करोड़पति मां VIP कार में, बेटा फुटपाथ पर भीख मांगता मिला — दिल को झकझोर देने वाली सच्ची कहानी!
मित्रों, ज़रा ठहरकर सोचिए—ज़िंदगी कभी-कभी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ रिश्तों का असली चेहरा सामने आ जाता है। शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क, चमचमाती गाड़ियाँ और हॉर्न का शोर। लाल बत्ती पर रुकती एक काली Mercedes, जिसके भीतर बैठी है करोड़पति घराने की मालकिन अंजना। गहनों और ठाट-बाट से सजी, पर अंदर से बेहद थकी और टूटी हुई। बाहर सड़क पर नंगे पाँव बच्चे, भूखे पेट भीख माँगते हुए। उसी भीड़ में एक दुबला-पतला लड़का कार की खिड़की के पास आता है, हाथ फैलाता है और कांपती आवाज़ में कहता है—“माँ, मुझे भूख लगी है, कुछ दे दो।”
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उस पल जैसे अंजना की सांस रुक गई। सामने वही चेहरा था जिसे उसने सालों पहले जन्म दिया था और मजबूरी में सड़क पर छोड़ आई थी। दिल ने तुरंत पहचान लिया, आँखें भर आईं। लेकिन समाज, इज्ज़त और दिखावे के बोझ ने उसके होंठ बंद कर दिए। कार का शीशा ऊपर हुआ और बेटा वहीं खड़ा रह गया, आंसुओं के साथ। माँ की आँखें भीगी थीं, मगर बाहें फैली नहीं।
अंजना के दिल में पुराना जख्म फिर से ताजा हो गया। वह याद करने लगी 17 साल की उम्र, जब गरीबी और बदनामी के डर से उसने नवजात बेटे को फुटपाथ पर छोड़ दिया था। आज वही बच्चा जवान होकर भीख माँगते हुए सामने खड़ा था। बेटा सोचता रहा—“अगर मेरी माँ करोड़पति है तो उसने मुझे क्यों छोड़ा? क्यों भूखा सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया?”
सालों तक फुटपाथ पर जीने वाला वह लड़का हर रात आसमान देखकर यही सवाल करता—“क्या सच में मेरी माँ जिंदा है? क्या वह कभी मुझे अपनाएगी?” उम्मीदें टूटती रहीं, लेकिन दिल की टीस कम न हुई।
फिर आया वह दिन जब शहर में एक बड़ा कार्यक्रम था। मंच पर अंजना को सम्मानित किया जा रहा था। लोग ताली बजा रहे थे, उसे समाज की आदर्श महिला कह रहे थे। और तभी भीड़ में खड़ा वही बेटा मंच की ओर बढ़ा। फटेहाल कपड़े, थके कदम और आँखों में समंदर जैसे आंसू। वह अंजना के सामने जाकर बोला—“माँ, आपको याद है? आपने सालों पहले एक बच्चे को सड़क पर छोड़ दिया था। वह बच्चा मैं हूँ।”
सन्नाटा छा गया। भीड़ स्तब्ध थी। अंजना का चेहरा पीला पड़ गया। उसके होंठ कांप रहे थे। बेटे की आँखें भर आईं—“माँ, तुमने मुझे जन्म तो दिया लेकिन माँ का हक कभी नहीं निभाया। आज मैं यहाँ खड़ा हूँ, सिर्फ यह कहने कि मुझे अब तुमसे कुछ नहीं चाहिए। बस इतना जान लो कि बेटे का दिल भूख से नहीं, माँ की गोद से भरता है।”
उसकी आवाज़ सुनकर अंजना की आँखों से आंसू बह निकले। समाज की नकली दीवारें गिर चुकी थीं। उसने कांपते हाथों से बेटे को गले लगा लिया। पूरा हाल तालियों से गूंज उठा। पर सच तो यह था कि बेटे का बचपन कभी लौट नहीं सकता था।
मित्रों, यही जिंदगी का कड़वा सच है—माँ कहलाना सिर्फ जन्म देने से नहीं, बल्कि अपनाने से होता है। दौलत और शोहरत कभी रिश्तों की जगह नहीं ले सकती।
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