IPS ne Bheek Maangne Waly Bachy Ko Bohut Mara Fir jo Howa Khud Dekh lo -Sabaq Amoz Waqia🥰

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यह कहानी एक गर्म दोपहर की है, जब सूरज की गर्मी सड़क पर आग बरसा रही थी। उस समय एक 12 साल का लड़का, किरण, नंगे पांव और मैले कपड़ों में सड़क किनारे चल रहा था। उसके कंधे पर पुरानी बोरियां थीं, जिनमें कचरा इकट्ठा करने का सामान था। वह एक यतीम था, जिसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी और पिता, जो एक मजदूर था, दिल का दौरा पड़ने से चल बसे। अब उसके पास न कोई रिश्तेदार था और न ही कोई सहारा। किरण ने जीवन में केवल दर्द और संघर्ष ही सीखा था।

कiran हर दिन शहर की फुटपाथों और गलियों में कचरे के ढेर से प्लास्टिक, शीशे और बचा हुआ खाना तलाश करता। उसकी उम्मीद थी कि शाम तक इतना सामान इकट्ठा कर सके कि कबाड़ी को बेचकर दो वक्त की रोटी मिल सके। लेकिन उस दिन पेट की भूख और थकान ने उसे हद से बाहर कर दिया था।

चोरी का संदेह

इसी बीच, उसकी नजर सड़क के पार एक अधूरी सरकारी इमारत पर पड़ी, जहाँ मजदूरों की आवाज़ें और मशीनों की घरघराहट सुनाई दे रही थी। अचानक उसकी निगाह एक आदमी पर गई, जो भारी बिजली की केबल का रोल उठाए हुए इमारत से बाहर आ रहा था। किरण को लगा कि यह चोरी हो रही है। उसने सोचा, “क्या करूँ? कौन मुझ पर विश्वास करेगा?” लेकिन उसकी अंतरात्मा ने उसे रोक नहीं पाया।

वह धीरे-धीरे इमारत के भीतर गया और एक सिक्योरिटी गार्ड को बताया, “भैया, माफ करना। मैंने किसी को केबल ले जाते देखा है। शायद चोरी हो रही है।” गार्ड ने उसे तिरछी नजर से देखा और उसकी हालत देखकर तंज भरी मुस्कान दी। फिर उसने वायरलेस पर सूचना दी। कुछ ही मिनटों में एक सफेद पुलिस जीप वहाँ आ गई।

यशवंत चौहान का आगमन

जीप से सब इंस्पेक्टर यशवंत चौहान उतरे। वह ऊँचे कद, मजबूत शरीर और घनी मूछों वाले थे। उनकी आँखों में घमंड की चमक थी। उन्होंने किरण को घूरते हुए कहा, “तूने वायरलेस पर कॉल की थी? तूने कहा चोरी हो रही है?” किरण ने घबराकर जवाब दिया, “साहब, मैंने सिर्फ देखा था।” लेकिन यशवंत ने उसे गिरेबान से पकड़कर झिंझोड़ दिया।

“तूने चोरी की है ना?” यशवंत ने गुस्से में कहा। इससे पहले कि किरण कुछ कह पाता, यशवंत ने उसे जोरदार थप्पड़ मारा। किरण लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिर गया। आसपास खड़े लोग सब देख रहे थे, लेकिन कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा था। यशवंत ने किरण को जमीन पर पटक दिया और पूछा, “सच बोल, केबल कहाँ है?”

यतीम की आह

कiran का नाजुक शरीर धूल में लथपथ हो गया। उसने सिसकते हुए कहा, “मैंने कुछ नहीं किया।” यशवंत ने फिर से उसे पीटा और कहा, “अगर नहीं बोलेगा तो थाने ले जाकर चमड़ी उधेड़ दूंगा।” किरण बेहोश हो गया।

उसकी हालत देखकर वहाँ खड़े लोगों के दिलों में तूफान मचल रहा था। एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “यतीम है, इसकी आवाज़ नहीं है।” किरण अर्धचेतन अवस्था में पड़ा था, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने खुदा से दुआ की, “अगर मैं बेसहारा हूं तो तू मेरा सहारा बन जा।”

यशवंत की सजा

यशवंत ने उस दिन के बाद अपने घर पर आराम से बैठकर चाय पी। लेकिन उसे महसूस हुआ कि उसके शरीर में कुछ अजीब हो रहा है। उसकी गर्दन पर एक काला निशान उभर आया। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।

अस्पताल में डॉक्टरों ने कहा कि यह कोई आम बीमारी नहीं है। यशवंत की पत्नी श्वेता ने महसूस किया कि यह सब उसके कर्मों का फल है। यशवंत को समझ में आया कि उसे किरण से माफी मांगनी होगी।

आश्रम की यात्रा

श्वेता ने यशवंत को एक आश्रम ले जाने का फैसला किया। वहाँ बाबा परमानंद ने कहा, “यह बीमारी बद्दुआ है। तुम्हें उस बच्चे से माफी मांगनी होगी।” यशवंत ने ठान लिया कि उसे किरण को ढूंढना होगा।

किरण की खोज

यशवंत और श्वेता ने शहर के हर कोने में किरण को खोजा, लेकिन कोई उसे पहचान नहीं सका। आखिरकार, वे शहर के कचरा घर के पास पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि किरण कचरे के ढेर में खाना बीन रहा था।

यशवंत ने उसे आवाज दी, “बेटा, रुक जाओ। मुझे कुछ कहना है।” किरण ने यशवंत को पहचान लिया और डर के मारे पीछे हट गया। लेकिन यशवंत ने घुटनों के बल बैठकर कहा, “मुझे माफ कर दो। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।”

माफी का पल

कiran ने कहा, “आपने मेरे दिल पर चोट मारी थी।” लेकिन जब यशवंत ने अपनी सच्चाई स्वीकार की और कहा कि वह बदल गया है, तो किरण ने कहा, “अगर आप सच में बदल गए हैं, तो मैं आपको माफ करता हूँ। लेकिन यह वादा करो कि आप मेरे जैसे बच्चों के लिए आवाज बनेंगे।”

नई शुरुआत

यशवंत ने किरण के सामने हाथ जोड़कर वादा किया कि वह अब उन बच्चों के लिए लड़ेगा जो कभी अपनी आवाज नहीं उठा सके। इस वादे ने यशवंत के अंदर एक नई रोशनी भर दी।

अब यशवंत सिर्फ एक पुलिस अफसर नहीं था, बल्कि उन बच्चों का रक्षक बन चुका था। उसने फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए शेल्टर बनवाए, स्कूलों में यतीम बच्चों के दाखिले की योजना शुरू की और चाइल्ड प्रोटेक्शन सेल कायम किया।

निष्कर्ष

कहानी का सार यह है कि इंसानियत और दया का भाव सबसे महत्वपूर्ण है। यशवंत ने एक यतीम बच्चे से जो सबक सीखा, वह न केवल उसकी जिंदगी को बदल दिया, बल्कि उन बच्चों के लिए भी एक नई उम्मीद की किरण बन गया, जो समाज में अनदेखे रह जाते हैं।

कiran और यशवंत की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची माफी और बदलाव तभी संभव है जब हम अपने कर्मों की जिम्मेदारी लें और दूसरों के लिए एक आवाज बनें।