सबने बेचारे बच्चे का मज़ाक उड़ाया। सच्चाई जानकर सब हैरान रह गए – सबक अमूज़ की कहानी
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सबने बेचारे बच्चे का मज़ाक उड़ाया: सच्चाई जानकर सब हैरान रह गए
प्रस्तावना
बेंगलुरु की सुबह हमेशा एक अलग ही मंजर पेश करती है। आसमान पर हल्की धुंध छाई हुई थी और फलक बोस इमारतों की शीशे जैसी खिड़कियां ताजगी से भरी धूप में चमक रही थी। इन्हीं बुलंद इमारतों में एक कंपनी थी, जिसका मालिक विवान राजपाल था। विवान एक ऐसा बिजनेस टाइकून था, जिसका नाम पूरे मुल्क में खौफ और गर्व के साथ लिया जाता था।
विवान का व्यक्तित्व
विवान के बारे में मशहूर था कि उसके सामने कोई मुलाजिम सीधा खड़ा नहीं रह सकता। वह अपने दौलतमंद और ताकतवर वजूद को दूसरों की तजलील के जरिए जाहिर करता था। उसी कंपनी के नीचे मौजूद लॉबी में एक आम सी औरत दाखिल हुई। हाथ में पुराना बैग, कंधे पर बोसीदा दुपट्टा और चेहरे पर वक्त की मार के निशान। यह थी सीता देवी, जो कंपनी की सफाई करने वाली थी।
सीता ने पांच साल से इसी इमारत में काम किया था। हर दिन दूसरों के कूड़े, गर्दो, गुबार और उनके तंज सहती हुई। मगर आज का दिन उसके लिए और भी मुश्किल था। उसे अपने 14 साल के बेटे रवि को साथ लाना पड़ा क्योंकि स्कूल की छुट्टियां थीं और वह अकेला घर पर नहीं रह सकता था।
रवि का परिचय
रवि एक दुबला-पतला लड़का था, लेकिन उसकी आंखों में एक ऐसी रोशनी थी जो आम बच्चों में नहीं मिलती। उसके हाथ में एक बोसीदा सा बैग था, जिसमें वह किताबें और अपनी छोटी सी डायरी रखता था। उसकी चाल में झिझक जरूर थी, लेकिन चेहरे पर एक गैर मामूली आत्मविश्वास भी नजर आ रहा था।
जब वे दोनों दफ्तर के अंदर दाखिल हुए, तो रिसेप्शन पर मौजूद मुलाजिमों ने अजीब नजरों से देखा। कुछ ने दबी हंसी छुपाई, कुछ ने आपस में सरगोशियां कीं। यह सफाई वाली अपने लड़के को भी ले आई। एक ने दूसरे से कहा।
सीता ने उन बातों को अनसुना किया और सीधी ऊपर की मंजिल की जानिब बढ़ गई। ऑफिस के शानदार पेंट हाउस फ्लोर पर विवान राजपाल अपनी चमकती हुई मेज के पीछे बैठा था। सामने लगे शीशे के पार पूरा बेंगलुरु शहर दिखाई दे रहा था। वह अपने महंगे सूट में मलबूस था, हाथ में एक डायमंड घड़ी और चेहरे पर तकब्बुर की मुस्कुराहट।
विवान का तंज
जब सीता ने अदब से झुककर सलाम किया और सफाई के औजार तरतीब देने लगी, विवान ने एक तेज नजर उस पर डाली और फिर अचानक रवि की तरफ देखकर तंजिया अंदाज में हंसा। “यह कौन है?” उसने तीखे लहजे में पूछा।
सीता ने धीरे से कहा, “सर, यह मेरा बेटा है। आज मजबूरी में साथ लाना पड़ा।” विवान ने कहा, “वाह, अब तुम अपने बच्चों को भी मेरे दफ्तर में लाने लगी हो।” अनुपमा, विवान की असिस्टेंट, ने फौरन मौके पर नमक-मिर्च डाल दी। “सर, ये बच्चे आजकल बड़े होशियार बनने लगे हैं। पता नहीं, यह भी अपने आप को कोई बड़ा स्कॉलर समझता हो।”
रवि खामोश खड़ा रहा लेकिन विवान की तजलील भरी नजरों को सह गया। फिर अचानक विवान ने कुर्सी से झुक कर कहा, “अरे बच्चे, तुम्हारी मां कहती है तुम बड़े जहीन हो। बताओ, क्या कमाल है तुम में?”
रवि का जवाब
रवि ने आहिस्ता से कहा, “मैं नौ जुबाने बोल सकता हूं।” पूरा कमरा एक लम्हे के लिए खामोश हो गया। फिर अचानक विवान जोर-जोर से हंसने लगा। “नौ जुबाने? हां हां हां, तुम तो अपनी अंग्रेजी भी सीधी तरह नहीं बोल पाते।”
यह सब बकवास है। अनुपमा ने भी कहा, और बाकी मुलाजिमों ने दबी हंसी छुपाई। सीता का दिल जोर से धड़कने लगा। वह डर गई कि कहीं यह बात उसकी नौकरी खत्म न करा दे।
विवान ने और भी तजलील भरे अंदाज में कहा, “चलो, सबके सामने अपनी नौ जुबानों का कमाल दिखाओ। अगर सच बोला तो शायद मान लूं, वरना तुम्हारी मां आज ही नौकरी से फारغ।”
रवि का साहस
माहौल एक तमाशागाह बन चुका था। सीता की आंखों में आंसू भर आए लेकिन रवि ने एक गहरी सांस ली और अपनी डायरी पर हाथ कसकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर अब खौफ की जगह अज्म नजर आ रहा था। यह लम्हा वह मोड़ था जहां एक बच्चे की खामोशी, कहानी को सस्पेंस और तूफान की तरफ ले जाने वाली थी।
कमरे में अचानक सन्नाटा छा गया। सबकी नजरें उस 14 साल के लड़के पर जम गई, जिसने अभी-अभी दावा किया था कि वह नौ जुबाने बोल सकता है। रवि ने गहरी सांस ली और सबसे पहले हिंदी में बोलना शुरू किया। “मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि इज्जत सबसे बड़ी दौलत है।”
सबकी प्रतिक्रिया
ऑफिस के भारतीय मुलाजिमों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। बात आम सी थी, लेकिन अंदाज इतना पुख्ता था कि सब चौंके बगैर न रह सके। फिर रवि ने फौरन अंग्रेजी में जुमला कहा। “Respect is the true wealth that no money can buy.” इस बार गैर-मुल्की इन्वेस्टर्स चौंक कर सीधे बैठ गए।
यह लहजा किसी स्कूल के बच्चे का नहीं लग रहा था बल्कि किसी प्रोफेशनल स्पीकर का। विवान ने मसनुई कहा, “यह दो जुबाने तो सभी बोल लेते हैं। कुछ नया दिखाओ।”
रवि ने लम्हा भर ठहर कर अचानक उर्दू में कहा, “इंसान की असल पहचान उसके अखलाक और इल्म से होती है, ना कि उसके लिबास और दौलत से।” उर्दू के नरम और नाजुक अल्फाज़ ने कमरे का माहौल बदल डाला। अनुपमा के चेहरे पर हैरत के आसार नुमाया हुए, मगर वह फिर भी तंजिया अंदाज में बोली, “यह सब रटा मारा हुआ है।”
रवि का आत्मविश्वास
रवि के होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। उसने अगली जबान चुनी बंगाली। “मैंने यह जबान एक पुरानी लाइब्रेरी की किताबों से सीखी।” एक बंगाली मुलाजिम ने बेख्तियार ताली बजाई।
उसके चेहरे पर खुशी थी कि कोई बच्चा इतनी रवानी से उसकी मातृभाषा बोल रहा है। अब फिजा बदलने लगी थी। विवान की मुस्कुराहट हल्की पड़ने लगी। मगर वह अब भी जिद में बोला, “चार जुबाने चलो, बाकी दिखाओ वरना यह सब ड्रामा खत्म करो।”
रवि ने अपनी आंखें बंद की और कुछ लम्हों बाद तमिल में बोलना शुरू किया। उसने एक पुराना मकोला दोहराया जो उसने किताबों से याद किया था। ऑफिस में मौजूद एक साउथ इंडियन मुलाजिम की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
वह धीरे से बोला, “यह बच्चा झूठ नहीं बोल रहा। यह तमिल वाकई जानता है।” अब कमरे में सरगोशियां बढ़ने लगीं। मुलाजिम हैरत और तजसुस के साथ एक-दूसरे को देखने लगे।
रवि ने रुख मोड़ा और फ्रेंच में कहा, “La respect est la vraie richesse.” (इज्जत असली दौलत है।) सामने बैठे फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने फौरन सर हिलाया। “C’est parfait!” (यह बिल्कुल सही है।)
विवान का हौसला
अब मामला संगीन हो चुका था। विवान के चेहरे का रंग बदल गया। मगर वह बोला, “छह जुबाने हो गईं। क्या बाकी भी साबित कर सकते हो?” रवि ने जवाब ना दिया बल्कि स्पेनिश में कहा, “La dignidad es el mayor tesoro humano.” (इज्जत इंसान का सबसे बड़ा खजाना है।)
एक स्पेनिश सरमायादार झुककर बोला, “¡Increíble!” (यह बच्चा काबिले यकीन है।) तालियां बजने लगीं। हंसीज़ाक करने वाले मुलाजिम अब संजीदा हो चुके थे।
रवि ने बैग से डायरी निकाली और मैड्रिन चाइनीज में एक जुमला कहा। अल्फाज़ इतनी रवानी से निकले कि गैर-मुल्की दंग रह गए। एक चाइनीस इन्वेस्टर ने कहा, “他真的会说中文!” (यह वाकई चाइनीस जानता है।)
अंतिम चुनौती
अब सिर्फ एक जुबान बाकी थी। सबकी निगाहें रवि पर थी। विवान ने गरूर से कहा, “अगर आखिरी जुबान भी साबित कर दी, तो शायद मान जाऊं।” रवि ने गहरी सांस ली और क्लासिकल लहजे में अरबी बोलने लगा।
कमरा लम्हे भर को रुक गया। अरब इन्वेस्टर की आंखों में हैरत और अकीदत झलकने लगी। विवान की आंखें फैल गईं। माथे पर पसीना चमकने लगा। रवि ने आहिस्ता कहा, “هذه اللغات ليست قوتي، بل هي تضحيات والدتي.” (यह नौजुबाने मेरी ताकत नहीं, मां की कुर्बानियों का समर है।)
तालियों की गूंज उठी। सीता देवी की आंखों से फक्र के आंसू बह निकले। कमरा जो पहले विवान के कहकों और मुलाजिमों की हंसी से गूंज रहा था, अब खामोश था। सब निगाहें रवि पर थीं, जिसकी आवाज में गैर मामूली ठहराव था।
विवान की हार
विवान का इतराब छुप ना सका। उसने खंकार कर कहा, “जबरदस्त ड्रामा है। लेकिन जुबाने बोल लेना मां की नौकरी नहीं बचा सकते।” सीता देवी का दिल डूब गया, मगर रवि ने मां को ऐसी नजर दी जिसमें अज्म और हौसला था।
सीता के लब कपकपा जरूर रहे थे, मगर दिल में उम्मीद की शम्मी रोशन हो चुकी थी। अचानक एक फ्रांसीसी इन्वेस्टर बोला, “मिस्टर राजपाल, यह बच्चा महज जुबाने नहीं जानता बल्कि उन्हें जज कर चुका है। मैंने जिंदगी में बहुत कम लोगों को इतनी रवानी से बोलते सुना है।”
अनुपमा राव ने कहा, “सर, यह सब शायद तैयारशुदा जुमले हों। जुबाने सीखने और बिजनेस समझने में फर्क है।” लेकिन रवि ने डायरी खोली।
रवि का आत्मविश्वास
एक सफे पर उसने मुख्तलिफ जुबानों में एक ही जुमला लिखा था। वह जुमला हर बार जुबान बदलकर दोहराता रहा और स्थानीय लहजा भी अपनाया। एक स्पेनिश इन्वेस्टर ने कहा, “यह बच्चा महज किताब ही नहीं है। यह जुबान को रूह की तरह समझता है।”
विवान ने मेज पर हाथ मारा। “बस जुबाने आती हैं तो क्या? इससे मेरा फायदा। जुबाने लफ्ज नहीं, बिजनेस और ताकत की बुनियाद हैं।”
रवि ने पहली बार उसकी आंखों में देखकर कहा, “जी हां।” और कल रात आपकी इंटरनेशनल कॉल में कई गलतियां हुईं जो डील तोड़ देतीं।
कमरा लरज गया। मुलाजिम और इन्वेस्टर फाइलें खोलने लगे। खेल पलट रहा था। विवान का चेहरा सुर्ख हुआ।
विवान का अंत
क्या एक बच्चा मेरे मोहदों पर तत्सरा करेगा? रवि ने सुकून से कहा, “मैं बच्चा जरूर हूं। मगर जुबाने मेरा हथियार हैं। आपने अरबी में गलत अल्फाज़ कहे और फ्रांसीसी दस्तावेज पर गलत दस्तख्त की बात की। यह आपको करोड़ों का नुकसान पहुंचा सकती थी।”
इन्वेस्टर चौंक गए। एक अरब बोला, “वह दुरुस्त कह रहा है। कल वाकई ऐसी गलतियां थीं। हमें लगा आप जानबूझकर कर रहे हैं या लालची में।”
विवान के माथे पर पसीना आ गया। अनुपमा भी हकलागई। रवि ने एक और कागज निकाला। “यह मेरा तजिया है। मैंने आपकी बातचीत के नोट्स लिए और हर जुबान में दुरुस्ती दर्ज की। इससे डील बच सकती है और नफा भी हो सकता है।”
गैर-मुल्की शराखा एक-दूसरे को देखने लगे। एक फ्रांसीसी इन्वेस्टर मुस्कुरा कर बोला, “यह लड़का तुम्हारी कंपनी का मुस्तकबिल बचा सकता है।”
सीता की खुशी
सीता देवी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। अब उसने महसूस किया कि उसका बेटा सिर्फ उसकी उम्मीद नहीं बल्कि दुनिया का सहारा भी बन सकता है। विवान राजपाल के लिए यह सब एक खौफनाक ख्वाब बन चुका था।
जिस बच्चे को वह मजाक समझ रहा था, वह अब उसके करोड़ों के बिजनेस के लिए खतरा या नजात देने वाला बन गया था। कुर्सी पर बैठने की शान अब बोझ बन रही थी। माथे पर पसीने के कतरे थे।
लेकिन वह अना के सहारे मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा था। “यह सब बकवास है,” विवान ने दांत पीसकर कहा। “एक बच्चे की चंद किताबी बातें बिजनेस नहीं बचा सकती। यह महज इत्तेफाका है कि तुमने कल मेरी बात सुनी।”
रवि ने कागज आगे बढ़ाया। उसकी आवाज में सिर्फ एतमाद था। “यह इत्तेफाका नहीं, सर। यह मेहनत है। मैंने सालों लाइब्रेरी की किताबों, रेडियो और मुफ्त कोर्सों से सीखा। आपके मोहदे की गलतियां जुबान नहीं, सोच की कमजोरी हैं।”
कमरे में हलचल मच गई। एक अरब इन्वेस्टर ने कागज उठाया। “अरबी मत्न देखकर बोला, ‘यह बच्चा सच कह रहा है।’ ‘अगर यह अल्फाज़ रहते, तो मोहदा खत्म हो जाता।’ ”
हमने सोचा था यह जानबूझकर है। विवान की आंखों में खौफ झलकने लगा।
निर्णय का क्षण
अनुपमा राव बोली, “सर, यह ड्राफ्ट की गलतियां होंगी। बच्चा बढ़ा चढ़ाकर बयान कर रहा है।” रवि ने कहा, “अगर चाहें तो मैं अभी फ्रांसीसी हिस्सा पढ़ सकता हूं।”
उसने कागज उठाया और रवानी से लाइन पढ़ी। फिर दुरुस्त तर्जुमा सुनाया। फ्रांसीसी इन्वेस्टर गुस्से से बोला, “अगर यह तर्जुमा साइन हो जाता, तो हम 50 मिलियन यूरो का नुकसान उठाते। आपकी टीम नाहिल है या हमें बेवकूफ समझती है।”
यह अल्फाज़ धमाके से कम ना थे। मुलाजिमों के दिल धड़कने लगे। सीता देवी की आंखों में पहली बार फक्र की रोशनी आई। विवान उठ खड़ा हुआ। “तुम्हें लगता है एक मामूली लड़का मेरी कंपनी के बिजनेस मॉडल पर बात कर सकता है?”
रवि ने सुकून से कहा, “जी हां। जुबान अल्फाज़ नहीं, राबते की ताकत है। आप ताकत दिखाते हुए असल पैगाम खो बैठे हैं।”
एक स्पेनिश इन्वेस्टर ने कहा, “बिल्कुल दुरुस्त। कल की कॉल में हमने समझा आप हमारी जुबान को संजीदगी से नहीं ले रहे। हम डील खत्म करने ही वाले थे। अब मालूम हुआ यह लाइल्मी और गहरूर था।”
विवान का घरूर टूटने लगा। उसने सख्त लहजे में कहा, “अगर तुम इतने जहीन हो तो हल क्या है?” सब निगाहें रवि पर थीं।
रवि का प्रपोजल
वह डायरी खोलकर बोला, “यह मेरा प्रपोजल है। मैंने हर मोहदे के मुताबिक दरुस्ती और मुताबदिल जुमले लिखे हैं। आप चाहे तो यहीं चेक कर लें।”
कागज देखकर सब हैरान रह गए। यह नोट्स किसी प्रोफेशनल डॉक्यूमेंट जैसे थे। हर जुबान के साथ दुरुस्त अल्फाज़ और कानूनी जुमले दर्ज थे। अरब इन्वेस्टर बोला, “यह बच्चा सिर्फ जुबाने नहीं जानता। यह हमारी सोच भी समझता है।”
विवान की आखिरी ढाल भी टूट गई। वक्त उसके हाथ से निकल चुका था। फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने कागज उठाकर कहा, “यह तर्जुमा दुरुस्त है और मुताबदिल जुमले बिजनेस कवान के मुताबिक हैं।”
अब अरब इन्वेस्टर ने दूसरा हिस्सा पढ़ा और हैरत से बोला, “यह फिकही और तजारती इस्तलाहात भी इस्तेमाल कर रहा है जो कई बड़े प्रोफेशनल्स को नहीं आती।”
स्पेनिश इन्वेस्टर ने अपनी जुबान का हिस्सा पढ़ा और कहा, “यह किसी हिस्पैनिक वकील का काम लगता है। कोई खामी नहीं।”
कमरे में सरगोशियां होने लगीं। मुलाजिम एक-दूसरे से कहने लगे, “यह लड़का कमाल है।”
सीता देवी की आंखों से आंसू आ गए। वह बच्चा जिसे वह रातों को जगाकर पढ़ाती रही, आज दुनिया के सामने सर फक्र से बुलंद कर रहा था।
विवान का अहसास
विवान ने झिन्न जलाकर कहा, “यह सब बच्चे का काम नहीं हो सकता। किसी ने तुम्हें लिखकर दिया होगा।”
रवि मुस्कुराया। “अगर चाहें तो मैं यही मतन अभी जबानी तर्जुमा कर दूं।”
इन्वेस्टर्स ने फौरन कहा, “जी हां, करें। हम देखना चाहते हैं कि यह सब वाकई जानता है या नहीं।”
रवि ने डायरी खोली। एक लाइन पढ़कर पहले फ्रांसीसी में कहा। फिर अरबी और स्पैनिश में। हर दफा रवानी इतनी कुदरती थी कि इन्वेस्टर्स के तमाम शक खत्म हो गए।
कमरे में पहली दफा जोरदार तालियां बजीं। मुलाजिम खड़े हो गए। यह लम्हा विवान के गहरूर की बुनियादों को हिला गया।
अनुपमा राव आगे बढ़ी। आवाज में तंज के साथ खौफ भी छिपा था। “यह सब ठीक है। लेकिन बिजनेस में सिर्फ जुबाने नहीं चलती। फैसले और हिकमत अमल भी चाहिए।”
रवि ने फौरन कहा, “मैं यही तो कह रहा हूं। जुबाने महज अल्फाज़ नहीं, ताल्लुकात की बुनियाद हैं। हिकमत अमल तब कामयाब होगी जब दूसरे की जुबान और सोच समझी जाए। वरना अरबों लगाकर भी सब खो देंगे।”
यह जुमला बारीक सीधे विवान पर वार था। उसका चेहरा सख्त हो गया। मगर अब वह अकेला था।
गैर-मुल्की इन्वेस्टर जभी साथ देने को तैयार ना थे।
अंत का क्षण
एक फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने कहा, “मिस्टर राजपाल, यह बच्चा ना होता तो हम मोहदा खत्म करके चले जा रहे होते। आपको मानना पड़ेगा कि आपकी कंपनी में ऐसी सलाहियत है जिसे आपने पहचाना नहीं।”
माहौल पलट चुका था। वह बच्चा जो मजाक था, अब उम्मीद की किरण बन गया।
सीता देवी का झुका सर अब बुलंद हो गया। विवान ने गहरी सांस ली। पहली बार रवि को संजीदगी से देखते हुए कहा, “ठीक है, मान लिया कि तुम्हारी बातों में वजन है, लेकिन चाहते क्या हो?”
यह सवाल कमरे में गूंजा। सब जानना चाहते थे कि लड़का आगे क्या कहेगा।
रवि ने परसकून लहजे में कहा, “मैं चाहता हूं आप कंपनी को दूसरों की तजलील पर नहीं, इल्म और इज्जत पर चलाएं।”
कमरे में एक बार फिर तालियां बजने लगीं। विवान की कुर्सी अब उसके लिए जंजीर बनती जा रही थी। आंखों में खौफ और बेबसी झलकने लगी।
एक स्पेनिश इन्वेस्टर बोला, “यह लम्हा आपके लिए फैसला किन है। हमने सोचा था आपकी कंपनी में कयादत की कमी है। लेकिन आज यह लड़के में देखी है।”
विवान के गोरूर पर कारी जर्राब थी। उसने दांत पीसकर कहा, “तुम सब पागल हो गए हो? एक बच्चा कंपनी चलाएगा?”
यह खेल नहीं, खून पसीने से बनी है। सीता देवी ने पहली बार लब खोले। “यह बच्चा मेरा बेटा है। मैंने उसके लिए दिन रात मेहनत की है। आपने मुझे हमेशा कमतर समझा, मगर आज उसने मुस्तबित कर दिया है कि मेहनत जाया नहीं जाती।”
कमरा खामोश हो गया। मुलाजिम हैरान थे कि इतनी दुबली और खामोश औरत के अंदर इतनी हिम्मत कहां से आई।
रवि की मेहनत
रवि ने मां की तरफ शुक्रगुजारी से देखा। विवान ने घड़ी घुमाते हुए कहा, “ठीक है, अगर यह सब सच है, तो जमानत क्या है कि तुम्हारी तजवीजें कंपनी बचा लेंगी?”
रवि ने इत्मीनान से कहा, “जमानत मेरी मेहनत है। मैंने वे जुबाने सीखी हैं जो बिजनेस को दुनिया के कोने तक पहुंचा सकती हैं। लेकिन अगर आपका रवैया यही रहा तो कोई इन्वेस्टर आप पर भरोसा नहीं करेगा।”
अरब इन्वेस्टर आगे बढ़ा। “हम इस बच्चे पर भरोसा करते हैं। उसने हमारी जुबान और दिल की बात समझी है।”
फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने भी कहा, “अगर आपने उसकी तजवीजे ना मानी तो हम डील खत्म कर देंगे।”
विवान के लिए जमीन तंग हो गई। इन्वेस्टर्स जो एक आम सफाई करने वाली के बेटे की हिमायत कर रहे थे। अनुपमा राव ने संभालने की कोशिश की। “सर, शायद यह वक्त जोश है। अगर हम तजकियां करें तो बेहतर होगा।”
रवि ने फौरन कहा, “वक्त नहीं है। अगर आज फैसला ना किया तो कल डील हाथ से निकल जाएगी।”
विवान कुर्सी पर धंस गया। उसके चेहरे पर शिकस्त अजहार थी। सीता देवी के दिल में तूफान बरपा था। बरसों की जुल्मत याद आ रही थी।
नया सफर
मगर अब मरहम था। बेटे की कामयाबी। मुलाजिम सरगोशियां करने लगे। क्या वाकई कंपनी का मुस्तकबिल इसी लड़के के हाथ में होगा? यह नाकाबिल एतमाद है।
मगर उसने सब बदल दिया है। विवान ने आखिरी कोशिश की। “अगर तुम इतने होशियार हो तो मुझे यही इसी वक्त अमली हल दो।”
रवि ने डायरी खोली। “मैं अभी प्लान दूंगा जो कंपनी को खसारे से निकालकर अरबों के मुनाफे में डाल देगा। लेकिन शर्त यह है कि आप अपनी आन छोड़कर सुने।”
यह कहकर उसने मेज पर तीन सफे रखे। सब निगाहें डायरी पर थीं। इन्वेस्टर्स जो कुर्सियों के किनारे पर झुक गए। जैसे जानना चाहते हो कि एक 14 साल का बच्चा करोड़ों के बिजनेस के लिए क्या नया लाया है।
रवि ने पहला सफन्हा उठाया और बोला, “यह पहला प्लान मौजूदा डील्स के बारे में है। आपकी टीम सिर्फ लफ्जी तर्जुमा करती है। जबकि बिजनेस तर्जुमा कल्चर को समझना भी है।”
मिसाल के तौर पर हिस्पेनिक मोहदे का एक जुमला इन्वेस्टरज के लिए बेइज्जती बन रहा था। मैंने उसे मुहावरे में बदला जिससे इज्जत भी बची और एतमाद भी बढ़ा।
स्पेनिश इन्वेस्टर ने फौरन कहा, “जी हां, यह हिस्सा अरब मलिक के ताल्लुकात का है।”
आपने अरबी में कई नाकाबिल कबूल अल्फाज इस्तेमाल किए। मैंने सब दुरुस्त कर दिए हैं। अगर यह सही रहे तो आपकी कंपनी खलीज में अरबों कमा सकती है।
अरब इन्वेस्टर ने कहा, “यह हैरतंगेज है। इस बच्चे ने वह नुक्त पकड़े हैं जिन पर हमारी टीम ने तवज्जो नहीं दी।”
नया अध्याय
अब रवि ने तीसरा सफा उठाया। आवाज में शिद्दत थी। “यह आखिरी हिस्सा मुस्तकबिल की हिकमत अमली है। आपकी कंपनी जुबानों के साथ कल्चरल नेटवर्क पर खड़ी हो सकती है। मैंने एक मॉडल बनाया है कल्चरल लैंग्वेज स्ट्रेटजी जिससे 3 साल में दुगना मुनाफा हो सकता है।”
कमरे में सरगोशियां बढ़ गईं। मुलाजिम हैरान थे जैसे कोई माहिर माशियात उनके सामने हो। विवान ने तंज से कहा, “यह सब कागजी बातें हैं। बिजनेस ऐसे नहीं चलता।”
लेकिन इन्वेस्टर ने जवाब दिया। “फ्रांसीसी इन्वेस्टर खड़ा हुआ। नहीं मिस्टर राजपाल, यह हकीकत है। आपका गुरूर हमें दूर कर रहा था। लेकिन इस बच्चे ने पुल दोबारा बनाया है।”
स्पैनिश इन्वेस्टर बोला, “हम इस प्रपोजल पर आगे बढ़ने को तैयार हैं। अगर यह बच्चा कंपनी के साथ है, तो मुस्तकबिल पर एतमाद है।”
विवान के पास जवाब ना रहा। इन्वेस्टर्स खड़े होकर सफाई करने वाली के बेटे की तारीफ कर रहे थे। उसकी ताकत की बुनियादें हिल चुकी थीं।
सीता की जीत
रवि ने कहा, “मैंने यह सब आपके खिलाफ नहीं। आपके लिए किया है। अगर आप चाहें तो कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी बन सकती है। लेकिन शर्त यह है कि दूसरों की जुबान और इज्जत को समझें।”
कमरे में जबरदस्त तालियां बजीं। मुलाजिम खड़े हो गए। कुछ की आंखों में आंसू थे कि आखिर किसी ने बॉस के गुहरूर को तोड़ा।
सीता देवी कोने में बैठी बेटे को देख रही थी। आंखों से आंसू बह रहे थे। मगर दिल मुतमिन था। बरसों की कुर्बानी रंग ला चुकी थी।
विवान ने हारा हुआ अंदाज अपनाया। उसके जहन में सवाल गूंज रहा था। “क्या इल्म दौलत से बड़ा है?”
अनुपमा राव जो हमेशा तंज और गौरूर में डूबी रहती थी, अब खामोश थी। उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि ताकत चापलूसी से नहीं बल्कि इल्म और सच्चाई से आती है।
उसने रवि की तरफ देखा और दिल ही दिल में सोचा, “यह बच्चा मुझे भी बदल देगा।”
नए रास्ते की शुरुआत
मीटिंग के इख्तताम पर अरब इन्वेस्टर खड़ा होकर बोला, “मिस्टर राजपाल, अगर यह बच्चा ना होता, तो हम यह डील खत्म कर देते। लेकिन आज हमें यकीन है कि आपकी कंपनी का मुस्तकबिल रोशन है। हम अपनी सरमायाकारी दुगनी करने को तैयार हैं।”
फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने भी कहा, “हम चाहते हैं कि रवि काकेबी हर मोहदे में हमारे साथ मौजूद हो। यह हमारी जुबान का ही नहीं, हमारे एतमाद का भी मुहाफिज है।”
यह अल्फाज़ सुनकर विवान ने गहरी सांस ली और कहा, “यह बच्चा महज मेरा कंसलटेंट नहीं। यह मेरा उस्ताद भी है। इसने मुझे सिखाया है कि दौलत सब कुछ नहीं। इल्म और इज्जत सब कुछ है।”
कमरे में एक बार फिर जोरदार तालियां बजीं। मुलाजिम खड़े होकर रवि को सलामी दे रहे थे।
समापन
उस लम्हे रवि के चेहरे पर जो रोशनी थी वह किसी भी दौलत से ज्यादा कीमती थी। मीटिंग खत्म हुई तो सीता देवी ने बेटे का हाथ थामकर आहिस्ता से कहा, “बेटा, आज तुमने ना सिर्फ अपनी मां को बल्कि हर गरीब मजदूर को इज्जत दी है। तुमने साबित किया है कि अगर हौसला हो तो कोई भी तकदीर बदल सकता है।”
रवि ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मां, यह सब आपकी कुर्बानियों का नतीजा है। आपने जो ख्वाब देखा था वह आज हकीकत बन गया है।”
निष्कर्ष
रात का वक्त था। कंपनी की इमारत के बाहर रोशनियों का समुंदर फैला हुआ था। दिनभर की मशूफियतें खत्म हो चुकी थीं, लेकिन अंदर लोगों के दिलों में जो तब्दीली आई थी, वह आज के दिन को हमेशा के लिए यादगार बना चुकी थी।
रवि अपनी मां के साथ ऑफिस की लॉबी में खड़ा था। मुलाजिम आते-जाते उन्हें सलाम कर रहे थे। कुछ ने हाथ जोड़कर इज्जत दी। सीता देवी की आंखों में फक्र के आंसू थे। वह लम्हा जो बरसों की जिल्लत सहने के बाद आया था।
विवान राजपाल ऑफिस के दरवाजे से बाहर आया। इस बार उसके कदमों में वह गौरूर नहीं था जो हमेशा नजर आता था। उसने सीता और रवि के सामने आकर कहा, “सीता जी, मैंने आपसे हमेशा बदतमीजी की। आपको कमतर समझा। लेकिन आज मुझे एहसास हुआ है कि असल ताकत दौलत या कुर्सी में नहीं, बल्कि इल्म और किरदार में है। मैं माफी चाहता हूं।”
यह अल्फाज़ सुनकर सीता चौंक गई। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वही आदमी जो उसके वजूद को धूल से ज्यादा अहमियत नहीं देता था, आज उसके सामने झुक कर माफी मांगेगा।
उसने धीरे से जवाब दिया, “सर, मैंने हमेशा अपना काम ईमानदारी से किया। मेरा मकसद कभी आपको नीचा दिखाना नहीं था। लेकिन मेरा बेटा आज साबित कर चुका है कि इज्जत अल्लाह की दीन है। जो चाहे जिसे अता कर दे।”
रवि ने विवान की तरफ देखा और कहा, “सर, आपने दौलत से दुनिया खरीदी है। लेकिन दुनिया को जीतने के लिए इंसानों के दिल जीतना जरूरी है। जुबाने सिर्फ अल्फाज नहीं। यह एतमाद और इज्जत की अलामत है। अगर आप अपनी कंपनी को वाकई दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनाना चाहते हैं तो आपको दूसरों की जुबान, सकाफत और एहसासात को समझना होगा।”
यह जुमला विवान के दिल पर हथौड़े की तरह गिरा। वह खामोश खड़ा रहा लेकिन उसकी आंखों में नमी साफ झलक रही थी।
अंत की ओर
इन्वेस्टर्स ने एक बार फिर कहा, “हम चाहते हैं कि इस कंपनी में एक खुसूसी फंड कायम किया जाए ताकि गरीब मगर जहीन बच्चों को तालीम और जुबाने सीखने का मौका दिया जा सके।”
विवान ने सर झुका कर जवाब दिया, “जी हां, यह फंड आज से कायम होगा और इसका नाम रवि शर्मा स्कॉलरशिप होगा।”
यह ऐलान सुनते ही कमरे में तालियों की गूंज उठी। हर कोई जानता था कि यह दिन तारीख में लिखा जाएगा।
अगली सुबह कंपनी का माहौल बिल्कुल मुख्तलिफ था। वही फ्लोर जिस पर हमेशा खौफ और दबाव का साया रहता था, आज पुरजश मुलाजिमों और मुस्कुराते चेहरों से भरा हुआ था।
इस्तकबालिया पर लगी बड़ी स्क्रीन पर ऐलान चमक रहा था। “रवि शर्मा, कंपनी का सबसे कम उम्र लैंग्वेज कंसलटेंट।”
आते-जाते रुकते और स्क्रीन को देखकर तालियां बजाते। कुछ ने कहा, “यह बच्चा वाकई कमाल है। उसने हमें दिखाया कि मेहनत सबसे बड़ी ताकत है।”
कल तक यह सफाई करने वाली का बेटा था और आज यह हमारी कंपनी का मुस्तकबिल है।
रवि उस दिन बाकायदा कंपनी के बोर्डरूम में आया। उसकी मां सीता देवी भी साथ थी। इस बार वह कोने में झुकी-झुकी सफाई करने वाली नहीं बल्कि फक्र से सर उठाए एक एग्जीक्यूटिव के तौर पर आई थी।
उसने अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा लिबास पहना जो उसकी मेहनत और इज्जत के शायन एशान था।
विवान राजपाल बोर्डरूम में पहले से मौजूद था। वह आज भी महंगे सूट में था। मगर उसके चेहरे पर गुरुर की जगह संजीदगी और नरमी नजर आ रही थी। जैसे एक ऐसा आदमी जो जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सीख चुका हो।
उसने रवि को देखते ही अपनी नशिस्त से उठकर हाथ बढ़ाया। “वेलकम मिस्टर रवि शर्मा।”
यह अल्फाज पूरे कमरे में गूंज गए। मुलाजिम हैरान रह गए कि वह बॉस जो कभी किसी को इज्जत से मुखातिब नहीं करता था, आज एक 14 साल के लड़के को बाकायदा मिस्टर कहकर बुला रहा है।
रवि ने एहतराम से हाथ मिलाया और उसके अंदर एक नया एतमाद जाग उठा।
अंतिम मीटिंग
रवि ने अपनी पहली मीटिंग में इन्वेस्टर्स और मुलाजिमों के सामने एक प्रेजेंटेशन दी। उसने हर जुबान के कल्चरल पहलुओं को वाजे किया। “जुबान सिर्फ अल्फाज का खेल नहीं, यह जज्बात और ताल्लुकात की अक्सबंदी है। अगर आप फ्रेंच इन्वेस्टर से उसके मुहावरे में बात करें तो वह आप पर ज्यादा भरोसा करेगा। अगर आप अरब इन्वेस्टर को उसकी जुबान के एहतराम के साथ जवाब देंगे तो वह डील को दुगना मुनाफा बख्श बना देगा।”
कमरे में बैठे सब लोग दम बख थे। रवि की बातों में इतनी पुख्तगी थी कि कोई यकीन नहीं कर रहा था कि यह अल्फाज एक बच्चे के हैं।
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