साड़ी में इंटरव्यू देने वाली राधिका को ठुकराया गया, लेकिन आठ दिन बाद उसने कंपनी को अपने नाम किया: एक प्रेरणादायक कहानी!

पहला दिन

उस दिन राधिका को सबने देखा लेकिन किसी ने उसकी काबिलियत नहीं देखी। रिसेप्शन से लेकर इंटरव्यू रूम तक हर किसी ने हंसी उड़ाई, ताने मारे और उसे सिर्फ उसकी साड़ी और भाषा से जज किया। “तुम जैसी लड़की कॉर्पोरेट में नहीं टिक सकती,” यह कहकर उसे बाहर निकाल दिया गया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिसे उन्होंने तिरस्कृत किया, वह सिर्फ एक कैंडिडेट नहीं, बल्कि एक तूफान थी।

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वापसी की तैयारी

और फिर ठीक 7 दिन बाद वही दरवाजा दोबारा खुला। सवाल यह है कि 8 दिन बाद वह फिर क्यों लौटी? क्या सिर्फ बदला लेने, कंपनी को खरीदने या कुछ ऐसा जो किसी ने सोचा भी नहीं था? कहानी की पूरी सच्चाई जानने के लिए इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़ें।

राधिका का आत्मविश्वास

एक छोटे से शहर की राधिका नीली साड़ी में सजी दिल्ली की एक बड़ी कॉरपोरेट इमारत के सामने खड़ी थी। हाथ में फाइल थी, सपनों से भरी। उसने गहरी सांस ली, पल्लू संभाला और इंटरव्यू के लिए भीतर कदम रखा। ठंडी हवा ने चेहरे को छुआ। उसका आत्मविश्वास हल्का सा कांपा, पर उसने खुद को संभाला।

अपमान का सामना

रिसेप्शन पर दो लड़कियां बैठी थीं। राधिका के साड़ी में लिपटे पैरों को देखकर एक ने दूसरी को कोहनी मारी। “लगता है, किसी क्लाइंट की मम्मी आ गई।” दूसरी ने हंसी दबाते हुए कहा, “या फिर टिफिन डिलीवरी।” राधिका ने कुछ नहीं कहा। वह जानती थी कि उसकी चुप्पी कई बार शब्दों से ज्यादा बोलती है।

इंटरव्यू की प्रक्रिया

इंटरव्यू रूम में राधिका ने अपनी फाइल आगे बढ़ाई, जिसमें एक प्रोजेक्ट प्लान था। लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुन रहा था। “आपको इसकी जानकारी है?” एक पुरुष अधिकारी ने तंज भरे लहजे में पूछा। “जी, मैंने पहले भी ऐसे प्रोजेक्ट संभाले हैं,” राधिका ने शांत स्वर में जवाब दिया। लेकिन हंसी की लहर कमरे में फैल गई।

अपमान का परिणाम

राधिका ने टूटा हुआ रिज्यूमे का एक टुकड़ा उठाया, जैसे सम्मान का आखिरी टुकड़ा। उसने सिर झुकाया और पल्लू संभालते हुए दरवाजे की ओर बढ़ गई। बाहर निकलते ही एचआर हेड ने कहा, “आप जैसे कैंडिडेट्स की वजह से सीरियस लोगों का समय बर्बाद होता है।” राधिका खड़ी रही, लेकिन अब उसके अंदर कुछ बदल रहा था।

नई शुरुआत

7 दिन बाद, वही कांच की इमारत, वही सिक्योरिटी गार्ड, वही बड़ी-बड़ी गाड़ियां। लेकिन उस सुबह हवा में बेचैनी थी। एचआर विभाग को एक मेल मिला। “आज 11:00 बजे बोर्ड मीटिंग है। सभी विभागों की उपस्थिति अनिवार्य।”

राधिका का आगमन

नीली बनारसी साड़ी में राधिका अंदर दाखिल हुई। उसके साथ एक बुजुर्ग पुरुष, श्री विश्वनाथ शर्मा। “कृपया स्वागत करें, श्री विश्वनाथ शर्मा कंपनी के नए प्रमुख निवेशक और उनकी बेटी राधिका शर्मा।” ऑडिटोरियम में सन्नाटा छा गया।

बदलाव की घोषणा

राधिका ने माइक थामा। “मैं जानती हूं आप सब व्यस्त हैं। पर उस दिन आपने मेरे कपड़े देखे। आपने सोचा मैं कम इंग्लिश बोलती हूं तो कम समझदार हूं। पर आपने नहीं सोचा कि शायद मैं आपको परखने आई थी।”

इंसाफ की मांग

“मैं बदला लेने नहीं, बदलाव लाने आई हूं ताकि कोई और लड़की सिर झुका कर बाहर ना जाए।” विश्वनाथ शर्मा ने कहा, “आपने मेरी बेटी का नहीं, सिस्टम का अपमान किया। अब नया नियम होगा। भर्ती डिग्री या फ्लुएंसी पर नहीं, इंसानियत और योग्यता पर होगी।”

निष्कर्ष

राधिका ने कहा, “मैं इस कंपनी की 91% हिस्सेदारी अपनी मेहनत से खरीदी गई है। मैं सिर्फ किसी की बेटी नहीं, मैं खुद की निर्माता हूं।” उसने कहा, “आज से इस कंपनी में नई भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। हम ऐसे लोगों को चुनेंगे जो ईमानदार हों, टैलेंटेड हों और इंसान की भावनाओं को समझें।”

अंतिम संदेश

“यह सिर्फ मेरी कहानी नहीं है। यह हर उस इंसान की कहानी है जिसे कभी नजरअंदाज किया गया। आज मैंने सिर्फ एक कंपनी नहीं बदली, मैंने एक सोच बदली है।”

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