जिसे लड़की ने समझा मामूली वार्ड बॉय…वो निकला देश का नंबर-1 सर्जन! फिर जो हुआ |

“घमंड की दीवार, इंसानियत की राह”

मुंबई के नामी केडी अस्पताल में आज कुछ अलग ही माहौल था। रिसेप्शन पर ताजे फूल सजे थे, नर्सें अपना यूनिफार्म बार-बार ठीक कर रही थीं, और सबकी निगाहें एक नाम पर टिकी थीं—डॉक्टर त्रिशा मेहरा। यूके से पढ़कर लौटी, अस्पताल के चेयरमैन की इकलौती बेटी। उसकी चाल में घमंड और आवाज में रुतबा साफ झलकता था।

सुबह 8 बजे जब उसकी BMW अस्पताल के सामने रुकी, गार्ड दौड़कर दरवाजा खोलने लगे। त्रिशा ने हल्का सिर हिलाया और सीधे ICU की ओर बढ़ गई। तभी उसकी नजर एक साधारण से लड़के पर पड़ी—फीकी सी यूनिफार्म में, स्ट्रेचर के पास झुका हुआ, सर्जिकल ट्रे सजा रहा था। उसके हाथों में एक अजीब सी सधेपन की चमक थी।

त्रिशा ने तीखी आवाज में कहा,
“तुम्हें पता है ये ट्रे गलत रखी है? यहां कोई लोकल डिस्पेंसरी नहीं है, ये मेरे पापा का अस्पताल है। परफेक्शन चाहिए, जुगाड़ नहीं।”

लड़का सीधा खड़ा हुआ। उसकी आंखों में ना झिझक थी, ना डर। नाम पूछा गया तो बस एक शब्द निकला—विक्रम।
त्रिशा ने हंसते हुए कहा,
“यह केबिन, यह OT, यह हॉस्पिटल सब मेरे हैं। तुम जैसे लोगों को सिर्फ ऑर्डर फॉलो करना आता है, सवाल नहीं।”

विक्रम ने हल्की आवाज में बस इतना कहा,
“काम छोटा नहीं होता डॉक्टर साहिबा, नीयत बड़ी होनी चाहिए।”

त्रिशा की चाल रुक गई। उसकी आंखें कुछ पल के लिए झपकना भूल गईं। एक वार्ड बॉय ने उसे जवाब दिया था। लेकिन वो शब्द कहीं ना कहीं दिल में लग चुके थे।

रात आई।

तेज बारिश और उसी अस्पताल की इमरजेंसी में एक गंभीर केस पहुंचा। तेज ब्लीडिंग, डॉक्टर्स घबरा गए। पहली बार त्रिशा को अकेले सर्जरी लीड करनी थी। उसके हाथ कांप रहे थे, ब्लीडिंग रुक ही नहीं रही थी। तभी एक आवाज आई,
“मैम, अगर इजाजत दें…”

त्रिशा ने देखा, वो विक्रम था—एक वार्ड असिस्टेंट। लेकिन उसके हाथ इतने सधे हुए थे जैसे सालों की ट्रेनिंग हो। उसने एक खास तकनीक से कट लगाया और ब्लीडिंग कुछ सेकंड में रुक गई। मरीज की जान बच गई।

ऑपरेशन खत्म होने के बाद त्रिशा बस वॉश बेसिन के सामने खड़ी रही। उस चुप लड़के की तकनीक, वो आत्मविश्वास, सब उसकी सोच पर भारी पड़ रहा था। रात को अपने केबिन में बैठी त्रिशा सिर्फ एक नाम सोच रही थी—विक्रम। जिसे वो वार्ड बॉय समझती थी, वो तो उससे भी ज्यादा डॉक्टर निकला।

उस रात कुछ बदला था। सर्जरी के बाद की खामोशी में त्रिशा का मन एक सवाल से भर गया था—कौन है ये विक्रम? जो हमेशा झुका रहता है, कभी अपनी तारीफ नहीं करता, ना डॉक्टर है, ना प्रोफेसर, लेकिन जिसके हाथों में ऐसा जादू है कि जिंदगी और मौत के बीच की डोर थाम ले।