Dharmendra की अस्थियां लेकर Haridwar पहुंचे Sunny-Bobby, टाइट Security के बीच नम आँखों से दी विदाई

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धर्मेंद्र की अस्थियां लेकर हरिद्वार पहुंचे सनी-बॉबी, टाइट सिक्योरिटी के बीच नम आँखों से दी विदाई

बॉलीवुड का चमकता हुआ सितारा अब गुमनाम है। ही-मैन धर्मेंद्र, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को अपनी अदाकारी, संवाद अदायगी और व्यक्तित्व से चार दशकों तक रोशन किया, अब हमारे बीच नहीं हैं। 24 नवंबर 2025 को धर्मेंद्र ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके जाने के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। धर्मेंद्र के निधन के नौ दिन बाद उनकी अस्थियों का विसर्जन उत्तराखंड के पवित्र शहर हरिद्वार में किया गया। इस मौके पर उनके बेटे सनी देओल और बॉबी देओल, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ, गहरे दुख और भावनाओं के साथ हरिद्वार पहुंचे।

धर्मेंद्र का आखिरी सफर – निजी माहौल में विदाई

धर्मेंद्र के अंतिम संस्कार से लेकर अस्थि विसर्जन तक, देओल परिवार ने हर रस्म को बेहद निजी रखा। परिवार ने मीडिया और आम जनता से दूरी बनाए रखी ताकि वे अपने दुख को शांति और सम्मान के साथ साझा कर सकें। धर्मेंद्र के अंतिम संस्कार के समय भी फैंस या आम जनता को श्रद्धांजलि देने का मौका नहीं मिला। उनके बेटे सनी देओल ने पिता का दाह संस्कार मुंबई के पवनहंस श्मशान घाट पर किया था।

अब अस्थि विसर्जन के लिए सनी और बॉबी देओल अपने परिवार के साथ हरिद्वार पहुंचे हैं। उन्होंने एक होटल में ठहरना चुना, जिससे परिवार को पूरी गोपनीयता और सुरक्षा मिल सके। हरिद्वार वही जगह है, जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है—ऐसा ग्रंथों में कहा गया है। धर्मेंद्र के लिए यह अंतिम विदाई बेहद खास थी।

अस्थि विसर्जन की रस्म – भावनाओं का सैलाब

धर्मेंद्र के परिवार ने अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार के वीआईपी घाट को चुना। पहले यह रस्म 2 दिसंबर को होनी थी, लेकिन किसी कारणवश इसे 3 दिसंबर के लिए टाल दिया गया। इस मौके पर परिवार के सभी सदस्य बेहद भावुक थे। सनी और बॉबी देओल ने नम आंखों से अपने पिता को अंतिम विदाई दी। परिवार के अन्य सदस्य भी इस मौके पर मौजूद थे। अस्थियों का विसर्जन मंत्रोच्चारण और विधि-विधान के साथ किया गया।

धर्मेंद्र के बेटे सनी और बॉबी ने अपने पिता की अस्थियों को गंगा की निर्मल धारा में प्रवाहित किया। परिवार के सदस्य एक-दूसरे के गले लगकर रोते रहे। इस मौके पर हरिद्वार के घाट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे। होटल और प्रशासन की ओर से मीडिया को दूर रखा गया ताकि परिवार को पूरी गोपनीयता मिल सके।

धर्मेंद्र – जीवन के आखिरी दिनों का संघर्ष

धर्मेंद्र के जीवन के आखिरी दिन काफी दर्दनाक और कष्टदायक रहे। उनकी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी ने कहा था कि धर्मेंद्र कभी नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें कमजोर या बीमार हालत में देखें। वह हमेशा चाहते थे कि उन्हें गरिमा और गर्मजोशी के साथ विदाई दी जाए। यही वजह रही कि परिवार ने उनके अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन को बेहद निजी रखा।

धर्मेंद्र की तबीयत पिछले कुछ समय से खराब चल रही थी। सांस लेने में दिक्कत के बाद उन्हें मुंबई के कैंडी ब्रिज हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। कुछ दिन बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया और घर पर ही उनका इलाज चलता रहा। लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं पाए। उनके निधन के बाद परिवार ने हर रस्म को पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ निभाया।

हरिद्वार – मोक्ष की नगरी में अंतिम विदाई

हरिद्वार को हिंदू धर्म में मोक्ष की नगरी कहा जाता है। यहां गंगा के किनारे अस्थि विसर्जन करने से आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है—ऐसा विश्वास है। धर्मेंद्र के परिवार ने इसी विश्वास के साथ उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया। गंगा की निर्मल धारा में धर्मेंद्र की राख बहा दी गई। इस मौके पर परिवार के सभी सदस्य भावुक थे और उन्होंने गंगा में डुबकी लगाकर धर्मेंद्र के लिए प्रार्थना की।

अस्थियों के साथ भावनाओं का प्रवाह

धर्मेंद्र की अस्थियों का विसर्जन सिर्फ एक रस्म नहीं था, बल्कि परिवार के लिए भावनाओं का प्रवाह था। सनी और बॉबी देओल ने अपने पिता को नम आंखों से विदाई दी। परिवार के अन्य सदस्य भी इस मौके पर गहरे दुख में थे। गंगा के किनारे सभी ने अपने आंसू बहाए और धर्मेंद्र की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

परिवार की एकजुटता और संस्कारों की मिसाल

धर्मेंद्र के अस्थि विसर्जन की रस्म ने एक बार फिर साबित किया कि देओल परिवार अपने संस्कारों और परंपराओं को कितनी गंभीरता से निभाता है। जहां बॉलीवुड में कई परिवारों में ऐसे मौके पर विवाद या दिखावा देखने को मिलता है, वहीं देओल परिवार ने पूरी प्रक्रिया को बेहद निजी, शांत और भावनात्मक रखा। सनी और बॉबी ने जिस तरह अपने पिता का फर्ज़ निभाया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल है।

धर्मेंद्र – पर्दे पर ही-मैन, परिवार में आदर्श

धर्मेंद्र का जीवन संघर्ष, मेहनत और सफलता की मिसाल रहा। उन्होंने अपने बच्चों और पोते-पोतियों को हमेशा संस्कार और पारिवारिक मूल्यों का महत्व समझाया। यही वजह है कि धर्मेंद्र के अंतिम संस्कार से लेकर अस्थि विसर्जन तक, परिवार ने हर रस्म को पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ निभाया। धर्मेंद्र की विदाई ने एक बार फिर साबित किया कि असली ही-मैन सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि अपने परिवार के संस्कारों में भी अमर रहता है।

निष्कर्ष

धर्मेंद्र के अस्थि विसर्जन की रस्म में बेटे सनी और बॉबी ने नम आंखों से अपने पिता को अंतिम विदाई दी। परिवार के सिर्फ छह सदस्य हरिद्वार पहुंचे, और पूरी प्रक्रिया निजी माहौल में पूरी हुई। धर्मेंद्र की अस्थियां मां गंगा की निर्मल धारा में प्रवाहित कर दी गईं। इस मौके पर परिवार की भावनाएं, एकजुटता और संस्कारों की झलक साफ नजर आई। धर्मेंद्र की विदाई ने एक बार फिर साबित किया कि असली ही-मैन सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि अपने परिवार के संस्कारों में भी अमर रहता है।

समाप्त

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