बच्ची ने सिर्फ़ एक पकोड़ी माँगी थी… दुकान वाले ने जो किया, इंसानियत हिल गई
बरसात की एक शाम थी, जब काले बादल आसमान पर छाए हुए थे। शुभम अपनी छोटी सी चाट की दुकान समेटने की तैयारी कर रहा था। मौसम की बेरुखी को देखते हुए उसने सोचा कि घर जल्दी पहुंचना बेहतर होगा। उसकी नन्ही बहन प्रिया स्कूल से आने वाली थी और मां सुमित्रा भी अपने काम से लौटने वाली थीं। तभी अचानक एक छोटी सी आवाज उसके कानों में पड़ी, “भैया, मुझे कुछ खाने को मिलेगा?”
पहली मुलाकात
आवाज इतनी धीमी थी कि शुभम को लगा कि कहीं हवा का शोर तो नहीं। जब उसने मुड़कर देखा, तो सामने एक छोटी सी बच्ची खड़ी थी। उसकी उम्र शायद छह-सात साल की रही होगी। गंदे मैले कपड़े, बिखरे हुए बाल और चेहरे पर गुब्बारे जैसी मासूमियत। शुभम ने प्यार से पूछा, “कहां से आई है तू?”
बच्ची ने अपनी नन्ही उंगली से दूर की तरफ इशारा किया। “वहां से मैं अपनी अम्मा को ढूंढ रही हूं।”
शुभम का दिल भर आया। इतनी छोटी बच्ची और अकेली। “तेरी अम्मा कहां गई?” उसने पूछा।
“पता नहीं,” बच्ची की आंखों में आंसू आ गए। “सुबह से कुछ नहीं खाया है। बहुत भूख लगी है भैया।”
सहायता का हाथ
शुभम ने तुरंत अपनी दुकान से गर्म पकोड़े निकाले और प्लेट में चटनी के साथ रखकर बच्ची के सामने कर दिए। “ले बेटी, खा ले। फिर बताना, तेरा घर कहां है?”
बच्ची ने झिझकते हुए कहा, “भैया, मेरे पास पैसे नहीं हैं।”
“अरे पागल, तुझसे कौन पैसे मांग रहा है? जल्दी खा। बारिश होने वाली है,” शुभम ने हंसते हुए कहा। बच्ची ने बड़े चाव से खाना शुरू कर दिया। शुभम देख रहा था कि वह कितनी भूखी थी, जैसे कई दिनों से कुछ नहीं खाया हो।
मासूमियत की कहानी
खाते-खाते बच्ची ने अपनी छोटी सी जेब से एक पुराना लिफाफा निकाला और शुभम को दिखाया। “यह क्या है?” शुभम ने पूछा।
“अम्मा की फोटो है। मैं इसे लेकर घूमती हूं ताकि लोगों को दिखा सकूं कि कहीं उन्होंने मेरी अम्मा को देखा है या नहीं,” बच्ची ने मासूमियत से कहा।
शुभम ने धीरे से लिफाफा लिया और फोटो देखी। अंदर एक खूबसूरत औरत की तस्वीर थी। साड़ी में लिपटी, चेहरे पर मुस्कान और गोद में यही छोटी बच्ची बैठी थी। तस्वीर देखकर शुभम समझ गया कि यह कोई साधारण परिवार नहीं था।
“भैया, क्या आपने मेरी अम्मा को कहीं देखा है?” बच्ची ने उम्मीद भरी नजरों से पूछा।
दुख और चिंता
शुभम ने फोटो को ध्यान से देखा और सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं बेटी, मैंने इन्हें नहीं देखा। लेकिन तू परेशान मत हो। तेरी अम्मा जरूर मिल जाएगी।”
भूमिका ने फोटो वापस लेकर अपनी जेब में रख लिया। “बेटी, तेरा नाम क्या है?” शुभम ने नरम आवाज में पूछा।
“भूमिका,” बच्ची ने खाते-खाते जवाब दिया। “अम्मा मुझे बुलाती थी।”
“अच्छा, तेरी अम्मा कब से गायब है?” शुभम ने पूछा।
भूमिका ने अपनी छोटी उंगलियों पर गिनती करते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए भैया। दादाजी कहते हैं कि अम्मा बीमार हो गई है और डॉक्टर के पास गई है। लेकिन मुझे लगता है कि वह मुझसे नाराज हो गई है।”
“क्यों?” शुभम ने पूछा।
“मैंने उनकी प्रिय वाली गुड़िया तोड़ दी थी। वो बहुत गुस्सा हो गई थी,” भूमिका की आंखों से आंसू निकल आए।
शुभम का गला भर आया। इतनी छोटी बच्ची और इतना बड़ा गम। उसने प्यार से भूमिका का सिर सहलाया। “नहीं बेटी, अम्मा तुझसे नाराज नहीं होती। अम्मा तो हमेशा अपने बच्चों से प्यार करती है।”
भूमिका ने उम्मीद भरी नजरों से देखा। “सच में तो फिर वो वापस आएगी ना?” शुभम के पास कोई जवाब नहीं था। वह केवल हामी भर सकता था।
बारिश की बूंदें
इतने में बारिश की बूंदें तेज हो गईं। भूमिका ने जल्दी-जल्दी खाना खत्म किया और खड़ी हो गई। “मुझे जाना होगा भैया। दादाजी घर पर इंतजार कर रहे होंगे।”
“रुक, मैं तुझे छोड़ने चलता हूं। इतनी बारिश में अकेली कैसे जाएगी?” शुभम ने कहा।
“नहीं भैया, मैं जानती हूं रास्ता,” भूमिका ने कहा और तेजी से भागती हुई बारिश में गुम हो गई। शुभम वहीं खड़ा रह गया। उसका दिल उस छोटी बच्ची के लिए दुख रहा था। वह सोच रहा था कि काश वह उसकी कोई मदद कर पाता।
परिवार की चिंता
घर पहुंचकर शुभम ने अपनी मां सुमित्रा और बहन प्रिया को सब कुछ बताया। भूमिका की दुर्दशा और उसकी मां की तलाश के बारे में सुनकर दोनों का दिल भर आया।
“बेटा, वो छोटी बच्ची कल फिर आए तो उसकी मां की तस्वीर मुझे दिखाना। शायद मैं उसकी कोई मदद कर सकूं,” सुमित्रा ने कहा। उसने गहरी सांस ली। “पता नहीं बेटी, कोई बड़ी मुसीबत आ गई होगी। वरना कोई मां अपने बच्चे को इस तरह अकेला नहीं छोड़ती।”

नींद की कमी
रात भर शुभम को नींद नहीं आई। बार-बार भूमिका का मासूम चेहरा आंखों के सामने आ रहा था। उसकी भूख, उसकी बेबसी, उसकी मां की तलाश सब कुछ शुभम के दिल पर बहुत गहरा असर कर गया था।
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