Flight में अरबपति की बच्ची रो रही थी, फिर गरीब लड़के ने जो किया – देखकर सब हैरान रह गए।

जिंदगी में सबसे बड़े मौके वहां मिलते हैं जहां हम बस किसी की मदद करना चाहते हैं बिना किसी लालच के। यह कहानी एक ऐसे सफर की है, जिसने दो अलग दुनिया के लोगों को मिला दिया और उनकी पूरी लाइफ बदल दी। यह कहानी हमें यह सिखाएगी कि कैसे एक साधारण सा पल किसी की जिंदगी को पूरी तरह बदल सकता है।

राकेश वर्मा की कहानी

राकेश वर्मा, ल्यूमरॉन इंडस्ट्रीज जैसी 8 बिलियन की कंपनी के चेयरमैन थे। वह अपनी पहली क्लास सीट पर बैठे थे। यह एक लंबी इंटरनेशनल फ्लाइट थी। लेकिन राकेश जी का चेहरा थकान और शर्मिंदगी से लाल हो रहा था। उनकी 6 महीने की बेटी, डिया, पिछले 3 घंटे से बिना रुके चीख रही थी। सोचिए, एक फर्स्ट क्लास कैबिन, जहां हर इंसान शांति और आराम चाहता है, वहां 3 घंटे से एक बच्चा रो रहा था।

राकेश जी ने हर मुमकिन कोशिश की। उन्होंने डिया को गोद में लेकर आयल में वॉक किया, बॉटल से दूध पिलाने की कोशिश की, और डायपर चेंज किया। उन्होंने अपने नॉइज़ कैंसिलिंग हेडफोन से हल्का सा म्यूजिक भी सुनाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया। उनकी पत्नी सुजाता इमरजेंसी सर्जरी के बाद हॉस्पिटल में थीं, इसलिए राकेश जी को यह 5 दिन का जरूरी बिजनेस ट्रिप अकेले ही डिया के साथ मैनेज करना पड़ रहा था।

सामाजिक दबाव

उनके आसपास के फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स गुस्से वाली नजरों से देख रहे थे। पायलट ने भी हल्की सी अनाउंसमेंट कर दी थी कि सभी पैसेंजर्स के आराम का ध्यान रखा जाए। इसको सुनकर राकेश जी समझ गए थे कि यह उन्हीं के लिए मैसेज था। सीट 1 ए पर एक बड़े और अनुभवी बिजनेसमैन, हरीश जी, अपनी पत्नी से धीरे से कह रहे थे कि ऐसे बच्चों को फर्स्ट क्लास में अलाउड ही नहीं करना चाहिए। सीट 3 बी पर विमला देवी, एक सोशलाइट, अपने फोन पर तेजी से टाइप कर रही थीं। शायद वह कंप्लेन कर रही थीं कि कैसे कुछ पेरेंट्स दूसरों के लिए कोई कंसीडरेशन नहीं रखते।

राकेश जी को बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। वह इतने बड़े चेयरमैन थे, बिलियन डील्स मैनेज करते थे, लेकिन अपनी छोटी सी बेटी की चिंता को शांत नहीं कर पा रहे थे। डिया का हर रोना उनकी हेल्पलेसनेस को दिखा रहा था। उन्हें यह नहीं पता था कि उनसे तीन रोज पीछे इकोनमी क्लास में 16 साल का अमन सिंह बैठा था।

अमन की कहानी

अमन अपनी चौलिया गांव से निकला था और लंदन जा रहा था इंटरनेशनल मैथमेटिक्स कंपटीशन चैंपियनशिप में हिस्सा लेने। उसका सफर बहुत लंबा था। उसके पास बस एक पुराना बैक पैक था। उसका प्लेन टिकट उसके पूरे कम्युनिटी ने मिलकर खरीदा था। चाय स्टॉल वाले, मंदिर की कमेटी और पड़ोसी सबने उसकी मदद की थी। अमन के लिए यह कंपटीशन एमआईटी जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी से फुल स्कॉलरशिप जीतने का एक अकेला चांस था। अगर वह जीत जाता तो उसकी फैमिली और उसकी पूरी कम्युनिटी का फ्यूचर बदल जाता।

2 साल पहले, अमन की सबसे छोटी बहन, मीना, को सीवियर कॉलिक यानी पेट दर्द हुआ था। वह भी घंटों रोती रहती थी, लेकिन फैमिली के पास बड़े डॉक्टर को दिखाने या महंगे इलाज खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। तब अमन ने खुद ही जिम्मेदारी उठाई। उसने अपनी दादी और लोकल वैद्य से सीखा और कॉलिक रेमेडीज पर रिसर्च की। उसने महीनों तक अलग-अलग मसाज टेक्निक्स और होल्डिंग पोजीशंस ट्राई किए। उसे फाइनली एक कॉम्बिनेशन मिल गया था जिसमें हल्का प्रेशर पॉइंट मसाज, एक खास तरह से पकड़ने का तरीका और एक सॉफ्ट लोरी शामिल थी जिससे मीना का रोना कुछ ही मिनटों में रुक जाता था। उसकी दादी तो प्यार से कहती थीं, “अमन के हाथों में जादू है। यह तो किसी भी बच्चे को शांत कर सकता है।”

एक साहसी कदम

जब अमन ने डिया की चीखें सुनीं, तो उसने तुरंत पहचान लिया कि यह कॉलिक टाइप का डिस्ट्रेस है। वह जानता था कि वह हेल्प कर सकता है। लेकिन उसके मन में एक डर भी था। वह एक गरीब लड़का था। इकोनमी क्लास से उसे लगा कि लोग उसे शक की नजर से देखेंगे। 2 घंटे तक अमन सोचता रहा। लेकिन उसकी दया उसके डर पर हावी हो गई। अमन ने अपनी किताब बंद की और खड़ा हो गया। उसने लोगों की क्यूरियस नजरों को इग्नोर किया।

फ्लाइट अटेंडेंट ने उसे शक की निगाह से देखा। “फर्स्ट क्लास में जो बच्चा रो रहा है, मुझे लगता है कि मैं शायद हेल्प कर सकता हूं,” अमन ने धीरे से कहा। फ्लाइट अटेंडेंट को यकीन नहीं हुआ। “नहीं, मैम,” अमन ने अदब से जवाब दिया। “पर मेरी छोटी बहन को भी कॉलिक थी और मैंने कुछ टेक्निक सीखी हैं जो हेल्प कर सकती हैं।” लेकिन इससे पहले कि वह कुछ करती, राकेश वर्मा, जो पूरी तरह से थक चुके थे, रोते हुए डिया को लेकर आयल में आ गए।

सहायता का प्रस्ताव

“मैंने सुना है कि कोई हेल्प कर सकता है?” राकेश जी ने बहुत डेस्पिरेट होकर पूछा। अमन ने एक गहरी सांस ली। “सर, मेरा नाम अमन सिंह है। मैं जानता हूं कि मैं बस एक बच्चा हूं, पर मेरी छोटी बहन को कॉलिक था और मैंने कुछ तरीके सीखे थे जो उसकी हेल्प करते थे।” राकेश जी ने पहली बार अमन को ढंग से देखा। उन्होंने उसकी आंखों में इंटेलिजेंस और डिया के लिए सच्ची चिंता देखी।

“कौन से तरीके?” राकेश जी ने पूछा। “उसके स्पाइन के स्पेसिफिक पॉइंट्स पर हल्का प्रेशर देना और एक खास तरह की होल्डिंग पोजीशन जिससे गैस और डाइजेस्टिव प्रेशर कम होता है,” अमन ने समझाया। “बच्चों को शांति और स्टेडी प्रेशर चाहिए होता है।”

राकेश जी ने फर्स्ट क्लास कैबिन में देखा। सब लोग उम्मीद से देख रहे थे। राकेश जी ने एक फैसला लिया। “प्लीज,” उन्होंने डिया को अमन की तरफ बढ़ाते हुए कहा। “अगर आप इसकी हेल्प कर सकते हैं तो मैं कुछ भी ट्राई करने को तैयार हूं।”

जादुई परिवर्तन

अगले ही पल जो हुआ, वह किसी जादू से कम नहीं था। जैसे ही अमन के एक्सपीरियंस वाले हाथों ने डिया को पकड़ा, उसका रोना कम होने लगा। अमन ने उसे एक ऐसी पोजीशन में पकड़ा जिसे राकेश जी ने कभी नहीं देखा था। कॉलिक वाले बच्चों को अक्सर गैस की प्रॉब्लम होती है। यह पोजीशन प्रेशर रिलीज करने में मदद करती है। डिया की चीखें धीरे-धीरे सिसकियों में फिर हल्की हिचकियों में और फिर कंप्लीट साइलेंस में बदल गईं। पूरा फर्स्ट क्लास हैरानी से देख रहा था।

अमन ने फिर एक सॉफ्ट लोरी गुनगुनाना शुरू किया। “यह गाना कहां से सीखा?” राकेश जी ने पूछा। “मेरी दादी ने सिखाया था,” अमन ने जवाब दिया। डिया पूरी तरह से अमन की गोद में रिलैक्स हो चुकी थी। हरीश जी और विमला देवी भी बहुत इम्प्रेस थे। “कितनी देर तक शांत रहेगी यह?” राकेश जी ने उम्मीद से अमन से पूछा। “अगर इसे वही प्रॉब्लम है जो मुझे लगती है, तो यह आराम से पूरी फ्लाइट सोती रहेगी,” अमन ने कॉन्फिडेंस से कहा।

नई शुरुआत

डिया गहरी नींद में चली गई। अमन ने डिया को वापस राकेश जी की बाहों में दे दिया। राकेश जी अब इस कमाल के लड़के को नई नजरों से देख रहे थे। “अमन, आपने कहा था कि आप लंदन मैथमेटिक्स कंपटीशन के लिए जा रहे हो?” राकेश जी ने धीरे से पूछा। “हां सर, इंटरनेशनल मैथमेटिक्स कंपटीशन चैंपियनशिप, जो टॉप पर आते हैं, उन्हें एमआईटी जैसे बड़े यूनिवर्सिटी से फुल स्कॉलरशिप मिलती है,” अमन ने बताया। राकेश जी इंप्रेस हो गए। “आप मैथमेटिक्स में बहुत अच्छे होंगे।”

अमन ने कहा कि उसे प्रॉब्लम सॉल्व करना पसंद है। “चाहे वह मैथ के इक्वेशंस हों या फिर एक रोते हुए बच्चे की मदद करना। दोनों ही पजल्स हैं जिनको सही अप्रोच चाहिए।” राकेश जी ने अमन को अपने पास बैठने का इशारा किया और उसके बैकग्राउंड के बारे में पूछा। अमन ने बताया कि वह हमेशा से नंबर्स में अच्छा था। पर उसके स्कूल में अच्छा मैथ प्रोग्राम नहीं था। उसने लाइब्रेरी की किताबों और ऑनलाइन रिसोर्सेज से सेल्फ स्टडी की।