करोड़पति माँ VIP कार से जा रही थी… तभी सिग्नल पर उनका बेटा उन्हीं से भीख माँगने आ गया और फिर…

एक महिला की कहानी जो अपने पति के साथ कार में बैठकर रोजाना ऑफिस जाया करती थी। रास्ते में जब भी ट्रैफिक सिग्नल या लाल बत्ती पर उनकी कार रुकती तो बहुत से लोग उनकी कार के पास आकर खड़े हो जाते। कोई भीख मांगता, कोई शीशा साफ करता, कोई सामान बेचता। उन्हीं लोगों में से एक मासूम बच्चा भी था। जो कभी गुब्बारे बेचता, कभी पेड़ तो कभी फूल। उसका नाम था आदित्य।

आदित्य बहुत ही प्यारा और भोला बच्चा था। उसकी मासूम बातें सुनकर हर किसी का दिल पिघल जाता। धीरे-धीरे उस महिला को भी वो बच्चा अच्छा लगने लगा। उसका नाम था रीमा। रीमा अक्सर उसके मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुरा देती और उससे कुछ ना कुछ खरीद लेती। कई बार तो सामान की असली कीमत से कहीं ज्यादा पैसे भी चुपके से उसके हाथ में रख देती।

एक दिन की बात है। कार राजेंद्र नगर चौक के सिग्नल पर रुकी हुई थी। तभी आदित्य दौड़कर आया और बोला, “आंटी गुब्बारा ले लीजिए ना।” रीमा ने हंसते हुए कहा, “गुब्बारे लेकर मैं क्या करूंगी?” तो आदित्य भोलेपन से बोला, “अपने बच्चे को दे दीजिए, आंटी।” रीमा उस समय गर्भवती थी। लगभग 6 महीने पूरे हो चुके थे। उसने मुस्कुरा कर कहा, “जब तक मेरा बच्चा इस दुनिया में आएगा, यह गुब्बारा तो फट जाएगा।” तभी वह मासूम बोला, “नहीं आंटी, अगर आप इसे संभाल कर रखेंगी, तो यह कभी नहीं फटेगा।”

यह सुनकर रीमा की आंखें भर आईं। उसने तुरंत दो गुब्बारे खरीद लिए। उसके पति अरविंद जो कार चला रहे थे, मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए। सिग्नल ग्रीन होते ही कार आगे बढ़ गई। उस दिन के बाद जैसे रीमा और आदित्य के बीच एक रिश्ता सा बन गया। जब भी कार उस चौराहे पर रुकती, रीमा चाहती कि आदित्य वही खड़ा मिल जाए।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन जब कार उसी सिग्नल पर रुकी तो आदित्य कहीं दिखाई नहीं दिया। रीमा की आंखें उसे तलाशने लगीं। तभी दो-तीन और बच्चे पास आकर बोले, “आंटी आप आदित्य को ढूंढ रही हैं ना? उसका तो एक्सीडेंट हो गया है।” रीमा यह सुनते ही सन्न रह गई। उसके होंठ कांपने लगे और आंखों से आंसू बहने लगे।

उसने हड़बड़ा कर पूछा, “क्या? क्या कह रहे हो तुम लोग? कैसा एक्सीडेंट?” बच्चों ने जवाब दिया, “आज सुबह जब वह घर से निकला था तभी एक कार ने उसे टक्कर मार दी। हालत बहुत खराब है। पता नहीं बच पाएगा या नहीं।”

यह सुनते ही रीमा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने तुरंत अरविंद से कहा, “मुझे अभी उसी बच्चे के घर जाना है। मेरा दिल नहीं मान रहा।” अरविंद ने पहले उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन रीमा की आंखों के आंसू देखकर उसने कहा, “ठीक है, तुम चली जाओ।”

रीमा ने तुरंत एक बच्चे के साथ ऑटो पकड़ा और महावीर कॉलोनी पहुंच गई। जहां आदित्य अपनी दादी के साथ झुग्गियों में रहता था। जैसे ही रीमा उस झुग्गी में पहुंची और दरवाजे पर बैठी बुजुर्ग महिला को देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वो महिला कोई और नहीं बल्कि उसकी पुरानी पहचान शांता देवी थीं।

रीमा ने उन्हें देखते ही पहचान लिया। उधर शांता देवी भी रीमा को देखते ही दहाड़े मारकर रोने लगीं और चीखते हुए बोलीं, “रीमा बेटी, मैं तेरे बेटे को नहीं बचा सकी। तेरा आदित्य।” यह सुनते ही रीमा के हाथ से पल्लू छूट गया। उसकी आंखों से आंसू झरझर गिरने लगे।

शांता देवी ने कहा
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