IPS officer aur Sabzi Bechny Wali Larki ki Dilchasp Kahani | Islamic Story in Hindi Urdu| Sabaq Amoz
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.सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह नहीं निकला था, लेकिन लाहौर के मुहाफिजी इलाके में बाजार की हलचल शुरू हो चुकी थी। एक तंग गली में जुलेखा बीबी अपनी पुरानी मोटरसाइकिल पर सब्जियां लेकर निकलीं। सफेद चादर में लिपटी हुई, उनकी कमर झुकी हुई थी और आंखों में वक्त की थकान थी। दिल में उम्मीद थी कि शायद आज सब्जियां जल्दी बिक जाएं और घर का खर्च थोड़ा हल्का हो जाए।
जुलेखा बीबी बस स्टॉप के करीब पहुंची थीं कि अचानक एक तेज़ सीटी की आवाज आई। ट्रैफिक पुलिस का एक नौजवान सिपाही हाथ उठाए उनकी तरफ बढ़ा। पीछे से इंस्पेक्टर नजीर अपनी जीप से उतरे, चेहरे पर गर्व और आंखों में बेनियाजी। उन्होंने जुलेखा बीबी से कागजात दिखाने को कहा। जुलेखा बीबी ने झिझकते हुए कहा, “बेटा, यह पुरानी मोटरसाइकिल है। कागज शायद मुकम्मल नहीं हैं, लेकिन मैं सब्जियां बेचने निकली हूं। घर में कोई कमाने वाला नहीं है।”
इंस्पेक्टर नजीर ने जोरदार हंसी में कहा, “अब हर कोई बीवी-बेवा होने का बहाना बनाकर कानून तोड़ेगा? कानून सबके लिए बराबर है।” उन्होंने मोटरसाइकिल की चाबी निकाल ली और जुलेखा बीबी की सब्जियों की टोकरी को सड़क पर फेंक दिया। सब्जियां बिखर गईं, कुछ गाड़ियां उनके ऊपर से गुजर गईं। इर्दगिर्द खड़े लोग बेबसी से यह मंजर देखते रहे, लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठाई। एक नौजवान ने खामोशी से मोबाइल निकाला और यह सब रिकॉर्ड करने लगा।
जुलेखा बीबी चुपचाप खड़ी रहीं। इंस्पेक्टर नजीर के शब्द उनके कानों में तीर बनकर लगे, “अगर कानून की इज्जत नहीं तो फिर सड़क पर भीख मांगो।” जुलेखा की आंखों से खामोश आंसू बहने लगे। उन्होंने दुपट्टे का कोना पकड़ा और जमीन पर गिरी सब्जियां समेटने लगीं। राह चलते लोग रुककर देखते, कुछ अफसोस से सिर हिलाते, फिर अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाते।
बेटी का गर्व
जुलेखा के दिल में एक झलझलाहट थी, लेकिन होंठ खामोश थे। उनका एक ही ख्याल था: फातिमा को यह सब नहीं पता चलना चाहिए। फातिमा उनकी इकलौती बेटी थी, जिसे उन्होंने खून-पसीना एक करके पढ़ाया था। आज वह पाकिस्तान आर्मी में लेफ्टिनेंट थी, सरहद पर तैनात। जुलेखा हमेशा अपनी बेटी पर गर्व करती थीं, लेकिन आज वह खुद को बेबस और बेआबरू महसूस कर रही थीं। जुलेखा ने सब्जियां समेटीं, मोटरसाइकिल वहीं छोड़ दी और पैदल घर की ओर चल पड़ीं।
जब वह घर पहुंचीं, तो दरवाजे पर दस्तक दी। फिर खुद ही दरवाजा खोला और अंदर चली गईं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दूसरी तरफ वही वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड हो चुकी थी। कैप्शन में लिखा था, “यह औरत बेवा है, एक सिपाही की मां और अब एक फौजी अफसर की मां।” वीडियो कुछ घंटों में वायरल हो गई। सैकड़ों कमेंट्स, हजारों शेयर्स, कुछ लोग अफसोस कर रहे थे, कुछ गुस्से में थे, तो कुछ हंस भी रहे थे।
फातिमा का संकल्प
लेफ्टिनेंट फातिमा ने जब वीडियो देखी, तो वक्त थम गया। उसकी आंखों के सामने बस एक ही मंजर था: उसकी मां की झुकी हुई कमर, सड़क पर बिखरी सब्जियां, और इंस्पेक्टर नजीर की जहर बुझी बातें। फातिमा का दिल एक जख्म बन गया। उसने अपने सीनियर अफसर को मैसेज भेजा, “सर, मेरी वालिदा पर सरेआम जुल्म हुआ है। क्या मैं कुछ दिन की छुट्टी ले सकती हूं ताकि मामला देख सकूं?”
फातिमा ने बैग पैक किया, वर्दी उतारी और सादा कपड़े पहन लिए। वह खामोश थी, लेकिन उसके दिल में एक तूफान था। वह गांव पहुंची, जहां उसने अपनी मां का सम्मान वापस लेने का संकल्प लिया। उसने सीधे थाने का रुख किया।
थाने में सामना
फातिमा ने थाने में दाखिल होते ही इंस्पेक्टर नजीर को देखा। उसने उसे पहचान लिया और कहा, “आप वही अफसर हैं जिनकी मां…” फातिमा ने उसे रोकते हुए कहा, “मैं फातिमा जुलेखा हूं। पाकिस्तान आर्मी की लेफ्टिनेंट और आपकी मां।” यह सुनते ही हवालदार के चेहरे का रंग उतर गया।
फातिमा ने कहा, “मैं यहां सच्चाई जानने आई हूं। मेरी मां को आपके एक अफसर ने सबके सामने जलील किया।” नजीर ने कहा, “मुझे खेद है, लेकिन आपका इससे क्या ताल्लुक?” फातिमा ने गहरी सांस ली और कहा, “मैं चाहती हूं कि यह मामला खत्म न हो। मुझे इंसाफ चाहिए।”
बदलाव की शुरुआत
फातिमा ने नजीर को चुनौती दी कि वह अपनी गलती स्वीकार करे। नजीर ने कहा, “मैं जानता हूं मैंने गलती की। मैंने तुम्हें पढ़ाया था। तुम्हारी आंखों में हमेशा सच बोलने वाली एक चमक थी।” फातिमा ने कहा, “अगर आप वाकई गलती मान चुके हैं, तो माफी लफ्जों से नहीं, अमल से मांगी जाती है।”
इंस्पेक्टर नजीर ने कहा, “मैं चाहता हूं कि गांव के चौराहे पर सबके सामने अपनी गलती का कफारा अदा करूं।” फातिमा ने कहा, “हम आएंगे, लेकिन यह माफी सिर्फ मेरे लिए नहीं, उन सबके लिए है जो इस सिस्टम की बेहिसी का शिकार बने हैं।”
एक नई शुरुआत
गांव के चौराहे पर नजीर ने माफी मांगी। जुलेखा बीबी ने कहा, “मैंने तुम्हें माफ किया। लेकिन वादा करो कि अब किसी और मां के साथ ऐसा नहीं होने दोगे।” नजीर ने कहा, “मैं वादा करता हूं।”
फातिमा ने अपनी मां का हाथ थाम लिया और दिल में दुआ की, “या अल्लाह, इस सच को सिर्फ लम्हा ना बना। इसे पूरे निजाम की बुनियाद बना दे।”
कुछ दिन बाद, गांव की फिजा बदल गई। लोग जुलेखा बीबी को आदर से सलाम करते थे। फातिमा की मां अब बच्चियों को हुनर सिखा रही थी। जब लोग पूछते, “आपकी बेटी कहां है?” तो वह मुस्कुराकर कहती, “मेरी बेटी सरहद पर नहीं, सरों में तब्दीली लेकर आई है।”
अंत में
यह कहानी केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि एक नई शुरुआत थी। एक बेटी, एक मां और एक जमीर ने मिलकर एक कौम को जगा दिया। यह बताती है कि सच्चाई और इंसाफ के लिए खड़ा होना कितना महत्वपूर्ण है, और कैसे एक व्यक्ति की आवाज बदलाव ला सकती है।
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