एक गलती, एक फरिश्ता – इमरान की पूरी कहानी

कभी-कभी जिंदगी में एक छोटी सी गलती आपके सारे सपनों को चूर-चूर कर देती है। एक पल में सब कुछ खत्म लगने लगता है और उम्मीद का आलम बस धुंधला सा रह जाता है। लेकिन ठीक उसी पल कोई अनजान शख्स किसी फरिश्ते की तरह आपकी जिंदगी में आता है और सब कुछ बदल देता है।

यह कहानी है इमरान की – एक साधारण लड़का, जिसकी जिंदगी एक छोटी सी गलती से बिखरने वाली थी, लेकिन एक अनजान सरदार ऑफिसर ने उसकी दुनिया बदल दी।

जालंधर का सपना

इमरान, 24 साल का नौजवान, पंजाब के जालंधर शहर के गुरु नानक नगर के एक छोटे से मोहल्ले में रहता था।
उसका घर छोटा था – दो कमरे, एक छोटा सा आंगन और पुरानी छत, जहां इमरान अक्सर रात को तारों को देखते हुए अपने सपनों में खो जाता था।
पिता नासिर अली सिलाई की दुकान चलाते थे, मां शबाना बेगम घर संभालती थीं।
इमरान उनका इकलौता बेटा था, उनकी पूरी दुनिया।

इमरान ने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया था, पढ़ाई में अच्छा था।
लेकिन असली जुनून था लोगों से मिलना, उनकी सेवा करना और दुनिया देखना।
कॉलेज के आखिरी साल में उसे दुबई की मशहूर होटल चेन “अल मजिद ग्रुप” में जॉब का ऑफर मिला।

घर में खुशी की लहर दौड़ गई।
शबाना बेगम ने पड़ोसियों को मिठाई बांटी, नासिर अली ने दोस्तों को बताया – “मेरा बेटा दुबई जा रहा है!”

लेकिन इमरान के दिल में खुशी के साथ एक अनजाना डर भी था।
पहली बार देश से बाहर जा रहा था।
दुबई – चमचमाता शहर, गगनचुंबी इमारतें, रेगिस्तान की रेत, अनजान लोग।
वह रात-रात भर जागकर सोचता – “क्या मैं वहां टिक पाऊंगा? अगर गलती हुई तो अंग्रेजी में बात कैसे करूंगा?”

दोस्त हौसला देते – “इमरान, तू स्टार है! दुबई को झकझोर देगा!”
लेकिन मन नहीं मानता था।

मां की दुआ, चाचा की सीख

जाने से एक रात पहले मां ने उसे पास बिठाया।
माथे पर तिलक लगाया, गले में एक छोटा सा ताबीज डाला –
“बेटा, यह ताबीज मेरी मां ने मुझे दिया था। इसे हमेशा अपने पास रखना। अल्लाह हर पल तेरे साथ है।”

इमरान ने मां को गले लगाया, आंखें नम थीं –
“अम्मी, अगर मैं वहां फेल हो गया तो?”
शबाना बेगम ने सिर पर हाथ फेरा –
“बेटा, फेल वही होता है जो कोशिश नहीं करता। तू बस मेहनत करना, बाकी अल्लाह पर छोड़ दे।”

एयरपोर्ट की गलती

15 जून 2015 की सुबह, इमरान अपने चाचा शकील अहमद के साथ दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए निकला।
चाचा ने अपनी पुरानी Maruti 800 में उसे जालंधर से दिल्ली तक छोड़ा।
रास्ते में हौसला देते रहे –
“इमरान, तू देखना, दुबई में तेरा नाम होगा। थोड़ा सावधान रहना, सामान का ख्याल रखना।”

एयरपोर्ट पहुंचते ही चाचा ने गले लगाया –
“जा बेटा, अपनी किस्मत चमका। अल्लाह तुझे कामयाब करे।”

अब इमरान अकेला था।
हाथ में छोटा सा बैग, पासपोर्ट और वीजा की कॉपी।
एयरपोर्ट की भीड़, चमक-धमक और तेज-तेज चलते लोग उसे और घबराहट दे रहे थे।

वह बार-बार जेब टटोलता, पासपोर्ट चेक करता, मन ही मन दुआ करता –
“या अल्लाह, सब ठीक कर देना।”

चेक-इन काउंटर की लाइन में खड़े होने से पहले उसे पेशाब की जरूरत महसूस हुई।
सोचा – पहले वाशरूम हो आऊं, फिर चेक-इन करूंगा।

जल्दबाजी में इमरान ने पासपोर्ट और वीजा की कॉपी वाशरूम के एग्जिट फैन के पास रख दी।
सोचा – “बस दो मिनट का काम है, क्या होगा?”

लेकिन जैसे ही पेशाब करने बैठा, एक तेज हवा का झोंका आया।
पलट कर देखा –
पासपोर्ट और वीजा की कॉपी एग्जिट फैन की चपेट में आकर हवा में उड़ गए और वाशरूम के पीछे की गली में जा गिरे।

सपनों का टूटना

इमरान का चेहरा सफेद पड़ गया।
वह दौड़ता हुआ वाशरूम के बाहर निकला, लेकिन गली तक जाने का कोई रास्ता नहीं था।
वह जगह एयरपोर्ट की बाउंड्री से बाहर थी, वहां पहुंचना नामुमकिन लग रहा था।

घबराहट में इधर-उधर भागने लगा।
पास खड़े दुकानदार से मदद मांगी –
“भाई, वो गली तो बाहर है, वहां कोई नहीं जा सकता।”

दूसरे शख्स ने भी यही कहा –
“भूल जाओ, अब कुछ नहीं हो सकता।”

इमरान का दिल डूब रहा था।
फ्लाइट को सिर्फ एक घंटा बाकी था।
बिना पासपोर्ट और वीजा के ना दुबई जा सकता था, ना एयरपोर्ट से बाहर निकल सकता था।

माता-पिता का चेहरा याद आया – उनकी उम्मीदें, मिठाइयां बांटने वाली मुस्कान, चाचा की बात –
“इमरान, तू हमारा नाम रोशन करेगा।”

सब कुछ धुंधला सा लगने लगा।
आंखें नम हो गईं –
“बस इतनी सी गलती और मेरा सारा सपना खत्म!”

दिल्ली पुलिस – फरिश्ता की तलाश

तभी कुछ दिल्ली पुलिस के जवान दिखे।
हिम्मत जुटाई, उनके पास गया।
कांपती आवाज में सारी बात बताई – पासपोर्ट और वीजा एग्जिट फैन के पास रखी, गली में जा गिरी।

पुलिस वाले पहले तो हंस पड़े –
“अरे भाई, तूने तो कमाल कर दिया! बच्चे भी इतनी बेवकूफी नहीं करते।”

दूसरे ने डांटते हुए कहा –
“अब कुछ नहीं हो सकता, वो गली एयरपोर्ट के बाहर है, वहां कोई नहीं जा सकता।”

इमरान ने मिन्नतें की –
“साहब, प्लीज कुछ कीजिए! मेरी जिंदगी का सवाल है, मेरी पहली जॉब है, अगर आज नहीं गया तो सब खत्म!”

पुलिस वाले सिर हिलाते रहे।
एक ने मजाक में कहा –
“भाई, अगली बार पासपोर्ट को जेब में रखना, फैन के पास नहीं।”

इमरान का दिल टूट रहा था।
बार-बार अल्लाह का नाम ले रहा था, लेकिन कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।

सरदार ऑफिसर – अनजान फरिश्ता

तभी वहां एक सरदार ऑफिसर आया –
पगड़ी, दाढ़ी, गहरी आंखें – उनमें एक अलग सा रब था।
उसने पुलिस वालों से पूछा –
“क्या माजरा है?”

एक जवान ने हंसते हुए कहा –
“साहब, यह लड़का इतना बड़ा बेवकूफ है कि इसने पासपोर्ट और वीजा एग्जिट फैन के पास रख दिया, अब गली में चला गया।”

लेकिन ऑफिसर ने हंसने की बजाय गंभीर होकर इमरान की तरफ देखा।
कहा –
“अभी हंसने का वक्त नहीं है। इसकी फ्लाइट को सिर्फ एक घंटा बाकी है। हमें फटाफट इसकी मदद करनी होगी।”

उसकी आवाज में इतनी गहराई थी कि सब चुप हो गए।
इमरान को पहली बार लगा –
“शायद कोई मेरी बात समझ रहा है।”

मिशन – पासपोर्ट की तलाश

ऑफिसर ने तुरंत अपने फोन से सफाई कर्मचारी को कॉल किया –
“वाशरूम के पीछे की गली का ताला किसके पास है?”

कर्मचारी ने बताया –
“चाबी रमेश के पास है।”

ऑफिसर ने रमेश को फोन किया –
फोन स्विच ऑफ था।
इमरान का दिल और डूबने लगा।

लेकिन ऑफिसर ने हार नहीं मानी।
एक पुलिस वाले से कहा –
“फटाफट रमेश के घर जाओ, उसे यहां लेकर आओ।”

पुलिस वाला दौड़ता हुआ गया।
इमरान बाहर खड़ा था – सांसे अटकी हुई थीं।
बार-बार मां का ताबीज छू रहा था, मन ही मन दुआ मांग रहा था –
“या अल्लाह, बस एक बार मदद कर दे।”

करीब 20 मिनट बाद पुलिस वाला रमेश को लेकर आया।
रमेश ने गली का ताला खोला, ऑफिसर के साथ गली में गया।

गंदगी और कचरे के बीच इमरान का पासपोर्ट और वीजा की कॉपी पड़ी थी।
ऑफिसर ने उन्हें उठाया, साफ किया और इमरान को थमा दिया।

जिंदगी की नई रोशनी

इमरान की आंखों से आंसू छलक पड़े।
ऑफिसर के हाथ चूम लिए –
“साहब, आपने मेरी जिंदगी बचा ली। दिल्ली पुलिस का दिल से शुक्रिया!”

ऑफिसर हल्के से मुस्कुराए –
“बेटा, जल्दी जाओ, तेरी फ्लाइट छूटने वाली है।”

इमरान ने पासपोर्ट थामा और चेक-इन काउंटर की तरफ दौड़ा।
आखिरी मिनट में फ्लाइट में चढ़ पाया।

जब फ्लाइट ने उड़ान भरी, इमरान ने खिड़की से बाहर देखा –
दिल्ली की रोशनी धीरे-धीरे धुंधली हो रही थी, लेकिन उसके दिल में एक नई रोशनी जाग रही थी।

उसने सरदार ऑफिसर का चेहरा याद किया –
गहरी आंखें, दयालु मुस्कान।
मन ही मन कहा –
“साहब, मैं आपको कभी नहीं भूलूंगा।”

दुबई – मेहनत और सफलता

दुबई पहुंचने के बाद इमरान की जिंदगी आसान नहीं थी।
नई जगह, नई भाषा, काम का दबाव।
लेकिन उस दिन की घटना ने उसे नई हिम्मत दी थी –
“अगर मैं उस गलती से उभर सकता हूं, तो ये चुनौतियां भी पार कर लूंगा।”

दिन-रात मेहनत की।
होटल में सबसे पहले आता, सबसे आखिर में जाता।
ईमानदारी और लगन ने बॉस का दिल जीत लिया।
पहले साल में ही जूनियर मैनेजर बना दिया गया।

पहले वेतन से मां के लिए सोने की चैन, पिता के लिए नई सिलाई मशीन भेजी।
हर महीने पैसे भेजता, धीरे-धीरे परिवार की जिंदगी बदल दी।

फरिश्ते की तलाश – 10 साल बाद

मन में हमेशा एक कसक रहती थी –
उस सरदार ऑफिसर का चेहरा, जिसने जिंदगी को नया मौका दिया था।

10 साल बाद – 2025 में इमरान भारत लौटा।
अब वह प्रोफेशनल मैनेजर था – आत्मविश्वास, अनुभव और नई पहचान।

जालंधर में माता-पिता के लिए नया घर बनवाया।
दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा तो उस दिन की याद ताजा हो गई –
वाशरूम, गली, सरदार ऑफिसर।

पुलिस वालों से ऑफिसर के बारे में पूछा –
“10 साल पहले एक सरदार ऑफिसर ने मेरी मदद की थी।”

किसी को कुछ पता नहीं था।
एक ने कहा – “शायद ट्रांसफर हो गया।”
दूसरे ने कहा – “शायद रिटायर हो चुका है।”

इमरान को नाम तक नहीं पता था।
उदास मन से घर लौटा।

कहानी का संदेश

इमरान की कहानी हमें सिखाती है –
जिंदगी में गलतियां होती हैं।
हर गलती का मतलब अंत नहीं होता।
कभी-कभी वही गलतियां हमें उन लोगों से मिलाती हैं जो हमारी जिंदगी को नया रंग दे जाते हैं।

सबसे बड़ी बात –
हमें कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
जब उम्मीद टूटने लगे, ऊपर वाला कोई ना कोई रास्ता जरूर भेजता है।

उस सरदार ऑफिसर का नाम भले ही इमरान को ना पता हो, लेकिन उसकी मदद ने इमरान की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
वो एक अनजान फरिश्ता था – सही वक्त पर, सही जगह आया और चुपके से चला गया।

इमरान ने अपने घर की छत पर बैठकर एक बार फिर तारों को देखा और मन ही मन कहा –
“साहब, आप जहां भी हो, अल्लाह आपको सलामत रखे।”

जब भी दोस्तों से पुलिस की बात होती, दिल खोलकर दिल्ली पुलिस की तारीफ करता –
“आज मैं जो कुछ भी हूं, दिल्ली पुलिस की उस छोटी सी मगर दिल को छू जाने वाली मदद की वजह से ही हूं।
अल्लाह हमेशा हमारी दिल्ली पुलिस को सलामत रखे।”

तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी मुश्किल में फंसे, एक बार अपने आसपास देख लेना।
शायद कोई अनजान फरिश्ता आपकी मदद के लिए तैयार खड़ा हो।
अगर आप भी मेरी तरह इमोशनल इंसान हैं तो इस कहानी को लाइक करें, शेयर करें,
और कमेंट में लिखें कि आप कहां से पढ़ रहे हैं।
साथ ही दिल्ली पुलिस के लिए दो प्यार भरे शब्द जरूर लिखें।

– समाप्त –