मुकेश और पूजा की कहानी: रिश्तों की सच्चाई और आत्मसम्मान
दिल्ली की तपती दोपहर थी। जून का महीना, सूरज सिर पर और सड़कें धूल से भरी हुई। एक लड़का, मुकेश, अपने चेहरे को गमछे से ढंककर रिक्शा चला रहा था। उसके रिक्शे में एक लड़की बैठी थी, जिसने अपना चेहरा दुपट्टे से छुपा रखा था। दोनों की जिंदगी में गर्मी सिर्फ मौसम की नहीं, हालातों की भी थी।
मुकेश के लिए यह रोज का काम था—गर्मी, पसीना और संघर्ष। लेकिन आज की दोपहर कुछ अलग थी। जैसे ही उसे प्यास लगी, उसने एक पानी की टंकी देखी और लड़की से बोला,
“मैडम, अगर आपको कोई दिक्कत न हो तो मैं पानी पी लूं?”
लड़की ने सहजता से कहा, “ठीक है, कोई परेशानी नहीं।”
मुकेश ने गमछा हटाया और पानी पीने लगा। लड़की ने पहली बार उसका चेहरा देखा—एक पल के लिए उसकी आंखें हैरान, परेशान और दुखी हो गईं। मुकेश ने फिर से गमछा बांधा, रिक्शे पर बैठा और आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर चलने पर लड़की ने अपने बैग से छाता निकाला और उसे मुकेश के ऊपर तान दिया।
“मैडम, आप परेशान मत होइए, ये हमारा रोज का काम है,” मुकेश बोला।
लड़की ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप छाता थामे रही।
रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर लड़की ने किराया दिया और अपना दुपट्टा हटा लिया। मुकेश ने जैसे ही उसका चेहरा देखा, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। लड़की भी फूट-फूट कर रोने लगी। आसपास खड़े लोग हैरान थे—एक रिक्शा वाला और उसकी पैसेंजर, दोनों क्यों रो रहे हैं?
आजमगढ़ से दिल्ली तक
यह कहानी थी आजमगढ़ के एक छोटे से गांव की। मुकेश एक साधारण परिवार का लड़का था। माता-पिता, थोड़ी जमीन और प्राइवेट नौकरी। पूजा, गांव की होशियार और खूबसूरत लड़की, जिसके घर में चार छोटी बहनें थीं। पूजा के पिता ने उसकी शादी के लिए रिश्ता भेजा, और मुकेश के पिता ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
शादी के बाद मुकेश ने पूजा की हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की। पूजा पढ़ना चाहती थी, आगे बढ़ना चाहती थी। मुकेश ने उसका साथ दिया, उसकी पढ़ाई फिर से शुरू करवाई। सास भी पूजा को प्यार देती थी, पूरा परिवार खुश था।
शक और गलतफहमी
समय बीतता गया। पूजा कोचिंग जाती, सहेलियों से बातें करती। मुकेश जब फोन करता, अक्सर बिजी मिलता। धीरे-धीरे उसके मन में शक घर करने लगा—क्या पूजा किसी और से बात करती है? क्या उसका कोई प्रेम प्रसंग है?
एक दिन मुकेश ने पूजा से सवाल किया, “तुम्हारा फोन बिजी क्यों था?”
पूजा ने जवाब दिया, “मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी।”
मुकेश का शक और बढ़ गया। वह उल्टी-सीधी बातें करने लगा, “तू बाहर जाकर मुंह मारती है, तेरा घर में पेट नहीं भरता?”
पूजा को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने कहा, “अगर आपको विश्वास नहीं है, तो मेरा फोन देख लो।”
मुकेश बोला, “तुम पढ़ी-लिखी हो, नंबर डिलीट कर दिया होगा।”
पूजा ने ऊंची आवाज में कहा, “मेरे कैरेक्टर पर उंगली कैसे उठा सकते हो?”
मुकेश ने गुस्से में पूजा पर हाथ उठा दिया। पूजा ने तुरंत अपने पिता को फोन किया और सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “अब मैं यहां एक सेकंड भी नहीं रह सकती।”
तलाक और बिछड़ाव
पूजा मायके चली गई। पिता ने समझाने की कोशिश की, लेकिन पूजा ने साफ मना कर दिया। कुछ समय बाद, पूजा ने कोर्ट में तलाक का केस फाइल कर दिया। केस चला, तलाक हो गया। मुकेश ने जो राशि तय की गई थी, उसे देने के लिए अपनी जमीन तक गिरवी रख दी।
अब दोनों अलग-अलग थे। पूजा के पिता ने उसे दोबारा शादी करने के लिए कहा, लेकिन पूजा ने मना कर दिया। “अब मुझे शादी नहीं करनी, मैं पढ़ना चाहती हूं, सरकारी नौकरी पाना चाहती हूं।”
पूजा ने मेहनत जारी रखी। पांच साल बाद, उसने एसडीएम का टेस्ट क्लियर कर लिया। गांव में खुशी की लहर दौड़ गई—पूजा अब एसडीएम बनने जा रही थी।
फिर से मुलाकात
ट्रेनिंग के लिए पूजा को दिल्ली जाना था। बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए उसने रिक्शा लिया। कई रिक्शा वालों ने ज्यादा किराया मांगा। एक रिक्शा वाला दूर खड़ा था, जिसने कहा, “मैडम, जो आपको अच्छा लगे दे दीजिए।”
पूजा ने उससे पूछा, “कितने लोगे?”
“80 रुपए दे देना, सुबह से बोहनी नहीं हुई है।”
पूजा उसके रिक्शे में बैठ गई। वही लड़का था—मुकेश। गर्मी थी, रास्ते में पानी की टंकी आई। मुकेश ने पूजा से पूछा, “मैडम, पानी पी लूं?”
पूजा ने कहा, “ठीक है।”
मुकेश ने गमछा हटाया, पूजा ने उसका चेहरा देखा और पहचान गई। दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे।
सच्चाई और पछतावा
स्टेशन पर दोनों बैठ गए। पूजा ने पूछा, “मुकेश, ऐसी क्या मजबूरी थी कि तुम रिक्शा चलाने लगे?”
मुकेश बोला, “तुम्हें तलाक में जो रकम दी थी, उसके लिए जमीन गिरवी रखनी पड़ी। नौकरी से घर नहीं चल पा रहा था, इसलिए दिल्ली आकर रिक्शा चलाने लगा।”
पूजा ने बताया, “मैं एसडीएम बनने जा रही हूं, चंडीगढ़ में ट्रेनिंग है।”
मुकेश ने कहा, “पूजा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने तुम्हारे कैरेक्टर पर शक किया, जबकि तुम निर्दोष थीं। तलाक के बाद जब जांच की, तो पता चला कि सच में तुम सहेलियों से ही बात करती थी। अहंकार में तलाक दे दिया, और तब से हर दिन पछताता हूं।”
पूजा ने कहा, “कोई बात नहीं, मैं तुम्हें माफ करती हूं।” उसने एक पर्ची पर अपना नंबर लिखा, “अगर कभी बात करनी हो तो फोन कर लेना।”
नई शुरुआत
पूजा ट्रेन से चंडीगढ़ चली गई। शाम को मुकेश ने फोन किया। बातों-बातों में दोनों को एहसास हुआ कि छोटी-छोटी गलतफहमियों ने उनका घर उजाड़ दिया। पूजा ने कहा, “मुकेश, अब तुम रिक्शा मत चलाओ। चंडीगढ़ आ जाओ, मैं तुम्हें अच्छी नौकरी दिला दूंगी।”
मुकेश ने रिक्शा जमा किया और चंडीगढ़ पहुंच गया। दोनों ने महसूस किया कि गलतफहमियों की वजह से जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। दोनों ने मंदिर में जाकर दोबारा शादी कर ली। परिवार को बताया, सबने खुशी मनाई।
पूजा की पोस्टिंग हो गई, एक बच्चा भी हुआ। पूजा ने अपनी चारों बहनों की शादी धूमधाम से की। अब परिवार हंसी-खुशी साथ था।
सीख
रिश्तों में सबसे जरूरी है विश्वास, संवाद और आत्मसम्मान। शक और अहंकार सिर्फ बर्बादी लाते हैं। छोटी-छोटी गलतफहमियां, बिना बात किए, जिंदगी बदल सकती हैं। लेकिन माफ करना, समझना और दोबारा कोशिश करना भी उतना ही जरूरी है।
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