जब इंस्पेक्टर नें DM मैडम को आम लड़की समझ कर थप्पड़ मार दिया फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

कहानी: डीएम आरती सिंह का न्याय

डीएम आरती सिंह एक साधारण सलवार सूट और चप्पल पहने, अपनी छोटी बहन ललिता के साथ ऑटो रिक्शा में बैठकर मॉल शॉपिंग के लिए जा रही थीं। रास्ते में पुलिस चेक पोस्ट पर इंस्पेक्टर अशोक सिंह ने ऑटो को रोक लिया। उन्होंने ऑटो चालक से कागजात मांगे, कमी निकालते हुए रिश्वत की मांग शुरू कर दी।
“तुम्हारे वाहन का इंश्योरेंस और पॉल्यूशन सर्टिफिकेट नहीं है, चालान कटेगा। अगर चालान नहीं कटवाना चाहते तो ₹2000 दे दो।”
ऑटो चालक विनम्रता से बोला, “साहब, मेरे पास कागज हैं, लेकिन घर पर छूट गए हैं। मैं कल दिखा दूंगा। कृपया माफ कर दीजिए।”
इंस्पेक्टर ने सख्ती से कहा, “नहीं, चालान तो कटेगा। अगर बचना है तो पैसे दे।”
ऑटो वाला हाथ जोड़कर बोला, “साहब, अभी तो मैं घर से निकला हूं। मेरे पास पैसे नहीं हैं।”
पुलिसकर्मी तंज कसते हुए बोला, “कल तो कमाया होगा। उन्हीं पैसों में से दे दो।”
ऑटो चालक ने निराश स्वर में कहा, “साहब, वो पैसे तो कल ही खर्च हो गए। सच में पैसे नहीं हैं।”
इंस्पेक्टर आग बबूला हो गया, “अबे गरीब भिखारी, तेरे पास ₹2000 नहीं है? नहीं देगा तो तेरी ऑटो जब्त कर लूंगा।”
ऑटो वाला डर गया, “सर, मैंने क्या किया है जो मेरी ऑटो जब्त करेंगे?”
इंस्पेक्टर ने गुस्से में उसे थप्पड़ मार दिया, “मुझसे जवान लड़ता है, तेरी इतनी औकात है?”

यह सब देख आरती सिंह का गुस्सा फूट पड़ा। वह ऑटो से उतरकर इंस्पेक्टर के पास गईं, “आपको इस ड्राइवर को थप्पड़ मारने का अधिकार किसने दिया? यह रोज मेहनत करता है, इसी कमाई से घर चलता है। गलती हुई है तो आप रिश्वत और मारपीट करेंगे? यह कैसा कानून है?”
पुलिस वालों को लगा कोई आम महिला सवाल-जवाब कर रही है।
इंस्पेक्टर और भड़क गया, “तू मुझे सिखाएगी? ज्यादा बकवास मत कर, वरना तुझे भी हवालात दिखा दूंगा। मैं पुलिस हूं, अभी गिरफ्तार कर लूंगा।”

आरती ने शांत रहते हुए कहा, “सर, आप पुलिसवाले हैं तो क्या लोगों को लूटेंगे? गरीबों से जबरन रिश्वत लेंगे? यह कानून के खिलाफ है।”
इंस्पेक्टर ने गुस्से में आरती को भी थप्पड़ मार दिया, “तू मुझे कानून सिखाएगी?”
आरती ने गुस्से को काबू में रखा, अपनी पहचान नहीं बताई, क्योंकि वह देखना चाहती थी इंस्पेक्टर कितनी हद तक गिर सकता है।
ऑटो पर बैठकर मॉल पहुंचीं, बहन को कपड़े दिलाए। बाहर से शांत दिख रहीं थीं, लेकिन मन में ठान लिया था कि इंस्पेक्टर अशोक सिंह को सबक सिखाना है।

थाने का सच

अगले दिन आरती ने साधारण लड़की के रूप में हरे सलवार सूट पहनकर थाने पहुंचीं। सामने इंस्पेक्टर राजेंद्र मिश्रा कुर्सी पर बैठे थे, आराम से पंखा झलते हुए मोबाइल पर बात कर रहे थे।
आरती बोली, “सर, मुझे एक रिपोर्ट लिखवानी है।”
राजेंद्र मिश्रा ने टोकते हुए कहा, “यहां रिपोर्ट लिखवाने की फीस ₹5,000 है। पैसे लाई है क्या?”
आरती हैरान थी, खुलेआम भ्रष्टाचार!
उसने सख्त स्वर में कहा, “सर, रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई शुल्क नहीं लगता। यह कानून के खिलाफ है।”
राजेंद्र मिश्रा भड़क गया, “तू मुझे सिखाएगी? ज्यादा बकवास मत कर, वरना अंदर करवा दूंगा।”

आरती ने पूछा, “आपके थाने का सब इंस्पेक्टर अशोक सिंह कहां है?”
राजेंद्र मिश्रा बोला, “तुझे उससे क्या काम है?”
आरती ने कहा, “रिपोर्ट लिखिए वरना एक्शन लूंगी, आप नहीं जानते मैं कौन हूं।”
राजेंद्र मिश्रा जोर से हंसा, “तू मुझे धमका रही है? तुझे देखकर तो लगता है भिखारी या झाड़ू-पोछा करने वाली है। यहां रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी। निकल जा वरना बाहर फेंकवा दूंगा।”

आरती समझ गई कि पूरा थाना भ्रष्टाचार में डूबा है। उसने मन ही मन ठान लिया, इन्हें मजा चखाना ही पड़ेगा।
थाने से बाहर आकर अपने अधिकारी आईपीएस और आईएएस को फोन किया, “मैं थाने में हूं, गाड़ी लेकर आओ।”
फिर दोबारा थाने में प्रवेश किया।

न्याय का पल

राजेंद्र मिश्रा गरजते हुए बोला, “यह लड़की फिर आ गई। चल तुझे सबक सिखाता हूं। अब तो जेल में डालना ही पड़ेगा।”
आरती ने शांत स्वर में कहा, “सर, मुझे सिर्फ रिपोर्ट लिखवानी है। अगर आप ही जनता के साथ ऐसा करेंगे तो न्याय की उम्मीद किससे करेंगे?”
मिश्रा फिर वही रट, “₹5,000 निकालो, बिना पैसे कुछ नहीं होगा।”
आरती मुस्कान के साथ बोली, “सर, रिश्वत क्यों मांग रहे हैं? कानून में कहीं नहीं लिखा कि रिपोर्ट के पैसे लिए जाएं। अगर आपने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो आपके खिलाफ सख्त कार्रवाई करूंगी।”
मिश्रा तिलमिला गया, दो सिपाहियों को इशारा किया, “इस लड़की को बाहर निकालो।”
दो सिपाही आरती की ओर बढ़े ही थे, तभी थाने के दरवाजे से कड़क आवाज गूंजी, “रुको!”

आईएएस और आईपीएस अफसरों का दल थाने में दाखिल हुआ। उनके पीछे वरिष्ठ अधिकारी भी थे।
एक अधिकारी ने राजेंद्र मिश्रा पर गुस्से में नजर डाली, “बेहूदे इंस्पेक्टर, यह क्या कर रहे हो? अब भी वर्दी उतर जाएगी और जिंदगीभर जेल में सड़ोगे।”
मिश्रा के हाथ-पांव कांपने लगे, सफाई देने की कोशिश की, “साहब, यह लड़की…”
आरती आगे बढ़ी, “चुप रहो मिश्रा! यह लड़की नहीं, मैं जिले की डीएम हूं। मैंने अपनी आंखों से देख लिया है कि यहां जनता के साथ कैसा व्यवहार होता है। तुम्हें लगता है थाना तुम्हारी जागीर है? अब असली कानून समझ आएगा।”

आईएएस अधिकारी ने गुस्से में टेबल पर हाथ मारा, “कांस्टेबल, इंस्पेक्टर मिश्रा को हिरासत में लो!”
मिश्रा गिड़गिड़ाने लगा, “मैडम, माफ कर दीजिए, एक मौका दीजिए।”
आरती ने ठंडे स्वर में कहा, “गलती एक बार होती है, तुम्हारा अपराध आदत है। इसकी सजा तुम्हें मिलकर रहेगी। कानून का मजाक उड़ाना, जनता की आवाज दबाना, महिला का अपमान करना—ये अपराध हैं।”

आईपीएस अधिकारी ने इशारा किया, दो सिपाही आगे बढ़े, मिश्रा को हतकड़ी पहनाई गई।
तभी थाने के दरवाजे से अशोक सिंह अंदर आया। चेहरा घबराया हुआ। जैसे ही उसने डीएम आरती को देखा, उसके होश उड़ गए।
अशोक बड़बड़ाया, “सर, यह लड़की एक नंबर की लफंगी है। मैंने ऑटो वाले का चालान काटा, यह भिड़ गई, मुझे थप्पड़ मारने लगी। इसने डीएम ऑफिस में कंप्लेंट कर दी। आपको इस लड़की को गिरफ्तार करना चाहिए था।”

आईपीएस अधिकारी ने गुस्से में अशोक को थप्पड़ मारा, “तुम हद में रहो! तुम नहीं जानते यह महिला कौन है।”
अशोक कांपते हुए बोला, “सर, आखिर यह मैडम है कौन?”
डीएम आरती ने सीधी नजरें डालीं, “याद है वही थप्पड़ आज तुम्हें पूरी जिंदगी पर भारी पड़ेगा। उस दिन तुमने सोचा था एक लड़की को नीचा दिखाकर जीत गए। लेकिन असलियत यह है कि उस थप्पड़ ने मेरी आत्मा नहीं बल्कि तुम्हारे पूरे सिस्टम की गंदगी उजागर कर दी। तुमने सिर्फ मुझे नहीं, जनता की आवाज को मारा था।”

आरती बोली, “आज मैं सिर्फ डीएम बनकर नहीं आई हूं, उन तमाम लोगों की तरफ से खड़ी हूं जिन्हें तुम जैसे अफसर हर जगह बेइज्जत करते हैं। चाहे सड़क हो, थाना हो या दफ्तर। तुम्हें लगा वर्दी पहन ली तो भगवान बन गए? आज तुझे पता चलेगा कानून सबके लिए बराबर है।”

टेबल पर एक तगड़ा थप्पड़ मारा, “इंस्पेक्टर अशोक को गिरफ्तार करो, वर्दी उतारो और सस्पेंशन की रिपोर्ट बनाओ।”
दो सिपाही आगे बढ़े, अशोक के हाथ में हथकड़ी डाल दी गई।
अशोक गिड़गिड़ाया, “मैडम, माफ कर दीजिए, पहचान नहीं पाया था।”
आरती ने कहा, “कानून किसी की पहचान नहीं पूछता, सबके लिए बराबर है। तेरी माफी से जनता का दर्द कम नहीं होगा, अब अदालत तय करेगी।”

अंतिम न्याय

राजेंद्र मिश्रा और अशोक को हथकड़ी पहनाकर बाहर लाया गया। भीड़ में हलचल मच गई।
आईपीएस अधिकारी ने मीडिया से कहा, “अब से इस जिले में दादागिरी नहीं, कानून चलेगा। चाहे पुलिस वाला हो, नेता हो या आम आदमी—गलती करेगा तो सजा मिलेगी।”
लोग ताली बजाने लगे, वीडियो बनाने लगे। दोनों को जीप में बैठाकर सीधा जेल ले गए।
जेल में वर्दी उतरवाई गई, कैदी वाली ड्रेस पहनाई गई। दोनों को सलाखों के पीछे धकेल दिया गया।
मिश्रा रोने लगे, अशोक बड़बड़ाया, “अगर उस दिन थप्पड़ न मारा होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।”

सीख:
इस कहानी से यही सिखने को मिलता है कि कानून सबके लिए बराबर है। पद, वर्दी या ताकत किसी को जनता के अधिकार छीनने का हक नहीं देती। एक सच्चा अधिकारी वही है जो जनता के साथ न्याय करे, न कि उसका शोषण।

समाप्त।