DM मैडम सादे कपड़ों में सड़क किनारे पानीपुरी खा रही थीं, तभी पुलिसवाले ने थप्पड़ जड़ दिया, फिर…
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“थप्पड़ जिसने पूरा सिस्टम हिला दिया”
शाम का समय था। पुणे की सड़कों पर हल्की रोशनी जगमगा रही थी। बाजार में भीड़ बढ़ने लगी थी—ठेले वाले ग्राहकों को आवाज़ लगाकर बुला रहे थे, बच्चे गोलगप्पों के लिए जिद कर रहे थे, और हर तरफ चहल-पहल थी। इसी भीड़ में एक साधारण सी दिखने वाली महिला, सूती साड़ी पहने, चश्मा लगाए पानीपुरी के ठेले पर खड़ी थी। देखने में बिल्कुल एक सामान्य गृहिणी जैसी, कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि वह कौन है।
वह महिला दरअसल ज़िले की सबसे बड़ी अधिकारी—डीएम मैडम थीं। लेकिन आज वह अपने सारे ओहदे, सारी पहचान से दूर, आम नागरिक बनकर भीड़ में घुलमिल गई थीं। उनका मकसद था यह जानना कि एक सामान्य नागरिक को पुलिस और सिस्टम से किस तरह का व्यवहार मिलता है।
ठेले वाले ने मुस्कुराकर पूछा, “मैडम, तीखी बनाऊँ या मीठी?”
वह हंसीं और बोलीं, “भैया, ज़रा तीखी वाली देना।”
पहला ही कौर खाते ही उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान आ गई। पर उसी वक्त अचानक माहौल बदल गया।
चार पुलिसवाले मोटरबाइक पर आए। उनकी वर्दियों पर धूल जमी थी लेकिन चाल-ढाल से लगता था जैसे इलाके के राजा हों। उनमें से एक ने ठेले वाले को घूरते हुए डांटा, “अबे कितनी बार कहा है सड़क पर ठेला मत लगाना, कान बंद हैं तेरे?”
बेचारा पानीपुरी वाला हाथ जोड़कर बोला, “साहब, हम गरीब लोग हैं… यही करके बच्चों का पेट पालते हैं।”
लेकिन पुलिसवालों को उसकी मजबूरी से कोई फर्क नहीं पड़ा। उनमें से एक ने गुस्से में ठेले पर लात मार दी। सारी पानीपुरी ज़मीन पर बिखर गई, मसालेदार पानी गली में बहने लगा। ठेले वाले की आंखों से आंसू छलक पड़े।
भीड़ सहमी खड़ी थी—कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। तभी वह महिला, जो अब तक चुपचाप देख रही थी, आगे बढ़ी और सख्त आवाज़ में बोलीं,
“यह क्या तरीका है? किसी गरीब की रोज़ी-रोटी ऐसे उजाड़ते हो? कौन सा कानून है यह?”
पुलिसवाले ठिठके, फिर उनमें से एक ने व्यंग्य से कहा, “ओहो, समाज सुधारक आ गई! अरे औरत, अपने घर जा। यह पुलिस का मामला है।”
लेकिन मैडम डटी रहीं। उनकी आंखों में गुस्से की आग थी।
पुलिसवाले का पारा चढ़ गया। अगले ही पल उसने बिना चेतावनी के उनके चेहरे पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
पूरा बाजार सन्न रह गया। चश्मा नीचे गिर गया, चेहरे पर लाल निशान उभर आया। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक पुलिसवाला खुलेआम एक महिला को मार सकता है।
भीड़ अवाक थी। किसी में कुछ कहने की ताकत नहीं थी।
पुलिसवालों ने वहीं नहीं रुककर उन्हें धक्का दिया, हाथ पकड़कर कहा, “चल थाने! बहुत समाज सेवा हो गई।”
उन्होंने उनके हाथों में हथकड़ी डाल दी और जीप में धकेल दिया। रास्तेभर वे बेहूदा टिप्पणियां करते रहे, “लगती है किसी बड़े घर की भागी हुई औरत… बहुत चालाक है, सबक सिखाना ज़रूरी है।”
थाने में डालते ही उन्हें लॉकअप में बंद कर दिया गया। बदबू और गंदगी से भरी जगह, जहां पहले से कुछ और महिलाएं कैद थीं। उनमें से एक ने धीरे से पूछा,
“बहन, तुझे क्यों पकड़ा?”
वह हल्की मुस्कान के साथ बोलीं, “गरीब की मदद करने की गलती कर दी।”
महिला आह भरकर बोली, “यहां गरीबों के लिए कोई जगह नहीं। अगर पैसे या पहुंच नहीं है तो पुलिस हमें जानवरों से भी बदतर समझती है।”
मैडम का दिल अंदर तक हिल गया। उन्हें महसूस हुआ कि जनता रोज़ कितना अत्याचार झेलती है।
कुछ देर बाद इंस्पेक्टर अंदर आया और गुर्राया, “चल, इस कागज पर साइन कर कि तूने सरकारी काम में बाधा डाली है। नहीं तो रातभर यहीं सड़ेगी।”
उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा, “मैंने कोई गलती नहीं की। क्यों साइन करूं?”
इंस्पेक्टर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। सिपाहियों को इशारा किया। एक ने उनके बाल पकड़कर सिर पीछे झटका, दूसरा जोर-जोर से धक्का देने लगा। वे दर्द में थीं लेकिन फिर भी चुप रहीं।
इंस्पेक्टर चिल्लाया, “यहां हमारा कानून चलता है, समझी?”
तभी अचानक दरवाजा खुला और एक वरिष्ठ अफसर अंदर आया। उसने सवाल किया, “बिना सबूत एक महिला को क्यों पकड़ा है?” इंस्पेक्टर हकलाया और बहाने बनाने लगा।
लेकिन महिला चुपचाप सब देख रही थी। उन्होंने अपनी असली पहचान अब भी उजागर नहीं की।
अगली सुबह, जब पत्रकार स्टेशन पहुंचा और उनसे सवाल किए, तब उन्होंने धीरे से मोबाइल निकाला, एक नंबर मिलाया और आदेश दिया,
“पांच मिनट में डीएम ऑफिस की पूरी टीम यहां पहुंचे।”
अब पुलिस वालों के चेहरे का रंग उड़ गया। इंस्पेक्टर के पैर कांपने लगे। कुछ ही देर में सायरन बजाती सरकारी गाड़ियां आईं।
भीड़ के सामने महिला ने कदम बढ़ाए और पूरे जोर से बोलीं:
“मैं इस जिले की डीएम हूं।”
पूरा थाना सन्न हो गया। वही पुलिसवाले जिन्होंने थप्पड़ मारा था, अब कांपते हुए घुटनों के बल गिर पड़े।
पत्रकार ने कैमरा ऑन कर कहा, “देखिए दोस्तों, इस जिले की डीएम को ही पुलिस ने पीटा और जेल में डाला! क्या यही न्याय है?”
डीएम मैडम की आंखों में आंसू थे, लेकिन स्वर लोहे जैसा दृढ़:
“आज मैंने अपनी आंखों से देखा कि आम नागरिक को कैसे प्रताड़ित किया जाता है। गरीबों की कोई सुनवाई नहीं, महिलाओं की कोई इज्ज़त नहीं। लेकिन अब यह सब नहीं चलेगा।”
उन्होंने तुरंत आदेश दिया,
“सभी दोषी पुलिसवालों को निलंबित करो। और यहां मौजूद हर शिकायत दर्ज की जाए।”
भीड़ में से गरीब लोग रोते हुए आगे आए—किसी ने कहा रिश्वत मांगी गई, किसी ने कहा बेवजह जेल में डाला गया। एक बूढ़ी महिला चिल्लाई, “साहब, मेरे बेटे को बिना वजह पकड़ा है!”
डीएम मैडम ने कड़क स्वर में कहा,
“आज से इस जिले में पुलिस का कानून नहीं, संविधान का कानून चलेगा। कोई भी जनता पर अत्याचार नहीं करेगा।”
पूरा थाना गूंज उठा। इंस्पेक्टर रोते हुए गिड़गिड़ाया, “मैडम, मेरी बीवी बच्चे भूखे मर जाएंगे, मुझे माफ कर दीजिए।”
मैडम ने ठंडी आवाज़ में कहा,
“जब तुमने एक गरीब महिला को थप्पड़ मारा था, तब क्या तुम्हें अपने बच्चों की याद आई थी? न्याय अब होगा—और सख्त होगा।”
पत्रकार ने लाइव प्रसारण किया। खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। लोग डीएम मैडम की हिम्मत और ईमानदारी की तारीफ करने लगे।
कुछ दिनों बाद, थाने में सीसीटीवी लगाए गए, भ्रष्ट पुलिस निलंबित हुए और नए ईमानदार अधिकारी आए। जनता का पुलिस पर भरोसा लौटने लगा।
डीएम मैडम ने साबित कर दिया कि—
“अगर एक इंसान भी अन्याय के खिलाफ खड़ा हो जाए तो पूरा सिस्टम बदल सकता है।”
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