भिखारी भीख की कमाई से गरीब बच्चों को खिलाता था खाना, जब एक करोड़पति ने उसका पीछा किया और असलियत
पूरी कहानी: दिल से बड़ा कोई अमीर नहीं – शंकर चौधरी की कहानी
प्रस्तावना
क्या होता है जब एक इंसान जिसके पास कुछ भी नहीं होता, वह दुनिया को सब कुछ देने की कोशिश करता है?
क्या इंसानियत का असली मतलब महलों में बैठकर दान देना है या फिर खुद भूखे रहकर किसी और का पेट भरना है?
यह कहानी एक ऐसे ही भिखारी की है, जिसके फटे हुए कपड़ों के पीछे एक ऐसी शख्सियत छुपी थी जिसका अंदाजा किसी को नहीं था।
और एक ऐसे करोड़पति की है, जिसकी दुनिया दौलत की चमक और बिजनेस की दुनिया तक ही सीमित थी।
जब उस करोड़पति ने रोज-रोज उस भिखारी को अपनी भीख की कमाई से गरीब बच्चों के लिए खाना खरीदते देखा, तो उसकी जिज्ञासा जागी।
उसने उस भिखारी का पीछा करने का फैसला किया, यह जानने के लिए कि आखिर इस पहेली के पीछे का राज क्या है?
लेकिन उसे कहां पता था कि वह जिस राज की तलाश में निकला है, वह उसे एक ऐसी सच्चाई की दहलीज पर ले जाकर खड़ा कर देगा
जो ना सिर्फ उसके बल्कि पूरे शहर के होश उड़ा देगी।
दक्षिण मुंबई – दौलत का शहर, दो अलग दुनिया
दक्षिण मुंबई वो इलाका, जहां हवा में भी पैसे की खनक महसूस होती है।
जहां आसमान छूती इमारतें जमीन पर चलने वाले आम आदमी का मजाक उड़ाती सी दिखती हैं।
इसी इलाके के सबसे पौश हिस्से कफ परेड में सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का शानदार हेडक्वार्टर था
और इस सल्तनत का बादशाह था आदित्य सिंघानिया।
30 साल का नौजवान, जिसकी गिनती देश के सबसे कम उम्र और सबसे सफल उद्योगपतियों में होती थी।
आदित्य ने अपने पिता की विरासत को कुछ ही सालों में 10 गुना बढ़ा दिया था।
उसके लिए जिंदगी एक गणित थी – समय, पैसा, मुनाफा और सफलता।
इमोशंस और भावनाओं के लिए उसकी जिंदगी में कोई जगह नहीं थी।
उसका दिन मीटिंग्स, कॉन्फ्रेंस कॉल्स और स्टॉक मार्केट के आंकड़ों से शुरू होता
और देर रात पार्टियों या फिर अगले दिन की प्लानिंग के साथ खत्म होता।
एक भिखारी की आमद – सवालों की शुरुआत
आदित्य रोज सुबह अपने घर से ऑफिस के लिए निकलता।
उसका रास्ता एक ही था और उस रास्ते पर एक ट्रैफिक सिग्नल पड़ता था।
उस सिग्नल पर कई भिखारी भीख मांगते थे।
लेकिन आदित्य की नजरें कभी उन पर नहीं टिकती थीं।
उसके लिए वह लोग शहर की खूबसूरती पर लगे एक दाग की तरह थे।
जिन्हें वह नजरअंदाज कर देना ही बेहतर समझता था।
लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसकी नजरें अनचाहे ही एक भिखारी पर जाकर रुक जाती थीं।
वह एक अधेड़ उम्र का आदमी था।
उसके बाल बड़े हुए थे। दाढ़ी उलझी हुई और कपड़े तार-तार थे।
लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी शांति और एक ठहराव था, जो आमतौर पर भीख मांगने वालों में नहीं दिखता था।
वो किसी गाड़ी के शीशे नहीं खड़खड़ाता था। किसी के पीछे नहीं दौड़ता था।
बस चुपचाप सिग्नल के कोने में एक पेड़ के नीचे खड़ा रहता था।
अगर कोई अपनी मर्जी से कुछ दे देता तो वह सिर झुका कर ले लेता, वरना खड़ा रहता।
उसके चेहरे पर ना कोई लालच था, ना कोई बेबसी।
आदित्य को उसका यह अंदाज अजीब लगता था।
एक दिन आदित्य की गाड़ी सिग्नल पर सबसे आगे खड़ी थी।
उसने देखा, एक औरत ने उस भिखारी को 100 का नोट दिया।
भिखारी ने उसे लिया, सिर झुकाया और अपनी फटी हुई झोली में रख लिया।
आदित्य को लगा कि आज तो इसकी चांदी हो गई – शाम को देसी शराब का इंतजाम हो गया।
लेकिन तभी उसने कुछ ऐसा देखा जिसने उसे हैरान कर दिया।
जैसे ही सिग्नल हरा हुआ, वह भिखारी पास की एक छोटी सी दुकान की तरफ भागा।
वो दुकान एक बेकरी थी।
भिखारी ने अपनी झोली से सारे पैसे निकाले – कुछ सिक्के, कुछ 10-20 के नोट और वह 100 का नोट।
उसने सारे पैसे दुकानदार को दिए और बदले में ब्रेड और बिस्कुट के कई पैकेट लिए।
फिर वो उन पैकेटों को संभालता हुआ कहीं चला गया।
आदित्य को यह बहुत अजीब लगा। उसने सोचा, शायद बहुत भूखा होगा।
लेकिन अगले दिन फिर वही हुआ।
उसे जो भी भीख मिली, शाम को उसने उससे खाने का सामान खरीदा और कहीं चला गया।
यह सिलसिला रोज चलने लगा।
आदित्य की जिज्ञासा बढ़ने लगी।
वह सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर यह आदमी इतना सारा खाना अकेले तो नहीं खाता होगा।
तो फिर यह जाता कहां है? यह करता क्या है?
सच्चाई की खोज – पीछा और खुलासा
एक शाम आदित्य अपनी मीटिंग जल्दी खत्म करके घर लौट रहा था।
उसने ड्राइवर को गाड़ी धीरे चलाने को कहा।
उसकी नजरें उसी भिखारी को ढूंढ रही थीं।
वह वहीं था, पेड़ के नीचे।
आज भी उसके हाथ में ब्रेड और बिस्कुट के पैकेट थे।
आदित्य ने अचानक एक फैसला किया।
उसने ड्राइवर से कहा, “तुम घर जाओ, मैं थोड़ी देर में आता हूं।”
ड्राइवर के जाने के बाद आदित्य अपनी महंगी गाड़ी से उतरा।
अपने ब्रांडेड सूट पर एक साधारण सी जैकेट डाली और उस भिखारी के पीछे-पीछे चलने लगा।
भिखारी धीरे-धीरे भीड़भाड़ वाले इलाके से निकल कर एक पुरानी तंग गली की तरफ मुड़ गया।
वो एक ऐसी बस्ती थी, जहां शायद ही कभी कोई अमीर आदमी अपनी गाड़ी लेकर भी आता हो।
चारों तरफ गंदगी, कीचड़ और गरीबी का साम्राज्य था।
आदित्य अपने महंगे जूतों को कीचड़ से बचाता हुआ, नाक पर रुमाल रखे उस भिखारी के पीछे चलता रहा।
भिखारी एक पुरानी टूटी-फूटी वीरान सी इमारत के अंदर घुस गया।
वो शायद कोई पुरानी फैक्ट्री रही होगी, जो सालों से बंद पड़ी थी।
आदित्य कुछ देर बाहर ही रुका रहा।
उसे अंदर से बच्चों के खिलखिलाने और शोर मचाने की आवाजें आ रही थीं।
हिम्मत करके वह भी अंदर दाखिल हुआ।
अंदर का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए।
उस खंडहर जैसी जगह पर कम से कम 25-30 बच्चे थे।
सारे बच्चे गरीब और मैले-कुचैले कपड़ों में थे।
लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी।
वो सब उस भिखारी को घेर कर खड़े हो गए थे, जिसे वो “शंकर काका” कह कर बुला रहे थे।
शंकर उन बच्चों के बीच में बैठ गया और एक-एक करके सबको ब्रेड और बिस्कुट बांटने लगा।
वह बच्चे ऐसे खा रहे थे जैसे कई दिनों से भूखे हों।
शंकर हर बच्चे के सिर पर हाथ फेरता, उनसे बातें करता, उनकी तोतली बातों पर मुस्कुराता।
उसकी आंखों में एक ऐसी ममता और एक ऐसा प्यार था, जो आदित्य ने आज तक किसी की आंखों में नहीं देखा था।
वो भिखारी, जिसे वह दिन-रात सिग्नल पर देखता था, इन अनाथ और बेसहारा बच्चों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं था।
वो दिन भर भीख मांगकर जो भी कमाता था, उससे इन बच्चों का पेट भरता था।
आदित्य एक टूटे हुए खंभे के पीछे छिप कर यह सब देख रहा था।
उसकी आंखों में आंसू आ गए।
उसे खुद पर शर्म आ रही थी।
वो जिसके पास अरबों की दौलत थी, उसने आज तक किसी के लिए कुछ नहीं किया था।
और यह आदमी, जिसके पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं थे, वह इतने सारे बच्चों की जिम्मेदारी उठाए हुए था।
आदित्य को आज पहली बार अपनी दौलत बहुत छोटी और यह भिखारी बहुत अमीर लग रहा था।
पहला संवाद – इंसानियत का पाठ
जब सारे बच्चे खाकर चले गए, तो शंकर ने उस जगह को साफ किया और एक कोने में जाकर एक फटे हुए बोरे पर लेट गया।
आदित्य हिम्मत करके उसके पास गया।
“शंकर है ना?”
शंकर ने आंखें खोली और उसे देखा।
उसने आदित्य को पहचानने की कोशिश की, लेकिन पहचान नहीं पाया।
“जी, आप कौन?”
आदित्य ने अपनी जैकेट उतारी, “मैं आदित्य सिंघानिया। मेरी गाड़ी रोज तुम्हारे सामने उस सिग्नल पर रुकती है।”
शंकर के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।
वो चुपचाप उसे देखता रहा।
आदित्य ने कहा, “मैं आज तुम्हारा पीछा करते हुए यहां आया। मैंने सब कुछ देखा। तुम, तुम यह सब क्यों करते हो? क्यों?”
शंकर की आवाज शांत और गहरी थी, “क्योंकि इन्हें जरूरत है और मुझे सुकून मिलता है।”
“लेकिन तुम खुद… तुम्हारे पास तो…”
“मेरे पास क्या नहीं है? दो हाथ हैं, दो पैर हैं, सलामत जिस्म है। मैं भीख मांग सकता हूं, मेहनत कर सकता हूं। ये बच्चे तो वह भी नहीं कर सकते। इनका कोई नहीं है।”
आदित्य निशब्द था। उसने पूछा, “यह बच्चे कौन हैं? कहां से आते हैं?”
“कोई कूड़े के ढेर पर मिला, कोई स्टेशन पर रोता हुआ, कोई ऐसा है जिसे उसके मां-बाप खुद यहां छोड़ गए। सब किस्मत के मारे हैं।”
शंकर की आवाज में एक गहरा दर्द था।
आदित्य ने अपनी जेब से चेक बुक निकाली, “मैं इन बच्चों के लिए कुछ करना चाहता हूं। बोलो, कितने पैसे चाहिए? 1 लाख, 10 लाख?”
शंकर ने उस चेक बुक को देखा, फिर आदित्य की आंखों में।
उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई जिसमें एक अजीब सा व्यंग्य था।
“साहब, इन बच्चों को पैसे नहीं, प्यार चाहिए। इन्हें खाना खिलाने वाले बहुत मिल जाएंगे, लेकिन सर पर हाथ फेरने वाला कोई नहीं मिलता।
अगर आप सच में कुछ करना चाहते हैं तो कल शाम को फिर आइएगा और अपने हाथों से इन्हें खाना खिलाइएगा। देखिए, आपको मुझसे ज्यादा सुकून मिलेगा।”
यह कहकर शंकर ने करवट बदली और सोने की कोशिश करने लगा।
आदित्य के लिए यह एक और झटका था।
जिस आदमी को वह पैसों से खरीदने की कोशिश कर रहा था, उसने उसे इंसानियत का सबसे बड़ा पाठ पढ़ा दिया था।
वो चुपचाप वहां से लौट आया।
उस रात आदित्य सो नहीं पाया।
उसकी आंखों के सामने बार-बार शंकर का शांत चेहरा और उन बच्चों की खिलखिलाहट घूम रही थी।
बदलाव की शुरुआत – दिल की दौलत
अगले दिन आदित्य सच में वहां पहुंचा।
उसके साथ उसका शेफ और नौकरों की एक टीम थी, जो अपने साथ कई तरह के लजीज पकवान बनाकर लाई थी।
जब बच्चों ने इतना अच्छा खाना देखा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
आदित्य ने अपने हाथों से उन बच्चों को खाना परोसा।
एक छोटी सी बच्ची ने जब उसे “थैंक यू भैया” कहा तो आदित्य को लगा कि उसे दुनिया की सबसे बड़ी दौलत मिल गई है।
उस दिन के बाद यह एक सिलसिला बन गया।
आदित्य रोज शाम को उन बच्चों के लिए खाना लेकर आता।
वो उनके साथ खेलता, उनसे बातें करता।
उसने उन बच्चों के लिए कपड़े, खिलौने और किताबों का इंतजाम कर दिया।
लेकिन उसके मन में अभी भी एक सवाल था – आखिर शंकर है कौन?
वह जिस तरह से बात करता था, जिस तरह से उसके व्यवहार में एक गरिमा थी, वह किसी आम भिखारी की नहीं हो सकती थी।
आदित्य को यकीन था कि इस आदमी के पीछे कोई बहुत बड़ी कहानी छुपी है।
उसकी जिज्ञासा एक जुनून में बदलने लगी।
उसने फैसला किया कि वह शंकर का अतीत जानकर रहेगा।
शंकर का अतीत – दर्द, साजिश और खोई पहचान
आदित्य ने अपने पर्सनल सेक्रेटरी सेन को काम पर लगा दिया।
यह एक मुश्किल काम था – एक भिखारी का कोई रिकॉर्ड, कोई पहचान पत्र नहीं होता।
लेकिन सेन अपने काम का माहिर था।
उसने अपनी टीम को पूरे देश में फैला दिया।
हफ्तों की मेहनत के बाद एक छोटा सा सुराग मिला –
मुंबई के एक पुराने पुलिस स्टेशन में 15 साल पहले की एक गुमशुदा की रिपोर्ट मिली,
जिसका हुलिया शंकर से काफी मिलता-जुलता था।
रिपोर्ट में उसका नाम लिखा था – शंकर चौधरी।
यह एक बहुत बड़ा सुराग था।
शंकर चौधरी।
इस नाम को लेकर जब छानबीन की गई, तो जो सच सामने आया उसने आदित्य और मिस्टर सेन दोनों के होश उड़ा दिए।
आज से 15 साल पहले दिल्ली के बिजनेस जगत में शंकर चौधरी एक बहुत बड़ा नाम हुआ करता था।
वो चौधरी ग्रुप ऑफ टेक्सटाइल्स का मालिक था।
एक बेहद ईमानदार, मेहनती और सफल उद्योगपति।
उसकी शादी शहर के एक नामी परिवार की बेटी माया से हुई थी।
और उनका एक 5 साल का बेटा था – राहुल।
शंकर की दुनिया बहुत खुशहाल थी।
उसका सबसे बड़ा कॉम्पिटिटर और दुश्मन था – ओबरॉय टेक्सटाइल्स का मालिक सचिन ओबरॉय।
सचिन एक बेहद शातिर और बेईमान आदमी था, जो शंकर से हमेशा जलता था।
एक दिन शंकर अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपनी नई फैक्ट्री का उद्घाटन करने के लिए आगरा जा रहा था।
यमुना एक्सप्रेसवे पे एक तेज रफ्तार ट्रक ने गलत साइड से आकर उनकी गाड़ी को जोरदार टक्कर मार दी।
टक्कर इतनी भयानक थी कि गाड़ी के परखच्चे उड़ गए।
इस हादसे में माया और राहुल की मौके पर ही मौत हो गई।
शंकर बुरी तरह घायल हुआ।
उसे मरा हुआ समझकर छोड़ दिया गया।
यह कोई हादसा नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी, जिसे सचिन ओबरॉय ने रचा था।
उसने शंकर को रास्ते से हटाने के लिए यह सब किया था।
शंकर के मरने के बाद सचिन ने जाली कागजात और झूठे गवाहों के दम पर शंकर की सारी कंपनी और प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लिया।
लेकिन शंकर मरा नहीं था।
उसे कुछ गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया।
वो बच तो गया, लेकिन उसके सिर पर लगी गहरी चोट की वजह से वो अपनी याददाश्त पूरी तरह खो चुका था।
उसे अपना नाम तक याद नहीं था – वो कौन है, कहां से आया, कुछ नहीं।
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वो पागलों की तरह सड़कों पर भटकता रहा।
वो कई सालों तक अलग-अलग शहरों में घूमता रहा।
मंदिरों और दरगाहों पर सोता रहा।
जो मिल जाता, खा लेता।
धीरे-धीरे उसकी हालत भिखारियों जैसी हो गई और आखिर में किस्मत उसे मुंबई ले आई,
जहां वो पिछले कुछ सालों से उस ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांग रहा था।
शायद अपने मरे हुए बेटे राहुल की याद ही उसे अनजाने में उन अनाथ बच्चों की तरफ खींच लाई थी।
वह उन बच्चों में अपने राहुल को देखता था।
सच का सामना – हक की लड़ाई
जब आदित्य ने यह पूरी कहानी पढ़ी तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आदमी को वो एक साधारण भिखारी समझ रहा था, वो कभी उसी की तरह एक बिजनेस टाइकून था।
उसे सचिन ओबरॉय पर बेइंतहा गुस्सा आया।
सचिन ओबरॉय को आदित्य भी अच्छी तरह जानता था।
वह आज भी टेक्सटाइल इंडस्ट्री का बेताज बादशाह था और अपनी क्रूरता के लिए मशहूर था।
आदित्य ने फैसला किया कि वह शंकर को उसका हक वापस दिलाएगा और सचिन ओबरॉय को उसके किए की सजा।
लेकिन यह आसान नहीं था।
15 साल गुजर चुके थे।
सारे सबूत मिटा दिए गए थे और सबसे बड़ी चुनौती थी शंकर की याददाश्त वापस लाना।
आदित्य ने देश के सबसे बड़े न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर चौहान से संपर्क किया।
डॉक्टर चौहान ने बताया कि शंकर को रेट्रोग्रेड एमनीजिया है।
उसकी याददाश्त वापस आ सकती है, लेकिन इसके लिए उसे उसके अतीत से जुड़ी चीजों, जगहों और लोगों के संपर्क में लाना होगा।
यह खतरनाक भी हो सकता है क्योंकि अचानक याददाश्त वापस आने का सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।
आदित्य ने यह जोखिम उठाने का फैसला किया।
उसने सबसे पहले शंकर को उस खंडहर से निकालकर अपने फार्म हाउस पर शिफ्ट किया।
उसने शंकर को बताया कि वह उसके लिए एक घर बना रहा है,
जहां वह और सारे बच्चे एक साथ रह सकेंगे।
शंकर को उस पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह मान गया।
आदित्य ने शंकर के इलाज के लिए डॉक्टरों की एक टीम लगा दी।
साथ ही वह और मिस्टर सेन सचिन ओबरॉय के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में जुट गए।
यह एक जंग थी जो दो मोर्चों पर लड़ी जा रही थी।
यादों की वापसी – दर्द और सच्चाई
एक दिन आदित्य शंकर को दिल्ली लेकर गया।
वह उसे उसके पुराने घर के सामने ले गया, जो अब सचिन ओबरॉय का था।
उस घर को देखकर शंकर बेचैन हो गया।
उसके सिर में तेज दर्द होने लगा और उसे कुछ धुंधली तस्वीरें दिखने लगीं –
एक औरत का हंसता चेहरा, एक बच्चे की खिलखिलाहट।
वो चिल्लाने लगा, “माया! राहुल!”
आदित्य ने उसे संभाला।
याददाश्त वापस आने की यह पहली दर्दनाक शुरुआत थी।
धीरे-धीरे आदित्य उसे उसके पुराने ऑफिस, उसकी पसंदीदा जगहों पर ले जाने लगा।
हर जगह जाकर शंकर की हालत खराब हो जाती, लेकिन उसकी याददाश्त के कुछ टुकड़े जुड़ने लगते।
इस बीच मिस्टर सेन ने भी एक बड़ी कामयाबी हासिल कर ली थी।
उसने उस ट्रक ड्राइवर को ढूंढ निकाला था, जिसने 15 साल पहले शंकर की गाड़ी को टक्कर मारी थी।
वह ड्राइवर अब बूढ़ा और बीमार था, अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में था।
जब सेन ने उसे पुलिस का डर दिखाया और पैसों का लालच दिया, तो वह अपना गुनाह कबूल करने के लिए तैयार हो गया।
उसने बताया कि उसे सचिन ओबरॉय ने ही यह काम करने के लिए पैसे दिए थे।
अब आदित्य के पास सबसे बड़ा सबूत था।
उसने एक बड़ा प्लान बनाया।
अंतिम मुकाबला – इज्जत की जीत
आदित्य ने “बिजनेस टायकून ऑफ द ईयर” अवार्ड फंक्शन में,
जो दिल्ली के सबसे बड़े होटल में हो रहा था,
सचिन ओबरॉय को मुख्य अतिथि के रूप में बुलवाया
और उसी फंक्शन में उसने शंकर को भी ले जाने का फैसला किया।
अवार्ड फंक्शन की रात पूरा हॉल देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों, मंत्रियों और मीडिया से खचाखच भरा हुआ था।
सचिन ओबरॉय स्टेज पर खड़ा अपनी सफलता पर एक लंबा चौड़ा भाषण दे रहा था।
तभी हॉल के दरवाजे खुले।
आदित्य शंकर को व्हीलचेयर पर लेकर अंदर दाखिल हुआ।
शंकर आज साफ-सुथरे कपड़ों में था, उसकी दाढ़ी बनी हुई थी,
लेकिन चेहरे पर एक गहरी पीड़ा और उलझन थी।
जैसे ही सचिन ओबरॉय की नजर शंकर पर पड़ी, उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
उसे लगा जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो।
उसके हाथ से माइक छूट कर नीचे गिर गया।
वो कांपती हुई आवाज में बोला, “शंकर, तुम… तुम तो मर चुके थे!”
पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया।
सब लोग हैरान थे कि आखिर हो क्या रहा है।
“मैं जिंदा हूं, सचिन! और अपनी मौत का हिसाब लेने आया हूं!”
यह आवाज शंकर की नहीं, आदित्य की थी।
आदित्य ने स्टेज पर जाकर माइक संभाला।
उसने प्रोजेक्टर पर उस ट्रक ड्राइवर का कबूलनामे वाला वीडियो चला दिया।
वीडियो देखकर सचिन के पसीने छूट गए।
आदित्य ने कहा, “यह हैं मिस्टर शंकर चौधरी, जिन्हें आज से 15 साल पहले इसी सचिन ओबरॉय ने मारने की कोशिश की थी।
इसने ना सिर्फ शंकर की कंपनी हड़पी, बल्कि इनकी पत्नी और बेटे की भी जान ले ली।”
सचिन चिल्लाने लगा, “झूठ! यह सब झूठ है! यह मुझे फंसाने की साजिश है!”
तभी व्हीलचेयर पर बैठा शंकर अचानक खड़ा हो गया।
सचिन को सामने देखकर उसके दिमाग में दबी हुई सारी यादें एक साथ किसी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ीं।
उसे वह हादसा, अपनी पत्नी की चीखें, अपने बेटे का बेजान चेहरा – सब कुछ याद आ गया।
वो चीखा, “सचिन! मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा!”
यह कहते हुए वह सचिन की तरफ लपका।
पुलिस जो पहले से ही वहां मौजूद थी, ने सचिन ओबरॉय को गिरफ्तार कर लिया।
शंकर वहीं जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया।
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