भिखारी को कोर्ट बुलाया – जज खुद कुर्सी से उतरकर आया!”/hindi kahaniya TV/judge
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वाराणसी की सुबह में कुछ अलग ही जादू होता है। गंगा किनारे आरती की गूंज, हवा में घुला चंदन का सुगंध, और गलियों में बहता रोजमर्रा की जद्दोजहद का शोर। लेकिन शहर के कचहरी परिसर के बाहर, मंदिर के पास, एक बूढ़ा आदमी हर सुबह पाँच बजे आकर बैठ जाता था।
लोग उसे “बाबा” कहते थे, कोई दया से, कोई हिकारत से — “पगला” कहकर। उसका कटोरा अक्सर खाली रहता, लेकिन उसकी आँखों में अजीब-सी गहराई थी। वह पीठ झुकी होने के बावजूद सीधी करके बैठता, जैसे कोई सैनिक चौकसी पर हो। उसकी नजरें अक्सर कोर्ट के लोहे के गेट पर टिकी रहतीं।
उस दिन कचहरी में असामान्य हलचल थी। शहर के बहुचर्चित रियल एस्टेट घोटाले की सुनवाई थी। कोर्ट रूम नंबर पाँच में जस्टिस अयान शंकर की अध्यक्षता में कार्यवाही शुरू होने वाली थी — वही जज जो अपने सख्त लेकिन न्यायप्रिय रवैये के लिए जाने जाते थे।
सुबह 10:13 बजे कार्यवाही शुरू हुई। वकील अपनी दलीलें दे रहे थे, मीडिया कैमरे ताने खड़ी थी। तभी जज साहब की नजर खिड़की से बाहर पड़ी और वे ठिठक गए। उन्होंने अपने क्लर्क से कहा —
“मंदिर के बाहर जो वृद्ध भिखारी बैठा है… उसे अंदर बुलाइए।”
कोर्ट में सन्नाटा फैल गया। कुछ पत्रकारों ने कैमरे की ओर झुककर फुसफुसाया — “ये क्या हो रहा है?”
दो कांस्टेबल बाहर गए और कुछ मिनट बाद वही बाबा अंदर दाखिल हुए। फटी धोती, पुरानी चादर, थकी आँखें और कांपते कदम — लेकिन उनमें एक ऐसा आत्मविश्वास था, जो वहाँ बैठे किसी अमीर में नहीं था। जज साहब कुर्सी से उठे और खुद उन्हें बैठने का इशारा किया।
“आप रोज यहाँ आते हैं… कोई खास वजह?” जज ने पूछा।
बाबा ने धीमे स्वर में कहा —
“कहने को बहुत कुछ है साहब… पर सुनने वाला कोई नहीं था।”
एक गहरी साँस लेकर बाबा ने कहा —
“यही वह जगह है, जहाँ मैंने कभी न्याय के लिए आवाज उठाई थी… मैं वकील था।”
पूरा कोर्ट स्तब्ध रह गया। बाबा ने झोले से एक पुराना पीला लिफाफा निकाला — उसमें उनका अधिवक्ता पहचान पत्र, वकालतनामा और एक अधूरी याचिका थी। जज साहब ने पढ़ा और उनके माथे की लकीरें गहरी हो गईं।
“आप वकील थे?”
“था… लेकिन बेटे की गलती का इल्जाम मुझ पर आया।”
बाबा की आँखें धुंधली हो गईं। उन्होंने बताया —
“बेटा एक रियल एस्टेट घोटाले में पकड़ा गया। संपत्ति मेरे नाम थी, क्योंकि उसकी क्रेडिट हिस्ट्री खराब थी। उसने मेरे हस्ताक्षर नकली कर दिए। मैंने सोचा बेटा बच जाए, मैं चुप रहा… लेकिन अदालत ने मुझे दोषी ठहरा दिया। जेल गया… वापस लौटा तो घर, दुकान, सब बिक चुका था। बेटा शहर छोड़ चुका था। तब से यहीं बैठा हूँ… शायद कोई पूछे — ‘तुम कौन हो?’”
कोर्ट में मौजूद हर व्यक्ति सन्न था। वकील सुधांशु मिश्रा खड़े हुए —
“माय लॉर्ड, यह सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, सिस्टम की चूक की मिसाल है। इस केस की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए।”
जज साहब ने तुरंत हामी भरी। उस दिन जब बाबा बाहर निकले, लोग उनका मजाक नहीं उड़ा रहे थे। कोई पानी दे रहा था, कोई खाना। एक पत्रकार ने पूछा —
“बाबा, आप कुछ कहना चाहेंगे?”
बाबा मुस्कुराए —
“आज फिर भरोसा किया है… न्याय पर और खुद पर।”
सात दिन बाद
कोर्ट में वही पुराना केस फिर खुला। नए वकील प्रो. त्रिवेदी, वही जज — अयान शंकर। गवाहियाँ, कागजात, और राघव का नाम — वह बेटा, जो अब तक लापता था। आदेश हुआ — राघव को कोर्ट में पेश किया जाए, वरना गिरफ्तारी वारंट जारी होगा।
शाम को प्रो. त्रिवेदी ने बाबा से पूछा —
“डरते नहीं कि बेटा बदला ले सकता है?”
बाबा हँस दिए —
“अब जो होगा, न्याय करेगा। मैं अब सिर्फ पिता नहीं… एक इंसान हूँ, जो अपना नाम वापस लेना चाहता है।”
अयान शंकर के दिल में हलचल थी। 20 साल पहले वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी (यानी बाबा) से मिले थे। उनके शब्द आज भी उनकी डायरी में दर्ज थे —
“अगर वकालत को धंधा समझोगे तो यह दुकान बनेगी, पर इंसान की आवाज समझोगे तो यह इबादत बनेगी।”
अगला दिन
राघव कोर्ट में आया — महंगी गाड़ी, ब्रांडेड सूट, लेकिन नजरें झुकी हुईं। जज ने पूछा —
“संपत्ति पिता के नाम क्यों ली?”
राघव ने ठंडे स्वर में कहा —
“मेरी क्रेडिट हिस्ट्री खराब थी… और मैंने उनके हस्ताक्षर नकली किए।”
कोर्ट में सनसनी फैल गई। बाबा ने आँखें मूँद लीं।
जज अयान शंकर ने फैसला सुनाया —
“लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी निर्दोष हैं। उनका वकालत लाइसेंस बहाल किया जाता है। पाँच लाख रुपये मानहानि क्षतिपूर्ति दी जाए। और सरकार सार्वजनिक रूप से माफी माँगे।”
अगले दिन बाबा फिर मंदिर के पास बैठे थे। फर्क बस इतना था कि अब लोग उनके सामने झुक रहे थे, पैर छू रहे थे, खाना ला रहे थे।
जज साहब चुपचाप उनके पास आए और बोले —
“आज मैंने न्याय नहीं किया… एक ऋण चुकाया है।”
बाबा ने मुस्कुराकर कहा —
“बेटा, आज तू सिर्फ जज नहीं… इंसान भी बना है।”
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