सुपर मार्किट की गरीब सेल्सगर्ल ने अरबपति महिला का गुम हुआ हीरों का हार लौटाया, फिर उसने जो किया

एक हार की ईमानदारी – पूजा की किस्मत बदलने वाली कहानी
जयपुर के गुलाबी शहर में दो दुनिया
जयपुर, अपनी ऐतिहासिक शान और आधुनिक चकाचौंध के लिए मशहूर है। इसी शहर के मानसरोवर कॉलोनी में एक बड़ा सुपरमार्केट “बिगमार्ट” है, जहां रोज़ हजारों लोग खरीदारी करने आते हैं।
इस सुपरमार्केट की चमकदार रोशनी के बीच काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की अलग ही दुनिया है। उन्हीं में से एक है – पूजा, 23 साल की एक साधारण सी सेल्स गर्ल।
पूजा की जिंदगी इस सुपरमार्केट से शुरू होकर पास की कच्ची बस्ती की तंग अंधेरी गली के दो कमरों के किराए के मकान में खत्म हो जाती है। वहाँ उसकी बीमार माँ शारदा और छोटी बहन रिया रहती हैं। रिया 12वीं में पढ़ती है और इंजीनियर बनने का सपना देखती है।
पिता, जो एक ईमानदार सरकारी क्लर्क थे, कुछ साल पहले सड़क हादसे में गुजर गए। उनके जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी पूजा के कंधों पर आ गई।
पिता के इलाज में सारी जमा पूंजी खत्म हो चुकी थी। अब पूजा की महीने की 10,000 की तनख्वाह ही परिवार का एकमात्र सहारा थी। महंगाई के इस दौर में इतनी छोटी रकम में घर का किराया, माँ की बीमारी की दवाइयाँ और रिया की पढ़ाई का खर्चा निकालना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
कई बार पूजा खुद दिन भर में सिर्फ एक वक्त का खाना खाती ताकि माँ और बहन भूखी न रहें।
पर उसने कभी किस्मत से शिकायत नहीं की। पिता ने हमेशा एक बात सिखाई थी – “बेटी, हालात कितने भी बुरे हों, अपनी ईमानदारी का दामन कभी मत छोड़ना। हमारी असली दौलत हमारा चरित्र है।”
पूजा ने इस सीख को अपनी जिंदगी का मूल मंत्र बना लिया था।
दूसरी दुनिया – ओबेरॉय मेंशन
इसी शहर के सबसे पॉश इलाके सिविल लाइंस में ओबेरॉय मेंशन किसी राजमहल से कम नहीं था।
यह घर था श्रीमती गायत्री देवी ओबेरॉय का।
60 साल की गायत्री देवी ओबेरॉय ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की मालकिन थीं। पति स्वर्गीय श्री राज ओबेरॉय ने शून्य से इस विशाल साम्राज्य को खड़ा किया था। उनके जाने के बाद गायत्री देवी ने कारोबार को संभाला।
उनके पास दौलत, शोहरत, रुतबा सब था – बस मन का सुकून नहीं था।
इकलौता बेटा आरव, 25 साल का पढ़ा-लिखा, हैंडसम नौजवान था, लेकिन दुनियादारी से बेखबर।
गायत्री देवी को डर था कि कोई गलत लड़की उनके बेटे को उसकी दौलत के लिए जाल में न फंसा ले।
वह अपने बेटे के लिए ऐसी बहू चाहती थीं, जो सुंदर, पढ़ी-लिखी, संस्कारी और सबसे बढ़कर ईमानदार हो।
उनकी जिंदगी में पति की सिर्फ एक निशानी बची थी – बेशकीमती हीरे और पन्ने का हार।
यह हार राज ओबेरॉय ने 25वीं सालगिरह पर दिया था। यह सिर्फ गहना नहीं, उनके प्यार का प्रतीक था।
वह उसे हमेशा अपने दिल के करीब रखती थीं।
किस्मत का खेल – दो दुनिया आमने-सामने
एक दिन गायत्री देवी के घर में बड़ी पूजा थी।
खास किस्म के फल और मेवों की जरूरत थी, जो सिर्फ बिगमार्ट सुपरमार्केट में मिल सकते थे।
गायत्री देवी खुद खरीदारी करने निकलीं। उनकी करोड़ों की बेंटली सुपरमार्केट के बाहर आकर रुकी।
महंगी सिल्क की साड़ी, बेशकीमती हार पहने गायत्री देवी जैसे ही अंदर आईं, सबकी नजरें उन पर टिक गईं।
मैनेजर खुद दौड़ता हुआ आया। पर गायत्री देवी की नजरें किसी और को ढूंढ रही थीं।
उन्होंने देखा – एक सेल्स गर्ल, जो एक बूढ़ी औरत को बड़े प्यार और सब्र के साथ सामान ढूंढने में मदद कर रही थी।
वह लड़की थी – पूजा। गायत्री देवी उसकी विनम्रता और सेवा भाव से प्रभावित हुईं।
उन्होंने मैनेजर से कहा, “मैं चाहती हूं यही लड़की मुझे शॉपिंग में मदद करे।”
पूजा घबरा गई, पर गायत्री देवी के अपनेपन से उसकी घबराहट दूर हो गई।
अगले एक घंटे तक पूजा ने गायत्री देवी को सारा सामान दिलवाया।
एक पल की ईमानदारी – किस्मत बदलने का मोड़
शॉपिंग खत्म होने के बाद गायत्री देवी बिलिंग काउंटर की ओर बढ़ीं।
तभी सुपरमार्केट में वीआईपी के आने की खबर से अफरातफरी मच गई।
मीडिया और लोगों की भीड़ अंदर भागने लगी। धक्का-मुक्की में गायत्री देवी का संतुलन बिगड़ा और उनके गले से हार का हुक खुल गया।
हार नीचे गिरकर चावल की बोरी के पीछे जा गिरा – उन्हें पता ही नहीं चला।
गायत्री देवी घर चली गईं।
कुछ घंटे बाद पूजा अपने सेक्शन की सफाई कर रही थी। चावल की बोरियों को ठीक करते हुए उसकी नजर चमकती चीज पर पड़ी।
झुककर उठाया – वही बेशकीमती हार! उसकी आंखें चौंधिया गईं।
एक पल के लिए उसके दिमाग में आया – किसी ने नहीं देखा।
इस हार को बेचकर उसकी सारी मुश्किलें खत्म हो सकती थीं – माँ का ऑपरेशन, बहन की पढ़ाई, नया घर।
लालच का नाग उसके जमीर को डसने लगा।
डर के मारे हार जेब में डाल लिया।
सोचा, आज ही नौकरी छोड़ देगी।
सुपरमार्केट से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसे पिता की बात याद आई –
“हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी ईमानदारी है।”
पूजा वहीं रुक गई। भीतर भयानक जंग छिड़ गई – गरीबी, लाचारी बनाम संस्कार और ईमानदारी।
आखिरकार उसकी इंसानियत जीत गई।
“नहीं, यह हार मेरा नहीं है। यह किसी की अमानत है, मुझे इसे लौटाना ही होगा।”
सच का इम्तिहान
पूजा ने फैसला किया – हार सीधा मैनेजर मिस्टर गुप्ता को सौंपेगी।
इधर ओबेरॉय मेंशन में गायत्री देवी को हार के खोने का एहसास हुआ तो पैरों तले जमीन खिसक गई।
फौरन सुपरमार्केट में फोन किया।
मिस्टर गुप्ता ने स्टाफ को इकट्ठा किया, पूछताछ शुरू।
शक की सुई सबसे पहले पूजा पर – क्योंकि आखिरी बार वही गायत्री देवी के साथ थी।
गुप्ता ने पूजा को केबिन में बुलाया।
“कहाँ है हार? मुझे पता है तुमने ही चुराया है। सच-सच बता दो, वरना पुलिस बुलाऊंगा।”
पूजा ने कांपती आवाज में कहा, “साहब, मैंने चोरी नहीं की। हार मुझे मिला है, मैं लौटाने ही आ रही थी।”
उसने जेब से हार निकालकर टेबल पर रख दिया।
गुप्ता की आंखों में लालच चमक गया।
सोचा, हार खुद रख लूं, इल्जाम इस लड़की पर डाल दूं।
“ठीक है, मान लिया तुम्हें मिला, पर जेब में रखकर क्या कर रही थी? भागने की फिराक थी?”
“नहीं साहब, ऐसा नहीं है।”
“चुप रहो!”
तभी केबिन का दरवाजा खुला – गायत्री देवी बेटे आरव के साथ अंदर आईं।
“क्या हो रहा है यहां?”
गुप्ता बोला, “मैडम, हमने चोर को पकड़ लिया है। यही लड़की पूजा, इसी ने आपका हार चुराया।”
गायत्री देवी ने एक नजर पूजा के डरे, पर सच्चे चेहरे को देखा।
एक नजर गुप्ता के धूर्त चेहरे को।
पूछा, “क्या यह सच है बेटी?”
“नहीं मैडम,” पूजा की आंखों में आंसू थे, “मुझे हार चावल की बोरी के पीछे मिला था। मैं तो बस लौटाना चाहती थी।”
गायत्री देवी अनुभवी थीं।
उन्होंने पूजा की आंखों में सच्चाई पढ़ ली।
कहा, “मैं पिछले 3 घंटे की हर एंगल से सीसीटीवी फुटेज देखना चाहती हूं।”
फुटेज मंगवाई गई।
साफ दिख रहा था – धक्का-मुक्की में हार गिरता है, पूजा आती है, हार मिलता है, उसकी घबराहट, उसका रोना, कशमकश सब रिकॉर्ड।
केबिन में सन्नाटा छा गया।
गुप्ता का चेहरा सफेद पड़ गया।
इनाम – जो दुनिया ने कभी नहीं देखा
गायत्री देवी अपनी कुर्सी से उठीं।
धीरे-धीरे पूजा के पास आईं, उसके सिर पर हाथ रखा।
आंखों में गुस्सा नहीं, सम्मान और ममता थी।
“माफ कर दो बेटी, हम तुम्हें गलत समझ रहे थे।”
फिर गुप्ता से बोलीं, “तुम्हारी जगह सुपरमार्केट में नहीं, जेल में है।”
गुप्ता को नौकरी से निकाल दिया गया, झूठा इल्जाम लगाने के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू।
गायत्री देवी ने पूजा को पास बिठाया, “बताओ बेटी, तुम्हारी ईमानदारी के लिए क्या इनाम दूं? जो मांगोगी, मिलेगा।”
पूजा ने हाथ जोड़ दिए, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। आपकी अमानत आप तक पहुंच गई, यही मेरा इनाम है।”
गायत्री देवी मुस्कुराईं, “यही बात तुम्हें सबसे अलग बनाती है पूजा।
पर मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं, अपनी खुशी के लिए।”
उन्होंने पूजा से उसके परिवार, मुश्किलें, बहन के सपनों के बारे में पूछा।
पूरी कहानी सुनकर उनका दिल भर आया।
उन्होंने आरव की ओर देखा, जो अब तक चुपचाप देख रहा था।
वह भी पूजा की ईमानदारी और स्वाभिमान से प्रभावित था।
गायत्री देवी ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसने सबको चौंका दिया।
आरव का हाथ पकड़कर पूजा के सामने लाकर बोलीं –
“बेटी, मैं तुम्हें इनाम में पैसा या नौकरी नहीं देना चाहती।
मैं तो अपनी सबसे कीमती चीज, अपने बेटे का हाथ मांग रही हूं।
मैं चाहती हूं, तुम मेरी बहू बनो, इस घर और पूरे साम्राज्य की मालकिन।”
पूजा और आरव दोनों हैरान।
“मैडम, यह आप क्या कह रही हैं?” पूजा बोली।
“मैं एक गरीब लड़की, आपके बेटे…”
गायत्री देवी ने उसका हाथ थाम लिया।
“बेटी, गरीबी-अमीरी कपड़ों और मकानों से नहीं, संस्कारों और चरित्र से होती है।
चरित्र की तुम जितनी अमीर हो, उतनी अमीर लड़की मैंने नहीं देखी।
मुझे अपने बेटे के लिए कोई राजकुमारी नहीं, तुम्हारे जैसी नेकदिल और ईमानदार जीवनसाथी चाहिए थी।”
आरव भी खुश था।
उसने बहुत सी मॉडर्न, अमीर लड़कियां देखी थीं, लेकिन पूजा जैसी सादगी और आत्मा की सुंदरता नहीं।
आरव ने आगे बढ़कर पूजा से कहा,
“मेरी मां सही कह रही हैं पूजा। अगर आप हां कहें, तो मैं दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान हूं।”
पूजा के पास शब्द नहीं थे।
उसकी आंखों से खुशी और अविश्वास के आंसू बह रहे थे।
उस दिन सुपरमार्केट के छोटे केबिन में दो दिलों, दो परिवारों, दो दुनियाओं का मिलन हुआ – जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
नई शुरुआत – एक नई जिंदगी
अगले ही हफ्ते बड़ी धूमधाम से पूजा और आरव की शादी हो गई।
जिस दिन पूजा दुल्हन बनकर ओबेरॉय मेंशन में दाखिल हुई, उसे लगा जैसे सपना देख रही है।
गायत्री देवी ने उसे बहू नहीं, बेटी बनाकर रखा।
पूजा की माँ शारदा का सबसे अच्छे अस्पताल में इलाज करवाया।
रिया की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सारा खर्च उठाया।
पूजा ने अपनी समझदारी और प्यार से उस घर को स्वर्ग बना दिया।
आरव को बेहतर और जिम्मेदार इंसान बनाया।
गायत्री देवी के अकेलेपन को अपने प्यार से भर दिया।
कुछ सालों बाद पूजा ने आरव के साथ ओबेरॉय ग्रुप के बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उसने साबित कर दिया कि गायत्री देवी का फैसला बिल्कुल सही था।
कहानी की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है।
जब आप सच्चे दिल से किसी की अमानत को लौटाते हैं, तो किस्मत आपको वह सब कुछ लौटा देती है, जिसके आप हकदार हैं – और उससे भी कहीं ज्यादा।
अगर पूजा की ईमानदारी और गायत्री देवी के फैसले ने आपके दिल को छुआ है, तो इस कहानी को जरूर शेयर करें।
कमेन्ट्स में बताइए कि आपको सबसे सुंदर पल कौन सा लगा।
समाप्त
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