गरीब लड़की ने एक भूखे भिखारी को एक रोटी खिलाई, लेकिन बदले में जो मिला, इंसानियत हिल गई | फिर जो हुआ

नेहा और एक रोटी की कहानी – इंसानियत का असली इनाम

कहते हैं जब इंसान बिना किसी लालच के दिल से किसी की मदद करता है, तो ऊपर वाला भी दिल खोलकर देता है। यही कहानी है नेहा की – एक गरीब लड़की, जिसकी जिंदगी एक छोटी सी भलाई से बदल गई।

शुरुआत – एक रोटी की तलाश

नेहा अपनी शादी के लिए सस्ते लेकिन अच्छे कपड़े खरीदने बाजार गई थी। दुकान में कपड़े देख रही थी, तभी एक बूढ़ा भिखारी अंदर आया। बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े फटे, शरीर से धूल झड़ रही थी। चेहरे पर थकान और आंखों में भूख साफ दिख रही थी।

भिखारी ने सीधे दुकानदार से कहा –
“बेटा, अगर तू मुझे एक रोटी खिला देगा तो तुझे एक करोड़ मिल जाएंगे।”

दुकानदार पहले तो हंसा –
“बाबा, यह तरीका बहुत पुराना हो गया है। जाओ कहीं और टाइमपास करो, मेरे पास फालतू समय नहीं है।”

भिखारी फिर बोला –
“बेटा, मैं सच कह रहा हूं। अगर तू मुझे एक रोटी दे देगा, ऊपर वाला तुझे एक करोड़ दे देगा।”

दुकानदार चिढ़कर बोला –
“क्या तुम ऊपर वाले के मैनेजर हो? तुम लोग ऐसे ही कहकर भीख मांगते हो। अब यह बातें चलती नहीं।”

भिखारी ने फिर भी हाथ जोड़कर कहा –
“बेटा, एक रोटी खिला दो। यकीन नहीं करोगे, लेकिन तुम्हें सच में एक करोड़ मिलेगा।”

अब दुकानदार को गुस्सा आ गया –
“बाबा, ज्यादा बकवास मत करो, नहीं तो मारकर दुकान से बाहर निकाल दूंगा।”

भिखारी कुछ कहने ही वाला था कि दुकानदार ने उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया। गिरते हुए भी भिखारी बार-बार कहता रहा –
“बेटा, एक रोटी खिला दो। तुम्हें बहुत मिलेगा।”

नेहा की भलाई

नेहा यह सब चुपचाप देख रही थी। उसके मन में कई बातें चल रही थीं। पहले तो लगा – यह तो बस पेट भरने का तरीका है, झूठी कहानी बनाकर भीख मांगने का तरीका। लेकिन फिर नेहा के दिल में कुछ चुभ गया।
उसने सोचा – अगर बाबा पेट की आग के लिए झूठ बोल रहे हैं, तो इसमें इतनी नफरत क्यों?

नेहा की आंखें भीगने लगीं। बिना कुछ सोचे उसने दुकान के सारे कपड़े वहीं छोड़ दिए। दुकानदार पीछे से चिल्लाया –
“बेटी, कपड़े तो ले जाओ, पैसे कम कर देंगे।”

नेहा बिना पीछे देखे बोली –
“अब मुझे तुम्हारी दुकान से कुछ नहीं खरीदना।”

वह जल्दी-जल्दी उस बाबा की तरफ भागी, जो धीरे-धीरे दुकान से दूर जा रहा था।
“बाबा, रुकिए!” नेहा ने आवाज लगाई। बाबा मुड़े, चेहरे पर हल्की सी उम्मीद की चमक आ गई।

नेहा उनके पास पहुंचकर बोली –
“बाबा, आपको भूख लगी है ना? चलिए, मैं आपको खाना खिला देती हूं। लेकिन बाबा, पैसे की मुझे कोई जरूरत नहीं है। आप बस पेट भर लेना, यही काफी है।”

बाबा ने कुछ पल नेहा की आंखों में देखा, मुस्कुराकर बोले –
“बेटी, तू मुझे सिर्फ एक रोटी नहीं, बल्कि भरपेट खिलाने के लिए ले जा रही है। लेकिन असल में, तू मुझे अपने दिल से खाना खिलाने जा रही है। ऊपर वाला तुझे इसके बदले 10 करोड़ देगा।”

नेहा हंसते हुए बोली –
“बाबा, मुझे ऊपर वाले से करोड़ों नहीं चाहिए, बस आपको खाना खिलाकर सुकून चाहिए।”

नेहा बाबा को लेकर एक छोटे से ढाबे पर गई। वहां से बाबा के लिए 10 रोटियां और दो सब्जी पैक करवाकर बाबा को दे दीं।
“बाबा, यह लो, अभी भी खा लेना और शाम के लिए भी बचा लेना। मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं, लेकिन इतना तो कर सकती हूं।”

बाबा की आंखें भी भर आईं।
“बेटी, तेरा नाम क्या है?”
“नेहा।”
“कहां रहती है?”
“पास की गरीब बस्ती में, शंकर बाबू की बेटी हूं।”

बाबा ने प्यार से कहा –
“बेटी, अच्छे लोगों के साथ हमेशा अच्छा ही होता है। तू चिंता न कर, तेरी जिंदगी बदलने वाली है।”

नेहा हंसकर वहां से चली गई, लेकिन उसके दिल में कहीं न कहीं बाबा की बात गूंज रही थी – “तेरी जिंदगी बदलने वाली है।”