एक्सीडेंट में चली गयी थी करोड़पति की याददाश्त, 5 साल बाद जब होश आया तो दिखा पत्नी का असली चेहरा
नया जन्म: राघव से आदित्य तक की यात्रा
आदित्य मेहरा… मुंबई की भीड़-भाड़, तेज रफ्तार और बिजनेस वर्ल्ड का वो शेर, जिसे जीतना ही आता था। उसकी जिंदगी में बस दो ही चीजें मायने रखती थीं—कामयाबी और मुनाफा। परिवार, दोस्त, रिश्ते—ये सब उसके लिए बस शब्द भर थे, जिनका असली मतलब उसने कभी समझा ही नहीं।
पांच साल पहले की एक भयानक रात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर, एक उदास हाईवे पर उसकी गाड़ी एक तेज़ रफ्तार ट्रक से टकराकर गहरी खाई में गिर गई। जब बचाव दल सुबह वहां पहुंचा तो उसे बुरी हालत में पाया—सिर पर गहरी चोट, याददाश्त गुम और जेब में ना कोई पहचान पत्र। अस्पताल में महीनों तक कोमा में पड़ा रहा, और जब होश आया तो उसे न अपना नाम पता था, न घर, न परिवार। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि शायद वह अपना अतीत कभी न याद कर सके।
अस्पताल ने ऐसे अंजान मरीज का इलाज तो किया, लेकिन जब वह थोड़ा ठीक हुआ तो उसके पास रुकने की कोई वजह न थी। ठीक उसी वक्त, अस्पताल का एक बूढ़ा वार्ड बॉय, दीनदयाल, जिसे कोई संतान नहीं थी, उस नौजवान के चेहरे से अजीब सा अकेलापन महसूस करता था। दिल पर पत्थर रख, उसने उसे अपने गांव माधवपुर ले जाने का फैसला किया और वहां सबने उस अनाम युवक को एक नाम दिया—राघव।
राघव की नई जिंदगी की शुरुआत गांव की सादगी, मिट्टी की खुशबू और सच्चे अपनत्व से हुई। दीनदयाल ने उसे बेटे की तरह रख लिया, और राघव धीरे-धीरे गांववालों के दिलों में उतर गया। वह बच्चों को पुराने बंद पड़े स्कूल में पढ़ाने लगा, खेतों में दीनदयाल का हाथ बंटाने लगा, गांव के दुःख-सुख में शरीक रहने लगा। गांववालों को भी लगता था कि जैसे राघव ही इस गांव की आत्मा है। उसका खुद का अतीत, उसकी पहचान जैसे अब मायने ही नहीं रखती थी।
लेकिन हर रात जब वह ओरों की भाँति लंबी सांस लेकर चैन से सोना चाहता, एक अनजान सी कसक उसके सीने को छू जाती। कभी-कभी सपनों में उभरता—एक आलीशान इमारत, एक खूबसूरत महिला का चेहरा, एक बच्चे की हंसी, लेकिन सुबह होते ही सब धुंधला हो जाता। वक़्त गुज़रता गया, राघव मास्टर जी गांव में आम आदमी की तरह खुश रहने लगा, लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल में एक खालीपन बना रहता।
पांच वर्ष बाद, एक चमत्कार
एक बरसाती दिन, स्कूल की छत ठीक करते हुए फिसलकर राघव के सिर पर फिर से उसी जगह चोट लगी, जहां पांच साल पहले लगी थी। गांव वाले उसे दीनदयाल के घर ले आए। जब वह होश में आया तो उसकी आंखों के आगे गांव नहीं, बल्कि एक फिल्म चल रही थी—उसका अतीत! उसका असली नाम… आदित्य मेहरा! उसे अपनी पहचान, अपना परिवार, अपनी कंपनी, सब याद आ गया।
वह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी जिंदगी के पांच साल कहां गायब हो गए? वह हड़बड़ाया, दीनदयाल से पुराना अखबार मंगवाया। और जब उसने कांपते हाथों से अखबार के बिजनेस पन्ने खोलकर देखा तो एक खबर ने उसकी दुनिया हिला दी—“आदित्य मेहरा की पांचवीं पुण्यतिथि पर मेहरा ग्रुप की नई योजना लॉन्च।”
शॉक! उसे लगा जैसे किसी ने उसके आस-पास की हवा छीन ली हो। अखबार पढ़ते हुए उसे पता चला कि उसकी पत्नी अंजलि ने कंपनी की कमान संभाल ली। उस परपुरुष, जो अपने परिवार के लिए कभी वक्त नहीं निकाल पाया था, उसका बेटा, उसकी पत्नी सब अब अपने पैरों पर खड़े थे, खुश थे—उसके बिना, और शायद उससे ज्यादा अच्छे तरीके से। अब उसकी कंपनी सिर्फ मुनाफे और आक्रामकता के लिए नहीं बल्कि मानवता और सेवा के लिए भी जानी जाती थी। कंपनी का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण शिक्षा और विकास में खर्च हो रहा था।
पुनर्मिलन और नया रास्ता
आदित्य का अहंकार चूर-चूर हो चुका था। उसे पहली बार अपने जीवन की असली कीमत समझ आई। उसे गर्व हुआ अपनी पत्नी अंजलि पर, उसे अपने बेटे रोहन की मुस्कान प्यारी लगी—जो कभी उसके कड़े व्यवहार से डर जाता था।
अब आदित्य दो हिस्सों में बंटा इंसान था—एक, वह क्रूर, स्वार्थी बिजनेसमैन जो अपनी ही जिंदगी में गिरवी पड़ा था; दूसरा, वो राघव, जिसने बिना किसी रिश्ते के अपनापन, करुणा और सच्ची खुशी पाई थी। अब वह समझ गया था कि किस रूप में उसकी असली जिंदगी छिपी है।
जब वह स्वस्थ हुआ तो उसने दीनदयाल को पूरा सच कह सुनाया। दीनदयाल के आंसू उसके लिए आशीर्वाद बन गए। आदित्य मुंबई लौटा, पर वह अपने बंगले पर नहीं, बल्कि एक सस्ते होटल में रुका। वो दूर से अपने परिवार को देखता रहा—अपनी पत्नी, अब एक आत्मविश्वासी लीडर; अपने बेटे, अब एक हंसता-खेलता लड़का। उसे लगा, अगर वह अचानक अपनी पुरानी जिंदगी में वापस जाएगा, तो सब बिखर जाएगा।
उसने अंजलि को एक गुमनाम खत भेजा और एक कैफे में बुलाया। वहां जब अंजलि ने अपने ‘मृत’ पति को सामने पाया, उसकी खुशी और आश्चर्य की कोई सीमा न थी। आदित्य ने उसे पूरी सच्चाई बता दी।
अंजलि रोने लगी, बोली—”आदित्य घर चलो, सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं!” आदित्य मुस्कुराया, बोला—”नहीं अंजलि, वह पुराना आदित्य अब मर चुका है। अब मैं वह होना चाहता हूं जो पांच साल गांव में रहा—राघव।”
उसने अंजलि से कहा—”तुम्हीं कंपनी चलाओ। मैं चाहूंगा कि मेहरा ग्रुप की चैरिटी फाउंडेशन में काम करूं, गांव-गांव जाकर शिक्षा और सेवा में योगदान दूं। वही काम जो मुझे सच्ची खुशी देता है।”
उस दिन अंजलि के लिए उसका पति नए रूप में लौटा—एक ऐसा इंसान, जो दौलत से ज्यादा दिल बड़ा रखता था, जो मुनाफे से ज़्यादा मानवता को समझता था।
अब आदित्य और अंजलि न सिर्फ पति-पत्नी बल्कि एक वैल्यू-ड्रिवन बिजनेस एम्पायर के साझेदार थे—जहां दौलत और आत्मा, संवेदना और सुपर सक्सेस, दोनों का मेल था।
आदित्य ने अपनी पुरानी और नई दोनों पहचान को अपना लिया था—अब उसमें राघव मास्टरजी की करुणा और आदित्य मेहरा की कामयाबी का मेल था।
इस कहानी की सीख
कई बार सब कुछ खो देने में ही खुद को पाना छिपा होता है। जब जिंदगी तुम्हें एक दूसरा मौका देती है, तो वह तुम्हें वो बनने का अवसर देती है, जो तुम्हे हमेशा से होना चाहिए था।
अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ है, तो आप क्या सोचते हैं आदित्य के फैसले के बारे में? कमेंट करें, और ऐसी और भी प्रेरणादायक कहानियों के लिए जुड़े रहें। धन्यवाद!
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