सास ने बहू को केवल छठी पास होने पर अपमानित किया, लेकिन बहू की वापसी ने सास को शर्म से झुका दिया!
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प्रस्तावना
लखनऊ के एक भव्य मैरिज हॉल में सर्दियों की रात थी। चारों ओर जगमगाती झालरें, खुशबूदार फूल, और मेहमानों की भीड़ थी। मंच पर बैठी थी अंजलि शर्मा – शर्मीली मुस्कान, सिर पर गुलाबों का गजरा, चांदी की साड़ी में सजी। उसके बगल में खड़ा था अर्जुन मेहरा – भारतीय सेना का अधिकारी। यह शादी दो परिवारों का नहीं, दो संस्कृतियों का मिलन थी। लेकिन इसी मंच पर एक ऐसी घटना हुई, जिसने अंजलि की जिंदगी बदल दी।
अपमान का पल
शादी के शोरगुल के बीच अर्जुन की मां, कमला देवी, गुस्से से मंच की ओर बढ़ीं। उन्होंने सबके सामने अंजलि के दुपट्टे को खींचते हुए कहा,
“एक लड़की जो सिर्फ छठी पास है, वह मेरे बेटे की पत्नी बनने के लायक नहीं। मेरा बेटा अफसर है, और ये लड़की हमारे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिलाएगी।”
पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। अंजलि की आंखों से आंसू बहने लगे। सबसे बड़ा सदमा तब लगा जब अर्जुन चुपचाप खड़ा रहा – ना मां को रोका, ना पत्नी का साथ दिया। शादी का जश्न एक ताजे जख्म में बदल गया।

तन्हाई और सवाल
शादी की पहली रात अंजलि अकेली थी। आईने में उसने खुद को देखा – आंसुओं से भरी आंखें, अस्त-व्यस्त दुपट्टा। उसके मन में सवाल थे,
क्या मैं सच में इतनी छोटी हूं?
क्या सिर्फ पढ़ाई की कमी से मुझे इंसान नहीं समझा जाएगा?
उसके पिता की आवाज याद आई, “इज्जत कभी कागज से नहीं, दिल से कमाई जाती है।” लेकिन उस रात यह तसल्ली नहीं, तन्हाई बन गई।
बहू का घर छोड़ना
सुबह होते ही अंजलि ने अपना सूटकेस उठाया, गहने और भारी जोड़ा उतार दिया, और चुपचाप हवेली से बाहर निकल गई। कोई विदाई नहीं, कोई रोकने वाला नहीं। वह जानती थी कि इस घर में रहना हर रोज मरने जैसा होगा। उसने तय किया – अब वह सिर्फ इस जगह से नहीं, बल्कि उस अपमान से भी दूर जाएगी।
नई शुरुआत
दो दिन बाद अंजलि शिमला पहुंची। पहाड़ों की ठंडी हवा उसके दर्द को हल्का कर रही थी। उसने एक छोटी सी जगह किराए पर ली। मकान मालकिन ने कहा, “बिटिया, पहाड़ इंसान का दर्द सोख लेते हैं।” दिन बीतने लगे। अंजलि सुबह खिड़की से बर्फीले पहाड़ देखती, चाय पीती और शाम को बाजार जाती।
एक रात उसने अपनी कंपनी के शेयर सर्टिफिकेट और रजिस्ट्रेशन डॉक्यूमेंट्स निकाले। उसके पिता ने छोटे से कारोबार की नींव रखी थी, जिसे अंजलि ने बड़ा किया था। लेकिन यह राज उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।
हौसले की उड़ान
अंजलि ने खुद से कहा, “मैं यहां भागकर नहीं आई हूं। यह ठहराव मेरी सांसे समेटने के लिए है। अब मुझे अपने जख्मों को ताकत बनाना है।” उसने लैपटॉप खोला, मेल्स पढ़े। विदेशी निवेशकों के संदेश, मीटिंग्स के निमंत्रण – सब्जियों की तरह ताजे। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं, एक नई चमक थी।
दिल्ली एनसीआर में उसकी कंपनी का काम तेज़ी से बढ़ने लगा। अंजलि रोज मीटिंग संभालती, नई योजनाएं बनाती। बाहर से मजबूत, भीतर कहीं वह रात अब भी जिंदा थी।
तलाक का कागज
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