“अमी, हमें भूख लगी है… वापस आ जाइए 😭 यतीम बच्चियों की फ़रियाद।”
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उम्मीद की किरण
भाग 1: मासूमियत का दर्द
गर्मियों की एक दोपहर थी। सूरज अपनी पूरी रोशनी और गर्मी के साथ चमक रहा था। कब्रिस्तान में दो नन्ही बच्चियां, फातिमा और अस्मा, अपनी मां की कब्र के सिरहाने बैठी थीं। उनकी आंखों में आंसू थे और वे रोते-रोते कह रही थीं, “अम्मा, वापस आ जाओ। हमें भूख लगी है। चाची हमें मारती है। हम आपको बहुत याद करते हैं।” यह दृश्य इतना दिल दहला देने वाला था कि देखने वाले की रूह भी झंझोड़ जाती थी।
भाग 2: चाची की सख्ती
एक महीने पहले ही फातिमा और अस्मा के माता-पिता का इंतकाल हो गया था। मां के जाने के बाद उनकी जिंदगी बेरहम हो गई थी। अब वे अपनी चाची के रहम-ओ-करम पर थीं, जो निहायत ही सख्त और कठोर थीं। दोनों बच्चियों को काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
जब फातिमा और अस्मा कुएं से पानी भरकर घर लौटती थीं, तो चाची की चीखें सुनाई देती थीं। “अभी तक क्या कर रही थीं तुम दोनों? जाओ पहले काम खत्म करो!” चाची का गुस्सा और बढ़ जाता था। “भूख तो तुम लोगों को हर वक्त लगती है। जाओ, पहले कपड़े धो, फिर खाना मिलेगा।”
भाग 3: भूख और थकान
भूखे पेट और थकी हुई हालत में, दोनों बहनें अपने छोटे-छोटे हाथों से कपड़े धोने लगीं। जिंदगी उनके लिए एक सख्त इम्तिहान थी, जहां हर लम्हा जद्दोजहद और सब्र की डगर पर गुजरता था। फातिमा ने अस्मा से कहा, “चलो, अम्मा की कब्र पर चलते हैं।” अस्मा ने कहा, “अगर लेट हो गए, तो चाची से डांट पड़ेगी।” लेकिन अस्मा की जिद के आगे फातिमा को हार माननी पड़ी और दोनों कब्रिस्तान की तरफ चल पड़ीं।
भाग 4: कब्रिस्तान की यादें
जब वे कब्रिस्तान पहुंचीं, उनकी आंखों से बेख्तियार आंसू बहने लगे। “अम्मा, वापस आ जाइए। हमें बहुत भूख लगी है। चाची हमें बहुत मारती है,” वे रोते हुए कहने लगीं। फिर वे उठीं और कुएं से पानी भरकर घर वापस आ गईं। चाची ने कहा, “अभी तक क्या कर रही थीं तुम दोनों?”
फातिमा ने कहा, “चाची, हम कुएं पर और भी गांव की औरतें थीं, इसीलिए पानी भरने में लेट हो गए।” चाची ने बचा कुचा कुछ खाना उनके आगे रख दिया। दोनों बहनों ने सब्र और शुक्र के साथ किचन में बैठकर वो खाना खाया।

भाग 5: अस्मा की बीमारी
एक रोज, अस्मा की तबीयत बहुत खराब थी। रात भर उसे खांसी और बुखार रहा और फातिमा उसके सिरहाने बैठी रही। सुबह फातिमा ने चाची से कहा, “चाची, अस्मा की तबीयत बहुत खराब है। बुखार भी है और खांसी भी है। उसे डॉक्टर के पास ले चलें।”
यह सुनकर चाची गुस्से से बोली, “तुम्हारे पास पैसे हैं कि डॉक्टर के पास जाना है? कुछ नहीं होता तुम जैसी मनहूसों को। चल जाओ और अपना काम करो, खुद ही ठीक हो जाएगी।” दुखी दिल के साथ फातिमा वहां से पलट गई और आंगन में आकर बर्तन धोने लगी।
भाग 6: अस्मा का निधन
मगर उसका ज़हन बार-बार अस्मा की तरफ जा रहा था, जो बुखार में अंदर तड़प रही थी। घर के कामों से फॉरग होकर, जैसे ही फातिमा अंदर गई, उसे देखकर दिल दहल गया। अस्मा चारपाई पर बेहोश पड़ी थी। आंखें बंद और जिस्म ठंडा पड़ चुका था।
फातिमा ने अस्मा को हिलाया और चीखें मारी, “अस्मा, उठो। क्या हुआ है तुम्हें? तुम क्यों नहीं उठ रही?” फातिमा की चीखें सुनकर चाची भी वहां आ गई। जब नब्ज़ चेक की गई तो मालूम हुआ कि अस्मा इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गई है।
फातिमा रो-रो कर बेहाल हो गई। अपनी बहन को खो देने का गम उसके लिए नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था। पहले मां और अब बहन भी इस बेरहम दुनिया में वह अकेली रह गई थी।
भाग 7: फातिमा की जिंदगी
वक्त गुजरता गया। फातिमा जवान हो गई थी और उसकी खूबसूरती उसकी मां की तरह बेमिसाल थी। चाची और उसकी बेटी नजमा हमेशा ही फातिमा की खूबसूरती से हसद करती थीं। नजमा आम सी नैन नक्श की मालकिन थी और फातिमा के मुकाबले में वह बिल्कुल भी खूबसूरत नहीं लगती थी।
फातिमा की खूबसूरती से जलती रहती थी। एक दिन एक अच्छा रिश्ता आ गया। चाची ने सख्ती से फातिमा को मना किया। “मेहमानों के सामने तुम चाय नहीं लाओगी। मेरी बेटी नजमा खुद लेगी।”
भाग 8: नजमा की जलन
फातिमा ने खामोशी से सर हिलाया क्योंकि उसे इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मेहमान आए और बातों का सिलसिला जारी रहा। नजमा चाय लेकर आई, मगर अचानक चाय उसके हाथ से गिर गई। “फातिमा, यह गंदगी साफ करो। मेरा हाथ जल गया।”
फातिमा जैसे परिंदे की तरह दौड़ती हुई वहां पहुंची। दिल में खौफ और इतराफ के साथ। वह जानती थी कि बुलावा सिर्फ उसी की तरफ था और यह उसका फर्ज था कि सब कुछ फौरन ठीक करें।
भाग 9: फातिमा की खूबसूरती
मेहमान जो महज बातों में मशगूल थे, अचानक फातिमा की खूबसूरती देखकर हैरतजदा रह गए। उसके नैन नक्श, सांवली रंगत और बेसाख्ता वकार ने सबको जादुई अंदाज में मुतासिर कर दिया। फातिमा की मौजूदगी में एक खामोश हुस्न और वकार था जो किसी भी महफिल को बदल सकता था।
लड़के की मां ने हैरत से चाची से पूछा, “यह लड़की कौन थी?” चाची ने फौरन कहा, “यह हमारे घर की मुलाजिमा है। यहां काम करती है।” मेहमान खामोशी से वहां से रवाना हो गए।
भाग 10: चाची का गुस्सा
मगर चाची का गुस्सा इतना बड़ा हुआ था कि उसकी आंखों में आग जल रही थी। अब यह गुस्सा फातिमा पर निकालना जरूरी था और वह लम्हा करीब था। चाची का गुस्सा एकदम फट पड़ा। उसके चेहरे की लाली और आंखों की आग किसी तूफान की तरह भड़क रही थी।
उसने फातिमा को एक जोरदार थप्पड़ मारा और चीखते हुए कहा, “हरामखोर, मना किया था ना कि मेहमानों के सामने मत आना। फिर तू क्यों आई?” फातिमा की आंखों में आंसू भर आए। वह लरजती हुई आवाज में बोली, “चाची, आप ही ने तो बुलाया था। नजमा के हाथ पर चाय गिर गई थी।”
भाग 11: फातिमा की पीड़ा
मगर चाची ने एक लम्हे के लिए भी नहीं सुनी। उस दिन फातिमा अपने जख्मों और दुखों के साथ कमरे में बैठी रही। रोती रही और हर बार यही दर्द दोहराया। जब भी रिश्ते वाले आते, हमेशा फातिमा की खूबसूरती की तारीफ करते और यह बात चाची और नजमा के दिल में एक कांटे की तरह घुसती जा रही थी।
भाग 12: चाची का खतरनाक मंसूबा
चंद दिन बाद चाची ने एक खतरनाक मंसूबा बनाया। उसके ज़हन में एक खौफनाक ख्याल परवान चढ़ा। फातिमा को रास्ते से हटाना ही होगा ताकि नजमा का रिश्ता किसी शानदार घराने में तय हो सके। मगर सबके सामने यह काम करना मुमकिन ना था।
गांव वाले तो देखते और सवाल करते और यह कदम कानूनी तौर पर भी खतरनाक था। अगले रोज चाची ने फातिमा से कहा, “जाओ कुएं से पानी भर कर लाओ।” फातिमा ने खामोशी से घड़ा उठाया और कुएं की तरफ चल पड़ी।
भाग 13: अगवा होना
पानी भरकर जैसे ही वह वापस पलटी, अचानक किसी ने उसके मुंह पर रुमाल रख दिया। वह घबरा गई मगर लम्हे भर में ही बेहोश हो गई। एक रुमालपश आदमी खामोशी के साथ फातिमा को अपने बाजुओं में उठाए वहां से चल पड़ा। फातिमा बेहोश थी। दुनिया से बेखबर, नहीं जानती थी कि उसे कहां ले जाया जा रहा है।
भाग 14: चाची की खुशी
चाची घर के आंगन में मुतमिन बैठी हुई थी। तभी उसका फोन बजा। फोन कान से लगाते ही वह मुस्कुराई। दूसरी तरफ से किसी ने कहा, “काम हो गया है।” चाची की मुस्कुराहट और ज्यादा फैल गई। बेटी ने पूछा, “अम्मा, क्या हुआ है?” चाची ने आहिस्ता मगर इत्मीनान से कहा, “बेटी, काम हो गया है। अब उस मंडव से हमारी जान छुट गई है।”
भाग 15: अस्पताल में जागना
दूसरी तरफ जब फातिमा को होश आया तो वह खुद को एक कमरे में पाई। वो कुर्सी पर बैठी थी और उसके हाथ बंधे हुए थे। खौफ और इतराब के साथ उसने अपने हाथ खोलने की कोशिश की और खुशकिस्मती से वह खुल गए। फौरन उसने घर से बाहर कदम रखा।

भाग 16: जंगल में दौड़
फातिमा ने देखा कि वह एक जंगल में थी। अचानक उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी जो शायद खाना खा रहा था। आदमी को उम्मीद नहीं थी कि फातिमा इतनी जल्दी उठ जाएगी। वो फौरन फातिमा की तरफ लपका, मगर अगले ही लम्हे फातिमा ने जंगल में दौड़ लगा दी।
भाग 17: अस्पताल में मदद
उसे अच्छी तरह समझ आ चुकी थी कि वह अगवा हो चुकी है। पांव में कांटे चुभ रहे थे और आंखों के आगे बार-बार अंधेरा छा रहा था। दवा का असर अभी तक बाकी था। अगले ही लम्हे वो किसी से जोरदार टकराई। धुंधली आंखों से उसने एक नौजवान को देखा और फिर सब कुछ तारीख हो गया।
जब दोबारा होश आया तो वह खुद को अस्पताल के बेड पर पाई। वो लेटी हुई थी। अपने जहन को बेदार करने की कोशिश कर रही थी। खौफ और उलझन के दरमियान। तभी वहां एक नौजवान आया। वही नौजवान जिससे फातिमा आखिरी बार जंगल में टकराई थी।
भाग 18: नौजवान की मदद
फातिमा घबरा गई। दिल की धड़कन तेज हो गई। नौजवान ने नरमी से कहा, “आप घबराइए नहीं, आप सेफ हैं। वो आदमी शायद आपको अगवा कर रहा था। मैंने उसे आपसे बचा लिया और वह शायद आपकी चाची का नाम ले रहा था कि उसने मुझे यह सब करने को कहा। लेकिन मैं उस वक्त उसे पकड़ नहीं सका। मैं आपको अस्पताल ले आया।”
यह सुनकर फातिमा की आंखों से आंसू बहने लगे। यकीन नहीं आ रहा था कि चाची अपने हसद और गुस्से में इतनी अंधी हो गई थी कि उसने जान से मारने की कोशिश की। वो रोने लगी।
भाग 19: फातिमा की कहानी
नौजवान ने पूछा, “आप कौन हैं? कहां रहती हैं? आपके मां-बाप कहां हैं? मैं आपको घर छोड़ देता हूं।” फातिमा फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए कहने लगी, “मेरा कोई भी नहीं है। मैं अपनी चाची के घर रहती थी और आज उसने भी मुझे मारने की कोशिश की। अब मैं वहां नहीं जा सकती।”
नौजवान फातिमा की कहानी सुनकर बहुत तरस गया। वो कहने लगा, “आप मेरे साथ मेरे घर चलें। मैं वहां अकेला ही रहता हूं। लेकिन वहां बहुत सी मुलाजिमाएं हैं। आप उनके साथ रह सकती हैं।”
भाग 20: नई शुरुआत
फातिमा ने शुक्र भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा क्योंकि उस वक्त उसके पास उसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। दूसरी तरफ चाची की बेटी नजमा के लिए रिश्ता आया जिसे उन्होंने हां कर दिया। नजमा की शादी हो गई। गांव वालों से चाची ने कहा कि फातिमा अपने किसी आशिक के साथ भाग गई है।
गांव वाले उसे बुरा भला कहने लगे। “अरे कैसी औरत थी, भाग गई मां की इज्जत कभी ना रखी।” जबकि चाची खुद मुतमिन थी।
भाग 21: फातिमा की नई जिंदगी
फातिमा नौजवान के बड़े हवेली नुमा घर में रहने लगी। वो यहां काम करती और चंद मुलाजिमों के साथ रहती थी। लेकिन कब नौजवान फातिमा पर अपना दिल हार गया, उसे खुद भी खबर ना हुई थी। फातिमा की खूबसूरती और नजाकत ने उसके दिल को जकड़ लिया था।
भाग 22: शादी का प्रस्ताव
एक रोज उसने फातिमा से कहा, “मैं तुमसे मोहब्बत करने लगा हूं। मैं एक सीधा साधा इंसान हूं, यहां अकेला अकेला रहता हूं। मेरे वालिदैन का इंतकाल हो गया है। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।”
फातिमा, जो हक्का की लड़की थी, थोड़ी देर सोच में पड़ गई। कहां वो झोपड़ी जैसे घर में रहने वाली और कहां यह हवेली और यह नौजवान। आखिरकार फातिमा ने हां कर दी और यूं फातिमा की शादी शहरोज के साथ हो गई।
भाग 23: खुशहाल जिंदगी
शहरोज एक बहुत अच्छा शौहर साबित हुआ। वो फातिमा से बेपनाह मोहब्बत करता था और कहता, “तुम्हारे माजी के सारे जख्मों पर मैं मरहम रख दूंगा।” फातिमा, जो कभी जुल्म ओ सितम सहती आई थी, अब तक उस हवेली की मलिका बन गई थी।
भाग 24: चाची का पछतावा
दूसरी तरफ चाची की बेटी नजमा को तलाक हो गई थी। वो लोग निहायत लालची थे। उन्होंने जहेज में बहुत सारा कुछ लेकर कुछ अरसे के बाद नजमा को तलाक दे दी। नजमा मां के घर वापस आई और हर वक्त अपनी मां से लड़ती रहती।
यह सब आपकी ही वजह से हुआ। “ना आप मुझे उनके घर में ब्याहती, ना मेरे साथ यह होता।” नजमा की मां पछताती रहती। “यह मैंने क्या कर दिया?”
भाग 25: नजमा की बीमारी
एक रोज नजमा की तबीयत अचानक बेहद खराब हो गई। तेज बुखार ने उसका चेहरा लाल कर दिया। मगर उसी बुखार ने उसकी जान ले ली। नज़मा की मां चीख-चीख कर रोने लगी। अपनी जवान बेटी के दुख ने अंदर ही अंदर उसे चाटना शुरू कर दिया।
भाग 26: फातिमा की यादें
यह हमारी बेटी को क्या हो गया? यह कैसे हो सकता है? वो बार-बार खुद से सवाल कर रही थी। दिल तड़प उठा था। मगर ज़हन में एक मांझी का मंजर घूमने लगा। वो मासूम अस्मा जो बुखार से तड़प रही थी और उसने भी तो ऐसे ही जान दी थी।
याद आया कि कैसे फातिमा ने अपनी बहन के लिए उसके आगे भीख मांगी थी। मगर वह खुद जालिम बनी रही। अपने गुनाहों का शिद्दत से एहसास हुआ और वह फूट-फूट कर रोने लगी।
भाग 27: नजमा का दर्द
फातिमा कहां थी, वो कुछ नहीं जानती थी। एक दिन नजमा के दिल के मुकाम पर शदीद दर्द उठा और उसे फालिज का अटैक आ गया। वो अब चारपाई पर बेबसी और लाचारी की जिंदगी गुजारने लगी।
हर लम्हा इस इंतजार में थी कि कब फातिमा आए और उससे माफी मांगे। दूसरी तरफ फातिमा शहरोज के साथ एक खुशहाल जिंदगी गुजारने लगी। अल्लाह ने उसे एक बेटे से नवाजा था और यूं उनकी दुनिया मुकम्मल महसूस होने लगी।
भाग 28: फातिमा का फैसला
एक रोज शहरोज ने कहा, “फातिमा, तुम्हें अपनी चाची से मिलना चाहिए और उनसे बात करनी चाहिए। जो भी हुआ वो मांझी का हिस्सा है।” फातिमा ने कहा, “ठीक है।” अगले रोज वो अपने बेटे के साथ अपनी चाची के घर पहुंची।
मगर जो मंजर उसने देखा, उसने उसके होश उड़ा दिए। चाची लाचारी से चारपाई पर पड़ी हुई रोती जा रही थी। फातिमा फौरन आगे बढ़ी। चाची ने फातिमा को देखकर फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया और हाथ जोड़ दिए। “मुझे माफ कर दो। मैं खताकार हूं। तुम्हारी भी और असमा की भी। मुझे माफ कर दो ताकि मेरी जिंदगी मेरी जान आसानी से निकल जाए।”
भाग 29: माफी का पल
फातिमा ने नरमी से कहा, “चाची, आप रोएं ना। मैं आपको दिल से माफ करती हूं।” उसी लम्हे चाची ने अपनी जान दे दी। जैसे वह इसी इंतजार में थी कि फातिमा से माफी मांग सके।
फातिमा को उनके जाने का बहुत दुख था। मगर दिल में वह मुतमिन थी कि अल्लाह ने इंसाफ किया। जो जुल्म उसे बचपन से सहने पड़े, आज उनका खात्मा हुआ।

भाग 30: नई जिंदगी की शुरुआत
फातिमा अपने शौहर के साथ खुश जिंदगी गुजारने लगी। कई लड़कियां उसकी किस्मत देखकर हसद करती थीं। मगर फातिमा उन सबसे बेनियाज थी क्योंकि अल्लाह ने उसके सब्र का फल दे दिया था।
फातिमा ने सीखा कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर इंसान सच्चे दिल से मेहनत करे और सब्र रखे, तो अल्लाह हमेशा उसकी मदद करता है।
निष्कर्ष
इस तरह, फातिमा ने अपनी जिंदगी की कठिनाइयों को पार किया और एक नई शुरुआत की। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि उम्मीद की किरण कभी भी जल सकती है, भले ही हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।
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कचरा उठाने वाली लड़की को कचरे में मिले किसी के घर के कागज़ात, लौटाने गई तो जो हुआ वो आप सोच भी नही
“ईमानदारी की किरण: आशा की कहानी”
दिल्ली, भारत का दिल। एक ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं। जहां एक तरफ चमचमाती इमारतें, आलीशान कोठियां हैं, वहीं दूसरी ओर झुग्गी बस्तियों में लाखों जिंदगियां हर रोज बस एक और दिन जीने के लिए संघर्ष करती हैं। ऐसी ही एक बस्ती जीवन नगर में, टीन की छत और त्रिपाल से बनी एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी 17 साल की आशा किरण अपनी मां शांति के साथ। उनका घर बेहद साधारण था – एक कोने में मिट्टी का चूल्हा, दूसरे में पुरानी चारपाई, और बारिश में टपकती छत, जो उनके सपनों में भी खलल डाल देती थी।
आशा के पिता सूरज एक ईमानदार मजदूर थे, जिनका सपना था कि उनकी बेटी एक दिन अफसर बने और बस्ती में रोशनी लाए। लेकिन तीन साल पहले एक हादसे में सूरज का देहांत हो गया। मां शांति बीमारी और ग़म के बोझ से टूट गईं। अब घर की सारी जिम्मेदारी आशा के कंधों पर आ गई थी। उसे आठवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी और अब उसकी दुनिया थी – एक बड़ा सा बोरा, जिसे वह हर सुबह पीठ पर लादकर कचरा बीनने निकल पड़ती थी। दिन भर की मेहनत के बाद जो भी पैसे मिलते, उसी से घर चलता और मां की दवाइयां आतीं।
आशा के हाथ सख्त हो चुके थे, मगर दिल बहुत नरम था। पिता का सपना उसकी आंखों में अब भी जिंदा था। वह हर रात अपनी पुरानी किताबें पढ़ती थी, लेकिन हालात ने उसके हाथों में किताब की जगह कचरे का बोरा थमा दिया था।
एक दिन, आशा वसंत विहार की गलियों में कचरा बीन रही थी। एक सफेद कोठी के बाहर उसे एक मोटी लेदर की फाइल मिली। वह फाइल आमतौर पर कचरे में नहीं फेंकी जाती। आशा ने सोचा, शायद इसमें कुछ रद्दी कागजात होंगे। दिन के अंत में जब वह अपनी झोपड़ी लौटी, तो मां की खांसी सुनकर उसका दिल बैठ गया। रात में, जब मां सो गई, तो आशा ने वह फाइल खोली। उसमें सरकारी मोहर लगे कई कागजात थे। आशा को अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती थी, मगर उसने नाम पढ़ा – सुरेश आनंद। और एक शब्द – प्रॉपर्टी रजिस्ट्री। उसे समझ आ गया कि ये किसी की जमीन के असली कागजात हैं।
एक पल को उसके मन में आया कि इन कागजातों से उसकी गरीबी मिट सकती है। मगर तुरंत उसे पिता की बात याद आई – “बेईमानी की रोटी खाने से अच्छा है, ईमानदारी का भूखा सो जाना।” आशा ने तय किया कि वह कागजात लौटाएगी।
अगली सुबह, आशा काम पर नहीं गई। उसने अपनी सबसे साफ सलवार कमीज पहनी, कागजात को प्लास्टिक की थैली में रखा और मां से कहकर वसंत विहार पहुंच गई। वहां हर गेट पर गार्ड से आनंद विला का पता पूछती रही, मगर किसी ने मदद नहीं की। तीन दिन तक यही सिलसिला चला। घर में खाने के लाले पड़ने लगे, मां भी चिंता करने लगी। मगर आशा ने हार नहीं मानी।
पांचवे दिन, जब आशा लगभग टूट चुकी थी, एक डाकिया आया। उसने कागज देखकर बताया कि सुरेश आनंद की कोठी वसंत कुंज में है, न कि वसंत विहार में। आशा तुरंत वहां पहुंची। आनंद विला के गेट पर उसने सुरेश आनंद से मिलने की बात कही। सुरेश आनंद की पत्नी सविता जी ने शक के बावजूद उसे अंदर बुलाया। ड्राइंग रूम में सुरेश आनंद आए। आशा ने कांपते हाथों से फाइल दी। कागजों को देखते ही सुरेश आनंद की आंखों में आंसू आ गए। ये वही कागजात थे, जिनके बिना उनका करोड़ों का केस हारने वाले थे।
आशा ने पूरी कहानी सच-सच बता दी। सुरेश आनंद ने नोटों की गड्डी निकालकर आशा को एक लाख रुपये देने चाहे। मगर आशा ने सिर झुका लिया, “मेरे पिता कहते थे नेकी का सौदा नहीं किया जाता। मैंने तो बस अपना फर्ज निभाया है।”
सुरेश आनंद आशा की ईमानदारी से भीतर तक हिल गए। उन्होंने पूछा, “तुम्हारे पिता का सपना था कि तुम अफसर बनो?” आशा ने सिर हिलाया। सुरेश आनंद ने तय किया कि आशा की पढ़ाई का सारा खर्च आनंद फाउंडेशन उठाएगा। उसकी मां का इलाज शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में होगा। इसके अलावा, उन्होंने आशा को एक बंद पड़ी किराने की दुकान और उसके ऊपर का फ्लैट दे दिया, ताकि वह मेहनत से अपना घर चला सके।
आशा की जिंदगी बदल गई। उसकी मां स्वस्थ हो गईं, वे नए घर में शिफ्ट हो गईं। आशा ने पढ़ाई फिर से शुरू की, स्कूल और फिर कॉलेज गई। दुकान अब पूरे मोहल्ले में मशहूर हो गई, सिर्फ सामान के लिए नहीं, बल्कि आशा की ईमानदारी और मीठे स्वभाव के लिए। सुरेश आनंद और उनका परिवार अब आशा के लिए एक परिवार की तरह हो गए।
कई साल बाद, आशा ने ग्रेजुएशन पूरी की, अफसर बनी, मगर अपनी दुकान बंद नहीं की। उसने वहां और जरूरतमंद लड़कियों को काम पर रखा, ताकि वे भी इज्जत से जिंदगी जी सकें। वह अक्सर अपनी मां से कहती, “मां, बाबूजी ठीक कहते थे, ईमानदारी की राह मुश्किल जरूर होती है, मगर उसकी मंजिल बहुत सुंदर होती है।”
कहानी से सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, हमें अपनी अच्छाई और ईमानदारी का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। नेकी की रोशनी देर-सवेर हमारी जिंदगी के हर अंधेरे को मिटा ही देती है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें।
ईमानदारी का संदेश हर दिल तक पहुंचे – यही आशा है!
News
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जिस बैंक में बेइज्जती हुई उसी बैंक को खरीदने की कसम खाई… Bank Ki Story . . कुलदीप यादव की…
5 साल के बच्चे ने कहा – मेरे पापा बेकसूर हैं! और जो सबूत दिखाया… जज के होश उड़ गए
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ग़रीब समझकर पत्नी ने शो रूम से भगाया तलाक़शुदा पति ने अगले ही दिन खरीद लिया . . सफलता की…
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दिवाली की रात अरबपति की खोई हुई बेटी सड़क पर दीये बेचती मिली . . उम्मीद की रोशनी भाग 1:…
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आम लड़की समझकर Inspector ने की बदतमीजी, पर वो निकली ज़िले की IPS अफ़सर | फिर जो हुआ सब दंग…
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