गरीब समझ मॉल से भगाया एक झटके में खरीद लिया पूरा मॉल

औकात की कीमत: एक प्रेरक कहानी

बहुत समय पहले दिल्ली के एक छोटे से घर में रोहित अपनी बहन रिया के साथ रहता था। घर की हालत साधारण थी, लेकिन सपने बड़े थे। रिया कॉलेज में नए एडमिशन के लिए उत्साहित थी, लेकिन उसके पास एक ढंग का ड्रेस नहीं था। रोहित ने अपनी बचत गिनी—सिर्फ 3800 रुपये। उसने ठान लिया कि रिया को सबसे अच्छा ड्रेस दिलाएगा।

दोनों सिटी स्क्वायर मॉल पहुँचे। कांच की दीवारों, एसी की ठंडी हवा और परफ्यूम की खुशबू से रिया की आँखें चमक उठीं। वे उस बड़े शोरूम में गए जहाँ डिस्प्ले में एक नीली ड्रेस टंगी थी। रिया को वही चाहिए थी। लेकिन जैसे ही उन्होंने ड्रेस के बारे में पूछा, सेल्समैन ने ताना मारते हुए कहा, “औकात से बाहर चीज लेने का क्या फायदा? डिस्काउंट रैक देखिए।”

यह शब्द रोहित के दिल में चुभ गया। रिया की आँखों में उदासी और रोहित के चेहरे पर गुस्सा साफ था। दोनों बाहर निकल आए। फूड कोर्ट में समोसा खाते हुए रिया ने कहा, “भैया, मैं सस्ती वाली भी पहन लूंगी, बस तुम्हें ऐसा सुनना ना पड़े।” रोहित ने जवाब दिया, “एक दिन इसी मॉल में तू जो चाहेगी चुनेगी। और उस दिन वही आदमी हमें देखकर नजरें झुका लेगा।”

रात को रोहित ने इंटरनेट पर रिसर्च करना शुरू किया—दिल्ली में होलसेल कपड़े कहाँ से लें? अगले दिन वह आजाद मार्केट पहुँचा। वहाँ तनेजा जी से मिला, जो एक्सपोर्ट सरप्लस कपड़े बेचते थे। रोहित ने 5000 रुपये में 20 पीस लिए। कपड़ों में हल्के डिफेक्ट थे, लेकिन शांति आंटी ने सिलाई कर दी।

रिया ने पहला ड्रेस पहना, रोहित ने फोटो खींची और इंस्टाग्राम पर “सांची सी ड्रेस” नाम से पेज बनाया। धीरे-धीरे ऑर्डर आने लगे। पहली डिलीवरी के लिए रोहित ने स्कूटर में पेट्रोल भरवाया। लड़की ने ड्रेस खरीदी और तीन फ्रेंड्स को भी रेफर किया। रोहित का आत्मविश्वास बढ़ता गया।

कुछ दिनों बाद रोहित ने कॉलेज लाइब्रेरी के बाहर स्टॉल लगाया। बारिश आई, कपड़े भीग गए, म्युनिसिपालिटी का इंस्पेक्टर आया, परमिट मांगा और पैसे लेकर चला गया। कुछ ड्रेस डिफेक्टिव निकलीं, कस्टमर ने लौटाईं। रोहित ने पैसे वापस कर दिए। तनेजा जी ने कहा, “सरप्लस है, चेक करके लेना।”

रोहित ने हार नहीं मानी। अगले दिन गोदाम गया, जहाँ क्लीयरेंस सेल थी। वहाँ वही ब्रांड था—मेरीडियन फैशन, वही शोरूम जहाँ उसे औकात का ताना मिला था। गोदाम वाले ने कहा, “55,000 रुपये में पैकेट मिलेगा।” रोहित के पास पैसे नहीं थे। फाइनेंस वाले से लोन लिया, 10,000 रुपये ब्याज के साथ। उसी दिन मेरीडियन फैशन के स्टोर मैनेजर माया का कॉल आया—”आपके डिजाइन पॉप-अप काउंटर के लिए चाहिए।”

रोहित ने छोटा पैकेट उठाया, कपड़े सिलवाए, खुद तस्वीरें लीं, और फिर से स्टॉल लगाया। इस बार उसने किसानों से सीधा कॉटन, लिनन, सिल्क खरीदना शुरू किया। बिचौलिए को हटाकर अपना नेटवर्क बनाया। सांची सी ड्रेस अब कॉलेजों में मशहूर हो गई।

एक दिन तनेजा ने धमकी दी, “माल काट दूंगा।” सच में सप्लाई बंद कर दी। रोहित फिर से शून्य पर था। रिया ने कहा, “किसी तनेजा पर निर्भर मत रहो, अपना रास्ता खुद बनाओ।” रोहित ने खुद का नेटवर्क खड़ा किया, अपना ब्रांड ऑनलाइन शॉप तक पहुँचा दिया।

कुछ महीने बाद मेरीडियन फैशन से फिर कॉल आया। “आपके डिजाइन सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं, पॉप-अप काउंटर चाहिए?” रोहित ने कहा, “मुझे ट्रायल नहीं चाहिए, मैं पूरा स्टोर खरीदना चाहता हूँ।” सब हैरान रह गए। रोहित ने कंपनी के लॉस के कागज दिखाए, डील फाइनल हो गई।

ग्रैंड ओपनिंग के दिन रोहित ने रिया का हाथ पकड़ा, स्टेज पर ले गया। “आज मेरी बहन कोई भी ड्रेस चुनेगी, क्योंकि उसकी औकात अब किसी सेल्समैन की जुबान तय नहीं करेगी, बल्कि उसकी पसंद तय करेगी।” तालियाँ गूंज उठीं। वही सेल्समैन पीछे खड़ा था, सिर झुकाए। रोहित ने मुस्कुरा कर कहा, “याद है औकात से बाहर कहाँ था? देखो, औकात बदल गई।”

रिया ने वही नीली ड्रेस पहनी, जो कभी उसकी आँखों में आँसू बन गई थी, अब वही उसकी मुस्कान बन गई थी। भीड़ ने खड़े होकर तालियाँ बजाई। रोहित ने कहा, “औकात इंसान की जेब से नहीं, उसकी मेहनत से बनती है।”

उस रात मॉल की कांच की दीवारों में वही आवाज गूंज रही थी। लेकिन इस बार ताने की नहीं, इज्जत की।

समाप्त