बच्चे ने सिर्फ एक कचौड़ी मांगी थी.. कचौड़ी वाले ने जो दिया, पूरी इंसानियत हिल गई
मित्रों, यह कहानी एक भूखे बच्चे की है जिसने बस एक कचौड़ी मांगी थी। लेकिन कचौड़ी वाले ने जो किया, उसने इंसानियत को हिला कर रख दिया। और फिर उसके बाद जो हुआ, उसने हर किसी को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया। यह केवल एक छोटी सी घटना नहीं है बल्कि हमारे समाज की वह हकीकत है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। यह कहानी कहीं ना कहीं हम सबके लिए एक आईना है जो हमें हमारी संवेदनाओं और इंसानियत का असली चेहरा दिखाती है।
रामपाल का ठेला
यह कहानी है रामपाल की, जो प्रतिदिन अपना कचौड़ी का ठेला लेकर बाजार निकल जाता था। आज दोपहर का समय था। सड़क पर धूप तपा रही थी। गर्म हवा मानो लोगों की सांसों तक को जला रही थी। शहर की भीड़भाड़ में हर कोई अपने काम में दौड़ रहा था। किसी के हाथ में बैग, किसी के हाथ में सब्जियों का थैला, कोई रिक्शा खींच रहा था तो कोई भागते कदमों से अपने ऑफिस की ओर बढ़ रहा था। चारों ओर बस आवाजें थीं। हॉर्न, रिक्शों की घंटियां, ठेले वालों की पुकार।
उसी भीड़ के बीच एक किनारे पर रामपाल का ठेला खड़ा था। ठेले से उठती गरम-गरम कचौड़ियों की खुशबू दूर तक फैल रही थी। तेल की छनक, कढ़ाई में तैरती सुनहरी कचौड़ियां और उनके ऊपर से उठती भाप लोगों को अपनी ओर खींच रही थी। कई लोग ठेले के पास खड़े होकर जल्दी-जल्दी कचौड़ियां पैक करवा रहे थे। कोई नमक मिर्च की शिकायत कर रहा था। कोई चटनी ज्यादा डालने की मांग कर रहा था।
भूखे बच्चे की दास्तान
लेकिन इन्हीं आवाजों और इस भागदौड़ भरे दृश्य के बीच ठेले से थोड़ी दूरी पर एक नन्हा बच्चा खड़ा था। लगभग 12-13 साल का। फटे पुराने कपड़ों में, कपड़े इतने मैले कि रंग तक पहचान में नहीं आ रहे थे। चेहरे पर धूल जमी हुई थी। बाल बिखरे हुए थे और सबसे ज्यादा असर डाल रही थी उसकी आंखें। वो आंखें जिनमें ना चमक थी ना शरारत, बल्कि भूख और बेबसी का साया था। उसके होंठ सूख चुके थे। गाल अंदर धंस गए थे, जैसे कई दिनों से पेट भर खाना ना खाया हो।
लेकिन जैसे ही ठेले से आती गर्म कचौड़ियों की खुशबू उसके पास तक पहुंची, उसकी आंखों में एक उम्मीद की चमक उठी। वो वहीं खड़ा रह गया। उसकी नजरें ठेले पर टिक गईं। कुछ पल तक वो बस चुपचाप देखता रहा। दिल कह रहा था, “काश मुझे भी एक कचौड़ी मिल जाए।” लेकिन हकीकत यह थी कि उसकी जेब बिल्कुल खाली थी। ना एक रुपया ना एक सिक्का। बस भूख थी और आंखों में एक आस थी।
भीड़ के बीच उसका पेट जोर से आवाज करता मानो खुद अपने मालिक से कह रहा हो कि अब और इंतजार मत कर, कुछ खा ले। बच्चा धीरे-धीरे हिम्मत जुटाता है। ठेले के पास पहुंचता है। वो बहुत डर रहा था। उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं। हाथ कांप रहे थे और फिर कांपती आवाज में धीरे से कहता है, “भैया, एक कचौड़ी दे दो।”
कचौड़ी वाले की प्रतिक्रिया
ठेले वाला पहले तो चौंकता है। फिर अपनी कड़क आवाज में कहता है, “पैसे हैं तो लो वरना हट जाओ।” उसकी आवाज इतनी सख्त थी कि आसपास खड़े लोग भी एक पल को ठिठक गए। बच्चा सहम गया। आंसू उसकी आंखों में तैरने लगे। उसने धीरे से कहा, “भैया, पैसे नहीं हैं।” इतना कहकर वह धीरे-धीरे पीछे हटने लगा। उसके कदम डगमगा रहे थे और उसी वक्त कचौड़ी वाले की नजर उस बच्चे के कांपते हाथों और उसकी आंखों में तैरते आंसुओं पर पड़ी। वो ठिठक गया।
मन ही मन उसने सोचा, “क्या सचमुच इतना गिर गया हूं कि एक भूखे बच्चे को भी कचौड़ी ना दे सकूं?” अचानक उसका दिल पिघल गया। उसने चिमटा उठाया। कढ़ाई से दो गरमागरम कचौड़ियां निकालीं। भाप उठ रही थी। खुशबू फैल रही थी और फिर उन कचौड़ियों को अपने हाथों से उस भूखे बच्चे की ओर बढ़ा दिया। ठेले वाले की आंखों में अब गुस्सा नहीं बल्कि करुणा और ममता थी। वो मुस्कुराकर बोला, “खा ले बेटा, आज तू मेरा मेहमान है।”
बच्चे की खुशी
बच्चे की आंखें उस पल चमक उठीं। चेहरा खिल गया। भूख से कांपते होठों पर मासूम मुस्कान लौट आई। उसके कांपते हाथों ने बड़ी सावधानी से कचौड़ी थामी। मानो डर हो कि कहीं यह सपना टूट ना जाए। आंसू उसकी आंखों से बह निकले और भरराई हुई आवाज में उसने कहा, “भैया, भगवान आपको बहुत खुशियां दे।” वो पास ही ठेले के नीचे जमीन पर बैठ गया।
उसके हाथ में एक छोटा सा लिफाफा था। लेकिन यह कोई आम लिफाफा नहीं था। यह लिफाफा उसके लिए बचपन से ही बहुत कीमती था। उसने हमेशा इसका ख्याल रखा था। यह उसके लिए किसी खेल या खिलौने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। उसके पापा ने यह लिफाफा उसे बचपन में दिया था और वह इसे हमेशा संभाल कर आता रहा है। जिंदगी में चाहे कुछ भी हो, यह लिफाफा उसके लिए जान से भी ज्यादा कीमती था।
कचौड़ी का स्वाद
लेकिन भूख इतनी थी कि उसने उस लिफाफे को ठेले पर रख दिया और गरमा गर्म कचौड़ी खाने लगा। फटे कपड़े, धूल से सना चेहरा लेकिन आंखों में अब चमक थी। हर कौर उसके लिए किसी अमृत से कम नहीं था। दो-तीन दिन से अधेट भूखा रहने के बाद आज उसके शरीर को राहत मिली थी। वह ऐसे खा रहा था जैसे यह उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी दावत हो। ठेले पर रखा लिफाफा वहीं सुरक्षित पड़ा था, जैसे उसका छोटा सा खजाना। लेकिन बच्चे के लिए उस समय सबसे कीमती चीज वह कचौड़ी थी जिसे उसने तृप्ति से खाया।
इंसानियत की मिसाल
उस पल की खुशी उसके चेहरे की मुस्कान, उसकी आंखों की चमक, किसी महल की रसोई, किसी दावत, किसी भोज से लाख गुना बड़ी थी। ठेले के आसपास खड़े लोग चुपचाप यह दृश्य देख रहे थे। कुछ की आंखें नम हो गईं। किसी ने रुमाल से चुपचाप अपने आंसू पोंछ लिए और तभी किसी ने धीमी आवाज में कहा, “आज भी इंसानियत जिंदा है।”
रामपाल जो अपने ठेले पर कचौड़ी बेच रहा था, बार-बार उसी लिफाफे की ओर देख रहा था जो बच्चे के पास होने के बजाय ठेले के किनारे सुरक्षित रखा हुआ था। उसकी आंखें उस लिफाफे पर टिक गईं और मन में अनजाने सवाल उठ रहे थे। आखिर इसमें क्या है? कहीं पैसे तो नहीं छुपे हैं। लेकिन फिर उसकी नजर उस बच्चे के चेहरे पर पड़ी, जो भूख से कांपते होठों और धूल जमे गालों के साथ कचौड़ी खा रहा था और रामपाल का मन भीतर ही भीतर उत्तेजना से भर उठा।
लिफाफे का रहस्य
उसे देखने की इच्छा हो रही थी कि आखिर इस लिफाफे में क्या रखा है। कुछ पल के भीतर वह उतावला सा हो गया और धीरे-धीरे लिफाफे की ओर हाथ बढ़ाया। चुपके से उसे खोला और जैसे ही उसने अंदर देखा, उसकी आंखें फैल गईं। लिफाफे में एक पुरानी तस्वीर थी जिसमें वही लड़का बहुत छोटा सा दिखाई दे रहा था और उसकी गोद में बैठी महिला कोई और नहीं बल्कि उसकी मां थी।
वह महिला बहुत ही सुंदर और समृद्ध लग रही थी जैसे किसी अमीर घर की हो। उसके पहनावे और गरिमा से साफ पता चल रहा था कि वह अत्यंत प्रतिष्ठित और संपन्न है और यह देख रामपाल चौंक उठा। उसके मन में भारी विरोधाभास उभर आया। अगर इस बच्चे की मां इतनी अमीर है तो यह बच्चा जो फटे पुराने कपड़े पहने, चेहरे पर धूल और भूख के साथ ठेले के पास बैठा है, इस दयनीय हालत में क्यों है?
मां की यादें
रामपाल कुछ क्षण के लिए बस उसी फोटो और बच्चे को देखता ही रह गया। उसके मन में हैरानी, करुणा और सोच का तूफान उठ गया। रामपाल ने धीरे-धीरे बच्चे की ओर देखा और पूछा, “बेटा, यह लिफाफे में जो फोटो है, यह किसकी है?” बच्चे की आंखों में पहले तो चौक का भाव आया। फिर जैसे ही उसने कचौड़ी का एक कौर लिया, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और भराई आवाज में रोते हुए धीरे-धीरे बोला, “भैया, यह मेरी मां की फोटो है। वो मुझसे बहुत दिन पहले बिछड़ गई हैं और मैं बहुत दिनों से उन्हें ढूंढ रहा हूं। यह फोटो मेरे लिए जान से भी प्यारी है क्योंकि मुझे जब भी मां की याद आती है, मैं इसे देख लेता हूं और मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी मां मुझे एक दिन जरूर मिलेंगी।”
रामपाल उसकी बातें सुनता रहा। उसके भीतर करुणा और सोच का तूफान उठ गया और उसने चुपचाप देखा कि बच्चा अपने भावों और भूख में कितना अकेला है। उसने लिफाफा संभालकर फोटो को वापस लिफाफे में रख दिया और अपने पास रख लिया। जैसे यह किसी छोटे खजाने से कम ना हो। वहीं बच्चा अब पूरी तृप्ति के साथ कचौड़ियों को खा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे 2 दिन से उसने कुछ खाया ही ना हो। हर कौर उसके लिए अमृत समान था।
बच्चे का विदाई
जैसे ही उसने सारी कचौड़ियां खा ली, उसने प्लेट को ठेले पर रख दिया और रामपाल की ओर देखकर धन्यवाद किया। फिर धीरे-धीरे उठकर उसी गर्मी और धूप में सड़क की ओर बढ़ गया और कुछ ही क्षण में वह लोगों की भीड़ में कहीं गायब हो गया। रामपाल वहीं खड़ा उसे देखता रहा। उसके दिल में एक अजीब तरह का तरस और चिंता उभर रही थी। लेकिन अचानक उसकी नजर ठेले की ओर गई और उसने देखा कि वही लिफाफा जिसमें उस बच्चे की मां की फोटो थी, वहीं ठेले पर रह गया था।
लिफाफे की खोज
रामपाल का मन भारी हो गया। उसे लगा कि बच्चा अपना सबसे कीमती खजाना छोड़कर चला गया है। वह बाजार में चारों ओर बच्चे को ढूंढने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया। अंततः वो लौट कर अपनी दुकान पर आया। सोच में डूबा कि अब मैं क्या करूं? यह बच्चा और इसका लिफाफा मुझे कैसे मिलेंगे। धूप बहुत तेज थी और सारी कचौड़ियां भी बिक चुकी थीं। उसने अपना ठेला समेट लिया। लिफाफा अपनी थैली में रख लिया और बार-बार उसी बच्चे की मासूमियत, भूख, रोते हुए चेहरे और उसकी बातें याद करने लगा।
घर की चिंता
रामपाल जब घर पहुंचा तो उसने अपना थैला अपनी छोटी बहन को दे दिया और वह उत्सुकता से थैला खोलने लगी। उसकी नजर तुरंत उस लिफाफे वाली फोटो पर पड़ी। वह तुरंत लिफाफा खोली और उसमें से फोटो निकालकर गौर से देखने लगी। फिर अपने भाई से पूछ बैठी, “भैया, यह फोटो किसकी है और यह लड़का कौन है?” रामपाल ने गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे बहन को सारी बात बतानी शुरू की।
वो बोला, “आज मेरे ठेले पर एक लड़का आया था। उसकी हालत बहुत दयनीय थी। चेहरे पर धूल, फटे कपड़े, भूख और डर से कांपते हाथ। मैंने उसे कचौड़ी दी। वह भूख मिटाकर खुशी से खा रहा था। उसके हाथ में एक लिफाफा था। लेकिन वह भूख में उसे वहीं ठेले पर रखकर चला गया और मैं उसे ढूंढता रहा पर वह मुझे नहीं मिला।”
मां की पहचान
रामपाल ने फिर बहन को समझाया कि इस लिफाफे में वही फोटो है जिसमें उसकी मां दिखाई दे रही है और यह छोटा सा बच्चा वही लड़का है जो अपनी मां को ढूंढ रहा है। यह सुनते ही उसकी बहन की आंखें नम हो गईं और उसने कहा, “भैया, इस औरत को देखो कितनी सुंदर और कितनी अमीर है। लेकिन इसका बच्चा इतना गरीब और भूख से व्याकुल क्यों घूम रहा था। आखिर ऐसा क्या हो गया इसके साथ?”
दोनों इस बारे में गहरी सोच में डूबे थे और बात कर ही रहे थे कि तभी अचानक वहां रामपाल की मां भी आ गई और अब वह भी उनके सामने खड़ी थी जिससे कमरे का माहौल और भी भावुक और संवेदनशील हो गया। जैसे ही रामपाल की मां ने वह फोटो देखी, वह एक पल के लिए ठहर गई और सन रह गई। उसके चेहरे पर हैरानी और चौंक का भाव साफ झलक रहा था।
मां का संकल्प
उसने धीरे-धीरे कहा, “बेटा, यह फोटो मुझे कहीं देखी हुई लग रही है। शायद मैं इसे जानती हूं, लेकिन मेरे दिमाग में नहीं आ रहा कि मैंने इसे कहां देखा है।” रामपाल हैरानी से सोचने लगा और बोला, “मां, अगर आपने इसे देखा है तो कृपया याद करने की कोशिश कीजिए। हो सकता है कि हम इस बच्चे की मदद कर सकें।”
वो बहुत घबराई हुई थी। लेकिन उसके मन में एक उम्मीद थी कि शायद उसका यह कदम उस बच्चे को उसकी मां से मिला देगा। उसने फोटो को लिफाफे में रख दिया और गहरी सांस लेकर बोली, “कल मैं इस फोटो को अपने साथ लेकर जाऊंगी। हो सकता है बार-बार देखने पर मुझे याद आ जाए कि मैंने इसे कहां देखा है।”
रात की बेचैनी
उस रात तीनों बिस्तर पर लेटे रहे लेकिन नींद नहीं आई। रामपाल के सामने बार-बार उस बच्चे का मासूम चेहरा घूम रहा था जो अपनी मां को ढूंढ रहा था। अगली सुबह सभी तैयार होकर अपने काम के लिए निकलने लगे। रामपाल की मां भी दूसरे घर काम करने के लिए तैयार हुई। लेकिन जाते-जाते उसने थैली से लिफाफा निकालते हुए कहा, “बेटा, आज मैं इस फोटो को अपने साथ ले जा रही हूं। कल से मेरा मन बार-बार यही कह रहा है कि मैंने इस औरत को कहीं तो देखा है। हो सकता है दिन में काम के बीच अचानक याद आ जाए कि मैंने इसे कहां देखा था।”
रामपाल ने सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है मां, अगर आपने इसे देखा तो शायद इस बच्चे को उसकी दुनिया मिल जाए। आप इसे ले जाइए।” रामपाल की बहन भी तैयार होकर स्कूल निकल गई और रामपाल अपने ठेले पर जाने के लिए सारे सामान इकट्ठा करने लगा। उसने आलू वाला मसाला तैयार किया और सारी चीजें व्यवस्थित की। लेकिन उसका मन बार-बार उसी तस्वीर पर अटका हुआ था।
मां का संयोग
उधर रामपाल की मां अपने काम में लगी हुई थी। लेकिन उसका मन भी बार-बार उसी फोटो पर ही टिक गया और वह बीच-बीच में काम रोक कर लिफाफा निकालकर फोटो को देखती और याद करने की कोशिश करती कि आखिर यह औरत उसे कहां से जाने पहचाने लगती थी। तभी अचानक रसोई में रखा एक गिलास उसके हाथ से गिरकर टूट गया। और जैसे ही गिलास टूटा, उसकी यादों में बिजली की तरह चमक उठी। लगभग 7-8 महीने पहले जब वो एक अमीर घर में काम करती थी, वहां एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे जो अत्यंत अमीर थे और वहीं पर एक औरत भी रहती थी।
पहचान की खुशी
वह औरत कोई और नहीं बल्कि वही थी जो फोटो में दिखाई दे रही थी। वो चौंकते हुए सोचने लगी, “हां, यह वही है। मैंने इसे देखा है और उसके घर पर मैंने काम भी किया है।” जैसे ही रामपाल की मां का काम खत्म हुआ, वह तुरंत पुराने पते पर चली गई जहां वह पहले काम करती थी। वो बहुत घबराई हुई थी। लेकिन उसके मन में एक उम्मीद थी कि शायद उसका यह कदम उस बच्चे को उसकी मां से मिला देगा।
मां का प्रयास
वह उस बड़े से मकान के बाहर खड़ी हुई और गहरी सांस लेकर दरवाजा खटखटाया। थोड़ी देर बाद वही बुजुर्ग मालकिन दरवाजे पर आई और चौंक कर बोली, “अरे तुम! तुम्हें तो हमारा काम छोड़े महीना बीत गया। अब यहां क्यों आई हो?” रामपाल की मां ने हाथ जोड़ते हुए विनम्रता से कहा, “मालकिन, मुझे आपसे एक बहुत जरूरी बात करनी है। आपके घर में जो औरत रहती है, जो बहुत ही शांत और कम बोलती है, क्या मैं उससे मिल सकती हूं?”
मालकिन ने शक भरी नजरों से पूछा, “आखिर ऐसा क्यों? तुम्हें उससे क्या काम है?” रामपाल की मां ने धीरे से लिफाफा खोला और उसमें जो फोटो थी वह सीधे मालकिन के सामने रख दी और कहा, “यह देखिए, यह वही औरत है और यह बच्चा अपनी मां को ढूंढते-ढूंढते भिखारी जैसी हालत में इधर-उधर भटक रहा है।” जैसे ही मालकिन ने फोटो देखी, वह दंग रह गई और बोली, “हां, तुम ठीक कह रही हो। यह वही औरत है। आओ मेरे साथ।”
मां का मिलन
वो रामपाल की मां को लेकर अंदर चली गई और थोड़ी देर बाद उस औरत को बाहर लेकर आई। रामपाल की मां ने फोटो उसके चेहरे से मिलाई और एक पल में ही पहचान लिया। मन में सोचते हुए कि हां, यह वही है। औरत बहुत गुमसुम और जीवन से कटी हुई नजर आ रही थी। जैसे उसने जीवन से लड़ने की ताकत खो दी हो।
दूसरी तरफ रामपाल अपने ठेले पर उस बच्चे को याद करते हुए सोच रहा था कि काश वो बच्चा मुझे फिर से दिखाई दे। सुबह से शाम तक वह बार-बार चारों तरफ नजर दौड़ाता रहा। लेकिन बच्चा नहीं आया। शाम होते-होते एक बड़ी कार उसके ठेले के पास रुकी और उसमें से एक बुजुर्ग आदमी उतरा। रामपाल ने सोचा, “शायद यह मेरा कोई ग्राहक है जो कचौड़ियां लेने आया है।” और उसने कहा, “साहब जी, कितनी कचौड़ियां बना दूं आपके लिए?”
बुजुर्ग का संदेश
लेकिन अमीर बुजुर्ग आदमी ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि तुमने कल मेरे नाती को खाना खिलाया था। वह अपनी मां का फोटो तुम्हारे पास भूल गया है। मैं वही लेने आया हूं। और हां, उसने जो कचौड़ी खाई थी, उसके पैसे भी देने आया हूं।” रामपाल आश्चर्य और भावुकता से उस आदमी की तरफ देखने लगा और बोला, “साहब जी, क्या सच में वह बच्चा आपका नाती था? उसकी हालत देखकर मुझे यकीन नहीं हो रहा।”
बुजुर्ग आदमी की आंखों में नमी आ गई। उन्होंने गहरी सांस ली और कहा, “हां बेटा, वही मेरा नाती है। दरअसल, उसकी मां मेरी बेटी थी। हमारी इकलौती संतान, मेरी बेटी का नाम नेहा है। वह बहुत हसमुख और खुशमिजाज थी। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन कॉलेज में उसे एक लड़के से प्यार हो गया। जब हमें इस बारे में पता चला, तो हमने उसे मना किया और समझाया कि यह गलत है। लेकिन उसने हमारी एक ना सुनी और एक दिन उसने उस लड़के के साथ भागने का फैसला किया और वह भाग गई।”
परिवार का दुख
बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे बताया, “हमारे लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। हमें लगा कि उसने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है। इसलिए हमने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए। रामपाल, ध्यान से सुनो। कुछ साल बाद हमें खबर मिली कि उस लड़के की मौत हो गई। नेहा उस सदमे को सह नहीं पाई और मजबूरी में उसने उसे और उसके छोटे बेटे यानी मेरे नाती को अपने घर ले लिया। शुरू-शुरु में सब ठीक था लेकिन पति की मौत के बाद उसकी मानसिक हालत बिगड़ने लगी। हम उसे डॉक्टर के पास ले गए। दवाइयां भी दी। लेकिन एक दिन अचानक उसने दरवाजा खोला और कहीं चली गई। हमने बहुत ढूंढा पर वह कभी वापस नहीं लौटी। उसका बेटा, मेरा नाती, अपनी मां से बहुत प्यार करता है और जब से समझना शुरू किया है, वह फोटो लेकर हर जगह मां को ढूंढने निकल जाता है। लेकिन बेचारा अपनी मां को कहीं नहीं पा सका। कल वो तुम्हारे ठेके पर आया था।”
रामपाल की मदद
रामपाल ने गहरी संवेदनाओं के साथ उसकी बातें सुनी और धीरे से कहा, “अंकल जी, फोटो मेरे पास नहीं है। दरअसल, मैंने उसे अपनी मां को दे दिया था। उन्होंने कहा था कि शायद उन्होंने इस औरत को कहीं देखा है। इसलिए मैंने उन्हें दिया ताकि वह याद करने की कोशिश कर सकें।”
बुजुर्ग की आंखें चमक उठीं और बोले, “क्या सच में तुम्हारी मां ने उसे देखा है?” रामपाल ने सिर हिलाते हुए कहा, “हां अंकल जी, कल रात वह कह रही थी कि चेहरा उन्हें जाना पहचाना लग रहा है लेकिन याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है।”
उम्मीद की किरण
बुजुर्ग ने तुरंत कहा, “बेटा, अगर तुम्हारी मां ने सच में उसे देखा है तो शायद मेरी बेटी मुझे मिल जाए। यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी उम्मीद होगी।” रामपाल ने भरोसा दिलाया, “आप चिंता मत कीजिए। जैसे ही मेरी मां लौटेंगी, मैं उनसे पूछूंगा और आपको खबर दूंगा।”
बुजुर्ग ने जेब से एक कार्ड निकालकर रामपाल को थमा दिया और कहा, “इसमें मेरा नंबर और पता है। अगर तुम्हें मेरी बेटी के बारे में कोई खबर मिले तो मुझे तुरंत बता देना। चाहे तुम खुद फोन ना कर पाओ, पड़ोसी से करवा देना।” इतना कहकर वह बुजुर्ग कार में बैठे और धीरे-धीरे चले गए और रामपाल वहीं खड़ा अपनी संवेदना और उस मासूम बच्चे की तस्वीर को मन में दोहराता रहा।
नई आशा
रामपाल के दिल में अब एक नई बेचैनी बैठ गई थी। उसके मन में सवाल उठ रहे थे। “क्या सच में उसकी मां ने उसी औरत को देखा है? अगर हां तो क्यों और कैसे? कितनी अजीब नियति उसे इस बच्चे और इसकी मां से जोड़ रही थी।” शाम ढलते ही रामपाल घर पहुंचा और वहां उसकी मां पहले से ही इंतजार कर रही थी। उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और आंखों में हल्की चिंता का मिश्रित भाव था।
मां का संकल्प
उन्होंने रामपाल को देखते ही कहा, “बेटा, आज मुझे सब याद आ गया। मैंने सच में उस औरत को देखा था। वह पास के बड़े घर में रहती है जहां मैं काम किया करती थी। वहां बुजुर्ग दंपत्ति उसे अपने घर में रखे हुए थे और वह हमेशा चुपचाप गुमसुम सी किसी और दुनिया में रहने वाली लगती थी।”
रामपाल की आंखें चमक उठीं। उसके दिल में अचानक एक आशा की किरण फूटी। “अम्मा, तो फिर वही है। वही उस बच्चे की मां है और आज उसके पिता यानी उसके नाना मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझे सब बताया और कहा कि अगर उनकी बेटी मिल जाए तो तुरंत खबर देना।” मां ने राहत की सांस ली और कहा, “चलो, पड़ोस वाले घर से फोन कर लेते हैं। उन्हें सब बता देते हैं। कल ही वह आकर अपनी बेटी को ले जाएंगे।”
मिलन की तैयारी
तीनों मां, बेटा और बहन पड़ोसी के घर गए। वहां से उन्होंने अमीर व्यक्ति को फोन कर पूरा पता दे दिया। कुछ ही देर बाद रात के अंधेरे में झोपड़ी के बाहर एक बड़ी कार आकर रुकी। झोपड़ी के सामने खड़ी उस विशाल गाड़ी को देखकर पूरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए। हैरानी और उत्सुकता के भाव उनके चेहरे पर थे कि आखिर इतनी बड़ी गाड़ी इस गरीब बस्ती में क्यों आई है?
मां का इंतजार
जैसे ही दरवाजा खुला, बाहर वही बुजुर्ग आदमी उतरे। उनके साथ उनका नन्हा सा नाती भी था। आज अच्छे कपड़ों में चेहरे पर चमक लिए बुजुर्ग ने रामपाल को देखते ही कहा, “बेटा, कहां है मेरी बेटी? मुझे उससे मिला दो। कई सालों से उसकी एक झलक देखने के लिए तरस रहा हूं।” रामपाल ने अपनी मां और बहन के साथ उन्हें पास के उस बड़े घर तक पहुंचाया जहां वह औरत रहती थी।
मिलन का क्षण
जैसे ही दरवाजा खुला और वह औरत सामने आई, बच्चे ने अचानक जोर से पुकारा, “मां!” और दौड़कर उसकी ओर लिपट गया। उसकी आंखों से आंसू झरझर गिर रहे थे। बुजुर्ग पिता भी अपनी बेटी को देखकर भावनाओं से उबल पड़े और रोने लगे। लेकिन ना वो औरत एकदम गुमसुम खड़ी रही। उसके चेहरे पर कोई पहचान की चमक नहीं थी जैसे उसने जीवन से लड़ने की ताकत खो दी हो।
पहचान का संघर्ष
दूसरी तरफ रामपाल अपने ठेले पर उस बच्चे को याद करते हुए सोच रहा था कि काश वो बच्चा मुझे फिर से दिखाई दे। सुबह से शाम तक वह बार-बार चारों तरफ नजर दौड़ाता रहा। लेकिन बच्चा नहीं आया। शाम होते-होते एक बड़ी कार उसके ठेले के पास रुकी और उसमें से एक बुजुर्ग आदमी उतरा।
उम्मीद की किरण
रामपाल ने सोचा, “शायद यह मेरा कोई ग्राहक है जो कचौड़ियां लेने आया है।” और उसने कहा, “साहब जी, कितनी कचौड़ियां बना दूं आपके लिए?” लेकिन अमीर बुजुर्ग आदमी ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि तुमने कल मेरे नाती को खाना खिलाया था। वह अपनी मां का फोटो तुम्हारे पास भूल गया है। मैं वही लेने आया हूं। और हां, उसने जो कचौड़ी खाई थी, उसके पैसे भी देने आया हूं।”
बुजुर्ग का दुख
रामपाल आश्चर्य और भावुकता से उस आदमी की तरफ देखने लगा और बोला, “साहब जी, क्या सच में वह बच्चा आपका नाती था? उसकी हालत देखकर मुझे यकीन नहीं हो रहा।” बुजुर्ग आदमी की आंखों में नमी आ गई। उन्होंने गहरी सांस ली और कहा, “हां बेटा, वही मेरा नाती है। दरअसल, उसकी मां मेरी बेटी थी। हमारी इकलौती संतान, मेरी बेटी का नाम नेहा है। वह बहुत हसमुख और खुशमिजाज थी। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन कॉलेज में उसे एक लड़के से प्यार हो गया। जब हमें इस बारे में पता चला, तो हमने उसे मना किया और समझाया कि यह गलत है। लेकिन उसने हमारी एक ना सुनी और एक दिन उसने उस लड़के के साथ भागने का फैसला किया और वह भाग गई।”
परिवार का दुख
बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे बताया, “हमारे लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। हमें लगा कि उसने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है। इसलिए हमने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए। रामपाल, ध्यान से सुनो। कुछ साल बाद हमें खबर मिली कि उस लड़के की मौत हो गई। नेहा उस सदमे को सह नहीं पाई और मजबूरी में उसने उसे और उसके छोटे बेटे यानी मेरे नाती को अपने घर ले लिया। शुरू-शुरु में सब ठीक था लेकिन पति की मौत के बाद उसकी मानसिक हालत बिगड़ने लगी। हम उसे डॉक्टर के पास ले गए। दवाइयां भी दी। लेकिन एक दिन अचानक उसने दरवाजा खोला और कहीं चली गई। हमने बहुत ढूंढा पर वह कभी वापस नहीं लौटी। उसका बेटा, मेरा नाती, अपनी मां से बहुत प्यार करता है और जब से समझना शुरू किया है, वह फोटो लेकर हर जगह मां को ढूंढने निकल जाता है। लेकिन बेचारा अपनी मां को कहीं नहीं पा सका। कल वो तुम्हारे ठेके पर आया था।”
रामपाल की मदद
रामपाल ने गहरी संवेदनाओं के साथ उसकी बातें सुनी और धीरे से कहा, “अंकल जी, फोटो मेरे पास नहीं है। दरअसल, मैंने उसे अपनी मां को दे दिया था। उन्होंने कहा था कि शायद उन्होंने इस औरत को कहीं देखा है। इसलिए मैंने उन्हें दिया ताकि वह याद करने की कोशिश कर सकें।”
बुजुर्ग की आंखें चमक उठीं और बोले, “क्या सच में तुम्हारी मां ने उसे देखा है?” रामपाल ने सिर हिलाते हुए कहा, “हां अंकल जी, कल रात वह कह रही थी कि चेहरा उन्हें जाना पहचाना लग रहा है लेकिन याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है।”
उम्मीद की किरण
बुजुर्ग ने तुरंत कहा, “बेटा, अगर तुम्हारी मां ने सच में उसे देखा है तो शायद मेरी बेटी मुझे मिल जाए। यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी उम्मीद होगी।” रामपाल ने भरोसा दिलाया, “आप चिंता मत कीजिए। जैसे ही मेरी मां लौटेंगी, मैं उनसे पूछूंगा और आपको खबर दूंगा।”
बुजुर्ग ने जेब से एक कार्ड निकालकर रामपाल को थमा दिया और कहा, “इसमें मेरा नंबर और पता है। अगर तुम्हें मेरी बेटी के बारे में कोई खबर मिले तो मुझे तुरंत बता देना। चाहे तुम खुद फोन ना कर पाओ, पड़ोसी से करवा देना।” इतना कहकर वह बुजुर्ग कार में बैठे और धीरे-धीरे चले गए और रामपाल वहीं खड़ा अपनी संवेदना और उस मासूम बच्चे की तस्वीर को मन में दोहराता रहा।
नई आशा
रामपाल के दिल में अब एक नई बेचैनी बैठ गई थी। उसके मन में सवाल उठ रहे थे। “क्या सच में उसकी मां ने उसी औरत को देखा है? अगर हां तो क्यों और कैसे? कितनी अजीब नियति उसे इस बच्चे और इसकी मां से जोड़ रही थी।” शाम ढलते ही रामपाल घर पहुंचा और वहां उसकी मां पहले से ही इंतजार कर रही थी। उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और आंखों में हल्की चिंता का मिश्रित भाव था।
मां का संकल्प
उन्होंने रामपाल को देखते ही कहा, “बेटा, आज मुझे सब याद आ गया। मैंने सच में उस औरत को देखा था। वह पास के बड़े घर में रहती है जहां मैं काम किया करती थी। वहां बुजुर्ग दंपत्ति उसे अपने घर में रखे हुए थे और वह हमेशा चुपचाप गुमसुम सी किसी और दुनिया में रहने वाली लगती थी।”
रामपाल की आंखें चमक उठीं। उसके दिल में अचानक एक आशा की किरण फूटी। “अम्मा, तो फिर वही है। वही उस बच्चे की मां है और आज उसके पिता यानी उसके नाना मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझे सब बताया और कहा कि अगर उनकी बेटी मिल जाए तो तुरंत खबर देना।” मां ने राहत की सांस ली और कहा, “चलो, पड़ोस वाले घर से फोन कर लेते हैं। उन्हें सब बता देते हैं। कल ही वह आकर अपनी बेटी को ले जाएंगे।”
मिलन की तैयारी
तीनों मां, बेटा और बहन पड़ोसी के घर गए। वहां से उन्होंने अमीर व्यक्ति को फोन कर पूरा पता दे दिया। कुछ ही देर बाद रात के अंधेरे में झोपड़ी के बाहर एक बड़ी कार आकर रुकी। झोपड़ी के सामने खड़ी उस विशाल गाड़ी को देखकर पूरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए। हैरानी और उत्सुकता के भाव उनके चेहरे पर थे कि आखिर इतनी बड़ी गाड़ी इस गरीब बस्ती में क्यों आई है?
मां का इंतजार
जैसे ही दरवाजा खुला, बाहर वही बुजुर्ग आदमी उतरे। उनके साथ उनका नन्हा सा नाती भी था। आज अच्छे कपड़ों में चेहरे पर चमक लिए बुजुर्ग ने रामपाल को देखते ही कहा, “बेटा, कहां है मेरी बेटी? मुझे उससे मिला दो। कई सालों से उसकी एक झलक देखने के लिए तरस रहा हूं।” रामपाल ने अपनी मां और बहन के साथ उन्हें पास के उस बड़े घर तक पहुंचाया जहां वह औरत रहती थी।
मिलन का क्षण
जैसे ही दरवाजा खुला और वह औरत सामने आई, बच्चे ने अचानक जोर से पुकारा, “मां!” और दौड़कर उसकी ओर लिपट गया। उसकी आंखों से आंसू झरझर गिर रहे थे। बुजुर्ग पिता भी अपनी बेटी को देखकर भावनाओं से उबल पड़े और रोने लगे। लेकिन ना वो औरत एकदम गुमसुम खड़ी रही। उसके चेहरे पर कोई पहचान की चमक नहीं थी जैसे उसने जीवन से लड़ने की ताकत खो दी हो।
पहचान का संघर्ष
दूसरी तरफ रामपाल अपने ठेले पर उस बच्चे को याद करते हुए सोच रहा था कि काश वो बच्चा मुझे फिर से दिखाई दे। सुबह से शाम तक वह बार-बार चारों तरफ नजर दौड़ाता रहा। लेकिन बच्चा नहीं आया। शाम होते-होते एक बड़ी कार उसके ठेले के पास रुकी और उसमें से एक बुजुर्ग आदमी उतरा।
उम्मीद की किरण
रामपाल ने सोचा, “शायद यह मेरा कोई ग्राहक है जो कचौड़ियां लेने आया है।” और उसने कहा, “साहब जी, कितनी कचौड़ियां बना दूं आपके लिए?” लेकिन अमीर बुजुर्ग आदमी ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि तुमने कल मेरे नाती को खाना खिलाया था। वह अपनी मां का फोटो तुम्हारे पास भूल गया है। मैं वही लेने आया हूं। और हां, उसने जो कचौड़ी खाई थी, उसके पैसे भी देने आया हूं।”
बुजुर्ग का दुख
रामपाल आश्चर्य और भावुकता से उस आदमी की तरफ देखने लगा और बोला, “साहब जी, क्या सच में वह बच्चा आपका नाती था? उसकी हालत देखकर मुझे यकीन नहीं हो रहा।” बुजुर्ग आदमी की आंखों में नमी आ गई। उन्होंने गहरी सांस ली और कहा, “हां बेटा, वही मेरा नाती है। दरअसल, उसकी मां मेरी बेटी थी। हमारी इकलौती संतान, मेरी बेटी का नाम नेहा है। वह बहुत हसमुख और खुशमिजाज थी। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन कॉलेज में उसे एक लड़के से प्यार हो गया। जब हमें इस बारे में पता चला, तो हमने उसे मना किया और समझाया कि यह गलत है। लेकिन उसने हमारी एक ना सुनी और एक दिन उसने उस लड़के के साथ भागने का फैसला किया और वह भाग गई।”
परिवार का दुख
बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे बताया, “हमारे लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। हमें लगा कि उसने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है। इसलिए हमने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए। रामपाल, ध्यान से सुनो। कुछ साल बाद हमें खबर मिली कि उस लड़के की मौत हो गई। नेहा उस सद
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