कहानी: कटरा की घाटी में – रिश्तों की दूसरी सुबह

सुबह का समय था। कटरा की पवित्र घाटी में भक्तों की भीड़ उमड़ रही थी। जय माता दी के नारों से हवा गूंज रही थी। कोई प्रसाद बेच रहा था, कोई श्रद्धालुओं को फूल मालाएं थमा रहा था। वातावरण में भक्ति का रंग घुला हुआ था और चारों ओर हलचल थी। इन्हीं आवाजों के बीच एक महिला खड़ी थी। चेहरा थका हुआ, कपड़े साधारण और मैले, लेकिन आंखों में एक अजीब सी चमक थी। वह श्रद्धालुओं को रोक-रोक कर कह रही थी, “भैया, दस रुपये की माला ले लो। माता के चरणों में चढ़ा देना। माता खुश होंगी।”

भीड़ इतनी थी कि हर कोई जल्दी-जल्दी निकल रहा था। लेकिन उस महिला के चेहरे पर संघर्ष साफ झलक रहा था। वह हर किसी से गुजारिश कर रही थी कि बस एक माला ले लो। उसी भीड़ में कुछ देर बाद सोनू मिश्रा अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा। गाड़ी से उतरने के बाद सबके चेहरे पर उत्साह था। सोनू मन ही मन सोच रहा था कि माता के दरबार जाकर माथा टेकते ही उसकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। लेकिन फिर जो हुआ, उसने उसकी जिंदगी बदल दी।

सोनू का दोस्त जैसे ही माला खरीदने के लिए जेब से पैसे निकालने लगा, सोनू की नजर उस महिला के चेहरे पर पड़ी और उसके कदम थम गए। वह महिला कोई और नहीं बल्कि उसकी तलाकशुदा पत्नी खुशबू थी। सोनू की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। उसके लिए विश्वास करना मुश्किल था कि सामने खड़ी यह महिला वही है, जिसके साथ उसने कभी सात फेरे लिए थे। चार साल पहले छूटा हुआ रिश्ता आज अचानक वैष्णो देवी की भीड़ के बीच फिर सामने खड़ा था।

सोनू घबराते हुए धीरे से नाम लिया, “खुशबू?” खुशबू ने जैसे ही यह आवाज सुनी, उसके हाथ से फूलों की टोकरी कांप गई। उसकी सांसें तेज हो गईं और कदम लड़खड़ा गए। उसने धीरे से सिर उठाकर सोनू की ओर देखा। एक पल को दोनों की आंखें टकराई और मानो वक्त थम गया। आंखों में ना जाने कितनी बातें थीं – शिकायतें, दर्द, मोहब्बत और वह सारे सवाल जिनके जवाब कभी मिले ही नहीं थे। खुशबू ने कांपती आवाज में कहा, “तुम यहां?” सोनू का गला भर आया। उसने भीड़ को नजरअंदाज करते हुए कहा, “हां, माता के दरबार आया था। लेकिन यह क्या हाल बना लिया है तुमने? यहां फूल बेच रही हो?”

खुशबू ने नजरें झुका लीं। हाथ कांप रहे थे, मगर आवाज में कड़वाहट थी, “और क्या करूं? तलाक के बाद मां और छोटे भाई-बहनों का पेट पालना है। किसी ने साथ नहीं दिया। मजबूरी में यही काम करना पड़ा।” सोनू के दोस्त हैरानी से दोनों को देख रहे थे। उनमें से एक ने धीरे से पूछा, “सच में यह तेरी पत्नी है?” सोनू ने आंसू भरी आंखों से सिर हिलाया, “हां, यही है। मेरी पत्नी… नहीं, अब तो तलाकशुदा है।” उसकी आवाज टूट गई।

खुशबू ने गहरी सांस ली और कहा, “अब यह बातें छोड़ो सोनू। भीड़ बढ़ रही है। लोग फूल लेने आए हैं। मुझे अपना काम करने दो। मेरे पास तुम्हारे लिए वक्त नहीं है।” उसका यह कहना जैसे सोनू के दिल पर हथौड़े की चोट था। चार साल पहले वही महिला उसके सपनों का संसार थी और आज वही पराई सी लग रही थी। सोनू ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन खुशबू ने झटके से हाथ खींच लिया, “कृपया भीड़ के बीच तमाशा मत बनाओ। लोग देख रहे हैं।”

लोग वाकई रुक-रुक कर देख रहे थे। कुछ तो आपस में कानाफूसी भी करने लगे थे। सोनू के दोस्त समझ गए कि यह मामला गंभीर है। उन्होंने सोनू को किनारे खींचकर कहा, “भाई, तू थोड़ा संभल जा। यह जगह ठीक नहीं है। अगर बात करनी है तो भीड़ से दूर चल।” सोनू ने सिर झुकाया और धीरे से कहा, “खुशबू, मुझे तुमसे बात करनी ही होगी। चार साल का बोझ है मेरे दिल पर। क्या तुम थोड़ा वक्त दे सकती हो?” खुशबू चुप रही। उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े, मगर उसने तुरंत पल्लू से पोंछ लिए। फिर बोली, “ठीक है, लेकिन यहां नहीं। पास की चाय की दुकान पर चलो। वहां थोड़ी देर बैठ सकते हैं।”

दोनों के कदम भारी थे, लेकिन दिल के अंदर भूचाल था। भीड़, भजन, शोर सब पीछे छूट गया और दोनों चुपचाप पास की दुकान की ओर बढ़ गए। सोनू के दोस्त भी पीछे-पीछे थे। चाय की दुकान पर बैठते ही सोनू ने उसकी आंखों में देखा और कहा, “खुशबू, मुझे बताओ। तलाक के बाद तुम पर क्या बीती? कि उस हालत में पहुंच गई?” खुशबू ने एक गहरी सांस भरी और नम आंखों से उसने धीमे स्वर में कहा, “तुम्हें सच जानना है तो सुनो सोनू। जिस दिन हमारा रिश्ता टूटा था, उसी दिन से मेरी जिंदगी एक नरक बन गई थी।”

फिर उसने अपने बीते चार सालों का दर्द सुनाना शुरू किया। चाय की दुकान पर बैठे लोग भी उन्हें देखने लगे थे। सोनू के दोस्त चुपचाप खामोश थे, मानो सब कुछ सुनने को तैयार हों। खुशबू ने कांपती आवाज में कहा, “सोनू, तुम्हें शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि तलाक के बाद मेरे साथ क्या हुआ। जिस दिन कोर्ट से कागज निकले, उस दिन मुझे लगा था कि अब शायद थोड़ी राहत मिलेगी। लेकिन असल में तो मेरी मुसीबतें तब शुरू हुईं। तलाक के बाद मैं मायके लौट आई थी। पापा पहले ही बीमार थे। इलाज का खर्चा, घर का खर्चा, छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई – सब कुछ मेरे कंधों पर आ गया। मां अकेली थी और हर दिन उनकी आंखों में मेरी टूटी हुई शादी का दर्द साफ झलकता था। पड़ोस की औरतें ताने मारतीं – शादी टिकाई नहीं। अब घर कैसे संभालेगी? और रिश्तेदार तो जैसे दुश्मन हो गए थे। कोई मदद करने आगे नहीं आया।”

कुछ महीने किसी तरह गुजरे, लेकिन फिर पापा का देहांत हो गया। अब घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। छोटे भाई की पढ़ाई रुक सकती थी। बहनों की शादी का सवाल खड़ा था। ऐसे में मैंने सोचा कि चाहे जैसे भी हो, मेहनत करूंगी। शुरू में लोगों के घर बर्तन मांजे, कपड़े धोए। लेकिन उससे घर का खर्च नहीं चलता था। फिर एक दिन एक पुजारी मिले। उन्होंने कहा कि अगर मैं फूल बेचने का काम करूं तो रोज का कुछ कमा सकती हूं। पहले तो हिम्मत नहीं हुई, लेकिन भूख और जिम्मेदारी इंसान को सब कुछ सिखा देती है। धीरे-धीरे मैंने फूल खरीदकर बेचना शुरू किया। रोज सुबह 40-45 किलोमीटर का सफर तय करके यहां आती हूं और देर शाम लौटती हूं। कभी-कभी तो बस में इतनी भीड़ होती है कि खड़े-खड़े जाना पड़ता है। लेकिन मुझे आदत हो गई है। लोग मुझे फूल वाली समझते हैं। कोई मेरी सच्चाई नहीं जानता। शायद अच्छा ही है। तलाकशुदा औरत पर वैसे ही लोगों की नजरें सही नहीं होतीं। इसलिए मैं अपने चेहरे पर मुस्कान रखती हूं। लेकिन अंदर से मैं हर रोज टूटती हूं।”

सोनू अब तक चुप था, लेकिन उसके दिल में तूफान उठ रहा था। वह सोच भी नहीं पा रहा था कि जिस औरत को उसने कभी अपना सब कुछ माना था, वही आज किस हालत में पहुंच गई है। उसने धीमे स्वर में कहा, “खुशबू, तुमने यह सब अकेले कैसे सहा? मैं तो सोच भी नहीं सकता।” खुशबू ने उसकी बात काट दी, “तुम सोच भी नहीं सकते सोनू, क्योंकि तुमने कभी कोशिश ही नहीं की। जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया। तुम्हारे परिवार ने मुझे अपनाने से इंकार कर दिया। और तुम, तुमने उनके दबाव में आकर मेरा साथ छोड़ दिया। अगर उस दिन तुम मेरा हाथ थाम लेते तो शायद मेरी जिंदगी आज अलग होती।”

सोनू की आंखों से आंसू ढलक पड़े। उसने कांपते हाथों से अपना चेहरा ढक लिया, “हां खुशबू, मैं मानता हूं कि मैंने बहुत बड़ी गलती की। मैंने मां-बाप की बातों में आकर तुम्हारा साथ छोड़ा। लेकिन आज जब तुम्हें इस हाल में देख रहा हूं तो दिल खुद को कभी माफ नहीं करेगा।” खुशबू ने खामोशी से उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में नफरत नहीं, बल्कि दर्द छुपा था। “अब पछताने से क्या होगा सोनू? वक्त बीत चुका है। मैंने खुद को अपनी जिम्मेदारियों के हवाले कर दिया है। अब मेरे लिए तुम बस एक अतीत हो।”

यह सुनकर सोनू का दिल और भी टूट गया। वो समझ गया कि गलती उसकी थी और उस गलती की कीमत खुशबू ने अपनी जिंदगी से चुकाई थी। चाय की दुकान पर सन्नाटा छा गया। सोनू के दोस्त भी भावुक हो गए। किसी के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे। सोनू का दिल मानो किसी ने निचोड़ दिया हो। उसने अपनी आंखें पोंछी और भारी आवाज में बोला, “खुशबू, मैं जानता हूं कि आज तुम्हारे सामने सिर झुकाने का कोई हक नहीं है। लेकिन सच्चाई यही है कि मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की थी। उस गलती ने तुम्हारी पूरी दुनिया उजाड़ दी। अगर मैं उस वक्त मजबूती से तुम्हारा साथ देता तो तुम आज इस हाल में नहीं होती।”

खुशबू ने चाय का प्याला हाथ में थाम रखा था, मगर उसकी नजरें दूर कहीं खो गई थीं। उसने धीमी आवाज में कहा, “सोनू, मैं अब तुम्हें दोष नहीं देती। जिंदगी ने मुझे इतना कुछ दिखा दिया कि अब शिकायत की ताकत भी नहीं बची। हां, दर्द जरूर है लेकिन वह दर्द मैं रोज अपने भीतर दबा लेती हूं। मुझे अब किसी सहारे की उम्मीद नहीं है। मैंने सीख लिया है कि औरत अगर अकेली रह जाए तो उसे अपने लिए खुद लड़ना पड़ता है।”

सोनू का दिल और भी टूट गया। वो उसके सामने हाथ जोड़कर बोला, “लेकिन खुशबू, मैं तुम्हें इस हाल में और नहीं देख सकता। चाहे हमारा रिश्ता टूट चुका है, लेकिन दिल से तुम आज भी मेरी पत्नी हो। मैं तुम्हारी हर मुश्किल आसान करना चाहता हूं। तुम्हारे भाई-बहनों की जिम्मेदारी, तुम्हारी मां की चिंता – सब कुछ मैं संभाल लूंगा।” खुशबू की आंखें नम हो गईं। उसने तड़प कर कहा, “क्यों? अब क्यों? जब मुझे तुम्हारी जरूरत थी तब तुम नहीं आए। और अब जब मैं सब झेल चुकी हूं तब मदद करने चले आए हो। सोनू, मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती। मैंने अपनी लड़ाई खुद लड़ने की ठान ली है।”

उसके दोस्त भी भावुक होकर बोले, “भाभी, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। अगर कोई कसूरवार है तो वह हालात और मजबूरी है। लेकिन अब हालात को सुधारा जा सकता है। आप अकेली क्यों सब उठाएंगी? हम सब आपके साथ हैं।” खुशबू ने आंसुओं से भरी आंखों से उनकी ओर देखा। उसके चेहरे पर थकान भी थी और हिम्मत भी। उसने हल्की मुस्कान दी, “आप लोगों की बातें दिल को सुकून देती हैं। लेकिन सच यही है कि मैं अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकती। जब तक भाई पढ़ लिख न जाए, जब तक बहनों की शादी न हो जाए, तब तक मैं किसी के सहारे के बारे में सोच भी नहीं सकती।”

सोनू ने दृढ़ आवाज में कहा, “तो ठीक है। मैं तुम्हें सहारा नहीं दूंगा, लेकिन तुम्हारा साथी बनूंगा। तुम्हारे भाई को नौकरी दिलवाऊंगा। बहनों की पढ़ाई और शादी का इंतजाम करूंगा। तुम सिर्फ इतना वादा करो कि खुद को और अपनी जिंदगी को यूं मत जलाओगी। मुझे मौका दो अपनी गलती सुधारने का।” खुशबू का दिल कांप उठा। चार साल से उसने सिर्फ ठोकरें खाई थीं। आज अचानक वही इंसान उसके सामने खड़ा था जो कभी उसका सबसे बड़ा गुनहगार था। और वही अब सबसे बड़ा सहारा बनने की बात कर रहा था।

भीड़भाड़ के बीच यह दृश्य किसी फिल्म जैसा था। चाय वाला तक भावुक होकर बोला, “बेटा, अगर इंसान सच में पछता कर सुधारना चाहे तो भगवान भी मदद करता है। बेटी, शायद यही वक्त है जब तुम्हारी जिंदगी में नया मोड़ आएगा।” खुशबू चुप रही। उसके हंठ कांप रहे थे। आंखों से आंसू ढलक रहे थे। उसने सिर झुका कर धीरे से कहा, “अगर तुम सच में मेरी जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो तो पहले मेरे घर चलो। मेरी मां से मिलो। अगर वह मान गई तो शायद मैं भी मान जाऊं।” सोनू ने बिना देर किए हामी भर दी, “हां खुशबू, मैं अभी तुम्हारे घर चलने को तैयार हूं। आज ही सब साफ कर दूंगा। तुम्हें फिर कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

अगली सुबह सोनू और उसका एक दोस्त खुशबू के साथ कटरा से उसके गांव की ओर निकल पड़े। रास्ता लंबा था। गाड़ी संकरी गलियों से गुजर रही थी। लेकिन सोनू का दिल उससे भी ज्यादा बेचैन था। वह बार-बार सोच रहा था – क्या खुशबू की मां मुझे स्वीकार करेंगी? क्या वो मुझे माफ कर पाएंगी? गांव के बाहर पहुंचते ही खुशबू ने इशारा किया, “यहीं उतर जाओ। यही मेरा घर है।” एक पुराना सा मकान, टूटी दीवारें, आंगन में सूखते कपड़े और दरवाजे के पास बैठी एक दुबली पतली महिला – यही खुशबू की मां थी।

उनके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। उन्होंने बेटी को देखा तो आंखों में चमक आई। लेकिन तुरंत ही सोनू को देखकर उनका चेहरा सख्त हो गया, “खुशबू, यह कौन है? ये वही है ना जिसने तुझे तलाक दिया था?” सोनू ने आगे बढ़कर मां के पैरों में गिरते हुए कहा, “मांजी, हां वही हूं। वही जिसने आपकी बेटी की जिंदगी उजाड़ दी। वही जिसने मां-बाप के दबाव में आकर उसका साथ छोड़ दिया। लेकिन आज आपके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हूं। मुझे माफ कर दीजिए। मैं अब खुशबू को कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

मां की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कांपते हुए कहा, “बेटा, तू जानता है इन चार सालों में मेरी बेटी ने कितना सहा है – भूख, ताने, गरीबी। हर रोज उसे टूटते हुए देखा है। तू नहीं था उसके पास, लेकिन उसने हम सबको संभाला। एक मां के लिए सबसे बड़ा दर्द यही है कि उसकी बेटी का घर टूट जाए।” सोनू ने रोते हुए कहा, “हां मां, मैं जानता हूं और यही दर्द मुझे हर पल काटता रहा। लेकिन अब मैं अपनी गलती सुधारना चाहता हूं। आपके छोटे बच्चों की पढ़ाई, बेटियों की शादी – सब कुछ मैं संभालूंगा। बस आप मुझे एक मौका दे दीजिए।”

खुशबू की मां चुपचाप उसे देखती रही। फिर उनकी नजर अपनी बेटी पर गई। खुशबू की आंखों में आंसू थे, लेकिन उनमें गुस्सा नहीं। एक गहरी थकान और राहत की झलक थी। मां ने धीमे स्वर में कहा, “शायद भगवान ने चाहा है कि सोनू फिर से हमारे सामने आए। मैं उसे अब भी दोष देती हूं। लेकिन सच्चाई यह भी है कि उसने अब हमारे लिए हाथ बढ़ाया है। शायद हमें इसे मौका देना चाहिए।” मां का दिल पिघल गया। उन्होंने दोनों के सिर पर हाथ रख दिया, “ठीक है बेटा। अगर तू सच्चे मन से आया है तो मैं तुझे माफ करती हूं। लेकिन याद रखना, अगर फिर कभी मेरी बेटी को तकलीफ दी तो इस मां की दुआएं तेरे साथ नहीं होंगी।”

उस दिन से सोनू ने खुशबू के परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। छोटे भाई को नौकरी दिलवाई, बहनों की पढ़ाई और शादी का इंतजाम किया और धीरे-धीरे खुशबू की जिंदगी फिर से मुस्कुराने लगी। कहते हैं कि इंसान गलती कर सकता है, लेकिन अगर सच्चे दिल से पछताए और सुधारने की ठान ले तो किस्मत भी नए रास्ते खोल देती है। आज सोनू और खुशबू फिर से साथ हैं। हां, उनके बीच तलाक का दाग हमेशा रहेगा, लेकिन उस दाग से भी बड़ी है इंसानियत और पछतावे की ताकत।

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि रिश्तों में दूरियां कितनी भी क्यों ना जाएं, अगर दिल साफ हो और इरादे सच्चे हों तो टूटा हुआ रिश्ता भी फिर से जुड़ सकता है।