“मैं तुम्हें 10 लाख रुपए दूंगा”लेकिन इसके बदले में, तुम्हें मेरे साथ होटल चलना होगा” फ़िर जो हुआ…

एक रोटी की कहानी – इंसानियत की जीत
रात काफी हो चुकी थी। शहर की सड़कों पर सन्नाटा था, हल्की ठंडी हवा चल रही थी और आसमान में बादल धीरे-धीरे सरक रहे थे। एक पुरानी स्ट्रीट लाइट के नीचे एक लड़की बैठी थी – उम्र मुश्किल से 20 साल, फटे हुए कपड़े बदन से चिपके हुए, बालों में धूल और आंखों में भूख और डर दोनों चमक रहे थे। उसके सामने एक आधी सूखी रोटी रखी थी जिसे वह बार-बार देखती थी, जैसे यही उसकी आखिरी उम्मीद हो। लेकिन वह रोटी अब पत्थर जैसी सख्त हो चुकी थी।
सड़क के दूसरी तरफ कुछ लोग गुजर रहे थे। किसी ने नजर भी नहीं डाली, किसी ने देखा तो नजरें फेर लीं, जैसे वह कोई इंसान नहीं, कोई परछाईं हो। उस लड़की का नाम था सीमा। तीन दिन से उसने ठीक से कुछ नहीं खाया था। दिन में लोगों से भीख मांगती, रात को किसी दुकान के बाहर कोने में सो जाती। लेकिन आज बारिश ने सब कुछ भिगो दिया था। जमीन गीली थी, शरीर ठंड से कांप रहा था और पेट में भूख की आग जल रही थी।
अजनबी की पेशकश
तभी वहां एक आदमी आया—करीब 30 साल का, लंबा कद, साफ कपड़े, हाथ में छाता और दूसरे हाथ में होटल का बैग। वह लड़की के पास रुका, कुछ पल तक उसे देखता रहा। फिर धीरे से बोला, “भूख लगी है ना?” सीमा ने सिर झुका कर कहा, “हां, बहुत ज्यादा।” आदमी मुस्कुराया और बोला, “चलो मेरे साथ होटल में खाना मिलेगा, वहां गर्म रोटी, चावल, दूध भी।” सीमा ने उसकी तरफ देखा, उसकी आंखों में शक और डर था। दुनिया ने उसे सिखा दिया था कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता।
सीमा धीरे से बोली, “नहीं, मैं यहीं ठीक हूं। बस थोड़ी सी रोटी दे दीजिए।” आदमी थोड़ा पास आया, बोला, “रोटी दूंगा लेकिन एक शर्त पर।” सीमा ने कांपती आवाज में पूछा, “कौन सी शर्त?” आदमी बोला, “तुम्हें मेरे साथ होटल चलना होगा।” यह सुनते ही सीमा का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी आंखें फैल गईं, वह फुसफुसाई, “मैं तो बस रोटी मांग रही हूं…” आदमी बोला, “अगर सच में भूख लगी है तो चलो, वरना कोई और रास्ता नहीं है।” यह कहकर वह पीछे मुड़ा और कुछ कदम आगे बढ़ गया।
सीमा का संघर्ष
सीमा ने उस जाते हुए शख्स को देखा। बारिश की बूंदें उसके चेहरे पर गिर रही थीं। भूख की आग और डर की ठंड दोनों उसे भीतर से तोड़ रही थीं। वह सोचने लगी—अगर नहीं गई तो भूख से मर जाएगी, और अगर गई तो पता नहीं वहां क्या होगा। कुछ देर बाद उसने आंखें बंद की, जैसे खुद से कोई वादा कर रही हो, फिर धीरे से उठी और उस आदमी के पीछे चल पड़ी।
होटल दूर नहीं था, लेकिन हर कदम पर सीमा का डर बढ़ता जा रहा था। सड़क के किनारे दुकानें बंद थीं, बस एक होटल के बाहर लाइट जल रही थी—राज होटल फैमिली रेस्टोरेंट। आदमी ने दरवाजा खोला और अंदर चला गया, लड़की धीरे से पीछे आई। होटल में कुछ लोग बैठे थे, कोई खाना खा रहा था, कोई टीवी देख रहा था। वेटर ने उस आदमी को पहचान लिया और आदर से बोला, “साहब, आज देर से आए?” आदमी ने मुस्कुराकर कहा, “हां, रास्ते में एक जरूरतमंद मिल गई है।” वो लड़की की ओर इशारा करता है। सबकी निगाहें एक पल को उसकी तरफ उठती हैं, सीमा शर्म से सिर झुका लेती है।
आदमी ने कहा, “एक कमरा देना है।” वेटर ने चाबी दी और दोनों ऊपर चले गए। कमरा छोटा था लेकिन साफ-सुथरा। आदमी ने दरवाजा खोला और अंदर आकर बोला, “बैठो, डरो मत। मैं भी आता हूं।” वह बाहर चला गया। सीमा कमरे के कोने में जाकर बैठ गई। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे हर आवाज डराने लगी थी।
भूख और भरोसा
कुछ देर बाद आदमी वापस आया। हाथ में एक ट्रे थी जिसमें गरम खाना रखा था—रोटियां, दाल, चावल। उसने ट्रे मेज पर रखी और कहा, “खाओ।” लड़की की आंखों में आंसू आ गए। उसने कांपते हुए पूछा, “आप मुझे कुछ करने को तो नहीं कहेंगे?” आदमी ने कहा, “नहीं, तुम्हें सिर्फ खाना है, कुछ और नहीं।” सीमा रो पड़ी। उसने पहली बार इतने दिनों बाद गर्म खाना देखा था। वह रोटी का टुकड़ा उठाती है, लेकिन हाथ कांपते हैं, आंखों से आंसू गिर रहे हैं।
आदमी धीरे से कहता है, “डरो मत। यह दुनिया बुरी है, पर हर कोई बुरा नहीं।” सीमा धीरे-धीरे खाना खाने लगती है। हर कौर के साथ उसका दिल भारी होता जा रहा है। उसे यकीन नहीं हो रहा कि कोई बिना मतलब के भी किसी की मदद कर सकता है। आदमी खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगता है। बारिश अब भी हो रही थी। वह धीरे से कहता है, “मैं भी एक वक्त भूख से लड़ा था। तब किसी ने मुझे भी इसी तरह खाना खिलाया था। तभी समझा कि इंसानियत बचानी है तो वही करना होगा जो हमारे साथ किसी ने किया था।”
लड़की चुपचाप उसकी बातें सुनती है। फिर धीरे से कहती है, “मुझे लगा आप भी बाकी सबकी तरह होंगे।” आदमी मुस्कुराता है, “अगर हर कोई बुरा हो जाए तो दुनिया में अच्छाई कहां बचेगी?”
नई शुरुआत
रात बीत गई। सीमा ने बहुत दिनों बाद पेट भर खाना खाया और बहुत दिनों बाद खुद को इंसान महसूस किया। वह सो नहीं सकी, बस सोचती रही—शायद आज भगवान ने इंसान के रूप में किसी को भेजा है, जो बताने आया कि जिंदगी अभी खत्म नहीं हुई।
सुबह हुई। आदमी ने नाम पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा?”
सीमा बोली, “सीमा।”
आदमी ने मुस्कुराकर कहा, “अच्छा नाम है। इसका मतलब होता है–हद। और कभी-कभी इंसान की तकलीफें भी अपनी हद पार कर जाती हैं।”
सीमा की आंखों में नमी थी। उसने कहा, “अगर आप ना मिलते तो शायद मैं मर गई होती।”
आदमी बोला, “मुझे धन्यवाद मत दो। मैं तो बस वही कर रहा हूं जो हर इंसान को करना चाहिए।”
सीमा ने पहली बार उसकी आंखों में देखा—वहां कोई लालच नहीं था, कोई हवस नहीं थी, बस शांति थी। थोड़ी देर बाद सीमा ने पूछा, “आपका नाम क्या है?”
आदमी बोला, “मेरा नाम रवि है। मैं पास के एक अनाथ आश्रम में काम करता हूं। बच्चों को पढ़ाता हूं, खाना खिलाता हूं। आज बाजार से लौटते वक्त तुम्हें देखा तो लगा जैसे किसी अपने को भूखा देख लिया हो।”
सीमा की आंखों से आंसू फिर गिर पड़े। उसने कहा, “मैं भी कभी किसी की बेटी थी। पापा मजदूर थे लेकिन एक हादसे में सब खत्म हो गया। मां बीमार पड़ी और फिर वह भी चली गई। कोई रिश्तेदार नहीं, कोई घर नहीं, सड़क ही घर बन गई।”
रवि चुपचाप सुनता रहा। फिर बोला, “सीमा, क्या तुम मेरे साथ चलोगी? मैं तुम्हें उस आश्रम में ले जाऊंगा। वहां और भी लड़कियां हैं तुम्हारे जैसी, जिन्हें मैंने सड़क से उठाया है। वहां तुम्हें खाना भी मिलेगा और पढ़ाई का मौका भी।”
सीमा ने डरते हुए पूछा, “क्या आप वहां सच में कोई नुकसान नहीं करेगा?”
रवि बोला, “अगर किसी ने किया तो सबसे पहले मैं उसे रोकूंगा। मैं वहां बच्चों का भाई बनकर रहता हूं, पिता नहीं। क्योंकि मैं जानता हूं पिता शब्द का मतलब कितना गहरा होता है।”
आश्रम में नई जिंदगी
अगली सुबह रवि ने होटल का बिल चुकाया और सीमा को लेकर बाहर निकला। सूरज की हल्की किरणें सड़क पर गिर रही थी, हवा में ठंडक थी लेकिन दिल में एक नई उम्मीद का मौसम था। दोनों धीरे-धीरे चलते हुए एक छोटे से आश्रम तक पहुंचे। बाहर बोर्ड लगा था—‘नवजीवन बाल गृह’। सीमा ने पढ़ा और मुस्कुराई, जैसे उसके होठों ने महीनों बाद हिलना सीखा हो।
अंदर बच्चे खेल रहे थे, कुछ पढ़ रहे थे, कुछ गा रहे थे। सबने सीमा को देखकर ताली बजाई। रवि ने कहा, “यह हमारी नई बहन है, अब यह यहीं रहेगी।”
दिन गुजरते गए। सीमा ने वहां रहना शुरू किया। सुबह पढ़ाई, दिन में काम, शाम को प्रार्थना। आश्रम की दीवारों में शांति खुली हुई थी। उसने वहां सिलाई सीखी, खाना बनाना सीखा और सबसे बड़ी बात—मुस्कुराना सीखा। रवि उसे हमेशा प्रोत्साहित करता था, कहता था—“इंसान का अतीत चाहे जैसा हो, अगर वह खुद को नहीं छोड़ता तो कल जरूर बदल सकता है।”
सीमा की उड़ान
एक दिन सीमा ने रवि से पूछा, “आप इतने लोगों की मदद क्यों करते हैं? आपको कभी डर नहीं लगता कि कोई आपको धोखा दे सकता है?”
रवि मुस्कुराया, “हां, कई बार मिला धोखा भी। पर अगर कुछ बुरे लोग हैं तो क्या मैं अच्छे काम करना छोड़ दूं? जब मैंने सड़क पर एक बच्ची को ठंड में कांपते देखा था, तब समझ गया था कि जिंदगी का मतलब सिर्फ खुद के लिए जीना नहीं।”
सीमा की आंखें भर आईं। उसने कहा, “अगर दुनिया में हर आदमी आपके जैसा सोच ले तो कोई भी बच्चा भूखा नहीं रहेगा।”
रवि ने कहा, “दुनिया धीरे-धीरे बदलती है, लेकिन अगर एक दिल भी अच्छा बन जाए तो वह सौ अंधेरों को मिटाने के लिए काफी है।”
कुछ महीने बाद सीमा आश्रम की सबसे जिम्मेदार लड़की बन गई थी। वह नई आने वाली बच्चियों की मदद करती, उन्हें समझाती, डर दूर करती। एक शाम रवि ने उससे कहा, “सीमा, अब तुम चाहो तो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हो। मैं तुम्हें स्कूल में दाखिला दिला दूंगा।” सीमा ने सिर झुकाकर कहा, “क्या मैं सच में स्कूल जा सकती हूं?”
रवि ने कहा, “क्यों नहीं? अब तुम वही करोगी जो तुम्हारा हक है।”
रवि का विदा और सीमा का वचन
वक्त बीतता गया, साल बीत गए। सीमा अब जवान हो चुकी थी—आत्मविश्वास से भरी, चेहरे पर मुस्कान और दिल में कृतज्ञता। एक दिन रवि बीमार पड़ गया। आश्रम के बच्चे उसके आसपास बैठे थे, सीमा सबसे आगे थी। उसने रवि का हाथ थाम रखा था। रवि मुस्कुराया, “अगर कभी मैं ना रहूं तो इस जगह को जिंदा रखना। यहां आने वाला हर बच्चा तुम पर भरोसा करेगा, जैसे तुमने मुझ पर किया था।”
सीमा की आंखों से आंसू गिरने लगे। उसने कहा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप ठीक हो जाएंगे।”
रवि ने कहा, “हर कहानी का एक अंत होता है। पर अगर वह अंत किसी नई शुरुआत को जन्म दे दे, तो वही असली जीत होती है।”
कुछ दिनों बाद रवि इस दुनिया से चला गया। आश्रम की दीवारों में सन्नाटा छा गया। बच्चे रो रहे थे। सीमा चुप थी, लेकिन उसकी आंखों में अब डर नहीं था। बस एक वादा था। उसने रवि की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा, “मैं इस जगह को कभी खत्म नहीं होने दूंगी। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगे।”
सीमा की नई पहचान
वक्त बीता, सीमा ने वही आश्रम आगे बढ़ाया। अब वहां सौ से ज्यादा बच्चे रहते थे। वह सबकी दीदी बन गई थी। मीडिया के लोग वहां पहुंचे तो उन्होंने पूछा कि इस आश्रम की शुरुआत कैसे हुई? सीमा ने मुस्कुराकर कहा, “एक रात मैं सड़क पर भूखी बैठी थी। किसी ने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें रोटी दूंगा पर मेरे साथ होटल चलना होगा। और फिर जो हुआ उसने मेरी जिंदगी बदल दी। क्योंकि उस आदमी ने मुझे रोटी दी, सम्मान दिया और सबसे बड़ी बात—इंसानियत दी।”
यह कहते वक्त उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। पीछे दीवार पर रवि की तस्वीर मुस्कुरा रही थी, जिसके नीचे लिखा था—
अगर तुम किसी की मदद कर सकते हो तो करो, क्योंकि कल शायद वही किसी और को बचाए।
सीमा ने आगे कहा, “उस रात अगर मैं डर के कारण पीछे रह जाती तो शायद आज इतने बच्चे मुस्कुरा नहीं रहे होते। इसलिए जिंदगी में कभी किसी मदद को शक की निगाह से मत देखो। हो सकता है वहां भगवान किसी इंसान के रूप में खड़ा हो।”
अंतिम संदेश
आश्रम के बच्चे प्रार्थना कर रहे हैं। सीमा बीच में खड़ी है। आसमान में सूरज निकल रहा है और बैकग्राउंड में आवाज आती है—
हर रोटी जो इंसानियत से दी जाए, वो किसी की जिंदगी बदल सकती है।
और इस तरह वो रात जो डर से शुरू हुई थी, इंसानियत के उजाले में खत्म हुई।
वो रोटी जो एक सौदे जैसी लगी थी, दरअसल एक नेकी की शुरुआत थी।
वह होटल, जो डर की जगह लगता था, वही किसी नई जिंदगी का दरवाजा बन गया।
सीख:
कभी-कभी एक रोटी किसी की जिंदगी बदल सकती है। एक छोटी सी नेकी किसी के अंदर मर चुकी उम्मीद को फिर से जगा सकती है।
हम सब इस दुनिया में आए हैं—सिर्फ अपने लिए नहीं, किसी और की भूख मिटा देना, किसी का दर्द बांट लेना, यही असली इंसानियत है।
अगर कहानी ने आपके दिल को छुआ हो, तो इसे जरूर साझा करें… क्योंकि अच्छाई की चिंगारी ही दुनिया में रोशनी फैलाती है।
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