“DM मैडम साधारण कपड़ों में सड़क किनारे गन्ने का जूस पी रही थीं, तभी दरोगा ने हाथ पकड़कर थप्पड़ मार दिया!”

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डीएम अनन्या सक्सेना की कहानी

मुंबई की चिलचिलाती धूप में, एक महिला हल्के पीले सलवार कमीज और क्रीम रंग के दुपट्टे में सड़क किनारे खड़ी थी। उसके चेहरे पर थकान के बावजूद हल्की मुस्कान थी। वह गन्ने के ठेले के पास रुकी और बोली, “भाई, एक गिलास जूस देना।” गन्ने वाला मशीन में गन्ना डालने लगा।

तभी सामने से दरोगा किशोर सिंह आता दिखाई दिया। उसकी उम्र 50 के करीब थी, चेहरे पर झुझुलाहट और गर्मी की वजह से चिढ़ स्पष्ट झलक रही थी। उसे सड़क किनारे साधारण कपड़ों में खड़ी महिला संदिग्ध लगी। बिना कुछ पूछे, वह तेज कदमों से उसकी तरफ बढ़ा और झपटते हुए उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। महिला का दुपट्टा थोड़ा खिसक गया और उसके चश्मे की एक कड़ी भी नीचे गिर गई।

पास खड़े कुछ लोग ठिठक गए, लेकिन किसी में हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने की। दरोगा गुर्राया, “कौन है तू यहां? क्या कर रही है? कोई चालबाज लगती है।” महिला ने गहरी सांस ली, अपनी चश्मे की कड़ी उठाई और धीमे से बोली, “नाम जानना जरूरी है क्या?”

दरोगा किशोर सिंह को उसकी आवाज में कोई डर नहीं दिखा, जो उसे और चिढ़ा गया। “बहुत होशियार लग रही है, चल थाने।” दरोगा ने उसके हाथ को जोर से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन अगली ही पल उसकी पकड़ ढीली पड़ गई। महिला ने बड़ी शालीनता से अपना हाथ छुड़ाया और जेब से एक कार्ड निकाला। वह सरकारी पहचान पत्र था। उस पर लिखा था, “डीएम जिलाधिकारी डॉ. अनन्या सक्सेना।”

दरोगा किशोर सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके माथे पर पसीना छलक आया। दिमाग ने जो अभी-अभी किया था, उसका खामियाजा समझ आ गया था। गन्ने वाला और बाकी लोग जो चुप थे, सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। दरोगा ने हकलाते हुए कहा, “माफ, माफ करिए। मैडम साहिबा, मैं पहचान नहीं पाया। गलती हो गई।”

अनन्या सक्सेना ने उसकी आंखों में सीधा देखा। उनकी नजरों में ना डर था, ना गुस्सा, सिर्फ एक गहरी शांति थी। लेकिन वह शांति किसी तूफान से कम नहीं थी। बिना कुछ बोले, उन्होंने अपना जूस लिया और धीरे-धीरे पीने लगीं। दरोगा वहीं बगल में खड़ा पसीना पोंछता रहा। सोचता रहा कि अब उसके करियर का क्या होगा।

तभी अनन्या ने गन्ने वाले को पैसे दिए, मुस्कुराकर धन्यवाद कहा और बिना दरोगा की तरफ देखे सड़क पार करने लगीं। दरोगा दौड़कर उनके पीछे गया। “मैडम जी, एक मिनट।” अनन्या रुक गईं। बिना मुड़े बोलीं, “हां?”

दरोगा ने कांपती आवाज में कहा, “मैडम जी, मेरी गलती को माफ कर दीजिए। मेरा परिवार है। नौकरी चली गई तो सब बर्बाद हो जाएगा।” अनन्या ने अब मुड़कर उसकी तरफ देखा। उनकी नजरें दरोगा को भीतर तक चीरती चली गईं। उन्होंने बड़ी नरम आवाज में कहा, “आज तुमने वर्दी की ताकत दिखाई। कल अगर कोई आम आदमी होता, उसका क्या होता?”

दरोगा सिर झुकाए रहा। उसके पास कोई जवाब नहीं था। अनन्या ने एक गहरी सांस ली और कहा, “माफ करना, मेरा काम नहीं है। इंसाफ करना मेरा फर्ज है।” इतना कहकर वह सड़क पर आती अपनी सरकारी गाड़ी में बैठ गईं।

गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। पीछे दरोगा किशोर सिंह सड़क पर गुमसुम खड़ा रहा। उसकी आंखों में डर और पछतावे के आंसू थे। गाड़ी में बैठकर अनन्या ने अपनी डायरी निकाली। उसमें कुछ नोट्स लिखे। “स्थानीय पुलिस विभाग में अनुशासनहीनता की जांच आवश्यक। बिना कारण हाथ उठाना गुनाह के बराबर है।”

उनके चेहरे पर एक सख्त भाव था। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं होना था। अगले दिन जैसे ही सूरज निकला, दरोगा किशोर सिंह को निलंबन का आदेश मिला। उसकी दुनिया उजड़ गई थी। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी।

अनन्या को भी अंदाजा नहीं था कि वह किस साजिश का शिकार होने जा रही है। दो दिन बाद रात के समय, जब वह अपने सरकारी आवास में अकेली बैठी फाइलें निपटा रही थी, अचानक एक फोन आया। नंबर अज्ञात था। फोन उठाते ही दूसरी तरफ से धीमी आवाज आई, “तुमने हमारे आदमी को सस्पेंड कराया। अब भुगतने के लिए तैयार रहो।”

अनन्या के चेहरे पर एक पल के लिए भी भय का कोई चिन्ह नहीं आया। उन्होंने उसी ठंडे स्वर में जवाब दिया, “धमकियां मुझे रोक नहीं सकती।” लेकिन अगले ही पल उनके कमरे की बत्ती गुल हो गई। पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया।

अनन्या ने तुरंत अपनी टेबल से टॉर्च निकाली और दराज से अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाल ली। सावधानी से वह उठीं और दरवाजे की तरफ बढ़ीं। तभी एक खिड़की के बाहर कुछ हलचल हुई। अनन्या ने तुरंत टॉर्च की रोशनी उधर फेंकी, लेकिन कोई नहीं दिखा।

उन्हें एहसास हुआ कि मामला साधारण नहीं है। वह तुरंत अपने पीए को फोन करने लगीं, लेकिन नेटवर्क गायब था। सन्नाटा ऐसा था कि दिल की धड़कनें भी सुनाई दे रही थीं। तभी अचानक दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई।

“मैडम, मैं चपरासी रामलाल हूं। दरवाजा खोलिए।” आवाज जानी-पहचानी थी, लेकिन अनन्या को यकीन नहीं हुआ। उन्होंने दरवाजे के पास जाकर ऊंची आवाज में पूछा, “तुम्हारी पहचान क्या है?”

रामलाल ने जवाब दिया, “मैडम जी, आपके लिए दूध लाया हूं, जैसा रोज लाता हूं।” अनन्या मुस्कुराईं। यह वक्त दूध लाने का नहीं था। आधी रात के बाद कौन दूध लाता है?

उन्होंने समझ लिया कि जाल बिछाया गया है। उन्होंने दरवाजे से थोड़ी दूर हटकर चुपचाप इंतजार करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद दरवाजे की कुंडी हिलने लगी। जैसे कोई बाहर से जबर्दस्ती खोलने की कोशिश कर रहा हो।

अनन्या ने सांस रोके देखा। रिवाल्वर तैयार थी। अगले ही पल दरवाजा धड़धड़ाकर खुला और तीन नकाबपोश अंदर घुस आए। अनन्या ने बिना समय गवाए पहले नकाबपोश के पैर पर गोली मारी। वह चीखता हुआ गिर पड़ा। बाकी दो डर कर इधर-उधर धहे।

अनन्या ने कुशलता से दोनों पर निशाना साधा। एक को कंधे पर और दूसरे को जांघ पर गोली मारी। तीनों घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। तभी बैकअप फोर्स भी आ गई, जिन्हें उन्होंने एक गुप्त कोड के जरिए बुलाया था।

पुलिस पूछताछ में पता चला कि ये लोग दरोगा किशोर सिंह के पुराने संपर्क थे, जिनका शहर के गुंडों से गठजोड़ था। दरोगा की बेइज्जती और सस्पेंशन का बदला लेने के लिए यह हमला कराया गया था। लेकिन यह महज शुरुआत थी।

असली मास्टरमाइंड अब भी पर्दे के पीछे था। अगले दिन डीएम ऑफिस में एक गुमनाम लिफाफा आया। उसमें सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी, “तुमने पहली चाल जीत ली है। असली खेल अब शुरू होगा।” अनन्या ने वह चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुरा दी। उनकी आंखों में एक अलग चमक थी।

जैसे ही सूरज निकला, अनन्या ने अपनी एक गुप्त टीम बनाई, जिसमें केवल भरोसेमंद अधिकारी थे। चार लोग थे: अमित, इंटेलिजेंस ऑफिसर; सीमा, साइबर एक्सपर्ट; जयवीर, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट; और रुचि, इन्वेस्टिगेशन अफसर।

अनन्या ने चारों को बुलाया और कहा, “यह लड़ाई अब व्यक्तिगत नहीं रही। यह जंग हर उस अंधेरे के खिलाफ है जो हमारे भविष्य को निगलने की कोशिश कर रहा है।” सब ने बिना किसी सवाल के हामी भर दी।

ऑपरेशन का नाम रखा गया “ऑपरेशन शून्य”, यानी वहां से जहां से सब कुछ शुरू होता है। सबसे पहला काम था उस छाया के आदमी को पकड़ना जो इन सबका मास्टरमाइंड था। अमित ने अगले 24 घंटे में सारे संदिग्धों की एक लिस्ट तैयार कर दी।

शहर के बड़े बिल्डर से लेकर स्थानीय नेताओं तक हर उस शख्स का नाम था जो सत्ता से अपना खेल खेलता था। लेकिन एक नाम बार-बार उभर कर आ रहा था: विक्रम तोमर, एक रिटायर्ड पुलिस अफसर जो अब प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनी चलाता था।

ऊपर से शरीफ, अंदर से खून तक पी जाने वाला विक्रम तोमर दरअसल कई बड़े माफियाओं का संरक्षक था। उसने अपने रिटायरमेंट के बाद पूरे शहर में अपनी एक अदृश्य सरकार बना ली थी। अनन्या ने तय किया कि अब सीधी भिड़ंत करनी होगी।

लेकिन चालाकी से जयवीर और अमित ने विक्रम तोमर की गतिविधियों पर नजर रखना शुरू किया। कुछ ही दिनों में पता चला कि विक्रम तोमर हर बुधवार को पुराने शहर के एक फार्म हाउस पर अपने खास आदमियों के साथ मीटिंग करता था।

प्लान बना कि उसी दिन उसे हाथों पकड़ा जाएगा। दिन बुधवार का था। रात के 11:30 बजे थे। काले कपड़ों में लिपटी अनन्या और उनकी टीम फार्म हाउस के पास पहुंच चुकी थी। पूरे इलाके की बिजली कटवा दी गई थी ताकि किसी को शक ना हो।

अमित और सीमा ने सीसीटीवी फीड को हैक कर लिया था। अंदर का हर मूवमेंट अब उनकी स्क्रीन पर था। विक्रम तोमर एक लंबे टेबल के किनारे बैठा था। सामने कई चेहरे झुके हुए थे। किसी की आवाज तेज थी, किसी की धीमी।

अचानक सीमा ने इशारा किया। “मैम, देखिए, यह फाइल्स में कुछ बड़ा ट्रांसफर हो रहा है। शायद हथियारों की डील।” अनन्या ने तय किया कि अब समय आ गया है कार्यवाही का।

उन्होंने जयवीर को आंखों से इशारा किया। टीम चार हिस्सों में बंट गई। धीरे-धीरे फार्म हाउस के चारों तरफ घेरा कसने लगे। तभी अचानक एक गार्ड ने कुछ आवाज सुन ली। अलर्ट हो गया। फार्म हाउस के अंदर अफरातफरी मच गई।

विक्रम तोमर समझ गया था कि पुलिस आ चुकी है। उसने तुरंत एक बैग स्टोर से भागने की कोशिश की, लेकिन अनन्या पहले से वहां थी। रिवाल्वर तानी हुई ठंडी आवाज में बोली, “रुक जाओ विक्रम, वरना गोली चल जाएगी।”

विक्रम ने एक पल को सोचा कि शायद बात बन जाए। उसने मुस्कुराकर कहा, “डीएम साहिबा, इतनी रात गए यहां आप अकेली जान का खतरा नहीं लगा आपको।” अनन्या ने एक पलक भी नहीं झपकाई और जवाब दिया, “जो खतरा खुद पैदा करें, उसे डर कैसा।”

विक्रम ने धीरे से जेब से कुछ निकालने की कोशिश की। जयवीर ने फुर्ती से आकर उसका हाथ पकड़ लिया। जेब से निकला छोटा पिस्तौल था और उसके बाद फार्म हाउस के बाकी लोग भी दबोच लिए गए। सबको गिरफ्तार कर लिया गया।

शहर में यह खबर आज की तरह फैल गई कि डीएम मैडम ने माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अखबारों की सुर्खियां बन गई। लेकिन असली दुश्मन अभी पर्दे के पीछे था। अगले दिन विक्रम तोमर को अदालत में पेश किया गया।

लेकिन जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, एक जबरदस्त धमाका हुआ। कोर्ट के ठीक बाहर ब्लास्ट। किसी ने विक्रम को छुड़ाने या खत्म करने के लिए यह चाल चली थी। अफरातफरी मच गई। चारों तरफ धुआं भर गया।

अनन्या को तुरंत समझ आ गया कि मामला कितना गहरा है। विक्रम तोमर को सुरक्षित कोर्ट से बाहर निकाला गया। लेकिन तभी रास्ते में अचानक एक काले कपड़े में लिपटी लड़की भीड़ से निकली और विक्रम की तरफ दौड़ी।

अनन्या ने फौरन देखा कि लड़की के हाथ में कुछ चमक रहा था। वह चिल्लाई, “बम है! सब हटो!” और खुद आगे बढ़ गई। जयवीर ने फुर्ती से लड़की को पकड़ लिया। लेकिन तभी एक छोटा धमाका हुआ। जयवीर जख्मी हो गया। लड़की भी बेहोश हो गई।

बम ज्यादा शक्तिशाली नहीं था, लेकिन चेतावनी देने के लिए काफी था। लड़की को जब होश आया तो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई। वह लड़की कोई साधारण अपराधी नहीं थी। वह एक वकील थी। नाम था निधि शर्मा और उसने खुद कबूल किया कि उसे मजबूर किया गया था।

धमकी देकर कहा गया था कि अगर उसने काम नहीं किया तो उसके परिवार को मार दिया जाएगा। अनन्या के दिमाग में तुरंत एक तस्वीर बनने लगी। कोई इतना बड़ा नेटवर्क चला रहा था जो कानून के हर पहरे को चकमा दे सकता था।

निधि ने बताया कि असली मास्टरमाइंड का नाम अभी भी किसी को नहीं पता। वह हमेशा कोड नेम का इस्तेमाल करता था। कोड नेम था “काल।” अनन्या ने पहली बार हल्की चिंता महसूस की। काल यानी मृत्यु खुद इस खेल में सामने था।

अब अनन्या जानती थी कि जो लड़ाई वह लड़ रही थी, वह सिर्फ सत्ता या अपराधियों के खिलाफ नहीं थी, बल्कि एक पूरे अंडरग्राउंड साम्राज्य के खिलाफ थी। जिसे जड़ से उखाड़ना आसान नहीं था।

शहर में अब अजीब सा सन्नाटा था। लोग डर के साए में जी रहे थे। हर कोने से अफवाहें फैल रही थीं कि डीएम मैडम की जान खतरे में है। लेकिन अनन्या अपने मिशन से डिगने वाली नहीं थी। अगले कदम के लिए उन्होंने तय किया कि वह खुद काल को बाहर निकालेंगी।

फंसाकर उसके जाल में। एक नकली डील प्लान की गई जिसमें दिखाया गया कि डीएम ऑफिस में करोड़ों की ब्लैक मनी इधर से उधर होनी है और यह जानकारी जानबूझकर कुछ चुनिंदा चैनलों और अफसरों के जरिए लीक करवाई गई।

रात के 1 बजे अनन्या और उनकी टीम बिना किसी शोरगुल के खदान के पास पहुंची। गोदाम बाहर से बिल्कुल सुनसान था। लेकिन अंदर से हल्की रोशनी और मशीनों की आवाजें आ रही थीं। जयवीर ने धीरे से दरवाजा तोड़ा। टीम अंदर घुसी।

अंदर का नजारा देखकर सब कुछ सेकंड के लिए थम गया था। वहां सैकड़ों कंप्यूटर मॉनिटर, वर्चुअल ट्रांसफर, बम मैन्युफैक्चरिंग, फेक आईडी कार्ड्स, हर तरह का अपराध वहां से कंट्रोल हो रहा था। तभी अचानक गोलियों की बौछार शुरू हो गई।

काल के सशस्त्र आदमियों ने घेर लिया था। अनन्या ने फौरन पोजीशन ली। जयवीर ने जवाबी फायरिंग शुरू की। अमित और सीमा ने सिस्टम को हैक करना शुरू कर दिया। गोलियों के बीच से गुजरते हुए अनन्या धीरे-धीरे उस रूम तक पहुंची जहां काल के होने की संभावना थी।

दरवाजा खोलते ही सामने एक चेहरा आया जिसे देखकर अनन्या का खून उबाल मारने लगा। वह कोई और नहीं बल्कि जिले का पूर्व सांसद सुरेश गुप्ता था। जो हमेशा समाजसेवी का चोला ओढ़े रहता था।

सुरेश ने मुस्कुराकर कहा, “स्वागत है डीएम साहिबा, आपके साहस को सलाम है।” अनन्या ने गुस्से से कहा, “तुम ही काल हो।” सुरेश ने ठंडी हंसी-हंसते हुए कहा, “नहीं। मैं तो सिर्फ एक मोहरा हूं। असली काल तो अब भी पर्दे के पीछे है।”

तभी पीछे से एक और आवाज आई और वहां आया एक शख्स जिसने सबको चौंका दिया। वह था खुद डीएम सचिवालय का सचिव शरद मेहरा। अनन्या को जैसे करंट लगा हो। शरद ने कहा, “क्यों चौंक गई मैडम? जो सच सबसे करीब होता है, वही सबसे ज्यादा छुपा होता है।”

शरद ने पिस्तौल तान दी। लेकिन अनन्या ने बिजली की तेजी से अपनी रिवाल्वर निकाली और एक ही गोली में शरद के हाथ से पिस्तौल गिरा दी। भीषण संघर्ष हुआ। सुरेश और शरद दोनों को पकड़ लिया गया। पूरा अंडरग्राउंड नेटवर्क उजागर हो चुका था।

सैकड़ों फाइलें, सॉफ्टवेयर और सबूत पुलिस के हाथ लग चुके थे। सूरज की पहली किरण के साथ खदान से बाहर निकलती हुई अनन्या सक्सेना ने आसमान की तरफ देखा। हल्की बारिश शुरू हो गई थी। जैसे कुदरत भी इस सफाई अभियान में उनका साथ दे रही हो।

मीडिया, कैमरे चमकने लगे। अनन्या ने चुपचाप अपने दुपट्टे को संभाला और गाड़ी में बैठते हुए सिर्फ इतना कहा, “लड़ाई तो हमेशा रहेगी। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग हार मान लेते हैं और कुछ लड़ते रहते हैं। जब तक सांस है, मैं लड़ती रहूंगी।

दूर कहीं सूरज की किरणें शहर को एक नई रोशनी दे रही थीं और अनन्या के चेहरे पर पहली बार एक सुकून भरी मुस्कान थी क्योंकि आज सचमुच अंधेरे का अंत हुआ था।

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