न्यूयॉर्क एयरपोर्ट की वो रात – श्रीकांत मिश्रा की कहानी
न्यूयॉर्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अमेरिका।
हर रोज़ लाखों लोग यहाँ आते-जाते हैं। चकाचौंध करती लाइट्स, बिजनेस सूट में तेज़ चाल से चलते पैसेंजर, हर तरफ़ रौनक और भागमभाग। इन्हीं सबके बीच एक साधारण सा व्यक्ति एयरपोर्ट के गेट से भीतर दाखिल होता है। सफेद धोती, खादी का कुर्ता, चप्पल पहने, कंधे पर एक पुराना सा बैग। उम्र लगभग साठ साल, बाल सफेद, चेहरा सीधा-सादा, लेकिन आँखों में एक अलग ही चमक।
एयरपोर्ट स्टाफ़ और सुरक्षा अधिकारी उसकी सादगी देख हैरान हो जाते हैं। लगता है जैसे कोई ग़लत जगह आ गया हो। जैसे ही वह व्यक्ति सिक्योरिटी गेट के पास पहुँचा, एक अधिकारी ने हाथ के इशारे से रोक लिया,
“Excuse me sir, पासपोर्ट प्लीज़,” अधिकारी ने सख्त लहजे में कहा।
उस व्यक्ति ने शांति से अपने झोले से पासपोर्ट निकाला और सौंप दिया। अधिकारी ने संदेह से पासपोर्ट देखा, फिर उसकी ओर देखा,
“Where are you going?”
“San Francisco,” उसने साधारण अंग्रेज़ी में जवाब दिया।
अधिकारी ने शक भरी निगाह से देखा, कुछ फुसफुसाया और फिर अन्य अधिकारियों को बुला लिया। कुछ ही मिनटों में तीन-चार अधिकारी उसके चारों ओर खड़े हो गए। वे उसके कपड़ों और झोले को तिरस्कार भरी नजरों से देखते रहे।
“Do you have enough money to travel?” एक अधिकारी ने हँसी छुपाते हुए पूछा।
उसने मुस्कुराकर जेब से कुछ डॉलर दिखा दिए, लेकिन स्टाफ़ को संतोष नहीं हुआ। उन्होंने उसे किनारे कर दिया।
अब भीड़ में खड़े लोग भी उसे घूरने लगे, कुछ फुसफुसाने लगे—”Looks suspicious… Homeless maybe? How did he even get a visa?”
उस व्यक्ति को एक छोटे कमरे में ले जाया गया। पूछताछ और गहरी हो गई। उसके झोले की तलाशी ली गई—बस कुछ किताबें, एक डायरी और एक पुराना मोबाइल फोन।
अधिकारियों ने उसका फोन भी ले लिया।
“Who can you call?” एक अधिकारी ने तंज कसते हुए पूछा।
उसने मुस्कुरा कर कहा, “बस एक फोन करना है।”
थोड़ी देर की बहस के बाद उसे फोन दिया गया। उसने बहुत शांति से एक नंबर डायल किया,
“हाँ, मैं न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर हूँ, लगता है कुछ गलतफहमी हो गई है,” उसने फोन पर शांत स्वर में कहा। बस इतना ही।
अधिकारी हँसे, “He thinks one call will help him!”
लेकिन पाँच मिनट भी नहीं बीते थे कि एयरपोर्ट के VIP गेट से तीन काले सूट में अफसर भागते हुए अंदर आए। पीछे-पीछे एयरपोर्ट मैनेजर भी था।
“Where is Mr. Mishra?” एक अधिकारी ने कड़क आवाज़ में पूछा।
सिक्योरिटी स्टाफ़ हड़बड़ा गया,
“वो… वो रहे,” किसी ने काँपते हुए इशारा किया।
तीनों अधिकारी दौड़ते हुए उसके पास आए। और फिर ऐसा दृश्य हुआ कि पूरा एयरपोर्ट सन्न रह गया।
सूट-बूट में सजे अफसर उस साधारण धोती-कुर्ता पहने व्यक्ति के सामने झुक गए,
“Sir, we are extremely sorry for the inconvenience,” उनमें से एक ने विनम्रता से कहा।
पूरा स्टाफ़ स्तब्ध। भीड़ हतप्रभ। जिसे अभी तक भिखारी या आम आदमी समझा जा रहा था, वो कोई बहुत बड़ा आदमी निकला।
उसे एयरपोर्ट के लाउंज में ले जाया गया, स्पेशल सर्विस दी गई, VIP सेक्शन में ले जाया गया।
धीरे-धीरे खबर फैलने लगी। सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल होने लगीं—”Dhoti clad Indian commands respect at New York Airport!”
अगले दिन न्यूयॉर्क टाइम्स में हेडलाइन छपी—
**”Simple Man, Powerful Identity: The Indian Who Commands Respect”**
वो व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि श्रीकांत मिश्रा थे—दुनिया के सबसे बड़े टेक्नोलॉजी फाउंडेशन के फाउंडर और भारत सरकार के स्पेशल साइंटिफिक एडवाइजर।
Google, Microsoft और Apple जैसी कंपनियों के CEO उनके स्टूडेंट रह चुके थे।
वे भारत में ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और टेक्नोलॉजी के लिए काम कर रहे थे।
एयरपोर्ट डायरेक्टर ने खुद आकर उनसे माफी माँगी। अमेरिकन डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने विशेष माफीनामा जारी किया। एयरपोर्ट स्टाफ़ के खिलाफ़ जांच बैठा दी गई।
“Sir, it was a misunderstanding,” डायरेक्टर ने कहा।
श्रीकांत मिश्रा मुस्कुराए,
“गलतफहमियाँ इंसानियत का हिस्सा हैं, बस उनसे सीखना चाहिए।”
पूरे अमेरिका के मीडिया चैनलों पर उनकी खबर चलने लगी। CNN, BBC, हर जगह चर्चा हो रही थी।
रिपोर्टर दौड़-दौड़कर इंटरव्यू लेने लगे,
“Sir, how do you feel after this incident?”
“Would you like to make a statement on discrimination?”
श्रीकांत मिश्रा ने बस इतना कहा—
**”कपड़े से नहीं, कर्म से इंसान की पहचान होती है।”**
यह वाक्य वायरल हो गया। ट्विटर पर #RespectAll ट्रेंड करने लगा।
जब यह खबर भारत पहुँची, तो पूरे देश में गर्व की लहर दौड़ गई।
प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया—
“श्रीकांत मिश्रा जैसे लोग भारत का असली गौरव हैं। साधना और सादगी का अद्भुत उदाहरण।”
दिल्ली एयरपोर्ट पर जब श्रीकांत मिश्रा लौटे, तो उनका भव्य स्वागत हुआ। हजारों लोग फूल-मालाएँ लेकर आए, छात्रों ने नारे लगाए—”भारत माता की जय! श्रीकांत मिश्रा अमर रहें!”
इस घटना के बाद अमेरिका में एयरपोर्ट सुरक्षा प्रोटोकॉल में बदलाव किया गया। खास तौर पर ड्रेस-बेस्ड प्रोफाइलिंग पर बैन लगाया गया।
भारत में भी बहस छिड़ गई—क्या हम भी कपड़ों से लोगों की पहचान करते हैं?
कॉलेजों में श्रीकांत मिश्रा के भाषण होने लगे। उनके शब्द सबकी जुबान पर थे—
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