“कमिश्नर की बेटी को मारा थप्पड़… फिर जो हुआ उसने पूरे थाने को हिला दिया”सच्ची घटना..

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थप्पड़ जिसने थाने को हिला दिया

सुबह की ठंडी हवा सड़क पर पेड़ों की पत्तियों को हिलाती हुई बह रही थी। हल्की धूप के बीच रानीपुर की ओर जाती सड़क पर एक साधारण-सी सलवार सूट पहने लड़की स्कूटी पर धीरे-धीरे चल रही थी। कोई भी उसे देखकर यह अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि वह कोई बड़े घर की बेटी है। उसका नाम था प्रिया वर्मा—पुलिस कमिश्नर मिस्टर वर्मा की इकलौती संतान।

उस दिन प्रिया अपनी सहेली की शादी में जा रही थी। जल्दीबाजी में उसने हेलमेट घर पर ही छोड़ दिया। बाज़ार पार करते ही उसने देखा कि सड़क किनारे पांच–छह पुलिस वाले गाड़ियों की चेकिंग कर रहे थे। उनके बीच एक चेहरा जाना–पहचाना था—इंस्पेक्टर सुरेश, जो उसी थाने में तैनात था जहाँ उसके पिता अक्सर आते-जाते रहते थे।

जैसे ही प्रिया उनकी ओर बढ़ी, सुरेश ने हाथ उठाकर उसे रुकने का इशारा किया।
“अरे मैडम, कहां चली जा रही हैं बिना हेलमेट के?” उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन आंखों में एक अजीब-सी कठोरता थी।

प्रिया ने विनम्रता से जवाब दिया,
“सॉरी सर, जल्दी में थी, इसलिए हेलमेट लेना भूल गई। पास ही शादी में जा रही हूं। छोड़ दीजिए ना।”

लेकिन इंस्पेक्टर का अहंकार भड़क उठा।
“तू हमें सिखाएगी कि कानून क्या होता है? ज्यादा बकवास मत कर, बदतमीज लड़की!”

इतना कहते ही उसने प्रिया के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। भीड़ जमा हो गई, लेकिन कोई आगे आने की हिम्मत नहीं कर रहा था। प्रिया सन्न रह गई—उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक मामूली गलती पर उसे इस तरह अपमानित किया जाएगा।

इंस्पेक्टर चिल्लाया,
“तेरे बाप की सड़क है क्या? तुरंत 5000 का चालान भर, वरना स्कूटी के साथ तुझे भी लॉकअप में डाल दूंगा।”

प्रिया ने शांत स्वर में कहा,
“सर, यह गलत है। इतना चालान किसी मामूली गलती का नहीं होता। और आप इस तरह हाथ नहीं उठा सकते।”

उसकी बात ने सुरेश को और आग बबूला कर दिया। उसने दो सिपाहियों को आदेश दिया,
“पकड़ो इसे और थाने ले चलो। बड़ी हवा में उड़ रही है, अब इसे जमीन पर लाना पड़ेगा।”

दोनों सिपाहियों ने प्रिया के हाथ पकड़ लिए। प्रिया ने गुस्से और दृढ़ता के साथ कहा,
“मुझे मत छुओ! जानते नहीं हो मैं कौन हूं। भलाई चाहते हो तो मुझे जाने दो, वरना जो होगा उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।”

लेकिन सुरेश ने फिर से थप्पड़ जड़ दिया।


अपमान और अन्याय

थाने पहुंचते ही सुरेश ने और भी बेशर्मी दिखाई। उसने चाय मंगवाई और अपने डेस्क पर बैठकर ताना मारा,
“अब तुझे दिखाता हूं हमारी ताकत। कानून के साथ पंगा ले रही थी न?”

उसने बिना वजह झूठी रिपोर्ट दर्ज की और आदेश दिया,
“अंदर डालो इसे।”

प्रिया को एक गंदे, बदबूदार, अंधेरे लॉकअप में ठूंस दिया गया। मच्छरों की भनभनाहट, सीलन और घुटन भरा माहौल—यह दृश्य किसी भी इंसान का दिल दहला सकता था।

उसे यह समझ आ गया था कि पुलिस की वर्दी पहनकर बैठे कुछ लोग कानून को अपनी जेब की चीज़ समझते हैं। लेकिन उसने मन ही मन ठान लिया था—वह इस अन्याय के खिलाफ खड़ी होगी।

इसी बीच थाने में एसएचओ रवि सिंह भी आ गए। सुरेश ने हंसते हुए बताया,
“लड़की बहुत एटीट्यूड दिखा रही थी, इसे मजा चखाने लाए हैं।”
रवि सिंह ने बिना जांच किए कहा,
“अच्छा किया। ऐसे लोगों को सबक सिखाना ज़रूरी है।”


पिता का आगमन

शाम करीब 4 बजे, थाने का दरवाज़ा खुला। भीतर पुलिस कमिश्नर मिस्टर वर्मा दाखिल हुए। उनकी नजर लॉकअप में खड़ी सलवार सूट पहने लड़की पर पड़ी। कुछ ही पलों में उनके चेहरे का रंग उड़ गया—वह उनकी बेटी प्रिया थी।

“प्रिया! तू यहां क्या कर रही है?” उनकी आवाज गुस्से और हैरानी से कांप रही थी।

पास खड़े सिपाही ने फुसफुसाकर सुरेश को बताया कि यह कमिश्नर साहब की बेटी है। सुरेश के चेहरे का रंग पीला पड़ गया। वह घबराते हुए बोला,
“सर, यह लड़की कानून तोड़ रही थी… बदतमीजी कर रही थी… इसलिए…”

लेकिन मिस्टर वर्मा की आंखों में गुस्से की ज्वाला भड़क उठी।
“यह मेरी बेटी है। और आपने जो किया है, वह कानून और इंसानियत दोनों के खिलाफ है!”

उनकी आवाज पूरे थाने में गूंज उठी।


कानून की कसौटी

मामला गंभीर था। मिस्टर वर्मा ने तुरंत डीएम साहब को फोन किया।
“यहां तुरंत आइए। मामला बेहद गंभीर है।”

करीब 45 मिनट बाद थाने के बाहर सरकारी गाड़ियों का काफिला रुका। डीएम साहब, एसीएम और अन्य अधिकारी पहुंचे। थाने में ऐसा सन्नाटा छा गया कि पत्ते की खड़खड़ाहट भी सुनाई दे।

डीएम साहब ने सख्ती से कहा,
“अभी और यहीं जांच होगी।”

गवाह बुलाए गए।

एक दुकानदार ने साफ कहा कि प्रिया ने कोई बदतमीजी नहीं की थी, बल्कि सुरेश ने थप्पड़ मारा।

एक कॉलेज छात्र ने मोबाइल वीडियो दिखाया, जिसमें सुरेश की करतूत कैद थी।

तीसरे गवाह ने भी यही बयान दोहराया।

फिर सीसीटीवी फुटेज देखी गई—फुटेज में दिख रहा था कि प्रिया को बिना किसी प्रक्रिया के सीधे लॉकअप में डाला गया।

डीएम साहब ने गुस्से में कहा,
“यह पूरी तरह गैरकानूनी हिरासत है। भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर अपराध है।”


गुनाह और सज़ा

करीब 3 घंटे की पूछताछ, गवाहों और सबूतों की जांच के बाद डीएम साहब ने ऐलान किया,
“इंस्पेक्टर सुरेश और एसएचओ रवि सिंह—दोनों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। इनके खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज होगा।”

थाने में मौजूद हर पुलिसकर्मी स्तब्ध था। पहली बार उन्होंने देखा था कि वर्दी पहनने वाले भी कानून के सामने झुक सकते हैं।

सुरेश और रवि सिंह के चेहरे उतर गए। दोनों सिर झुकाए खामोश खड़े रहे।


पिता और बेटी

मिस्टर वर्मा ने प्रिया की ओर देखा। उनकी आंखों में गर्व और चिंता दोनों थे।
“बेटी, आज तूने बहुत कुछ सहा। लेकिन तूने किसी गलत मांग के आगे झुककर चुप्पी नहीं साधी। यही हिम्मत हर नागरिक को रखनी चाहिए।”

प्रिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“पापा, आज समझ आया कि कानून का सही इस्तेमाल कितना जरूरी है। और जब यह गलत हाथों में पड़ता है तो कितना खतरनाक बन जाता है।”

डीएम साहब ने जाते-जाते कहा,
“यह मामला पूरे जिले के लिए मिसाल बनेगा। अब कोई भी पुलिस वाला यह सोचकर मनमानी नहीं करेगा कि कानून सिर्फ उसकी जेब में है।”


असर

उस दिन के बाद उस थाने का माहौल पूरी तरह बदल गया। कोई भी पुलिसकर्मी बिना वजह चालान काटने, धमकी देने या शक्ति का गलत इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं करता था।

लोग कहते हैं—कानून का आईना सबको बराबर दिखाता है। चाहे वह पुलिस वाला हो, अफसर हो या आम नागरिक।

और यह कहानी उस दिन की गवाही देती है जब एक थप्पड़ ने पूरे थाने को हिला दिया