आखिरी रास्ता
नोएडा की तंग गलियों में एक दो कमरों का किराए का मकान था। यहाँ रहता था आकाश वर्मा, 25 साल का एक पढ़ा-लिखा नौजवान। उसके माता-पिता ने अपनी पूरी जमा-पूंजी उसकी पढ़ाई में लगा दी थी। आकाश ने एमबीए की डिग्री अच्छे नंबरों से पास की थी, लेकिन पिछले दो साल से नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहा था।
हर जगह इंटरव्यू देता, तारीफें मिलतीं, लेकिन नौकरी नहीं। कभी अनुभव की कमी, कभी ओवर-क्वालिफाइड कहकर उसे रिजेक्ट कर दिया जाता। घर पर परेशानियाँ बढ़ती गईं। उसके पिता रामकिशन जी को पैरालिसिस हो गया, इलाज के लिए घर की बची-खुची पूंजी और माँ के गहने सब बिक गए। अब घर चलाना, दवाइयों का इंतजाम करना आकाश की जिम्मेदारी बन गई।
आकाश ने साहूकारों से ऊँचे ब्याज पर कर्ज लिया, उम्मीद थी नौकरी मिल जाएगी तो सब चुका देगा। लेकिन नौकरी नहीं मिली, कर्ज बढ़ता गया, साहूकार घर आकर बेइज्जती करने लगे। आकाश खुद को परिवार का सबसे बड़ा गुनहगार मानने लगा। एक रात, जब साहूकार ने उसके बीमार पिता को धमकी दी, आकाश का सब्र टूट गया। उसने एक खत लिखा—
“माँ, पापा, मुझे माफ कर देना, मैं अच्छा बेटा नहीं बन पाया।”
और फिर आधी रात को घर से निकल गया। शहर के बाहरी इलाके की सुनसान रेलवे क्रॉसिंग पर पहुँच गया। उसने अपनी आँखें बंद कीं, ट्रेन की सीटी सुनाई दी, और वह पटरियों पर लेट गया।
इसी वक्त, एक चमचमाती जैगुआर कार वहाँ से गुजर रही थी। उसमें बैठी थीं श्रीमती मीरा सिंघानिया—देश की सबसे अमीर और सफल बिजनेस वूमन, जिनका अपना बेटा भी डिप्रेशन के कारण दुनिया छोड़ चुका था। मीरा की नजर पटरियों पर पड़ी, उन्हें हलचल दिखी। उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा और खुद पटरियों की तरफ दौड़ीं। ट्रेन आ रही थी, मीरा ने आकाश को झिंझोड़कर उठाया,
“क्या कर रहे हो? ट्रेन आ रही है!”
आकाश बोला, “मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए।”
मीरा ने गुस्से और दर्द से कहा, “मरना इतनी आसान बात है? अपने माता-पिता के बारे में सोचा है?”
ट्रेन बेहद करीब आ चुकी थी, मीरा ने पूरी ताकत से आकाश को घसीटकर पटरियों से दूर फेंक दिया। अगले पल ट्रेन तेज़ आवाज के साथ गुजर गई। आकाश और मीरा दोनों हाफते हुए ज़मीन पर पड़े थे।
मीरा ने आकाश को उठाया, तमाचा मारा, और बोली, “शर्म नहीं आती? इतने जवान हो, मरने चले थे? तुम्हारे माँ-बाप के बारे में एक बार भी सोचा?”
आकाश टूटकर मीरा के पैरों में गिर पड़ा और फूट-फूटकर रोने लगा। उसने अपनी सारी कहानी—बेरोजगारी, पिता की बीमारी, कर्ज—एक सांस में कह सुनाई। मीरा की आँखों में ममता उमड़ आई। उन्होंने आकाश को सीने से लगा लिया,
“अब आंसू पोंछो और मेरे साथ चलो।”
मीरा उसे अपने घर ले गईं, खाना खिलाया, कपड़े दिए और एक प्रस्ताव रखा—
“मैं तुम्हें हमदर्दी नहीं, एक मौका दूंगी। मेरी कंपनी में असिस्टेंट मार्केटिंग मैनेजर की जगह खाली है। कल इंटरव्यू दो, अगर योग्य हो तो नौकरी तुम्हारी। तुम्हारे घर का कर्ज मैं चुका दूंगी, लेकिन हर महीने अपनी तनख्वाह से लौटाना होगा। और एक शर्त—आगे कभी जिंदगी से हार नहीं मानोगे।”
आकाश ने वादा किया। अगली सुबह वह तैयार होकर कंपनी पहुँचा, इंटरव्यू कठिन था। मीरा ने कोई रियायत नहीं दी, लेकिन आकाश ने आत्मविश्वास और समझदारी से हर सवाल का जवाब दिया। शाम को जब वह घर पहुँचा, तो देखा साहूकार उसके माता-पिता से माफी मांग रहे थे—मीरा ने सारा कर्ज चुका दिया था।
फोन पर मैसेज आया—
“कल से आप असिस्टेंट मार्केटिंग मैनेजर हैं। वेलकम ऑन बोर्ड!”
आकाश की जिंदगी बदल गई। उसने मेहनत और ईमानदारी से कंपनी में अपनी पहचान बनाई, मीरा सिंघानिया का सबसे भरोसेमंद सिपाही बन गया। कंपनी को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। मीरा ने उसे सिर्फ कर्मचारी नहीं, बल्कि अपना बेटा माना। उसके माता-पिता को अच्छे फ्लैट में शिफ्ट किया, इलाज करवाया।
कुछ साल बाद, मीरा ने अपनी रिटायरमेंट पर आकाश को कंपनी का नया सीईओ बनाया। मंच पर आकाश ने कहा—
“मेरी कहानी शून्य से नहीं, माइनस से शुरू हुई थी। अगर उस रात एक फरिश्ता मेरा हाथ ना थामता, तो आज मैं यहाँ नहीं होता। यह कामयाबी मेरी नहीं, मेरी माँ—मीरा सिंघानिया—की है।”
मीरा ने उसे गले लगा लिया, आँखों में गर्व और ममता के आँसू थे।
यह कहानी सिखाती है:
जिंदगी में हालात कितने भी बुरे हों, उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। खुदकुशी कायरता है, समाधान नहीं। किस्मत कब बदल जाए, कोई नहीं जानता। शायद आपकी जिंदगी में भी कोई फरिश्ता इंतजार कर रहा हो। जरूरत है तो सिर्फ हिम्मत रखने की और एक मौके का इंतजार करने की।
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