीं। आन्या ने अपनी सारी उम्मीदें समेटकर उस नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया। कई राउंड के इंटरव्यू के बाद उसे फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। उसे बताया गया कि कंपनी के सीईओ खुद उसका इंटरव्यू लेंगे। आन्या घबराई हुई लेकिन आत्मविश्वास से भरी हुई सीईओ के केबिन में दाखिल हुई। केबिन किसी राजा के दरबार जैसा था जहाँ से पूरी दिल्ली का नज़ारा दिखता था। सीईओ अपनी बड़ी सी लेदर की कुर्सी पर बैठा था। उसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी। आन्या ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “मे आई कम इन, सर।”
कुर्सी धीरे से घूमी। कुर्सी पर जो शख्स बैठा था, उसे देखकर आन्या के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। वह रोहन था। वही रोहन जिसे उसने कभी अपनी दया का पात्र समझा था। आज वह एक शक्तिशाली और आत्मविश्वास से भरे हुए बिज़नेस टाइकून के रूप में उसके सामने बैठा था। उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी, लेकिन आज उसमें स्वाभिमान के साथ-साथ एक अजीब सी गहराई भी थी, जिसे आन्या पढ़ नहीं पाई।
“रोहन… तुम?” आन्या के मुँह से बस इतना ही निकल पाया। “हाँ, मैं। बैठो, आन्या।” रोहन की आवाज़ शांत लेकिन बेहद भारी थी। आन्या एक मूर्ति की तरह खड़ी रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। रोए, हँसे या यहाँ से भाग जाए। रोहन ने कहा, “मुझे पता था कि तुम एक दिन यहाँ जरूर आओगी। मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।” “क्या मतलब? तुम जानते थे कि मैं…?” “हाँ, मैं सब जानता था। मैं जानता था कि तुम्हारे पिता बर्बाद हो चुके हैं। मैं जानता था कि तुम्हें नौकरी की सख्त जरूरत है और मैं यह भी जानता हूँ कि तुम मुझसे प्यार करती हो।” आन्या की आँखों से आँसू बहने लगे। उसे लगा कि शायद रोहन आज भी उससे प्यार करता है और अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। वह आगे बढ़कर कुछ कहना चाहती थी, लेकिन रोहन ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया।
“लेकिन शायद तुम एक बात नहीं जानती, आन्या। एक सच्चाई जो तुम्हारे पिता ने तुमसे हमेशा छिपाई।” “कैसी सच्चाई?” आन्या ने घबराकर पूछा। रोहन अपनी कुर्सी से उठा और केबिन में रखी एक तस्वीर के पास गया। वह एक साधारण से दिखने वाले आदमी की तस्वीर थी। “यह मेरे पिता हैं, रमेश चंद्रा,” रोहन ने कहा। “20 साल पहले यह दिल्ली के एक छोटे लेकिन ईमानदार बिल्डर हुआ करते थे। उनका एक ही सपना था: आम आदमी के लिए सस्ते और अच्छे घर बनाना। तुम्हारे पिता, सिद्धार्थ मेहरा, उस वक्त उनके पार्टनर हुआ करते थे। दोनों ने मिलकर एक बड़ा हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू किया। मेरे पिता ने अपनी जिंदगी की सारी जमा-पूंजी और ज़मीन उस प्रोजेक्ट में लगा दी, लेकिन तुम्हारे पिता की नीयत खराब हो गई। उन्होंने जाली कागजात बनवाकर मेरे पिता की सारी प्रॉपर्टी और पैसा हड़प लिया और उन्हें उस कंपनी से बाहर निकाल दिया जिसे उन्होंने खून-पसीने से सींचा था।” आन्या अविश्वास से यह सब सुन रही थी। “नहीं, यह सच नहीं हो सकता। मेरे पापा ऐसा नहीं कर सकते।” “यही सच है, आन्या।” रोहन की आवाज़ में दर्द और गुस्सा साफ झलक रहा था। “तुम्हारे पिता ने मेरे पिता को धोखा दिया। उस धोखे के सदमे से मेरे पिता को हार्ट अटैक आया और वह चल बसे। हम लोग सड़क पर आ गए। मेरी माँ को लोगों के घरों में बर्तन माँजने पड़े ताकि वह मेरा पेट पाल सके। मैं जिस झुग्गी में तुमसे मिला था, वह तुम्हारे पिता की ही देन थी। मेरी माँ की बीमारी, मेरा संघर्ष, मेरी हर एक तकलीफ के ज़िम्मेदार तुम्हारे पिता हैं।”
आन्या को लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो। उसका सिर चकराने लगा। “तो… तो क्या… तो क्या तुम्हारा मुझसे मिलना, मेरी मदद लेना, सब एक नाटक था? एक बदला था?” “नहीं,” रोहन ने कहा। “तुमसे मिलना एक इत्तेफाक था। जब तुमने अपना नाम बताया, तब मुझे एहसास हुआ कि नियति ने मुझे अपना बदला लेने का एक मौका दिया है। मैंने तुम्हारी मदद इसलिए स्वीकार की क्योंकि वह मेरा हक था। वो पैसा तुम्हारे पिता ने मेरे पिता से लूटा था। मैं बस अपना हक वापस ले रहा था।” “लेकिन… लेकिन मैंने तो तुमसे प्यार किया था, रोहन!” आन्या रोते हुए बोली। “मैं भी तुमसे प्यार करने लगा था, आन्या।” रोहन की आवाज़ भर गई। “तुम्हारी अच्छाई, तुम्हारी मासूमियत ने मेरे दिल में नफरत की जगह मोहब्बत पैदा कर दी थी। मैं कई बार तुम्हें सच बताना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया। मुझे डर था कि सच जानने के बाद तुम मुझसे नफरत करने लगोगी। इसलिए मैं तुमसे दूर चला गया। मैंने सोचा कि पहले मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँगा, तुम्हारे पिता से भी ज्यादा अमीर और ताकतवर बनूँगा और फिर एक दिन तुम्हारे सामने आकर तुम्हें सच बताऊँगा।”
आन्या ज़मीन पर बैठ गई। उसका पूरा वजूद हिल चुका था। जिस प्यार को वह अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई समझती थी, उसकी बुनियाद ही एक धोखे पर रखी गई थी। जिस इंसान को उसने अपना सब कुछ माना, वह उसके परिवार के सबसे बड़े दुश्मन का बेटा था।
माफ़ी और सच्ची मोहब्बत की जीत
रोहन उसके पास आया और उसे सहारा देकर उठाया। “मुझे माफ़ कर दो, आन्या। मैंने तुम्हें दुख पहुँचाया, लेकिन मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ। मैं तुम्हारे पिता से बदला नहीं लेना चाहता। मैं बस उन्हें यह एहसास दिलाना चाहता था कि उन्होंने क्या किया है।”
उसने आन्या के हाथ में एक फाइल थमाई। “यह तुम्हारे जोरबाग वाले बंगले के कागज़ात हैं। मैंने उसे नीलामी में खरीद लिया था। यह आज से तुम्हारा है और यह एक ब्लैंक चेक है। इस पर जितनी रकम चाहो भर लो और अपने पिता का इलाज करवाओ।”
आन्या ने काँपते हाथों से वह फाइल और चेक देखा। उसकी आँखों से आँसू नहीं रुक रहे थे। “मैं यह सब नहीं ले सकती, रोहन।” “यह भीख नहीं, तुम्हारा हक है, आन्या। और मेरे प्यार की निशानी है।” रोहन ने कहा। “तुम्हारे पिता ने जो किया, उसकी सजा मैं तुम्हें नहीं दे सकता।”
उस दिन के बाद आन्या ने अपने पिता को अस्पताल में भर्ती करवाया। जब सिद्धार्थ मेहरा को होश आया और उन्हें पूरी सच्चाई पता चली तो वह शर्मिंदगी और पछतावे की आग में जलने लगे। उन्होंने रोहन से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी। रोहन ने उन्हें माफ़ कर दिया। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा। सिद्धार्थ मेहरा ठीक होकर घर आ गए। उन्होंने अपना बाकी जीवन समाज सेवा में लगा दिया। आन्या ने रोहन की कंपनी जॉइन कर ली और अपनी मेहनत से एक अलग पहचान बनाई। रोहन और आन्या का प्यार हर परीक्षा में खरा उतरा था। उन्होंने शादी कर ली और एक नई जिंदगी की शुरुआत की जिसकी बुनियाद नफरत या बदले पर नहीं, बल्कि माफ़ी और सच्ची मोहब्बत पर रखी गई थी।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी में पैसा, शोहरत और रुतबा सब कुछ नहीं होता। सबसे बड़ी दौलत इंसान का ज़मीर और उसके कर्म होते हैं। एक झूठ सौ पर्दों के पीछे भी छिप नहीं सकता और एक दिन सामने आ ही जाता है। इस कहानी ने यह भी दिखाया कि सच्ची मोहब्बत में कितनी ताकत होती है। वह नफरत को भी पिघला सकती है और सबसे बड़े ज़ख्मों को भी भर सकती है। बदला लेना आसान है, लेकिन माफ़ कर देना बहुत मुश्किल है और जो माफ़ कर देता है वही असल में बड़ा इंसान होता है।
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