DSP महिला ने महाकुंभ में देखा भिखारी—पास जाने पर जो दिखा, पैरों तले खिसक गई ज़मीन!
सानवी की संगम नगर से खेतपुर तक की जंग
प्रस्तावना
संगम नगर के महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा रहे थे। मंत्रों की गूंज, ठंडी हवाएं और पवित्रता का वातावरण हर किसी के मन को सुकून दे रहा था। इसी भीड़ में डीएसपी सानवी अपनी वर्दी में गर्व से टहल रही थी। उसकी नजरें हर कोने पर थी, ताकि कोई गड़बड़ न हो जाए। तभी उसकी नजर एक फटे कपड़ों वाले, गंदे चेहरे वाले भिखारी पर पड़ी—हाथ में कटोरा, आंखों में बेबसी। पहले तो सानवी ने उसे नजरअंदाज किया, लेकिन जब उसकी नजर उसके हाथ पर पड़े नाम पर गई—राघव। उसके पैर जम गए। वही राघव, जिसके साथ उसकी 12 साल की उम्र में शादी हुई थी। वही राघव जिसने उसके सपनों को कुचलने की कोशिश की थी। आज वह इस हाल में क्यों था?
अतीत का सफर: खेतपुर से दिल्ली
खेतपुर के छोटे से गांव में सानवी का बचपन बीता था। एक गरीब किसान की बेटी, जिसके सपने उसकी छोटी सी दुनिया से कहीं बड़े थे। मगर 12 साल की उम्र में ही उसकी शादी राघव से कर दी गई। गाँव में बाल विवाह आम था। सानवी की शादी राघव से हुई, जो उस वक्त सरकारी स्कूल में चपरासी था। शादी के बाद वह मायके में ही रही, रिवाज था कि 18 की उम्र में ससुराल जाना होगा।
सानवी पढ़ाई में तेज थी। स्कूल की हर परीक्षा में सबसे ज्यादा नंबर लाती थी। उसके गणित के शिक्षक शर्मा सर कहते, “सानवी तू बड़ी होकर कुछ बड़ा करेगी।” मगर गांव की सोच लड़कियों को छठी-सातवीं तक पढ़ाकर घर के काम सिखाने तक सीमित थी। उसके माता-पिता भी यही मानते थे, “लड़की पढ़कर क्या करेगी? उसे तो ससुराल संभालना है।”
सानवी के पिता गरीब किसान थे। राघव उनके पुराने दोस्त का बेटा था। दोनों परिवारों ने सोचा कि यह रिश्ता सही रहेगा। सानवी को बार-बार कहा जाता, “18 साल की हो जाओगी तो ससुराल चली जाओगी। कोई बड़ा सपना मत देखो।” मगर सानवी के मन में सपनों की चिंगारी थी। वह किताबों में डूब जाती थी, अखबार में छपी आईएएस-आईपीएस अफसरों की कहानियां पढ़ती थी।
17 साल की उम्र में उसने राघव से बात की—”राघव, मैं पढ़ना चाहती हूं। एक बड़ी अधिकारी बनना चाहती हूं। क्या तुम मुझे पढ़ने दोगे?” राघव ने मुस्कुरा कर हां कहा। सानवी को लगा कि उसे एक साथी मिल गया, मगर यह वादा खोखला था।
18 साल की उम्र में विदाई हुई। सानवी ससुराल गई। वहां उसने सास-ससुर का ख्याल रखा, घर के काम किए। मगर मन बेचैन था। एक शाम उसने फिर राघव से बात की, “क्या मैं अब पढ़ाई शुरू कर सकती हूं?” राघव का चेहरा सख्त हो गया—”हमारे घर में क्या कमी है? जमीन है, पैसा है, तू आराम से रह। पढ़ाई की जरूरत नहीं।” सानवी का दिल टूट गया। दोनों के बीच तकरार शुरू हो गई। राघव का गुस्सा बढ़ता गया। एक दिन उसने सानवी पर हाथ उठा दिया। सास-ससुर के सामने बेइज्जत किया। सानवी चुपचाप सहती रही, मगर उसके अंदर का जज्बा मर नहीं रहा था।
नई दिल्ली की जंग
एक रात जब सब सो गए, सानवी ने एक नोट लिखा—
“राघव, 12 साल की उम्र में मेरी तुमसे शादी हुई थी। मैंने तुम्हें एक दोस्त देखा था। तुमने मेरा साथ देने का वादा किया मगर तुमने मुझे धोखा दिया। अब मैं इस घर को छोड़कर जा रही हूं। मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। मैं एक दिन डीएसपी बनकर लौटूंगी।”
नोट को मेज पर रखकर वह चुपचाप घर से निकल गई। नई दिल्ली पहुंची। उसके पास ना पैसा था, ना कोई सहारा। बीए का प्राइवेट फॉर्म भरा, पढ़ाई शुरू की। घरों में झाड़ू-पोछा किया, ₹10,000 महीने मिलते। उसी पैसे से कोचिंग में दाखिला लिया। दिन में पढ़ाई, रात में काम। पहले साल यूपीएससी में चयन नहीं हुआ। वह टूट गई। सहेली प्रिया ने हिम्मत दी—”हार मत मान। अगली बार जरूर पास करेगी।” अगले साल उसने दिन-रात एक कर दिया। आखिरकार मेहनत रंग लाई—टॉप रैंक, डीएसपी का पद। सरकारी गाड़ी, आवास, सम्मान—सब कुछ जो उसने सपने में देखा था।
महाकुंभ की मुलाकात
अब वह संगम नगर में थी, महाकुंभ की ड्यूटी पर। भीड़ को संभालते हुए उसकी नजर उस भिखारी पर पड़ी—राघव। सानवी करीब गई। “राघव!”
राघव ने उसकी वर्दी देखी और सिर झुका लिया, “सानवी, तुम सचमुच डीएसपी बन गई।” उसकी आंखों में आंसू थे।
“तुम यहां भीख क्यों मांग रहे हो? हमारे घर का क्या हुआ?”
राघव कुछ कहने ही वाला था कि पुलिसवाले ने चिल्लाया—”मैडम, पीछे हटें। भीड़ में भगदड़!”
सानवी पलटी और उसी पल राघव भीड़ में गायब हो गया।
जांच और संघर्ष
भीड़ को काबू में करने में घंटों लग गए। सूरज ढल चुका था। सानवी थककर दफ्तर में बैठ गई। डायरी निकाली, पुरानी यादों में खो गई। खेतपुर की गलियां, शर्मा सर, और वह रात जब उसने राघव के लिए नोट लिखा था। आज वह डीएसपी थी, मगर राघव की हालत ने उसके सारे गर्व को हिला दिया।
रात को घाट पर फिर हलचल हुई। कुछ लोग एक भिखारी को घेरे थे। सानवी तेजी से आगे बढ़ी। राघव जमीन पर पड़ा था, चेहरे पर खून के धब्बे।
“इसे छूने की हिम्मत मत करना!”
सानवी झुकी, “राघव, मुझे सुनो, उठो!”
राघव की आंखें खुली, “तुम सचमुच आ गई…”
“तुम्हें क्या हुआ?”
“कुछ लोगों से उलझ गया, वे मुझे मारना चाहते थे।”
“कौन थे वो लोग?”
राघव चुप रहा। सानवी ने टीम को आदेश दिया—मेडिकल टेंट में ले जाओ, पूछताछ करो।
मेडिकल टेंट में डॉक्टर ने कहा, “ठीक हो जाएगा, बस खाना और आराम चाहिए।”
सानवी ने राघव से पूछा, “अब सच बताओ।”
राघव ने सिर झुकाया, “तुम्हारे जाने के बाद…मैं टूट गया। मां-बाप एक हादसे में मर गए। नशे में था, घर में आग लग गई। जमीन बेच दी, कर्ज लिया। सब बर्बाद हो गया।”
सानवी का दिल दुख से भर गया। “तो तुम सड़कों पर आ गए?”
राघव ने सिर हिलाया। “भीख मांगना शुरू कर दिया। सोचा महाकुंभ में पाप धुल जाए।”
गैंग का हमला और सच की खोज
तभी एक सिपाही दौड़ता हुआ आया—”मैडम, संगम घाट पर गैंग है, भिखारियों को मार रहे हैं।”
सानवी उठी, राघव ने उसका हाथ पकड़ा, “मुझे मत छोड़ो, वे मुझे मार डालेंगे।”
टेंट के बाहर धमाका हुआ। सानवी बाहर दौड़ी। “सभी यूनिट्स अलर्ट करो।”
घाट पर बम स्क्वाड बुलाया गया। पूछताछ, सीसीटीवी फुटेज की जांच। सानवी परेशान थी—क्या हमला राघव से जुड़ा था?
मेडिकल टेंट से खबर आई—राघव गायब हो गया। सानवी गुस्से में थी, “उसे ढूंढो अभी।”
रात गहरी हो चुकी थी। घाट पर एक तंबू में कुछ लोग फुसफुसा रहे थे, “वो भिखारी ज्यादा जानता है, उसे चुप कराना होगा।”
सानवी ने पिस्तौल निकाली, “हाथ ऊपर करो!”
तीन नकाबपोश थे। दो पकड़े गए, तीसरा भाग गया।
पूछताछ में पता चला—”राघव ने हमारे मालिक से कर्ज लिया था, लौटाया नहीं।”
“मालिक कौन?”
“खेतपुर का साहूकार रामलाल।”
सानवी का दिमाग घूम गया। वही रामलाल जिसके खेतों में उसके पिता काम करते थे। वही जिसने राघव के साथ उसकी शादी तय की थी।
गंगा के पार—राघव की तलाश
फिर एक चिट्ठी मिली—
“सानवी मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें सच बताना चाहता हूं। मगर वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। गंगा के उस पार मिलो।”
सानवी अपनी टीम के साथ नाव में सवार हुई। अंधेरे में नाव आगे बढ़ी। दूर छाया दिखी। “राघव!”
छाया मुड़ी, मगर तभी गोली की आवाज गूंजी। छाया गंगा में गिर गई। पानी में खून की लकीरें तैर रही थी।
“राघव!” सानवी चिल्लाई। मगर जवाब में सिर्फ सन्नाटा था।
खेतपुर की जंग
सानवी ने टीम को आदेश दिया—”हर नाव, हर मछुआरे से पूछो।”
वह खेतपुर गई, रामलाल के हवेलीनुमा घर में घुसी।
“रामलाल, राघव कहां है? तूने उसे मारने का हुक्म क्यों दिया?”
रामलाल ने हंसते हुए कहा, “वो कब का मर चुका होगा। कर्ज लिया था, लौटाया नहीं।”
सानवी ने चिट्ठी दिखाई। “वो कुछ जानता था, जो तुझे बर्बाद कर सकता है।”
रामलाल ने गुंडों को इशारा किया। सानवी पर हमला हुआ। मगर सानवी ने हिम्मत दिखाई, टीम ने धावा बोला। रामलाल भाग गया, मगर सानवी ने उसे जंगल में पकड़ लिया।
“राघव कहां है?”
“राघव जिंदा है, मगर वो मेरे काले धंधों का गवाह था। नशे का कारोबार, जमीन हड़पना।”
सानवी ने उसे हथकड़ी लगाई। रामलाल को जेल भेजा गया। गांव वालों को उनकी जमीन वापस मिली।
राघव की नई शुरुआत
संगम घाट पर मछुआरे ने एक आदमी को बचाया था। सानवी दौड़ी। तंबू में राघव लेटा था, कमजोर।
“सानवी, तू आ गई…”
“राघव, अब तू सुरक्षित है।”
“मुझे माफ कर दो, मैंने सब बर्बाद कर दिया।”
“जो हुआ वो बीत गया। मगर तूने सच क्यों छुपाया?”
“मैं डर गया था। तुम्हारे जाने के बाद नशे में डूब गया। रामलाल ने मुझे कर्ज दिया, जमीन हड़प ली। जब उसके काले कारोबार का पता चला, उसने मुझे मारने की कोशिश की।”
सानवी ने उसका हाथ थामा, “हम साथ मिलकर नई शुरुआत करेंगे। तू ठीक हो जा फिर सब संभाल लेंगे।”
अंत और संदेश
रामलाल की सजा ने गांव को आजादी दी। सानवी ने अपने माता-पिता और राघव के साथ नया घर बनाया। राघव ने नशा छोड़ दिया। दोनों ने मिलकर गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोला। सानवी अब भी डीएसपी थी, मगर उसकी जिंदगी सिर्फ वर्दी तक सीमित नहीं थी। उसने अपने सपनों को उड़ान दी और अपने पति को नई जिंदगी दी।
एक दिन राघव ने कहा—”सानवी, तू मेरी ताकत है।”
सानवी ने हंसकर कहा—”और तू मेरा परिवार।”
सीख
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि मेहनत, हिम्मत और परिवार के साथ हर जंग जीती जा सकती है। सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष जरूरी है, मगर रिश्तों की कीमत भी उतनी ही है।
सानवी ने अपने सपनों के साथ-साथ अपने परिवार को भी जोड़ लिया।
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