SP ऑफिस में जैसे ही बुजुर्ग महिला पहुंची। साहब कुर्सी छोड़ खड़े हो गए|Emotional Story|
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मां के आंसुओं ने हिला दिया पूरा सिस्टम – एसपी ऑफिस में घटा चौंकाने वाला मंजर
सुबह के दस बजे थे। शहर के एसपी ऑफिस में रोज़ की तरह चहल-पहल थी। वर्दी में पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी में तल्लीन थे। कमरे-दर-कमरे फाइलों की खड़खड़ाहट गूंज रही थी। किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि अगले कुछ मिनटों में वहां एक ऐसा मंजर देखने को मिलेगा, जो हमेशा के लिए उनकी आंखों और दिल में छप जाएगा।
ऑफिस के गेट पर एक बुजुर्ग महिला लड़खड़ाते कदमों से चढ़ रही थी। नंगे पैर, मैले-कुचैले कपड़े, हाथ में फटा हुआ थैला और चेहरे पर बरसों की थकान की परतें। उसकी आंखों में दर्द का ऐसा सागर था जिसे देखकर पत्थर भी पिघल जाए। सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते उसका शरीर थरथराने लगा। उसने पास खड़े एक कांस्टेबल से कांपती आवाज़ में कहा –
“बेटा, मुझे एक रिपोर्ट लिखवानी है…”
लेकिन कांस्टेबल ने रूखेपन से जवाब दिया –
“माताजी, यहां रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। जाइए, नज़दीकी थाने में।”
उस जवाब ने जैसे उसकी आखिरी उम्मीद भी तोड़ दी। महिला वहीं जमीन पर बैठ गई। आंखों से आंसू बहने लगे। उसने सिसकते हुए कहा –
“कोई मेरी बात नहीं सुनता… मैं कहां जाऊं?”
यह दृश्य ऊपर दूसरी मंज़िल के केबिन से देख रहे थे – एसपी विक्रम सिंह। महज़ 35 साल के, तेज-तर्रार लेकिन भीतर से बेहद संवेदनशील अधिकारी। उन्होंने खिड़की से झांककर जब उस महिला को देखा, तो दिल कांप उठा। उन्हें अपनी मां की याद आ गई। उन्होंने तुरंत घंटी बजाई और आदेश दिया –
“नीचे जो महिला बैठी है, उसे तुरंत मेरे केबिन में लाओ।”
कांस्टेबल हैरान था। एसपी साहब आमतौर पर किसी आम इंसान को सीधे केबिन में नहीं बुलाते थे। लेकिन आदेश का पालन हुआ।
मां और बेटे का मिलन
बुजुर्ग महिला सहमी हुई अंदर आई। उसकी आंखों में डर और संकोच था – “पता नहीं ये अफसर भी मुझे भगा देंगे या नहीं…”
लेकिन जैसे ही विक्रम खड़े होकर उसके पास आए, उनके चेहरे पर अफसर का रौब नहीं, बल्कि बेटे जैसा स्नेह था। उन्होंने उसे सहारा दिया और सोफे पर बिठाया। नरम आवाज़ में पूछा –
“मांजी, आप इतनी परेशान क्यों हैं? बताइए, क्या हुआ?”
महिला ने कांपते हाथों से पानी का गिलास थामा और धीरे से बोली –
“बेटा, बाजार में मेरा थैला चोरी हो गया। उसमें मेरे बीमार पति की दवाइयां और कुछ पैसे थे। थाने गई, लेकिन दरोगा ने मुझे भगा दिया। बोला मेरे पास समय नहीं है। मैं सोचकर यहां आई कि शायद कोई मेरी सुनेगा…”
इतना सुनते ही विक्रम का चेहरा गंभीर हो गया। गुस्से की लकीरें उभर आईं। लेकिन तभी महिला ने अपना नाम बताया –
“मेरा नाम शांता है… और मेरे पति का नाम रामकिशन।”
यह नाम सुनते ही विक्रम का पूरा शरीर सन्न रह गया। जैसे किसी ने बिजली दौड़ा दी हो। उनकी आंखें भर आईं। यादें उमड़ने लगीं – बचपन का टूटा हुआ घर, स्टेशन पर भगदड़, मां के पैर में चोट, और बिछड़ने का वो पल।
कांपते हुए उन्होंने पूछा –
“मांजी, क्या आपके पैर में बचपन में गहरा घाव लगा था?”
महिला चौंक गई –
“हाँ बेटा, लेकिन तुझे कैसे पता?”
अब विक्रम रो पड़े। उनकी आवाज टूट रही थी –
“क्योंकि वो घाव मैंने अपने बचपन में देखा था… मां, क्या आप मुझे पहचानती नहीं? मैं… मैं आपका विक्रम हूं!”
कमरा सन्नाटे में डूब गया। कांस्टेबल और अफसर अवाक् रह गए। महिला की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने कांपती आवाज़ में कहा –
“तू… तू मेरा विक्रम है? मेरा बेटा?”
विक्रम ने झुककर उसके हाथ थाम लिए –
“हाँ मां! मैं ही हूं… जिसे आपने स्टेशन पर आखिरी बार देखा था।”
और फिर दोनों एक-दूसरे से लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़े। बरसों की जुदाई का दर्द बह निकला। पूरे ऑफिस में हर कोई नम आंखों से यह दृश्य देख रहा था।
पिता से मुलाकात
विक्रम तुरंत मां को वृद्धाश्रम ले गए, जहां उनके बीमार पिता रामकिशन रहते थे। जब पिता ने विक्रम को देखा, तो पहले पहचान नहीं पाए। लेकिन जैसे ही विक्रम ने झुककर कहा –
“बाबा… मैं आपका विक्रम हूं।”
उनकी आंखों से आंसू बह निकले। उन्होंने बेटे को गले लगा लिया। मां, पिता और बेटा – तीनों बरसों बाद एक साथ थे। पूरा वृद्धाश्रम भावुक हो गया।
विक्रम ने तय किया –
“अब आप दोनों मेरे साथ चलेंगे।”
वो उन्हें अपने सरकारी बंगले पर ले गए। पत्नी मीरा ने नम आंखों से सास-ससुर का स्वागत किया। घर में बरसों बाद खुशियां लौट आईं।
अन्याय का हिसाब
लेकिन विक्रम के भीतर आग जल रही थी। उनकी मां ने बताया कि कैसे उनके चाचा राम प्रसाद ने झूठे कागज़ बनवाकर जमीन हड़प ली और उन्हें बेघर कर दिया।
विक्रम ने तुरंत जांच शुरू की। सबूत मिले कि राम प्रसाद ने उन्हें मृत घोषित करवाकर संपत्ति हड़पी थी। विक्रम ने उसे गिरफ्तार करवा दिया। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। लोग तालियां बजाने लगे –
“देखो, इंसाफ लौट आया है।”
इसी बीच, विक्रम ने उस दरोगा को भी सस्पेंड कर दिया जिसने उनकी मां को थाने से भगा दिया था। पूरे पुलिस विभाग में यह खबर आग की तरह फैल गई।
राज्य भर में चर्चा
यह कहानी पूरे राज्य में गूंज उठी। अखबारों ने लिखा –
“एसपी विक्रम सिंह ने साबित किया – इंसाफ सबसे ऊपर!”
मुख्यमंत्री ने उन्हें सर्वोच्च पुलिस सम्मान से नवाज़ा। मंच पर मां-बाप के साथ खड़े विक्रम की आंखें नम थीं। लेकिन इस बार आंसू खुशी के थे।
मानवता का संदेश
विक्रम ने बुजुर्गों के अधिकारों के लिए अभियान छेड़ा। वृद्धाश्रमों का दौरा किया, बुजुर्गों को उनके परिवारों से मिलवाया। उन्होंने हेल्पलाइन शुरू की। हजारों परिवार फिर से जुड़े।
एक रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर शांता ने बेटे के सिर पर हाथ फेरा और बोली –
“बेटा, आज लगता है मैंने कभी किसी अनाथ को जन्म ही नहीं दिया। तूने हमें फिर से जिंदगी दी।”
विक्रम मुस्कुराए, मां का हाथ थामा और पिता की ओर देखा। उनके दिल में सुकून था।
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