बूढ़ी मां जिसके पास रिपोर्ट लिखाने पहुंची, वह निकला उन्हीं का मरा हुआ बेटा जो था जिले का SP फिर जो.

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उस दिन शाम के धुंधलके में ज़िले के कलेक्टर कार्यालय के गेट पर हलचल मची।

एक दुबली-पतली औरत, चेहरे पर चोट के गहरे निशान लिए, चीख-चीखकर कह रही थी—
“मुझे अंदर जाने दो… नहीं तो आज मैं जिंदा वापस नहीं जाऊँगी… मेरा पति मुझे मार डालेगा!”

वह औरत थी कमला देवी। झुर्रियों से भरा चेहरा, हड्डियों से झाँकता शरीर और आँखों में अथाह पीड़ा। गार्ड ने उसे रोका, “साहब अभी आराम कर रहे हैं, सुबह आना।”

लेकिन तभी ऊपर खिड़की से झाँकते हुए डीएम साहब ने पूरा मंजर देख लिया। उन्होंने बाहर आकर कहा—
“इसे अंदर आने दो।”

कमला देवी हाँफती हुई दफ़्तर में दाख़िल हुई। कुर्सी पर बैठते ही उसका शरीर काँप रहा था। आँसू गालों पर बह रहे थे। कलेक्टर ने नौकर को पानी लाने कहा। पानी पीकर जैसे उसकी टूटी हुई हिम्मत थोड़ी संभली।

“बताओ, क्या हुआ?” – डीएम ने नरम स्वर में पूछा।

कमला देवी ने आँखें झुकाए कहा, “साहब… मेरा पति रोज़ शराब पीता है। मैं सुबह से शाम तक दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा करती हूँ, बर्तन मांजती हूँ, और जो दो पैसे आते हैं, वह छीन लेता है। फिर शराब पीकर मुझे ही पीटता है। साहब… मैं अब और नहीं सह सकती।”

कलेक्टर का चेहरा सख्त हो उठा। पर उन्होंने धीरे से कहा—
“मां जी, आप सिर नीचा क्यों कर रही हैं? ऊपर देखिए…”

कमला देवी हिचकिचाई, “नहीं साहब… आप इस ज़िले के कलेक्टर हैं… मैं आपसे आँख मिलाकर कैसे बात करूँ?”

लेकिन आदेश पाकर उसने जैसे ही अपना चेहरा ऊपर उठाया…

और तभी उसकी जुबान थम गई… साँसें रुक गईं… दिल की धड़कनें जैसे कांप उठीं।

सामने बैठे अफ़सर की आँखों, चेहरे और माथे पर वही निशान था… वही काला तिल… जो उसके चार साल की उम्र में मर चुके बेटे के चेहरे पर था।

कमला देवी की आँखें फटी रह गईं। होंठ काँपे… आवाज़ टूटी…
“हे भगवान… ये… ये तो मेरा बेटा है… मेरा राहुल… जो बीस साल पहले मर गया था!”

डीएम साहब चौंक गए। “आप कैसी बातें कर रही हैं? मैं आपका बेटा कैसे हो सकता हूँ?”

कमला देवी रो पड़ी। काँपते होंठों से बोली—
“बेटा… तेरी पीठ पर भी एक काला निशान है… है ना?”

अधिकारी ने हैरानी से जवाब दिया—
“हाँ… लेकिन आपको कैसे पता?”

अब कमला देवी को कोई शक नहीं रहा। आँसुओं में डूबकर उसने कहा—
“बेटा… तू ही मेरा राहुल है… तू ही मेरा बिछड़ा हुआ लाल है।”


22 साल पुरानी दास्तां

फिर काँपती आवाज़ में कमला देवी ने बीते ज़ख़्म खोले।

वह बोली—
“यह कहानी है 22 साल पुरानी… कोटा, राजस्थान की। मैं कॉलेज में पढ़ाई करती थी। वहीं एक टीचर थे, पूरन। पढ़ाई-लिखाई में मैं तेज़ थी और पूरन अक्सर मेरी तारीफ़ करते। धीरे-धीरे हमारा रिश्ता मोहब्बत में बदल गया। घरवालों ने मना किया, लेकिन मेरी ज़िद और पूरन की विनती के आगे सबको मानना पड़ा। हम शादी के बंधन में बंध गए।”

कमला की आँखें भीग गईं।
“एक साल बाद मैंने एक बेटे को जन्म दिया। हमने उसका नाम रखा—राहुल। पूरन राहुल को आँखों से भी ज़्यादा चाहता था। जिंदगी खूबसूरत थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।”


वह मनहूस यात्रा

कमला बोली—
“राहुल चार साल का हुआ तो घूमने की जिद करने लगा। मैं भी चाहती थी कि शादी के बाद पहली बार हम कहीं घूमें। पूरन राज़ी हुए और हम सब मनाली चले गए। लेकिन तभी बादल फटे, पहाड़ टूटे, रास्ते बंद हो गए। तीन दिन तक होटल में फँसे रहे। चौथे दिन घर लौटने का फ़ैसला किया। वही फ़ैसला हमारी ज़िंदगी को तबाह कर गया।”

कमला का गला रुंध गया।
“शाम का समय था। रास्ते में पहाड़ी खिसक गई। हमारी कार नदी में जा अटकी। लोग रस्सियों से हमें खींच रहे थे। पूरन ने एक हाथ से रस्सी पकड़ी और दूसरे से मुझे… मैंने अपनी गोद में राहुल को कसकर पकड़ा था। लेकिन अचानक… मेरा हाथ फिसल गया। और… और मेरा लाल तेज़ बहाव में नदी में बह गया…”

वह चीख पड़ी—
“राहुल… राहुल…”

कमरे में सन्नाटा छा गया।


टूटी ज़िंदगी

कमला बोली—
“पूरन ने मुझे ही दोषी ठहराया। कहने लगा कि मेरी गलती से बेटा मरा। वह शराब में डूब गया, नौकरी छोड़ दी, जायदाद जुए में हार गया। और मैं… मैं बर्तन मांजकर घर चलाने लगी। रोज़ उसकी मार खाती रही। लेकिन बेटे का ग़म मुझे कभी चैन से जीने नहीं देता था।”

उसकी आँखों से बहते आँसू अब टपककर मेज़ पर गिर रहे थे।


डीएम की हैरानी

कलेक्टर ने भावुक स्वर में कहा—
“लेकिन मां जी… मैं भी अपने माता-पिता से 4 साल की उम्र में बिछड़ गया था। वे कहते हैं कि मुझे एक हादसे में खो दिया था, फिर दिल्ली में रहने वाले दंपति ने मुझे अपनाया। उन्होंने मुझे पाला-पोसा, पढ़ाया, और आज मैं यहाँ बैठा हूँ।”

कमला के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

“हाँ बेटा… वही हादसा… वही दिन… तू ही मेरा राहुल है।”


दिल्ली वाले माता-पिता की सच्चाई

डीएम ने फ़ोन लगाया। दिल्ली में उनके माता-पिता ने सच्चाई बताई।

“हाँ… बीस साल पहले हम मनाली गए थे। वहाँ एक नदी किनारे एक बच्चा घायल पड़ा मिला। उसे अस्पताल ले गए। उसकी याददाश्त जा चुकी थी। और चूँकि हमारे कोई संतान नहीं थी… हमने उसे अपना लिया। वही बच्चा आज हमारा बेटा है।”

अब सारा सच सामने था। आँसुओं में भीगे शब्दों में उन्होंने कहा—
“बेटा, तू हमें मत छोड़ना। हमने भी तुझे पाल-पोसकर बड़ा किया है।”

डीएम के दिल पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। सामने जन्म देने वाली मां और पिता, और दूसरी ओर वे जिन्होंने गोद लेकर पाल पोसा।


असली पिता से मुलाक़ात

कमला बोली, “बेटा, चल… तुझे तेरे असली बाप से मिलवाती हूँ। बीस साल से वह भी तेरी राह देख रहा है।”

वे दोनों झुग्गी-झोपड़ी वाले मोहल्ले में पहुँचे। दरवाज़ा खटखटाया।

अंदर से निकले पूरन। झुर्रियों से भरा चेहरा, आँखों के नीचे काले घेरे, शराब की बू, बिखरी दाढ़ी।

उन्होंने कहा, “कौन है?”

कमला बोली, “देखो… कौन आया है।”

पूरन ने डीएम को देखा और दंग रह गए। नशे में डूबे-डूबे बोले, “यह कौन है? तू किसे लेकर आई है? मुझे बेवकूफ़ बना रही है?”

कमला ने काँपते स्वर में कहा—
“ध्यान से देखो… चेहरे पर वही निशान… पीठ पर वही दाग़… यही हमारा राहुल है।”

पूरन की आँखें फटी रह गईं। नशा मानो उतर गया। कांपते हाथों से बेटे को गले लगाया।
“राहुल… मेरा बेटा… तू जिंदा है!”

डीएम भी फूट-फूटकर रो पड़े।


न्याय की लीला

बीस साल बाद मां-बाप और बेटा गले मिले।

कलेक्टर ने दोनों परिवारों को अपनाने का फ़ैसला किया।
“मेरे दिल्ली वाले माता-पिता ने मुझे पाला है, मैं उन्हें भी नहीं छोड़ूँगा। और आप दोनों मेरे जन्मदाता हैं, अब मैं आपको भी साथ रखूँगा।”

कमला देवी की आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। 20 साल की पीड़ा के बाद आज उसकी गोद फिर भर गई थी।


उपसंहार

यह कहानी केवल एक औरत की नहीं, बल्कि उस किस्मत की लीला की है जो इंसान को तोड़ देती है, मगर अंत में न्याय भी करती है।

कमला देवी, जिसने पति के अत्याचार और गरीबी में अपनी ज़िंदगी गँवा दी, आखिरकार 20 साल बाद अपने खोए बेटे से मिली।

और राहुल—जो चार साल की उम्र में नदी में बह गया था—आज ज़िले का सबसे बड़ा अफ़सर बनकर मां की गोद में लौटा।

कभी-कभी भगवान देर से न्याय देते हैं, लेकिन देते ज़रूर हैं।