भिखारी लड़की तीन बच्चों का पालन-पोषण करती थी, सच्चाई पता चलने पर करोड़पति फूट-फूट कर रोने लगा!

ममता की रानी: राधा की कहानी

भूमिका

कहते हैं कि दुनिया में मां से बड़ा कोई नहीं होता। लेकिन कभी-कभी इंसानियत का रिश्ता खून के रिश्ते से भी ऊपर उठ जाता है। यह कहानी है राधा की—उस बीस साल की लड़की की जिसे दुनिया भिखारी कहती थी, लेकिन तीन अनाथ बच्चों के लिए वह भगवान से कम नहीं थी। उसके पास ना घर था, ना दौलत, फटे कपड़े और खाली पेट के सिवा कुछ भी नहीं था। मगर उसकी आंखों में एक ऐसी चमक थी जो अमीरों के महलों में भी नहीं मिलती थी—ममता की, निस्वार्थ प्रेम की।

राधा का संसार

दिल्ली की एक व्यस्त सड़क के किनारे फ्लाईओवर के नीचे राधा का छोटा सा संसार बसता था। इस संसार में थे आठ साल का राजू, जो खुद को घर का बड़ा मानता था; छह साल की चंचल, जिसकी हंसी में राधा अपनी सारी थकान भूल जाती थी; और चार साल का गोलू, जो हर वक्त राधा की साड़ी का पल्लू पकड़े रहता था। ये तीनों बच्चे उसके अपने नहीं थे। किसी को कूड़े के ढेर के पास मिला था, किसी को मंदिर की सीढ़ियों पर रोता हुआ। राधा ने उन्हें उठाया, अपनी भूखी आत्मा का निवाला उन्हें खिलाया और अपनी टूटी झोपड़ी में उन्हें पनाह दी।

वो दिनभर पास के मंदिर में फूल बेचती, या लोगों के दिए हुए छोटे-मोटे काम करती ताकि रात में इन तीन मासूमों का पेट भर सके। वह खुद भूखी सो जाती, लेकिन बच्चों की थाली कभी खाली नहीं रहने देती।

अहंकार और ममता की टक्कर

एक दिन भरी दोपहर में, जब ट्रैफिक अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रहा था, शहर के बड़े उद्योगपति विक्रम सिंह अपनी चमचमाती कार में बैठा था। उसकी दुनिया कांच की दीवारों के पीछे थी, जहां बाहर की गरीबी और लाचारी का शोर नहीं पहुंचता था। तभी उसकी नजर फ्लाईओवर के नीचे बैठी राधा और उसके बच्चों पर पड़ी। उनके मैले-कुचैले कपड़े और सूखी रोटियां खाते देख विक्रम के चेहरे पर घृणा का भाव आया। उसने अपने ड्राइवर से कहा, “देखो, कैसे ये लोग बच्चों को ढाल बनाकर भीख मांगते हैं। देश की सारी गंदगी इन्हीं लोगों की वजह से है।”

तभी छोटी चंचल एक गुलाब का फूल लेकर उसकी गाड़ी की तरफ दौड़ी, “साहब फूल ले लो, भगवान आपका भला करेगा।” विक्रम ने उसे अनदेखा करते हुए शीशा ऊपर कर लिया। जैसे ही ट्रैफिक सिग्नल हरा हुआ, उसने ड्राइवर को गाड़ी चलाने का इशारा किया। कार के पहियों से उछला कीचड़ वाला पानी सीधा चंचल के कपड़ों पर जा गिरा। बच्ची डर कर रोने लगी। राधा दौड़कर आई, उसे गले से लगाया और अपने पल्लू से उसका चेहरा पोंछा। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, बल्कि एक खामोश दर्द था।

विक्रम सिंह ने यह सब देखा, लेकिन उसके दिल पर कोई असर नहीं हुआ। वह नहीं जानता था कि जिस इंसानियत को उसने आज कीचड़ में सना छोड़ दिया था, वही इंसानियत एक दिन उसकी पूरी दुनिया को बदलने वाली थी।

विक्रम का दर्द

उस रात जब विक्रम सिंह अपने आलीशान बंगले में एक बड़ी बिजनेस डील का जश्न मना रहा था, फ्लाईओवर के नीचे तेज बारिश ने राधा की दुनिया में तबाही मचा दी थी। चारों तरफ महंगी शराब और झूठी हंसी का शोर था, लेकिन विक्रम के दिल में सन्नाटा था। उसकी नजर अपने स्टडी रूम में रखी एक तस्वीर पर गई—उसमें उसकी पत्नी अंजलि और उसका पांच साल का बेटा रोहन मुस्कुरा रहे थे। पांच साल पहले एक कार एक्सीडेंट ने अंजलि को उससे छीन लिया था और उसी हादसे में उसका बेटा रोहन कहीं लापता हो गया था। पुलिस ने मान लिया था कि वह भी मर गया, लेकिन विक्रम का दिल यह मानने को तैयार नहीं था। उस दिन के बाद से उसकी हंसी, उसकी इंसानियत सब कुछ खत्म हो गया था।

ममता की परीक्षा

अस्पताल की ऊंची और जगमगाती इमारत राधा जैसी गरीब के लिए किसी मंदिर की तरह थी, जहां भगवान तो बसते थे लेकिन दर्शन सिर्फ पैसे वालों को मिलते थे। भीगे हुए कपड़ों में, गोद में तपते हुए गोलू को लिए वह कांपते हुए अंदर घुसी। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे ऊपर से नीचे तक घृणा से देखा। “क्या चाहिए? यह भिखारियों का अड्डा नहीं है।” राधा ने अपनी मुट्ठी में भी हुए सिक्के काउंटर पर रख दिए। “बहन जी, मेरा बच्चा मर रहा है। इसे डॉक्टर को दिखा दो। मेरे पास बस यही है, बाकी मैं जो कहूंगी वो काम करके चुका दूंगी।”

रिसेप्शनिस्ट ने सिक्कों को ऐसे देखा जैसे वो कूड़ा हो और जोर से हंस पड़ी। “इतने में तो यहां की पर्ची भी नहीं बनती। जाओ किसी सरकारी अस्पताल में जाओ। यहां इलाज के लिए पैसे लगते हैं, दुआएं नहीं।” गार्ड उसे बाहर धकेलने लगे। लेकिन राधा वहीं जम गई। वो जमीन पर बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी। “कोई तो भगवान का वास्ता देकर मेरे बच्चे को बचा लो। मैं इसे यहां से मरने के लिए वापस नहीं ले जाऊंगी।”

मदद की उम्मीद

अस्पताल की बदनामी के डर से मैनेजर मिस्टर शर्मा पहुंचे। उन्होंने गार्ड्स को सख्ती से आदेश दिया, “इस औरत को और इसके बच्चे को उठाकर बाहर फेंको।” तभी अस्पताल के मुख्य दरवाजे से विक्रम सिंह बाहर निकला। वह अपने किसी विदेशी क्लाइंट से मिलकर लौट रहा था और इस हंगामे को देखकर गुस्सा हो गया। उसने मिस्टर शर्मा से पूछा, “यह सब क्या तमाशा है? एक भिखारी को संभालने की औकात नहीं है तुम्हारी?”

राधा ने विक्रम सिंह के पैरों में गिरकर विनती की, “मालिक, आप ही इस अस्पताल के भगवान हैं। मेरी मदद करो साहब, मेरे बच्चे को बचा लो।” विक्रम ने कड़वे स्वर में कहा, “इसे किसी जूनियर डॉक्टर को दिखा दो, खर्चा मेरी सैलरी से काट लेना। और आइंदा ऐसी गंदगी अस्पताल के अंदर नहीं दिखनी चाहिए।” विक्रम यह कहकर अपनी कार की तरफ बढ़ गया, यह महसूस किए बिना कि उसने अनजाने में अपनी ही खोई हुई जिंदगी को बचाने का एक छोटा सा मौका दिया था।

गोलू की पहचान

नर्सों ने राधा के हाथ से गोलू को छीन लिया और उसे इमरजेंसी वार्ड में ले गईं। राधा को बाहर ही रोक दिया गया। एक युवा डॉक्टर, डॉ. आकाश ने बच्चे की जांच शुरू की। जैसे ही उसने बच्चे के शरीर से गीले कपड़े हटाए, उसकी नजर बच्चे के सीने पर बने एक छोटे से चांद के आकार के जन्म निशान पर पड़ी। उसे कुछ याद आया, लेकिन वह तुरंत इलाज में लग गया। गोलू की हालत गंभीर थी। उसे निमोनिया हो गया था और अगर कुछ देर और हो जाती तो उसे बचाना नामुमकिन था।

घंटों तक राधा अस्पताल के ठंडे फर्श पर बैठी रही। उसकी आंखें एक पल के लिए भी बंद नहीं हुईं। सुबह होने पर डॉक्टर आकाश बाहर आया, “घबराने की कोई बात नहीं है, तुम्हारा बच्चा अब खतरे से बाहर है।” राधा की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। डॉक्टर ने पूछा, “यह बच्चा तुम्हारा अपना है?” राधा ने सच बता दिया—गोलू उसे मंदिर की सीढ़ियों पर मिला था।

डॉक्टर आकाश को शक हुआ कि यह बच्चा विक्रम सिंह का खोया बेटा हो सकता है। उसने डीएनए टेस्ट के लिए गोलू और विक्रम सिंह के सैंपल भेज दिए।

ममता का सौदा

इसी बीच मैनेजर मिस्टर शर्मा ने राधा को अपने केबिन में बुलाया और कहा, “तुम्हारे बच्चे का बिल बहुत ज्यादा आया है। मालिक ने तो सिर्फ थोड़ी मदद की है, बाकी के पैसे कहां से दोगी?” राधा का चेहरा पीला पड़ गया। शर्मा ने मक्कारी से कहा, “एक रास्ता है—अस्पताल में एक अमीर जोड़ा है जिनकी कोई औलाद नहीं है। अगर तुम अपना बच्चा उन्हें दे दो तो वह तुम्हारा सारा कर्ज चुका देंगे।”

राधा के पैरों तले जमीन खिसक गई। जिस बच्चे के लिए वह मौत से लड़कर आई थी, उसी को बेचने का सौदा किया जा रहा था। उसने गुस्से में कहा, “मैं अपने बच्चे का सौदा नहीं करूंगी।”

शर्मा ने धमकी दी, “अगर कल सुबह तक तुमने पैसे नहीं चुकाए, तो मैं पुलिस को बुलाऊंगा। तुम पर बच्चा चोरी का इल्जाम लगाकर अंदर करवा दूंगा और इन तीनों बच्चों को अनाथ आश्रम भेज दूंगा।”

राधा बेजान सी होकर जमीन पर गिर पड़ी। वह भाग जाना चाहती थी, लेकिन गोलू अभी बहुत कमजोर था।

सच्चाई का उजाला

डॉक्टर आकाश ने शर्मा की बातचीत सुन ली और सब समझ गया। उसने डीएनए रिपोर्ट का इंतजार किया। अगली सुबह, अस्पताल का गलियारा तमाशे का मैदान बन गया। पुलिस राधा को पकड़ने लगी, अमीर जोड़ा गोलू को देखने आया। तभी डॉक्टर आकाश ने सीलबंद लिफाफा लहराया, “इस औरत को कोई हाथ नहीं लगा सकता। इसका और इसके बच्चों का असली गुनहगार कोई और है।”

डॉक्टर आकाश ने सबको बताया कि उसने डीएनए टेस्ट कराया है और यह बच्चा विक्रम सिंह का खोया बेटा है। विक्रम सिंह को बुलाया गया। डॉक्टर ने गोलू का निशान दिखाया और रिपोर्ट दी, “यह बच्चा आपका खोया हुआ बेटा रोहन है।”

पश्चाताप और सम्मान

विक्रम सिंह जमीन पर बैठ गया। जिस बच्चे को उसने गंदगी कहा था, जिस औरत को भिखारी कहकर दुत्कारा था, वो उसी के बेटे की रखवाली कर रही थी। उसने राधा के पैरों में सिर रख दिया, “मुझे माफ कर दो। तुमने मेरे बेटे को वह प्यार दिया जो शायद मैं कभी नहीं दे पाता। तुम भिखारी नहीं, इस दुनिया की सबसे अमीर इंसान हो।”

राधा की आंखों में खुशी और डर उलझ गए थे। विक्रम ने उसका डर समझ लिया, “हां, यह तुम्हारा ही बेटा है। हमेशा तुम्हारा ही रहेगा। मैंने सिर्फ जन्म दिया है, तुमने उसे जिंदगी दी है।”

विक्रम ने मिस्टर शर्मा को गिरफ्तार करवा दिया। फिर उसने राजू और चंचल को देखा, “आज से यह तीनों मेरे बच्चे हैं और तुम इन बच्चों की मां हो। एक मां की जगह सड़कों पर नहीं, घर में होती है। मेरे साथ मेरे घर चलो।”

नई शुरुआत

राधा ने पहली बार उस महल जैसे घर में कदम रखा। अब वह एक भिखारी नहीं, उस घर की आत्मा बनकर आई थी। राजू और चंचल ने कभी नरम सोफे, रंग-बिरंगे खिलौने, इतना बड़ा बगीचा नहीं देखा था। गोलू यानी रोहन अपने पिता के पास सुरक्षित महसूस कर रहा था, लेकिन उसकी आंखें बार-बार अपनी मां राधा को ही ढूंढ रही थीं।

विक्रम ने बच्चों को दुनिया की हर खुशी दी—महंगे कपड़े, अच्छे स्कूल, हर तरह का आराम। लेकिन वह जानता था कि इन बच्चों को सबसे ज्यादा जरूरत मां के प्यार की थी, जो सिर्फ राधा ही दे सकती थी।

एक शाम विक्रम राधा के पास आया, “राधा, मैंने तुम्हें और बच्चों को यहां लाकर कोई एहसान नहीं किया है। तुमने इस घर पर एहसान किया है। तुमने मुझे मेरे बेटे से ही नहीं, मेरी खोई इंसानियत से भी मिलाया है। यह घर, यह दौलत सब तुम्हारा है।”

विक्रम ने राजू और चंचल को कानूनी तौर पर गोद ले लिया। “तुम इन तीनों की मां हो। मैं तुमसे शादी करके तुम्हें पत्नी का नाम देकर इस रिश्ते को कोई सामाजिक बंधन नहीं देना चाहता। मां का दर्जा हर रिश्ते से ऊपर होता है। मैं बस चाहता हूं कि तुम हमेशा इन बच्चों की मां बनकर इस घर की मालकिन बनकर यहीं रहो।”

राधा की आंखों से सम्मान और खुशी के आंसू बह निकले, “मुझे महल नहीं चाहिए साहब, मुझे बस मेरे बच्चों के सिर पर एक छत और उनके लिए आपका प्यार चाहिए। वे हमेशा मेरे बच्चे रहेंगे, और मैं हमेशा उनकी मां।”

समाज की सीख

समय बीतता गया। विक्रम सिंह अब सिर्फ बिजनेसमैन नहीं रहा। उसने राधा के नाम पर एक चैरिटेबल ट्रस्ट खोला जो शहर के हजारों बेघर बच्चों की पढ़ाई और परवरिश का जिम्मा उठाता था। वह अब सौदों की नहीं, इंसानी रिश्तों की कीमत समझने लगा था।

राधा ने उस घर को मंदिर बना दिया, जहां दौलत की नहीं, प्रेम और संस्कारों की पूजा होती थी। उसने बच्चों को कभी यह भूलने नहीं दिया कि वे कहां से आए थे, ताकि वे हमेशा जमीन से जुड़े रहें और दूसरों के दर्द को समझ सकें।

अंतिम संदेश

उस दिन फ्लाईओवर के नीचे कीचड़ में सनी इंसानियत ने एक करोड़पति के महल को घर बना दिया था। दुनिया की नजरों में राधा एक भिखारी से रानी बन गई थी। लेकिन सच्चाई यह थी कि वह हमेशा से एक रानी थी—ममता की, त्याग की और अच्छाई की रानी।
क्योंकि असली दौलत तिजोरियों में नहीं, बल्कि उस दिल में होती है जो दूसरों के लिए धड़कता है।

समाप्त