गर्मियों में पानी माँगने आया बुजुर्ग, गार्ड ने धक्कादे कर निकाल, फिर जो हुआ

इंसानियत की सबसे बड़ी दौलत

दोपहर के लगभग 1:00 बज रहे थे। मई की तपती गर्मी ने पूरे शहर को आग में झोंक रखा था। सड़कों पर लू चल रही थी और आसमान से उतरती धूप मानो जमीन को झुलसा रही थी। इन्हीं हालातों में एक थका-हारा बुजुर्ग व्यक्ति शहर की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट बिल्डिंग के सामने आकर रुका। उसकी उम्र करीब 70 साल रही होगी। चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ, कपड़े पुराने और पसीने से भीगे हुए। उसके माथे पर धूप की लकीरें साफ दिख रही थीं। पैर नंगे नहीं थे, लेकिन चप्पलें इतनी घिस चुकी थीं कि जमीन की तपीश सीधी तलवों तक पहुंच रही थी। उसके हाथ में एक छोटा सा थैला था जिसमें बस एक पोटली और एक पुराना चश्मा रखा था।

वह आदमी धीरे-धीरे कंपनी के गेट की ओर बढ़ा। जहां चमचमाते कांच के दरवाजे और एसी में बैठी रिसेप्शनिस्ट की हलचल भरी दुनिया थी। बाहर एक बड़ा सिक्योरिटी गार्ड तैनात था। जिसकी आंखें जैसे ही उस बुजुर्ग पर पड़ी, उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। बुजुर्ग ने नम्रता से कहा,
“बेटा, बहुत गर्मी है। बस एक गिलास पानी मिल जाता तो…”
गार्ड ने उसे सिर से पैर तक घूरा,
“क्या बात कर रहे हो बाबा? यह ऑफिस है, मंदिर नहीं। जाओ कहीं और। यहां भीख नहीं मिलती।”
बुजुर्ग ने विनम्र स्वर में फिर कहा,
“मुझे कुछ नहीं चाहिए। सिर्फ पानी पीकर चला जाऊंगा।”
गार्ड ने ठहाका मारा,
“अब नए स्टाइल के भिखारी आ गए हैं। पानी मांगते हैं, फिर अंदर घुसने की कोशिश करते हैं। चलो हटो यहां से।”

बुजुर्ग थोड़ा पीछे हटे। पर उनकी आंखों में अपमान की पीड़ा साफ दिख रही थी। उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी नजरें नीचे झुका लीं। शायद उन्हें उम्मीद नहीं थी कि जिंदगी के इस पड़ाव पर जब सिर्फ एक गिलास पानी मांगना भी गुनाह बन जाएगा। गार्ड ने एक और तीखी बात कही,
“अरे बाबा, इतना ही प्यासा है तो मंदिर में जा। वहां मिलेगा तेरा पानी। यह कॉर्पोरेट कंपनी है, भिखारियों की जगह नहीं।”
अब भी बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। बस थैला उठाया, थोड़ा लड़खड़ाते हुए पलटे और धीमी चाल में वहां से जाने लगे। लेकिन उनके चेहरे की उदासी अब गहराती जा रही थी। जैसे यह पहला अपमान नहीं था, शायद जिंदगी में ऐसा बहुत बार हुआ हो।

तभी एक चमचमाती BMW कार ऑफिस के सामने आकर रुकी। दरवाजा खुला और एक 30-32 साल का नौजवान नीले सूट में, ब्रांडेड सनग्लास में बाहर निकला। तेज चाल, आत्मविश्वास से भरा चेहरा और मोबाइल पर बिजनेस कॉल करता हुआ सीधा बिल्डिंग की ओर बढ़ा। लेकिन कुछ कदम चलने के बाद उसने अचानक रुक कर पीछे देखा। उसकी नजर उस बुजुर्ग पर पड़ी, जो अब भी ऑफिस से कुछ दूरी पर ठहर कर थके कदमों से सड़क की तरफ बढ़ रहा था।

युवक की आंखों में अचानक हलचल होने लगी। उसने चश्मा उतारा, गौर से देखा और जैसे ही उस बुजुर्ग के चेहरे की झलक मिली, वो एक पल के लिए जड़ हो गया। उसके हाथ से मोबाइल गिर गया। उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसने तेजी से पीछे मुड़कर दौड़ लगाई और बुजुर्ग के पास पहुंचा,
“पापा… पापा… आप?”
बुजुर्ग ने थके हुए स्वर में सिर उठाया, आंखें फड़कने लगीं, गला भर आया,
“तुम… राघव?”
राघव की आवाज कांप रही थी। उसने भीड़ और गर्मी की परवाह किए बिना अपने पिता के सामने घुटनों के बल बैठते हुए उनका हाथ पकड़ लिया। उस बुजुर्ग का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, आंखें थकी हुई और होठ सूखे। लेकिन अब वह कांपने लगे थे। शायद बेटे की अचानक मौजूदगी से या सालों से दबे किसी टूटे रिश्ते की याद से।
“तुम अब भी मुझे पहचानते हो?”
बुजुर्ग की आवाज टूटी हुई थी।
राघव ने झुककर उनका माथा चूमा और खुद रोने लगा,
“पापा, आप यहां इस हालत में हैं? आपसे मिलने का साहस नहीं हुआ, लेकिन यह तो नहीं सोचा था कि आप सिर्फ पानी मांगने आएंगे…”
वह वाक्य पूरा नहीं कर सका।

तभी उसी ऑफिस का सिक्योरिटी गार्ड पीछे से दौड़ता हुआ आया,
“सॉरी सर, मुझे नहीं पता था कि यह आपके… मेरा मतलब… सॉरी सर, माफ कीजिए।”
राघव ने गुस्से से उसकी ओर देखा, आंखों में आंसू और आग दोनों थे,
“तुमने मेरे पिता को भिखारी समझकर गेट से भगा दिया, सिर्फ इसीलिए कि उनके कपड़े साफ नहीं थे? सिर्फ इसलिए कि उन्होंने एक गिलास पानी मांगा था?”
गार्ड बुरी तरह कांपने लगा,
“सर, मैं रोज बहुत से लोग देखता हूं, पहचान नहीं पाया…”
राघव ने एकदम शांत स्वर में कहा,
“यही तो समस्या है। हम सिर्फ बाहर देखकर तय कर लेते हैं कि सामने वाला कौन है। उसकी आंखों की प्यास नहीं देखते, उसके शब्दों की सच्चाई नहीं सुनते।”

भीड़ अब इकट्ठा हो चुकी थी। ऑफिस के कई कर्मचारी बालकनी और लॉबी से यह सब देख रहे थे। कोई चुपचाप खड़ा था, कोई धीमे-धीमे फुसफुसा रहा था। राघव ने अपने पिता की ओर देखा,
“पापा, अंदर चलिए। प्लीज।”
लेकिन बुजुर्ग ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा,
“रुक जाओ राघव। मैं यहां सिर्फ पानी मांगने आया था। अब प्यास भी नहीं रही और हिम्मत भी नहीं।”
“पापा, ऐसा मत कहिए।”
अब तक सिर्फ दृश्य भावनात्मक था, लेकिन अब दिल की गांठें खुलने लगी थीं। राघव ने अपने पिता का हाथ पकड़ा,
“आप नहीं जानते, लेकिन आप मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सच हैं। सब कहते हैं कि मैं मेहनती हूं, लेकिन कोई नहीं जानता कि जब मां गुजरी थी तब किसने मुझे जिंदा रखा था। आप अकेले थे, सब कुछ छोड़कर मेरे लिए खेतों से काम छोड़ शहर आ गए थे।”

राघव रुक गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
“फिर जब मैंने एमबीए में दाखिला लिया और आप काम पर लौटे तो आपसे झगड़ा हो गया। आपने कहा था कि अपने संस्कार मत भूलना और मैं… मैं गुस्से में चला गया। उस दिन के बाद कभी पलटकर नहीं देखा।”
बुजुर्ग की आंखें अब भर आई थीं,
“मैंने कभी तुमसे नफरत नहीं की, राघव। बस एक गिलास पानी के बहाने तुम्हें देखने चला आया था। यह सोचकर कि शायद तुम कहीं लॉबी में दिख जाओ। लेकिन मैं तो तुम्हारी पहचान से भी बाहर हो गया हूं।”

अब ऑफिस के कई कर्मचारी अपनी आंखें पोंछ रहे थे। हर कोना उस दर्द से गूंज रहा था जो किसी ईमेल में नहीं आता, किसी फाइल में नहीं लिखा जाता।
राघव ने अपने पिता को सीने से लगाते हुए कहा,
“पापा, आज से यह कंपनी आपकी है। जो मेरा है, वह आपका है। और जिसने आपको भगा दिया, उसे आपकी सेवा करनी होगी।”
तभी राघव ने मुड़कर गार्ड से कहा,
“आज से तुम रोज मेरे पापा को गेट से रिसीव करोगे और सबसे पहले एक गिलास पानी लेकर उन्हें दोगे। लेकिन सिर्फ इसीलिए नहीं कि वह मेरे पिता हैं, बल्कि इसलिए कि वह एक इंसान हैं और इंसानियत सबसे ऊपर है।”

अगले कुछ मिनटों में राघव ने अपने पिता का हाथ थामकर उन्हें कंपनी के अंदर ले लिया। वह तेज एसी और चमकदार फर्श वाला वही दफ्तर था, जहां कुछ मिनट पहले एक बूढ़े को भिखारी समझकर धक्के मार दिए गए थे। लेकिन अब उस बुजुर्ग के साथ चल रहा था कंपनी का सीईओ—उसका बेटा। पूरे ऑफिस में सन्नाटा था। लोग कंप्यूटर छोड़कर एकटक देख रहे थे। वही बुजुर्ग जिनकी ओर कोई सुबह एक गिलास पानी लेकर नहीं आया, अब उस दफ्तर की सबसे ऊंची कुर्सी के साथ चल रहा था।

राघव ने रिसेप्शन डेस्क पर रुक कर कहा,
“इस आदमी को VIP ट्रीटमेंट चाहिए। हर दिन।”
रिसेप्शनिस्ट, जो कुछ घंटे पहले गार्ड के साथ हंस रही थी, अब सिर झुकाए खड़ी थी।

बुजुर्ग ने धीमी आवाज में कहा,
“राघव, मुझे इस सबकी जरूरत नहीं है। बेटा, मुझे बस तू चाहिए था। मैं तुझसे नाराज नहीं था। बस देखना चाहता था कि तू कैसा इंसान बना है।”
राघव की आंखें फिर भर आईं,
“पापा, आपने आज मुझे मेरी औकात दिखा दी। मैं जितना भी बड़ा बन जाऊं, अगर मैं इंसान नहीं बना तो सब बेकार है।”

तभी कंपनी के बोर्ड रूम में राघव ने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। सभी डिपार्टमेंट हेड्स, मैनेजर्स, एचआर, पीआर—पूरा स्टाफ वहां था। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब अचानक क्या हो रहा है।
राघव ने खड़े होकर कहा,
“आज मेरी जगह कोई और होता तो यह मीटिंग किसी नए टारगेट, किसी नए फंडिंग राउंड या पॉलिसी के लिए होती। लेकिन आज मैं आप सबसे कुछ और बांटना चाहता हूं।”
उसने अपने पिता की ओर इशारा करते हुए कहा,
“इन्हें देख रहे हैं आप? सुबह यह प्यासे थे। सिर्फ एक गिलास पानी मांगने आए थे और हमारी कंपनी ने इन्हें क्या दिया? अपमान।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
“लेकिन आपको यह जानकर धक्का लगेगा कि यह सिर्फ मेरे पिता नहीं हैं। यह मेरे जीवन की रीड हैं। जब मैं टूटा था, इन्होंने मुझे संभाला। जब मां हमें छोड़ गई थी, तो यह मेरी मां भी बने, बाप भी और दोस्त भी। और आज हमने इन्हें सिर्फ इसलिए धक्का दिया क्योंकि इनके कपड़े धुले हुए नहीं थे।”

राघव की आवाज अब कांप रही थी,
“मेरी परवरिश ने मुझे सिखाया था कि किसी को उसके पहनावे से मत आंको। लेकिन अफसोस, मेरी कंपनी वही गलती कर बैठी।”
एचआर हेड, जो काफी अनुभवी और उम्रदराज महिला थी, ने हाथ उठाया,
“सर, हम शर्मिंदा हैं। इस घटना ने हमारी आंखें खोल दी हैं। हम इस सोच को बदलेंगे।”
राघव ने सिर हिलाया,
“आज से हर कर्मचारी चाहे वह सीईओ हो या गार्ड, सब एक रूल सीखेंगे—हर अजनबी को इंसान समझो। किसी भी हालत में।”

उसने फिर अपने पिता की ओर देखा और कहा,
“पापा, मैं जानता हूं मैंने आपको सालों तक नजरअंदाज किया। आपने मुझसे बात करनी चाही और मैंने बिजी कहकर टाल दिया। लेकिन आज जो आपकी खामोशी ने मुझे सिखाया, वो हार्वर्ड भी नहीं सिखा सकता।”
बुजुर्ग की आंखें अब भीगी हुई थीं,
“राघव, मैंने कभी कुछ नहीं मांगा तुझसे। बस एक बार तुझे फिर से गले लगाना चाहता था और आज तूने सारी दुनिया के सामने मुझे गले लगाकर वह दिया जो दौलत से नहीं मिलता—इज्जत।”

राघव धीरे से उठकर अपने पिता के पास गया और उन्हें गले से लगा लिया। पूरा ऑफिस खड़ा हो गया। तालियां नहीं बज रही थीं, पर हर आंख भीगी हुई थी।
कभी-कभी सबसे बड़ा लीडर वही होता है जो इंसानियत से जीते।
आज राघव वही लीडर बना, जिसने सबको सिखाया—इंसानियत सबसे बड़ी दौलत है।

सीख:
कभी किसी की हालत, पहनावा या मजबूरी देखकर उसकी इज्जत मत छीनो।
क्योंकि इंसान की असली पहचान उसकी इंसानियत है, न कि उसकी हैसियत।

[संगीत]