पहलगाम जा रहा था सिख परिवार, खाने में तेज़ नमक की वजह से रुके, फिर जो खबर आयी उसने होश उड़ा दिए
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एक बार की बात है, एक छोटे से गांव में एक सिख परिवार रहता था। यह परिवार अपने प्यार, सम्मान और खालसा परंपरा के लिए जाना जाता था। इस परिवार में कुल 11 सदस्य थे, और हर एक सदस्य एक अनमोल मोती की तरह था। परिवार के मुखिया थे 78 वर्षीय सरदार बलवंत सिंह। उनकी आंखों में आज भी फौजी जैसी चमक थी और उन्होंने अपनी जवानी के दिन भारतीय सेना में गुजारे थे। अब वह अपना ज्यादातर समय गांव के गुरुद्वारे में सेवा करते और अपने पोते-पोतियों को गुरु नानक देव जी की साखियां सुनाते थे।
सरदार बलवंत सिंह की पत्नी, बेबे गुरुदेव कौर, 75 साल की थीं। उनके हाथ का बना मक्के की रोटी और सरसों का साग पूरे गांव में मशहूर था। उनका दिल प्यार का एक अथा सागर था जिसमें परिवार की खुशियां और गम समा जाते थे। बलवंत सिंह के बड़े बेटे हरजिंदर सिंह, 40 साल के, गांव के सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। वह एक शांत और सुलझे हुए इंसान थे। उनकी पत्नी मनप्रीत कौर, एक हसमुख महिला थीं, जो गांव के आंगनबाड़ी में काम करती थीं।
हरजिंदर और मनप्रीत के तीन बच्चे थे। सबसे बड़ा, 28 साल का गुरप्रीत सिंह, एक जोशीला युवा था जिसने शहर में एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोली थी। उसे मॉडर्न गाने सुनना और अपनी पुरानी जीप को दौड़ाना बहुत पसंद था। उसकी छोटी बहन, 14 साल की अमनप्रीत कौर, कॉलेज में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही थी। परिवार का सबसे छोटा सदस्य, 8 साल का हरजोत, पूरे घर की जान था।
गांव में बलवंत सिंह की छोटी बेटी जसविंदर कौर और उनका परिवार भी शामिल था। जसविंदर की शादी पास के गांव में कुलविंदर सिंह से हुई थी, जो एक मेहनती किसान थे। उनके दो प्यारे बच्चे थे, 12 साल की सिमरन और 10 साल का मनजोत। यह पूरा परिवार हर साल गर्मियों की छुट्टियों में कहीं घूमने जाता था, और इस बार उन्होंने कश्मीर की यात्रा का फैसला किया।
जैसे ही उन्होंने पहलगाम का नाम तय किया, घर में उत्सव का माहौल बन गया। बच्चे खुशी से उछलने लगे। यात्रा की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गईं। बेबे ने अपनी पुरानी लकड़ी की पेटी खोली और उसमें से ऊनी स्वेटर, शॉल और जैकेटें निकालीं। हरजिंदर ने अपने स्कूल से छुट्टियां मंजूर करवा लीं और कुलविंदर ने अपनी फसल का हिसाब किताब पहले ही निपटा लिया। गुरप्रीत ने अपनी जीप को मैकेनिक के पास ले जाकर अच्छी तरह से सर्विस करवाया।
आखिरकार 15 मई की सुबह आ गई। परिवार ने सबसे पहले गांव के गुरुद्वारे जाकर माथा टेका और यात्रा के लिए अरदास की। बलवंत सिंह ने सबको समझाया कि हम एक खूबसूरत पर संवेदनशील जगह पर जा रहे हैं, इसलिए एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए। सबने हामी भरी और अपनी-अपनी गाड़ियों में सवार हो गए।

पंजाब के हरे-भरे खेतों को पीछे छोड़ते हुए उनका कारवा कश्मीर की ओर बढ़ चला। सफर लंबा था, लेकिन परिवार के साथ होने के कारण समय का पता नहीं चला। बच्चे अंताक्षरी खेल रहे थे और बेबे मीठी आवाज में पंजाबी लोकगीत गुनगुना रही थीं। उनका पहला पड़ाव श्रीनगर था, जहां उन्होंने डल झील की खूबसूरती का आनंद लिया।
श्रीनगर में दो दिन बिताने के बाद अब बारी थी उनकी असली मंजिल, पहलगाम की। सबने जल्दी उठकर यात्रा की तैयारी की। मनप्रीत ने सबके लिए आलू के परांठे और आचार पैक कर लिया। गाड़ियां पहलगाम की खूबसूरत घुमावदार सड़कों पर दौड़ने लगीं। एक तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे और दूसरी तरफ लिदर नदी का शोर।
जब वे पहलगाम से लगभग 5 किलोमीटर पहले पहुंचे, तो सबके पेट में भूख लगने लगी। हरजिंदर ने गाड़ी की रफ्तार धीमी की और आस-पास कोई अच्छा सा ढाबा देखने लगा। तभी उनकी नजर एक छोटे से साफ-सुथरे रेस्टोरेंट पर पड़ी, जिसका बोर्ड कश्मीरी कलाकारी से लिखा था “वादी कश्मीर” और नीचे लिखा था “धर जैसा खाना, कश्मीरी जायका”।
परिवार ने रेस्टोरेंट में कदम रखा। वहां का माहौल बहुत ही गर्मजोशी से भरा हुआ था। परिवार ने दो बड़ी मेजों को जोड़कर बैठने की जगह बनाई। एक नौजवान कश्मीरी लड़का, जो वहां का वेटर था, मुस्कुराते हुए मेन्यू कार्ड लेकर आया। सभी ने अपनी-अपनी पसंद बताई और ऑर्डर देने के बाद खाने का इंतजार करने लगे।
करीब 20 मिनट के इंतजार के बाद गरमागरम खाना उनकी मेज पर आ गया। लेकिन जैसे ही हरजोत ने दाल का पहला निवाला लिया, उसकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं। “उफ, यह तो बहुत नमकीन है,” उसने चिल्लाकर कहा। बाकी सभी ने भी अपना खाना चखा और सबका यही हाल था। दाल और सब्जी दोनों में नमक इतना ज्यादा था कि एक निवाला भी खाना मुश्किल हो रहा था।
गुरप्रीत ने गुस्से में वेटर को बुलाया और कहा, “यह क्या खाना दिया है तुमने? इसमें इतना नमक है कि कोई जानवर भी ना खाए।” वेटर घबरा गया और रेस्टोरेंट का मालिक गुलाम हसन दौड़कर उनकी मेज पर आया। उसने हाथ जोड़कर माफी मांगी और कहा कि आज उनका नया लड़का रसोई में था, शायद उसी से गलती हो गई।
गुलाम हसन ने वादा किया कि वह तुरंत नया खाना बनवाएगा। परिवार ने फिर से खाना आने का इंतजार किया। इस बार का इंतजार थोड़ा भारी था। बच्चे बेचैन हो रहे थे। तभी रेस्टोरेंट में रखा एक पुराना सा रेडियो अचानक तेज हो गया। यह एक न्यूज़ बुलेटिन था।
न्यूज़ एंकर ने बताया कि पहलगाम के मुख्य बाजार में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ है। यह सुनकर कौर परिवार के होश उड़ गए। हरजिंदर ने घड़ी देखी और कहा, “अगर हमारा खाना सही होता तो हम 25 मिनट पहले ही निकल चुके होते और इस वक्त हम पहलगाम के ठीक उसी बाजार में होते जहां यह हमला हुआ है।”
यह ख्याल आते ही पूरे परिवार के शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। बलवंत सिंह ने आंखें बंद करके हाथ जोड़े और उनके मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकला, “वाहेगुरु।” तभी गुलाम हसन नया और गरमा गरम खाना लेकर उनकी मेज की तरफ आया। उसने देखा कि पूरा परिवार सदमे में है।
गुरप्रीत ने कहा, “भाई तुम्हारे खाने में अगर आज नमक ज्यादा ना होता तो हम पहलगाम के उस बाजार में होते। शायद जिंदा भी ना बचते।” गुलाम हसन यह सुनकर अबाक रह गया। उसने खाने की थालियां मेज पर रखी और खुद भी एक कुर्सी पर बैठ गया।
उसने कहा, “तुम्हारा यह तेज नमक भाई, वह हमारे जीवन का स्वाद बन गया। तुम्हारी वह गलती हमारे लिए रब की सबसे बड़ी मेहर बन गई।” गुलाम हसन की आंखों में भी आंसू आ गए।
बेबे गुरुदेव कौर ने गुलाम हसन के माथे को चूमा और कहा, “बेटा, तूने अनजाने में हमारे पूरे परिवार की जिंदगी बचा ली। रब तुझे हमेशा खुश रखे।” उस दिन वादी-ए-कश्मीर रेस्टोरेंट में कौर परिवार ने खाना तो खाया, लेकिन हर निवाले में स्वाद नहीं बल्कि ऊपर वाले का शुक्राना था।
उन्होंने गुलाम हसन का बार-बार धन्यवाद किया और वादा किया कि वे जब भी कश्मीर आएंगे, उसके इसी रेस्टोरेंट में खाना खाने जरूर आएंगे।
गुलाम हसन ने हंसते हुए कहा, “अगली बार नमक सही रखूंगा सरदार जी, पर दुआ करो कि ऐसी खबर दोबारा कभी ना आए।” परिवार ने विदा ली, लेकिन इस बार माहौल बिल्कुल अलग था।
गुरप्रीत जो आते समय सबसे ज्यादा गुस्सा कर रहा था, जाते हुए गुलाम हसन को गले से लगा लिया और कहा, “भाई, अगली बार नमक थोड़ा ध्यान से डालना।”
वापसी के रास्ते में गाड़ी में एक गहरी खामोशी थी। हर कोई अपने मन में उस चमत्कार के बारे में सोच रहा था। हरजोत ने अपनी मां से पूछा, “मम्मी, क्या वाहेगुरु ने सचमुच हमारे खाने में ज्यादा नमक डाल दिया था ताकि हम बच जाएं?”
मनप्रीत ने उसे अपनी गोद में खींच लिया और कहा, “हां बेटा, वाहेगुरु हर पल हमारे साथ होता है। वह हमें कभी अकेला नहीं छोड़ता।”
इस घटना ने परिवार के हर सदस्य पर एक गहरा असर छोड़ा। गुरप्रीत अब पहले से ज्यादा शांत और धैर्यवान हो गया था। उसने अपने ट्रांसपोर्ट के काम को और मेहनत से चलाने का फैसला किया।
अमनप्रीत ने अपने फैशन डिजाइनिंग के सपने को और गंभीरता से लिया। उसने तय किया कि वह अपने डिज़ाइंस में कश्मीर की खूबसूरती और वहां की कला को शामिल करेगी।
गुलाम हसन के साथ भी परिवार का रिश्ता हमेशा के लिए जुड़ गया। वे हर महीने उसे फोन करते, उसका हालचाल लेते और अगले साल जब परिवार फिर से पहलगाम गया तो वे कहीं और नहीं, सीधे गुलाम हसन के वादी कश्मीर रेस्टोरेंट में ही रुके।
इस बार खाने में नमक एकदम सही था और हर निवाले में प्यार और अपनेपन की खुशबू थी। गुलाम हसन ने पूरे परिवार को अपने घर दावत पर बुलाया, जहां उनकी मुलाकात उसकी पत्नी और बच्चों से हुई।
दो अलग-अलग संस्कृतियों, दो अलग-अलग धर्मों के लोग एक ही मेज पर बैठकर खाना खा रहे थे। यह कहानी सिर्फ एक सिख परिवार की नहीं थी, बल्कि उस आस्था की थी जो हमें हर मुश्किल में थामे रखती है।
यह कहानी थी उस इंसानियत की जो धर्म और सरहदों से परे थी। और सबसे बढ़कर, यह कहानी थी उस छोटी सी गलती की जो कभी-कभी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा बन जाती है।
अगली बार जब आपके खाने में नमक ज्यादा हो या आपकी जिंदगी में कोई छोटी-मोटी परेशानी आए, तो गुस्सा होने से पहले एक पल के लिए जरूर सोचिएगा। क्या पता यह भी उस ऊपर वाली की कोई लीला हो, कोई इशारा हो जो आपको किसी बड़ी मुसीबत से बचाने के लिए रचा गया हो।
इस कहानी ने परिवार के सदस्यों को एक नई दृष्टि दी। उन्होंने सीखा कि जीवन में छोटी-छोटी समस्याएं कभी-कभी बड़ी खुशियों का कारण बन सकती हैं। हर मुश्किल के पीछे एक वजह होती है, और हमें हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए।
इस अनुभव ने उन्हें यह भी सिखाया कि जीवन में आस्था और विश्वास का कितना महत्व है। जब हम किसी कठिनाई का सामना करते हैं, तो हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हमें हमेशा अपने परिवार और अपने प्रियजनों के साथ रहना चाहिए, क्योंकि यही हमारी असली ताकत है।
इस प्रकार, कौर परिवार ने न केवल अपनी छुट्टियों का आनंद लिया, बल्कि एक महत्वपूर्ण सबक भी सीखा। उनके जीवन में यह घटना एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गई, जिसने उन्हें और भी मजबूत बना दिया।
अब जब भी वे कश्मीर की वादियों में जाते हैं, तो उन्हें हमेशा उस दिन की याद आती है जब एक छोटी सी गलती ने उनकी जिंदगी को बदल दिया था। वे हमेशा उस रेस्टोरेंट में जाकर गुलाम हसन से मिलते हैं और उसे धन्यवाद देते हैं।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भी हमारे लिए बड़ी खुशियों का कारण बन सकती हैं। हमें हमेशा आस्था और विश्वास के साथ जीना चाहिए, क्योंकि ऊपर वाला हमेशा हमारी भलाई के लिए ही सब कुछ करता है।
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