Inspector Ne Aam Ladki Samajh Kar Sadak par chheda Fir Ladki Ne Inspector Ke sath Jo Kiya

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सुबह का वक्त था। ठंडी हवा सड़क पर पेड़ों की शाखाओं से टकरा कर जैसे किसी अजनबी गीत की तरह बज रही थी। सड़क पर ट्रैफिक बहुत हल्का था। करिश्मा अपनी स्कूटी धीरे-धीरे चलाती हुई बाज़ार की ओर बढ़ रही थी। सलवार सूट में साधारण सी लगने वाली यह लड़की किसी को भी एक आम ग्रामीण छात्रा जैसी लगती। पर कोई यह नहीं जानता था कि वह जिले की एसपी मैडम कविता सिंह की इकलौती बेटी है।

उस दिन उसे अपनी सहेली की शादी में जाना था। हंसी-खुशी के माहौल में निकलने वाली यह सुबह उसके लिए जिंदगी का सबसे कड़वा अनुभव लेकर आने वाली थी।

जैसे ही उसने बाज़ार पार किया, आगे पुलिस की एक टीम गाड़ियों की चेकिंग कर रही थी। वहीं पर तैनात था इंस्पेक्टर मोहन सिंह। वही मोहन, जो एसपी कविता सिंह का पुराना परिचित और थाने का अहम अधिकारी था। करिश्मा स्कूटी रोकती है, और मोहन हंसते हुए तंज कसता है—

“अरे मैडम, कहां चलीं बिना हेलमेट? और ये स्कूटी इतनी तेज क्यों चला रही थीं? अब तो चालान कटेगा ही। वरना आप लोगों का एटीट्यूड कभी नहीं बदलेगा।”

करिश्मा ने विनम्र स्वर में कहा—
“सर, माफ़ कीजिए। मैं शादी में जा रही थी, हेलमेट लेना भूल गई। और मैंने तेज़ नहीं चलाई, बस 30 की स्पीड पर थी।”

पर यह जवाब मोहन को चुभ गया। उसके चेहरे पर सत्ता और अहंकार की परत चढ़ी हुई थी। उसने करिश्मा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। सड़क पर मौजूद लोग थम गए, मगर किसी ने आगे बढ़कर बोलने की हिम्मत नहीं की।

“तेरे बाप की सड़क है क्या? 5000 रुपए का चालान भर, वरना स्कूटी भी जाएगी और तू भी जेल जाएगी।”
मोहन सिंह की आंखों में सत्ता का नशा झलक रहा था।

करिश्मा की आंखें भर आईं, मगर उसने हिम्मत से कहा—
“सर, इतना बड़ा चालान मेरी गलती नहीं बनती। और किसी नागरिक पर हाथ उठाना अपराध है।”

लेकिन करिश्मा की बात ने जैसे मोहन को और भड़का दिया। उसने दो सिपाहियों को आदेश दिया—
“इसे थाने ले चलो। बहुत अकड़ दिखा रही है। आज इसकी औकात दिखानी पड़ेगी।”

सड़क पर खड़े लोग तमाशा देखते रहे। दो सिपाही जबरन करिश्मा को पकड़ कर थाने ले गए। वहां इंस्पेक्टर मोहन और एसएचओ रवि सिंह ने मिलकर उसका मज़ाक उड़ाया। झूठी रिपोर्ट दर्ज की और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के उसे एक गंदे, अंधेरे लॉकअप में डाल दिया गया।

करिश्मा का मन डर और गुस्से से भर गया। मगर उसने ठान लिया कि इस अन्याय के खिलाफ लड़ना ही होगा।


शाम के चार बजे, किस्मत ने करवट बदली। एसपी कविता सिंह अचानक किसी काम से उसी थाने पहुंचीं। अंदर दाख़िल होते ही उनकी नज़र लॉकअप में खड़ी एक सलवार-सूट पहने लड़की पर पड़ी। वह चौंकीं। पास जाकर देखा तो उनकी सांसें थम गईं—

“करिश्मा! तू यहां कैसे? किसने तुझे लॉकअप में डाला?”

पास खड़ा सिपाही यह सुनते ही कांप उठा और दौड़कर मोहन सिंह को खबर दी। मोहन का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने तुरंत हाथ जोड़कर सफाई दी—
“मैडम, यह लड़की सड़क पर कानून तोड़ रही थी। हमें गालियां दे रही थी। इसलिए हमने इसे लॉकअप में डाल दिया।”

कविता सिंह की आंखों में आग थी। उन्होंने सख्त आवाज़ में कहा—
“यह मेरी बेटी है। लेकिन आज मैं इसे एक नागरिक की तरह देख रही हूं। और तुम लोगों ने जो किया है, वह कानून और इंसानियत दोनों के खिलाफ है।”

थाने का माहौल सन्नाटे में बदल गया। हर सिपाही कांप रहा था।


करीब एक घंटे बाद डीएम साहब, एसीएम और अन्य अधिकारी थाने पहुंचे। कविता सिंह ने सबके सामने पूरी घटना बताई। उन्होंने कहा—
“यह मेरी बेटी है, पर यहां मैं एक मां नहीं, एक अफ़सर हूं। एक आम लड़की को सड़क पर थप्पड़ मारे गए, धमकाया गया और बिना सबूत झूठे केस में जेल में डाल दिया गया। मैं चाहती हूं कि जांच यहीं और अभी हो।”

डीएम ने आदेश दिया कि गवाहों और वीडियो फुटेज पेश की जाए।

कुछ ही देर में तीन गवाह थाने पहुंचे। एक दुकानदार ने साफ कहा—
“लड़की स्कूटी धीरे चला रही थी। गलती बस हेलमेट की थी। लेकिन इंस्पेक्टर ने उसे थप्पड़ मारा और गालियां दीं।”

एक छात्र ने अपना मोबाइल वीडियो दिखाया, जिसमें मोहन सिंह करिश्मा को थप्पड़ मारते और 5000 रुपये की रिश्वत जैसी चालान धमकी देते दिख रहा था।

सीसीटीवी फुटेज भी यही सच दिखा रही थी—लड़की को बिना प्रक्रिया के सीधा लॉकअप में डाला गया।


डीएम की आवाज गूंज उठी—
“यह पूरी तरह से गैरकानूनी हिरासत है। भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (मारपीट), 441 (ग़ैरक़ानूनी कैद) और 166 (कानून के खिलाफ कार्यवाही) के तहत अपराध है। इंस्पेक्टर मोहन सिंह और एसएचओ रवि सिंह, आप दोनों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। आपके खिलाफ केस दर्ज होगा।”

थाने में मौजूद सभी पुलिसवालों की सांसें थम गईं। पहली बार उन्होंने देखा कि वर्दी पहनने वाले भी कानून के आगे झुक सकते हैं।

मोहन सिंह और रवि सिंह के चेहरे पीले पड़ चुके थे। सिर झुकाकर वे चुप खड़े रहे।


कविता सिंह ने अपनी बेटी को बाहों में भर लिया। उनकी आंखें नम थीं, पर आवाज़ दृढ़—
“बेटी, आज तूने बहुत कुछ सहा। पर तूने अन्याय के आगे झुककर चुप्पी नहीं साधी। यही हिम्मत हर नागरिक में होनी चाहिए।”

करिश्मा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“मां, आज समझ आया कि कानून सही हाथों में हो तो सुरक्षा है, और गलत हाथों में हो तो जहर से भी खतरनाक।”

डीएम ने जाते-जाते कहा—
“यह मामला पूरे जिले के लिए मिसाल बनेगा। कानून सबके लिए बराबर है—चाहे आम आदमी हो या पुलिस वाला।”

उस दिन के बाद उस थाने का माहौल हमेशा के लिए बदल गया। किसी भी पुलिसकर्मी ने फिर कभी किसी नागरिक को बेवजह धमकाने या झूठा चालान काटने की हिम्मत नहीं की। क्योंकि सबने देख लिया था कि कानून का आईना सबको एक जैसा दिखाता है।