पत्नी बनी आईपीएस अफसर, पति बेचता रहा समोसे — फिर जो हुआ, सबका दिल छू गया!

रेलवे स्टेशन की भीड़ रोज की तरह भागदौड़ में थी। प्लेटफार्म नंबर तीन के पास एक ठेले पर समोसे तले जा रहे थे। गर्म तेल की छींटों से झुलसे हाथ, पसीने से भीगा कुर्ता और माथे पर चिंता की लकीरें — यही पहचान थी रामलाल की।
रामलाल कभी एक सीधा-सादा मेहनती आदमी था, जिसने अपनी पत्नी राधा की पढ़ाई के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था। आज वही रामलाल स्टेशन पर समोसे बेचने को मजबूर था, लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था।

तभी प्लेटफार्म पर अचानक अफरातफरी मच गई। सरकारी गाड़ी आई, सुरक्षाकर्मी उतरे और भीड़ सन्नाटे में आ गई। गाड़ी से उतरीं हरे रंग की सिल्क साड़ी, काले चश्मे और सख्त चेहरे वाली डीएम राधा सिंह।
राधा की चाल में प्रशासन का रौब था, चेहरे पर घमंड की एक चुप परत।
वह सीधे आगे बढ़ गई, लेकिन रामलाल उसे देखता रह गया।

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कुछ पलों के लिए उसकी आंखें राधा से मिलीं, लेकिन राधा ने जैसे उसे पहचाना ही नहीं।
रामलाल वहीं खड़ा रह गया, अपमान की आग में जलता हुआ।

भीड़ में बातें होने लगीं — “समोसे वाला डीएम का पति है क्या?”
दो पुलिस वाले आए, “तू रामलाल है? चल, तेरे ऊपर शिकायत आई है — अवैध ठेला, गंदगी फैलाना।”
रामलाल कुछ समझ नहीं पाया, उसे थाने ले जाया गया।
थाने में मजाक बना, “बड़ा आया डीएम का पति!”
डंडे, गालियां, ताने — सब एक साथ चलते रहे।
रामलाल चुपचाप सब सहता रहा।

सुबह उसे बिना किसी चार्ज के छोड़ दिया गया।
वह सीधे कलेक्टरेट पहुंचा, “मुझे राधा से मिलना है, मैं उसका पति हूं।”
गेट पर सुरक्षाकर्मी ने हंसकर कहा, “फिर आ गया तू?”
एक अफसर ने गुस्से में बाहर निकाल दिया, “इसकी औकात देखी है?”
रामलाल को अपमान की आग में जलता छोड़ दिया गया।

अब रामलाल ने हार नहीं मानी।
उसने RTI फॉर्म भरा — “क्या जिला अधिकारी राधा सिंह विवाहित हैं? उनके पति का नाम क्या है?”
साथ में शादी की तस्वीर, आधार कार्ड, पंचायत प्रमाण पत्र, गवाह के हलफनामे।
कुछ ही दिनों में यह फाइल राधा सिंह के ऑफिस पहुंच गई।
राधा ने गुस्से में फॉर्म फाड़ दिया, “जिसने भेजा है, सबक सिखाओ उसे।”

लेकिन कानून के आगे सबको झुकना पड़ता है।
रामलाल ने लोकल पत्रकार को अपनी कहानी बताई — “मैंने खेत गिरवी रखकर राधा को पढ़ाया, आज वह डीएम है और मुझे पहचानने से इंकार करती है।”
वीडियो वायरल हो गया।
मीडिया में हेडलाइन बनी — “क्या समोसे वाला है डीएम का पति?”

रामलाल ने कोर्ट में अर्जी लगाई — “मैं डीएम राधा का पति हूं, मेरे पास सबूत हैं।”
कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय कर दी।
राधा के चार वकील थे, रामलाल अकेला — एक पुरानी फाइल, कुछ कागज और शादी की तस्वीरें लेकर।
जज ने पूछा, “आप किस अधिकार से दावा कर रहे हैं?”
रामलाल ने तस्वीरें, रजिस्ट्रेशन पेपर, पंचायत प्रमाण पत्र, और राधा द्वारा लिखी चिट्ठी पेश की — “अगर मैं कुछ बन पाई तो सिर्फ तुम्हारी वजह से।”

वकीलों ने दस्तावेजों को फर्जी बताया, लेकिन जब गवाह बुलाए गए — गांव के प्रधान, नाई, शिक्षक, कोचिंग सेंटर संचालक — सबने कहा, “राधा और रामलाल की शादी पूरे गांव ने देखी थी।”
जज हैरान थे, लेकिन अगली तारीख तय कर दी।

फैसले के दिन कोर्ट भरा था।
जज ने फैसला सुनाया — “यह सच है कि राधा और रामलाल की शादी हुई थी। राधा सिंह ने जानबूझकर अपने पति की पहचान छुपाई।”
रामलाल उसी शाम फिर से अपने ठेले पर बैठा, समोसे तल रहा था।
अब उसके चेहरे पर कोई हैरानी नहीं थी, बस इज्जत थी।
हर आने-जाने वाला उसे सम्मान से देखता था।

एक आदमी चुपचाप आया, “रामलाल भैया, आपके जैसे लोग ही प्रशासन को आईना दिखा सकते हैं।”
रामलाल ने मुस्कुराकर समोसा उसकी प्लेट में रखा — “गर्म है।”

सीख:
कभी-कभी सबसे बड़ा सम्मान वही लोग पाते हैं, जो अपनी सच्चाई के लिए लड़ते हैं।
रामलाल की कहानी बताती है कि आत्मसम्मान और सच की लड़ाई कभी बेकार नहीं जाती।

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