ऑटो में बैठे DM को समझा भिखारी, पुलिस ने थप्पड़ जड़ दिया – फिर जो हुआ, पूरे थाने में मच गया हड़कंप!

एक आम आदमी, एक चेक पोस्ट और एक कलेक्टर – इंसानियत की असली ताकत

क्या आपने कभी सोचा है कि एक आम इंसान के भेष में बैठा शख्स रातोंरात पूरे थाने में हड़कंप मचा सकता है? क्या कभी एक ऐसी कहानी सुनी है जहां एक छोटी सी गलती एक पुलिस वाले की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दे? अगर नहीं तो यह कहानी आपके लिए है, जो आपके दिल को छू लेगी और सोचने पर मजबूर कर देगी कि सच्ची ताकत पद में नहीं, बल्कि इंसानियत में होती है।

कहानी की शुरुआत

यह कहानी राजस्थान के एक छोटे से गांव से शुरू होती है। हमारे नायक गौरव, जो अब एक सम्मानित कलेक्टर बन चुके थे, कुछ दिनों की छुट्टी पर अपने गांव आए हुए थे। गौरव का बचपन अभावों और संघर्षों से भरा रहा। करीब 10 साल पहले उनकी जिंदगी बिल्कुल अलग थी। वह अपने पिताजी के साथ सब्जी मंडी में सब्जियां बेचा करते थे। दिन भर की मेहनत के बाद मुश्किल से 200-400 रुपये कमा पाते थे। इन्हीं पैसों से वह अपनी पढ़ाई का खर्च उठाते और अपने माता-पिता व परिवार का भरण-पोषण करते थे।

अक्सर लोग उनका मजाक उड़ाते, गालियां देते और अपमानजनक बातें बोलकर चले जाते थे। यही अपमान और निराशा उनके लिए अपनी जिंदगी बदलने की प्रेरणा बनी। गौरव ने अपना गांव और परिवार छोड़ दिया और दिल्ली चले गए। वहां जाकर उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की। अगले चार-पांच साल तक उन्होंने दिन-रात एक कर दिया। पूरी लगन और निष्ठा से पढ़ाई की। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और वह एक कलेक्टर बन गए।

जब उनके माता-पिता को पता चला कि उनका बेटा अब डीएम बन गया है, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गौरव इस खुशी को अपने माता-पिता के साथ बांटना चाहते थे, क्योंकि उनके माता-पिता ने उनके लिए कई मन्नतें मांगी थीं और अपनी पूरी जिंदगी की कमाई बेटे की पढ़ाई पर न्योछावर कर दी थी। इसलिए गौरव ने सोचा कि ट्रेनिंग पर जाने से पहले वह घर जाकर अपने माता-पिता से मिले और उनके साथ पूजा-पाठ करवाएं ताकि उनकी मन्नतें पूरी हों।

गांव लौटना और दोस्त से मिलना

दिल्ली से अपने गांव लौटते ही पूरे गांव में खुशी का माहौल छा गया। हर किसी के चेहरे पर गर्व और सम्मान नजर आ रहा था। गांव के लोग मिठाइयां बांट रहे थे और एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे कि उनका लड़का अब कलेक्टर बन गया है। गौरव तीन-चार दिन अपने माता-पिता के साथ घर पर रहे, उनकी सेवा की और संघर्षों को याद किया।

इसी बीच एक दिन उनके पिताजी ने उनसे कहा, “बेटा, बाजार से मेरी दवाई लेते आना।” गौरव ने जवाब दिया, “ठीक है पिताजी, मैं शाम को बाजार जाऊंगा और दवाई ले आऊंगा।”
घर से निकलते वक्त गौरव के पास अपनी खुद की गाड़ी नहीं थी, क्योंकि उनकी नई-नई जॉइनिंग हुई थी और दिल्ली में पढ़ाई के दौरान भी उनके पास कोई निजी गाड़ी नहीं थी। वह पैदल ही निकल जाते हैं।

रास्ते में उनके पुराने मित्र अमित का फोन आता है। अमित पहले उसी गांव में रहता था, लेकिन उसके पिताजी सरकारी नौकरी में थे, इसलिए वे शहर में शिफ्ट हो गए थे। गौरव मित्र से मिलने का फैसला करते हैं। अमित कहता है, “तुम मेरे घर आ जाओ, यहीं बैठकर आराम से बातचीत करेंगे।” गौरव सहमत हो जाते हैं और मित्र के घर जाने का फैसला करते हैं।

गौरव सोचते हैं, मित्र है, उससे मिलने में कैसी औपचारिकता? कपड़े भले साधारण हों, क्या फर्क पड़ता है? वैसे भी इंसान कितना ही बड़ा आदमी क्यों ना बन जाए, जब वह अपने गांव और घर पर होता है, तो उसे साधारण कपड़ों और चप्पल में ही सुकून और अपनापन महसूस होता है।