82 की उम्र में ‘लाचार’ हुए बिग बी, पेंट पहनने में भी हो रही दिक्कत ! Amitabh Bachchan Health Illness

मुंबई की उस शाम जलसा के बाहर हजारों लोग अपने हीरो की एक झलक पाने के लिए खड़े थे। भीड़ में नारे गूंज रहे थे, कैमरे चमक रहे थे, और फिर दरवाजे से बाहर आए सदी के महानायक। वही मुस्कान, वही करिश्मा, वही आवाज़, लेकिन कदमों में अब पहले जैसी मजबूती नहीं थी। 82 साल की उम्र में अमिताभ बच्चन ने खुद स्वीकार किया है कि शरीर अब उनका साथ नहीं दे रहा। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा कि अब पैंट पहनने जैसी मामूली चीज के लिए भी उन्हें डॉक्टर की सलाह माननी पड़ती है। डॉक्टर ने साफ कहा है—“बैठकर पैंट पहना कीजिए, खड़े होकर नहीं, वरना गिर सकते हैं।” सोचिए, वही एंग्री यंग मैन जिसने पर्दे पर अकेले दम पर दस-दस गुंडों को धूल चटाई, आज गिरने से डरने लगे हैं। जलसा, जो कभी स्टारडम का प्रतीक था, अब जगह-जगह लगे हैंडल बार्स का घर बन चुका है। ज़मीन पर गिरी हुई एक कागज की पर्ची उठाने के लिए भी उन्हें सहारे की ज़रूरत पड़ती है। उनका हर दिन अब दवाइयों, योग और प्राणायाम पर टिका हुआ है। वह लिखते हैं कि अगर एक दिन भी यह रूटीन छूट जाए तो दर्द और जकड़न पूरे शरीर पर हावी हो जाते हैं।

लेकिन यह वही इंसान है जिसने 43 साल पहले मौत को अपनी आंखों में देखा और उसे हराकर वापस लौटा। तारीख थी 26 जुलाई 1982। फिल्म कुली की शूटिंग बेंगलुरु में चल रही थी। एक सीन में उन्हें टेबल पर गिरना था। सीन परफेक्ट हुआ, सबने तालियां बजाईं, पर किसी ने नहीं सोचा था कि यह तालियां जल्द ही चीखों में बदल जाएंगी। टेबल का कोना उनके पेट में गहराई तक धंस गया। शुरुआत में मामूली चोट समझा गया, लेकिन दर्द बढ़ता गया। जब तक उन्हें मुंबई लाया गया, तब तक आंत फट चुकी थी और जहर पूरे शरीर में फैल रहा था। हालत इतनी नाजुक थी कि डॉक्टरों ने जया बच्चन को बुलाकर कहा—“अब सिर्फ दुआएं काम आ सकती हैं।” पूरा देश सड़कों पर निकल आया। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, हर जगह सिर्फ एक ही प्रार्थना थी—अमिताभ बच्चन बच जाएं। और फिर वह चमत्कार हुआ जिसने पूरी कहानी बदल दी। जब डॉक्टर उनका दिल पंप कर रहे थे, तभी जया ने देखा कि उनके पैर का अंगूठा हिला। उन्होंने जोर से कहा—“He moved!” और उसी क्षण उम्मीद की लौ जल उठी। धीरे-धीरे धड़कनें लौटीं, कई सर्जरियां हुईं, और आखिरकार 2 अगस्त 1982 को वह मौत के मुंह से बाहर आ गए। उस दिन को आज भी लोग उनका दूसरा जन्मदिन मानते हैं। मीडिया ने इसे “Return of the Phoenix” कहा—वह पक्षी जो राख से फिर जन्म लेता है।

लेकिन इस हादसे ने उनके शरीर को हमेशा के लिए कमजोर कर दिया। चढ़ाए गए खून से उन्हें हेपेटाइटिस-बी हो गया जिसने उनके 75% लिवर को खत्म कर दिया। मायस्थेनिया ग्रेविस नाम की बीमारी ने उनके शरीर को और कमजोर बना दिया। पर बच्चन साहब ने हार नहीं मानी। 90 का दशक आया, नए सितारे चमकने लगे, उनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं। राजनीति में गए तो बोफोर्स घोटाले ने उन्हें घेर लिया। फिर 1996 में एबीसीएल नाम की कंपनी बनाई जिसका सपना था बॉलीवुड को हॉलीवुड जैसा बनाना। लेकिन सपना टूट गया। कंपनी दिवालिया हो गई, 90 करोड़ का कर्ज, 55 मुकदमे, बैंक जब्ती, सब कुछ खत्म होता नज़र आया। वही सुपरस्टार, जिसकी एक झलक पाने के लिए लोग घंटों इंतजार करते थे, एक दिन यश चोपड़ा के दरवाजे पर जाकर बोले—“मेरे पास कोई काम नहीं है, मुझे काम चाहिए।” यह एक सुपरस्टार का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। लेकिन किस्मत ने फिर करवट बदली।

साल 2000 में आया कौन बनेगा करोड़पति। लोगों ने कहा, अब बच्चन खत्म हो गए हैं, तभी टीवी पर उतर आए हैं। लेकिन यही शो उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ। रात 9 बजे देशभर की सड़कें खाली हो जाती थीं। हर घर में सिर्फ एक आवाज गूंजती थी—“देवियों और सज्जनों, स्वागत है आपका कौन बनेगा करोड़पति में।” इस शो ने न सिर्फ उन्हें दोबारा लोगों का प्यार दिलाया बल्कि वह पैसा भी जिससे उन्होंने अपना पूरा कर्ज चुकाया। उनका करियर फिर से जिंदा हो गया। अब वह सिर्फ एंग्री यंग मैन नहीं थे, बल्कि परिपक्व अभिनेता, जो हर किरदार को जीवंत कर सकता था। उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ एक स्टार नहीं बल्कि अभिनय की एक संस्था हैं।

आज 82 की उम्र में जब वह लिखते हैं कि उनका संतुलन बिगड़ रहा है, तो यह सिर्फ कमजोरी की बात नहीं है। यह जिंदगी का सबक है। वह हमें बता रहे हैं कि असली हीरो वह नहीं होता जो कभी गिरता ही नहीं, असली हीरो वह है जो हर बार गिरकर उठ खड़ा होता है। उनकी पोती आराध्या ने उनसे पूछा—“दादा, आप इतना काम क्यों करते हो?” उन्होंने मुस्कुराकर जवाब दिया—“बेटा, काम ही मेरा आराम है।” यही उनकी जिंदगी की फिलॉसोफी है।

अमिताभ बच्चन का शरीर भले ही थक चुका हो, लेकिन उनका जज्बा आज भी लौ की तरह जल रहा है। उनकी मुस्कान के पीछे छुपा दर्द हमें सिखाता है कि जिंदगी आखिरी सांस तक एक संघर्ष है। असली स्टारडम पर्दे पर नहीं बल्कि लोगों के दिलों में जिंदा रहने का नाम है। और इस खेल में, चाहे उम्र कुछ भी कहे, अमिताभ बच्चन हमेशा शहंशाह रहेंगे।