भेड चराते गरीब पाकिस्तानी लड़की जब भारत की सरहद पर आ गई फिर जवानों ने जो किया…😭
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भेड़ चराते गरीब पाकिस्तानी लड़की की कहानी
एक गर्म दोपहर, जब सूरज की तपती किरणें रेगिस्तान की रेत पर आग उगल रही थीं, एक छोटी सी बच्ची सायरा भेड़ चराते-चराते अनजाने में भारत की सरहद पर पहुंच गई। उसकी उम्र मुश्किल से 10 साल थी, और वह अपने हाथ में एक पतली सी लाठी पकड़े हुए थी। उसकी मासूमियत और डर ने उसे एक अनजाने खतरे में डाल दिया।
सीमा पर खतरा
जब जवानों ने उसे देखा, तो उनमें हलचल मच गई। एक जवान ने कहा, “रुको! आगे बढ़ी तो गोली चल सकती है!” दूसरे ने कहा, “यह तो पाकिस्तान की है। इसे पकड़ लो और थाने ले चलो।” सायरा डर के मारे वहीं ठिठक गई, उसकी आंखों में आंसू थे। तभी एक जवान, कैप्टन अरुण सिंह, वहां आए। उन्होंने कहा, “तुम्हें शर्म नहीं आती? एक छोटी बच्ची को अपराधी की नजर से देख रहे हो?”
लेकिन जवानों ने उनकी बात नहीं मानी। सायरा कांपते हुए बोली, “मैं रास्ता भटक गई।” उसकी मासूम आवाज ने सबको छू लिया, लेकिन जवानों को उस पर विश्वास नहीं हुआ। एक जवान ने कहा, “पकड़ लो इसे। चौकी ले चलो।”

बच्ची की मासूमियत
बच्ची अब जोर-जोर से रोने लगी। “नहीं, मुझे छोड़ दो। मेरी अम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी।” जवानों ने चारों ओर से उसे घेर लिया। उसकी छोटी कलाई को सख्त हथेलियों में जकड़ लिया गया। वह चीख-चीख कर कह रही थी, “मैंने कुछ नहीं किया। मुझे घर जाना है।” लेकिन जवानों के चेहरे पर कोई नरमी नहीं थी। उनके लिए सीमा पर हर कदम देश की सुरक्षा से जुड़ा था।
जब बच्ची को चौकी में लाया गया, तो उसके गाल आंसुओं से भीगे हुए थे। तभी दरवाजे से बाहर आए कैप्टन अरुण ने पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?” जवानों ने उन्हें बताया कि बच्ची सीमा पार से आई है और शक है कि इसे जासूस बनाकर भेजा गया हो।
कैप्टन अरुण का निर्णय
कैप्टन अरुण की नजर बच्ची पर गई। उसने देखा कि वह कांप रही थी, उसके दोनों हाथों से आंसू पोंछते हुए। अरुण ने गुस्से में कहा, “शर्म नहीं आती तुम्हें? यह मासूम है। 10 साल की बच्ची में तुम्हें आतंकवादी दिख रहा है?” जवान चुप हो गए। अरुण ने बच्ची के पास झुककर कहा, “बेटा, डर मत। बताओ तुम यहां कैसे आई?”
बच्ची ने हिचकिचाते हुए कहा, “मेरा नाम सायरा है। मैं पाकिस्तान के गांव धनक से आई हूं। भेड़ चराते-चराते रास्ता भटक गई।” अरुण ने गहरी सांस ली और उसकी आंखों में झांका। वहां डर था लेकिन झूठ नहीं।
इंसानियत की परीक्षा
अरुण ने धीरे से कहा, “ठीक है, घबराओ मत। तुम्हें कुछ नहीं होगा। हम तुम्हें सुरक्षित वापस भेजेंगे।” सायरा की आंखों से आंसू बहते रहे, लेकिन अरुण की बातों ने उसे थोड़ा सुकून दिया। उसने जवानों को आदेश दिया, “इसे कोई चोट नहीं पहुंचेगी। इसे आराम करने दो। पानी दो।”
जवान ने हिचकिचाते हुए कहा, “लेकिन सर, ऊपर से आदेश…” अरुण की आवाज गूंज उठी, “आदेश मैं दूंगा। यह बच्ची है, दुश्मन नहीं।” जवानों ने सिर झुका लिया। सायरा को एक छोटे से कमरे में बिठाया गया। जवान पानी लेकर आए, और उसने कांपते हाथों से गिलास पकड़कर धीरे-धीरे पी लिया।
सायरा की कहानी
सायरा चुपचाप बैठी थी, उसकी आंखों से आंसू अभी भी थमे नहीं थे। वह सोच रही थी कि उसकी अम्मी कितनी परेशान होंगी। वह जानती थी कि उसके पिता दिनभर मजदूरी करते हैं और घर में खाने के लिए मुश्किल से दो रोटियां मिलती हैं।
बाहर जवानों की आवाजें गूंज रही थीं। एक जवान ने कहा, “सर, पता नहीं बच्ची सच कह रही है या कोई चाल है।” दूसरे जवान ने कहा, “लेकिन इतनी मासूम लगती है। क्या वह झूठ बोल सकती है?” अरुण ने यह सब सुनकर सोचा कि यह बच्ची उसे अपनी बहन मीरा की याद दिला रही है, जो कभी इसी सरहद पर खेलते-खेलते पाकिस्तान चली गई थी और फिर कभी वापस नहीं लौटी।
कैप्टन अरुण का संघर्ष
अरुण ने अपने अतीत को याद किया। उसकी बहन मीरा और वह हमेशा एक-दूसरे के साथ खेलते थे। लेकिन एक दिन मीरा उस पार चली गई और कभी वापस नहीं आई। अरुण के दिल में एक दर्द था, जो अब सायरा के रूप में सामने आया।
सायरा धीरे-धीरे जवानों के साथ घुलने लगी। उसकी मासूमियत ने जवानों के दिलों में एक नई उम्मीद जगाई। एक जवान ने पूछा, “तुम्हें डर नहीं लगता यहां?” सायरा ने कहा, “डरता तो हूं, लेकिन अम्मी कहती थी, ‘अच्छे लोग हर जगह होते हैं।’ बस उन्हें पहचानना आना चाहिए।”
इंसानियत की जीत
अगली सुबह, जब अरुण ने सायरा को देखा, तो उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। उसने उसे बिस्कुट और चाय दी। सायरा ने धीरे-धीरे बिस्कुट खाया और मुस्कुराई। अरुण ने महसूस किया कि इस बच्ची की मासूमियत ने उसे फिर से जीने की प्रेरणा दी है।
जब मुख्यालय से आदेश आया कि बच्ची को इंटेरोगेशन यूनिट को सौंपना होगा, तो अरुण ने कहा, “यह बच्ची कोई दुश्मन नहीं है। यह सिर्फ अपनी मां की गोद में लौटना चाहती है।”
बड़े अफसर ने उनकी बात सुनी और कहा, “ठीक है, कैप्टन, तुम्हारी इंसानियत को एक मौका देते हैं। बच्ची को सरहद तक छोड़ आओ।”
सायरा की घर वापसी
शाम का समय था। अरुण ने सायरा का हाथ थामा और उसे सरहद तक लेकर गए। सायरा ने डरते हुए पूछा, “आप मुझे सच में अम्मी के पास छोड़ देंगे?” अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, तुम अब कभी अकेली नहीं होगी।”
जब सायरा ने पाकिस्तान की जमीन पर कदम रखा, तो उसकी मां दौड़ती हुई आई। उन्होंने सायरा को गले लगाया और दोनों की आंखों में आंसू थे। अरुण ने देखा कि सायरा की मुस्कान ने सब कुछ बदल दिया।
निष्कर्ष
अरुण ने उस दिन समझा कि सरहदें देशों को बांट सकती हैं, लेकिन इंसानियत दिलों को जोड़ देती है। कभी-कभी एक मासूम की मुस्कान जीत होती है और बंदूकें हार जाती हैं। सायरा ने उन्हें यह सिखाया कि प्यार और मानवता सबसे बड़ी ताकत हैं।
इस अनुभव ने अरुण को एक नई दिशा दी। उसने तय किया कि वह हमेशा इंसानियत के पक्ष में खड़ा रहेगा, चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि हर बच्चे में एक मासूमियत होती है, जो हमें हमारी मानवता की याद दिलाती है। सायरा की कहानी हमें यह बताती है कि हमें हमेशा एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, चाहे हम किसी भी देश के हों।
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