रास्ते में खाना लेने उतरी थी अकेली लड़की , ट्रैन निकल गयी , अनजान स्टेशन पर मिला एक लड़का उसने जो किया

कहानी: छूटा स्टेशन – अर्जुन और अंजलि की अद्भुत दोस्ती

प्रस्तावना: क्या होता है जब किस्मत किसी आरामदायक, सुरक्षित दुनिया से उठाकर बिल्कुल अनजान, अकेले, बेबस छोड़ देती है? क्या ऐसा संभव है कि एक अनजान भलाई आपकी पूरी दुनिया बदल दे? और क्या नेकी सचमुच लौटकर आती है, वो भी कई गुणा ज्यादा? यह कहानी है अंजलि की – एक अमीर, साधारण, जमीनी लड़की, और अर्जुन की – एक गरीब, स्वाभिमानी, दिलदार लड़के की। यह कहानी है एक छूटे स्टेशन, एक भूले सफर, एक अनजान दोस्ती और अद्भुत इंसानियत की।

दिल्ली से लखनऊ – सफर की शुरुआत दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी के शानदार बंगले में रहने वाली 22-वर्षीय अंजलि, अमीर उद्योगपति रमेश खन्ना की एकलौती बेटी। छुट्टियों में अंजलि अपने पुश्तैनी घर लखनऊ दादी से मिलने जा रही थी। माता-पिता व्यस्तता में विदेश चले गए, तो उसने अकेले ट्रेन से सफर करने की ठान ली।

ट्रेन में बैठी अंजलि को भूख लगी, उसने सोचा – किसी बड़े स्टेशन पर उतरकर कुछ अच्छा-सा लेकर आऊंगी। वही ट्रेन, वही सफर उसकी किस्मत को मोड़ने वाला था…

रामगढ़ स्टेशन – एक पल में बदली दुनिया दिल्ली-लखनऊ के बीच आता है रामगढ़, छोटा-सा भुला दिया गया स्टेशन, चंद बेंचें, एक पुराना ऑफिस और अर्जुन की चाय की गुमटी। अर्जुन – 20 वर्षीय, संघर्षरत लड़का, पिता असमय गुजर गए, बीमार माँ और स्कूल जाती छोटी बहन राधा जिम्मेदारी। अपने सपनों, पढ़ाई को कुर्बान कर माँ-बहन का पालक। दिनभर चाय बेचकर दो वक्त का चूल्हा जलाता, लाख मुश्किलें झेल कर भी कभी हार नहीं मानता।

अंजलि की ट्रेन कुछ देर के लिए वहीं ‘टेक्निकल’ समस्या की वजह से रुकी। भूख लगी थी, ट्रेन से उतरी और अर्जुन से समोसा-पानी खरीदने गई। पैसे निकाल ही रही थी कि ट्रेन का हॉर्न बजा, वह घबरा गई – ट्रेन चल पड़ी। पैसे काउंटर पर फेंकती रही, दौड़ी, लेकिन ट्रेन छूट गई। मोबाइल, बैग, पैसा – सब ट्रेन में। हाथ में बस समोसे, पानी की बोतल और कुछ रुपये!

अर्जुन – अनजान मसीहा और पहली रात अर्जुन ने सब देखा। जल्दी से एक बच्चा दुकान पर बैठाकर अंजलि के पास पहुंचा। स्टेशन मास्टर से मदद मांगी, लेकिन उसे अगली ट्रेन का इंतज़ार करने को कह दिया गया। अंजलि टूटकर प्लेटफॉर्म पर बैठी, अर्जुन ने उसे चाय पिलाई, दिलासा दी। शाम ढली, डर और सन्नाटा बढ़ा, अर्जुन ने प्रस्ताव दिया – “घर चलिए, छोटी सी झोपड़ी है, पर महफूज़ है।”

अंजलि के पास कोई चारा नहीं था, चली गई। अर्जुन की माँ शारदा देवी और बहन राधा ने अपनापन दिया। अंजलि ने पहली बार इतने सादे घर में, बाजरा की रोटी खाई – जो उसे अपनी शाही दुनिया में कभी महसूस नहीं हुआ। सपनों, पढ़ाई, तकलीफों पर ढेर सारी बातें हुईं। रात टिकी, दोस्ती का बीज पक्का हो गया।

लखनऊ का सफर – त्याग और इंसानियत अर्जुन ने अगले दिन तय कर लिया–कोई बहाना नहीं, अब अंजलि को सही-सलामत घर पहुँचाना है। पैसों की तंगी थी, पर माँ की दवाइयों के लिए जो बचा कर रखे थे, वे भी लगा दिए। कई घंटे सफर, ढाबे पर अर्जुन ने सिर्फ चाय पी और खाना अंजलि के लिए मंगवाया। अंजलि समझ गई – ये लड़का सच में फरिश्ता है, उसकी मदद पैसे या फायदे के लिए नहीं, इंसानी फर्ज़ और दोस्ती के लिए है।

शाम होते लखनऊ पहुंचे। अंजलि का विशाल बंगला देखकर अर्जुन अवाक रह गया। नौकर-चाकर, दादी, परिवार दौड़े आए – दो दिन से कोहराम था। पूरी बात जान सबकी आँखें भर आईं। अंजलि की दादी ने अर्जुन को गले लगाया, “बेटा, तू आज नहीं होता तो जाने हमारी बच्ची का क्या होता।”

नेकी की अद्भुत इनाम रात में ही रमेश खन्ना और उनकी पत्नी विदेश से लौट आए। बेटी सलामत, सबको सुकून। वाकया सुन, अर्जुन को इनाम देने की सोची, चेकबुक निकाली – अर्जुन ने इनकार कर दिया। “साहब, ये उपकार नहीं था, फर्ज़ था।”

रमेश खन्ना का दिल बदल गया। उन्होंने पूरा परिवार बुलाकर ऐलान किया –

“बेटा, अब से तुम्हारी पढ़ाई, बहन राधा की पढ़ाई, माँ का इलाज – सारी जिम्मेदारी मेरी। तुम्हें दिल्ली के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलेगा। राधा सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ेगी, माँ लखनऊ के सबसे बड़े अस्पताल में इलाज पाएंगी। और रामगढ़ स्टेशन पर तुम्हारे नाम से जनरल स्टोर और रेस्टोरेंट खुलेगा, जिससे गांववालों को रोजगार मिल सकेगा।”

अर्जुन भावुक होकर रमेश जी के पैरों पर गिर पड़ा–“आपने तो दुनिया ही बदल दी।”

पाँच साल बाद – जीवन का पुनर्निर्माण 5 साल बीत गए। अर्जुन बड़ा अफसर बन चुका था। गाँव पूरी तरह बदल गया। रामगढ़ स्टेशन का “अर्जुन भोजनालय” पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गया। उसके दम पर गाँव में बच्चे पढ़ने लगे, गरीब परिवारों में रोशनी आई। राधा टीचर बनी, माँ स्वस्थ हुई।

अंजलि अब बड़ी बिज़नेसवुमन है, फिर भी अर्जुन और उसके परिवार से रचना दोस्ती और सेवा के रिश्ते में बंधी रही। न कोई दिखावा, न कोई ऊँच-नीच, बस निस्वार्थ दोस्ती और जीवनभर की कृतज्ञता।

सीख एक छोटी-सी, बिना उम्मीद से की गई भलाई पूरी ज़िंदगी बदल सकती है। जब आप नेकी और इंसानियत के लिए हाथ बढ़ाते हैं, वह किसी न किसी रूप में लौटकर आपके जीवन को और भी खूबसूरत बना देती है।

अगर अर्जुन-अंजलि की यह कहानी दिल को छू गई, तो इसे ज्यादा से ज्यादा साझा करें और याद रखें – जिंदगी की कोई छूटी ट्रेन कभी-कभी आपको सही मंज़िल तक पहुँचा देती है।