“सड़क पर इंस्पेक्टर ने की बदतमीजी, लड़की ने दिया ऐसा जवाब कि सब देखते रह गए!”
करिश्मा की हिम्मत: जब कानून के गलत इस्तेमाल को मिली सजा
सुबह-सुबह की ठंडी हवा में करिश्मा अपनी स्कूटी पर धीरे-धीरे सड़क पर बढ़ रही थी।
साधारण सलवार सूट में, जैसे किसी गांव की आम लड़की।
किसी को अंदाजा भी नहीं था कि वह एसपी कविता सिंह की बेटी है।
उस दिन वह अपनी सहेली की शादी में जा रही थी।
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बाजार पार करते ही उसने देखा, सड़क किनारे पांच-छह पुलिस वाले गाड़ियों की चेकिंग कर रहे थे।
उनमें इंस्पेक्टर मोहन सिंह भी था, जो उसी थाने में तैनात था जहां उसकी मां आती-जाती थीं और जिसे कविता सिंह अपना अच्छा दोस्त मानती थीं।
जैसे ही करिश्मा उनकी ओर पहुंची, मोहन सिंह ने हाथ उठाकर उसे रुकने का इशारा किया।
करिश्मा ने स्कूटी साइड में लगाई।
इंस्पेक्टर मुस्कुराते हुए बोला, “अरे मैडम, कहां चली जा रही हैं बिना हेलमेट के? और स्कूटी भी इतनी तेज क्यों चला रही थी? अब तो चालान कटेगा ही।”
करिश्मा ने विनम्रता से जवाब दिया, “सर माफ कीजिए, जल्दी में थी, हेलमेट लेना भूल गई। पास ही एक शादी में जा रही हूं। छोड़ दीजिए ना।”
लेकिन इंस्पेक्टर मोहन सिंह भड़क गया, “तू हमें सिखाएगी कि कानून क्या होता है? ज्यादा बकवास मत कर!”
इतना कहते ही उसने गुस्से में करिश्मा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
उसे अब तक नहीं पता था कि यह एसपी मैडम की बेटी है।
आसपास कुछ लोग तमाशा देखने जुट गए, लेकिन कोई मदद करने आगे नहीं आया।
इंस्पेक्टर चिल्लाया, “तेरे बाप की सड़क है क्या? जल्दी से 5000 का चालान भर, वरना तुझे भी लॉकअप में डाल दूंगा।”
करिश्मा हैरान रह गई।
उसे समझ आ गया कि इंस्पेक्टर कानून का गलत इस्तेमाल कर रहा है।
वह शांत स्वर में बोली, “सर, मुझे जाने दीजिए। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।”
लेकिन मोहन सिंह और भड़क गया, “लगता है तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा। चलो, इसे थाने ले चलते हैं।”
दो सिपाहियों ने करिश्मा के हाथ पकड़ लिए।
करिश्मा ने झटके से हाथ छुड़ाते हुए कहा, “मुझे हाथ मत लगाओ। जानते नहीं हो मैं कौन हूं। भलाई चाहते हो तो मुझे जाने दो।”
यह सुनकर इंस्पेक्टर फिर थप्पड़ मार देता है।
अब तक करिश्मा सब सहन कर रही थी, लेकिन उसके मन में ठान चुकी थी कि इंस्पेक्टर को कानून के जरिए सबक सिखाएगी।
थाने पहुंचते ही मोहन सिंह ने बिना वजह करिश्मा के खिलाफ झूठी रिपोर्ट दर्ज की और उसे गंदे, अंधेरे लॉकअप में डाल दिया।
समय बीतता गया, तभी शाम को एसएचओ रवि सिंह आए।
उन्होंने मोहन सिंह से पूछा, “इसे लॉकअप में क्यों डाला?”
मोहन सिंह ने बेहिचक कहा, “बिना हेलमेट स्कूटी चला रही थी, बदतमीजी की, इसलिए मजा चखाने लाए हैं।”
रवि सिंह भी हंसते हुए बोले, “अच्छा किया। इन लोगों का एटीट्यूड बहुत होता है।”
करिश्मा समझ गई कि दोनों अधिकारी कानून के रक्षक नहीं, भक्षक हैं।
उसके पास ना मोबाइल था, ना मदद मांगने का तरीका।
लेकिन किस्मत ने साथ दिया।
शाम करीब 4 बजे उसकी मां एसपी कविता सिंह थाने पहुंचीं।
लॉकअप में खड़ी करिश्मा को देखकर हैरान रह गईं।
उन्होंने पूछा, “करिश्मा, तू यहां क्या कर रही है?”
पास खड़ा सिपाही तुरंत मोहन सिंह के पास गया और सब बता दिया।
मोहन सिंह का चेहरा सफेद पड़ गया।
वह घबराहट में बोला, “मैडम, यह आपकी बेटी है, मुझे नहीं पता था। माफ कर दीजिए।”
कविता सिंह ने सख्त आवाज में कहा, “अब जो करना है मैं करूंगी। आपने कानून और इंसानियत दोनों के खिलाफ काम किया है।”
उन्होंने एसएचओ रवि सिंह को बुलाया, “आपने मेरी बेटी को लॉकअप में क्यों डाला?”
करिश्मा ने पूरी घटना सुना दी—सड़क पर रोकना, बिना वजह चालान की धमकी, थप्पड़ मारना, बदतमीजी करना।
कविता सिंह समझ गईं कि मोहन सिंह और रवि सिंह ने वर्दी और पद का गलत इस्तेमाल किया है।
उन्होंने तय कर लिया कि अब इन्हें सजा दिलानी ही पड़ेगी।
उन्होंने तुरंत डीएम साहब को फोन किया और पूरी घटना की जानकारी दी।
थाने का माहौल सन्नाटे में बदल गया।
करीब 45 मिनट बाद सरकारी गाड़ियों का काफिला थाने पहुंचा।
डीएम साहब, एसीएम और अन्य अधिकारी आए।
डीएम साहब ने कविता सिंह से पूरी बात सुनी।
कविता सिंह ने कहा, “यह मेरी बेटी है, लेकिन पहले एक नागरिक है। सड़क पर बिना वजह रोका गया, झूठा चालान मांगा गया, थप्पड़ मारा गया, लॉकअप में डाला गया। बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के। मैं चाहती हूं कि आप इस मामले की जांच अभी यहीं शुरू करें।”
डीएम साहब ने आदेश दिया—गवाहों के बयान, मोबाइल वीडियो, सीसीटीवी फुटेज पेश किए जाएं।
तीन गवाह थाने पहुंचे।
एक बुजुर्ग दुकानदार ने कहा, “लड़की स्कूटी धीरे चला रही थी, हेलमेट नहीं था, लेकिन उसने किसी से बदतमीजी नहीं की। उल्टा इंस्पेक्टर साहब ने थप्पड़ मारा।”
दूसरे गवाह ने वीडियो दिखाया, जिसमें मोहन सिंह करिश्मा को थप्पड़ मार रहा है, 5000 के चालान की धमकी दे रहा है।
तीसरे गवाह ने भी यही बयान दोहराया।
सीसीटीवी फुटेज में दिखा—बिना पूछताछ के करिश्मा को सीधे लॉकअप में डाला गया, कोई लिखित बयान या गिरफ्तारी का कागज नहीं।
डीएम साहब ने मोहन सिंह से पूछा, “गिरफ्तारी की क्या वजह दर्ज की?”
मोहन सिंह चुप रह गया।
जांच के बाद डीएम साहब ने फैसला सुनाया—
इंस्पेक्टर मोहन सिंह और एसएचओ रवि सिंह को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाता है।
विभागीय जांच और आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाएगा।
थाने में मौजूद पुलिस वालों ने पहली बार देखा कि वर्दी पहनने वाले भी कानून के सामने झुक सकते हैं।
कविता सिंह ने बेटी की ओर देखा—आंखों में गर्व और चिंता दोनों थे।
“बेटी, आज तूने सहा बहुत कुछ, लेकिन गलत के आगे चुप नहीं रही। यही हिम्मत एक आम नागरिक को रखनी चाहिए।”
करिश्मा ने हल्की मुस्कान दी, “मां, आज समझ आया कि कानून का सही इस्तेमाल कितना जरूरी है और गलत हाथों में कितना खतरनाक।”
डीएम साहब ने जाते-जाते कहा, “यह मामला पूरे जिले के लिए मिसाल बनेगा कि कानून सबके लिए बराबर है।”
उस दिन के बाद उस थाने में हर पुलिस वाले के व्यवहार में बदलाव आ गया।
कोई भी बिना वजह चालान काटने या धमकी देने की हिम्मत नहीं करता था।
क्योंकि सबने देख लिया था कि कानून का आईना सबको एक जैसा दिखाता है।
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