IPS मैडम भेष बदलकर उसी हॉस्टल में पहुँची जिसमें लड़कियों को एक रात के लिए बेचा जाता, फिर जो हुआ…
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आईपीएस मैडम का जांबाज मिशन
दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी में एक महिला आईपीएस अफसर भावना राठौड़ अपने सरकारी क्वार्टर में बैठी थीं। उनके सामने एक फाइल थी, जिसमें तिहाड़ महिला जेल से आई एक गुमनाम चिट्ठी थी। उसमें लिखा था – “मैडम, मैं नाम नहीं बता सकती, लेकिन जेल के अंदर जो हो रहा है, वो कानून के नाम पर कलंक है। दरोगा रंजीत यादव हर रात किसी न किसी महिला कैदी को अपने ऑफिस बुलाता है, धमकी देता है, और उनकी इज्जत से खेलता है। विरोध करने वाली को खाना, दवा, कोर्ट पेशी तक नहीं मिलती। कोई सुनने वाला नहीं है।”
भावना कई सालों से सेवा में थीं, सैकड़ों केस देख चुकी थीं, लेकिन यह मामला उन्हें अंदर तक हिला गया। उन्होंने तय कर लिया – रिपोर्ट बनाना, नोटिंग करना, या सिर्फ जांच टीम भेजना काफी नहीं है। यहां खुद जाना होगा, उस नरक को भीतर से देखना होगा। उन्होंने अपने भरोसेमंद कांस्टेबल सतीश से कहा, “मुझे एक फर्जी पहचान चाहिए, नाम होगा गौरी मिश्रा, केस घरेलू हिंसा का। एफआईआर, मेडिकल, सब तैयार करो। मैं खुद जेल जाऊंगी।”
सतीश ने पहले विरोध किया, “मैम, आपकी जान को खतरा है।” भावना ने कहा, “अगर रोज़ ये औरतें मर रही हैं तो मेरा अफसर बनना किस काम का?” अगले ही दिन सब तैयार हो गया – फर्जी एफआईआर, मेडिकल रिपोर्ट, पड़ोसियों की गवाही, और एक वीडियो जिसमें भावना खुद गौरी बनकर झगड़ा करती दिखीं। अदालत में पेशी हुई, सरकारी वकील ने कहा, “गौरी मिश्रा घरेलू हिंसा की आरोपी है, न्यायिक हिरासत में भेजा जाए।” जज ने 14 दिन की तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया।
जेल की वैन में बैठते वक्त भावना का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। अब वह आईपीएस नहीं, सिर्फ एक आम महिला कैदी थी। तिहाड़ के गेट पर मोटे लोहे का दरवाजा, ऊंची दीवारें, सीसीटीवी कैमरे, औरतें – सब कुछ डरावना था। अंदर घुसते ही एक महिला पहरेदार ने मजाक उड़ाया, “नई माल आई है?” भावना ने सिर झुका लिया। बैरक में बदबू, सीलन, गीला कंबल, और 12 औरतें – सबकी आंखों में डर, अपमान, और टूटन थी।
पहली रात ही भावना को डिप्टी जेलर के ऑफिस बुलाया गया। दरोगा रंजीत यादव सामने बैठा था, बीड़ी सुलगाते हुए। उसने भावना को घूरा, “बहुत चर्चे हैं तेरे तेवरों के। अब यहां आ गई है, ताव छोड़ दे।” वह कुर्सी से उठा, भावना की ठुड्डी पकड़ने की कोशिश की। भावना पीछे हट गई। उसके कंधे में छुपा रिकॉर्डिंग डिवाइस चालू था। रंजीत ने धमकी दी, “अगर सहयोग करेगी तो अच्छा खाना, बिस्तर, फोन सब मिलेगा। वरना भटकती रह जाएगी।” भावना ने कांपती आवाज में कहा, “मैं बस सोना चाहती हूं।” रंजीत हंसा, “ठीक है, पहली रात छोड़ देता हूं। लेकिन कल से कोई बहाना नहीं चलेगा।”
बैरक लौटते वक्त रुबीना नाम की एक बुजुर्ग महिला ने भावना की तरफ देखा, “हर नई लड़की के साथ यही होता है। विरोध करने वाली गायब हो जाती है या पागल घोषित कर दी जाती है।” भावना ने सोचा, “यह लड़ाई एक दिन में नहीं जीती जा सकती।”
अगले कुछ दिन भावना ने कैदियों से दोस्ती बढ़ाई। अंजलि, सीमा, नेहा – सबकी अपनी-अपनी दुखभरी कहानियां थीं। कोई चोरी के झूठे केस में फंसी थी, कोई पति की साजिश का शिकार, कोई बस इसलिए जेल में थी क्योंकि उसका वकील छुट्टी पर था। भावना ने धीरे-धीरे सबकी बातें रिकॉर्ड कीं – दवा में गड़बड़ी, पेशी रोकना, खाना बंद करना, और सबसे बड़ी बात – रंजीत का रात में बुलाना।
एक दिन रुबीना ने बताया, “मेरे पास मेरे अब्बा की डायरी थी, जिसमें जेल के भ्रष्टाचार, नेताओं और अफसरों के नाम थे। लेकिन वो डायरी उसी दिन गायब हो गई जब मैंने दरोगा की बात मानने से इंकार किया।” भावना को लगा, “अगर डायरी मिल जाए तो केस मजबूत हो सकता है।”
भावना ने बबीता नाम की महिला स्टाफ से दोस्ती की। बबीता ने बताया, “एक बार देखा था, कुछ पुरानी किताबें लोहे की अलमारी में बंद हैं। चाबी रंजीत के पास रहती है।” भावना ने मौका तलाशा। एक दिन खाना पहुंचाने के बहाने ऑफिस गई, अलमारी खोली, और अंदर से लाल रंग की डायरी निकाली – “शांति सेवा जेल संस्मरण, श्री हाशिम अली, रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर।” डायरी में रंजीत यादव, लोकल नेता, जूनियर अफसरों के नाम, और महिला बंदियों के शोषण की सारी घटनाएं दर्ज थीं। भावना ने मिनी कैमरे से फोटो खींच लिए।
अब उसके पास सबूत था – रिकॉर्डिंग, डायरी के पन्ने, कैदियों की गवाही। लेकिन उसे बाहर निकलना था। रुबीना ने बताया, “जेल के पीछे मेडिकल स्टोर रूम है, वहां एनजीओ की मीटिंग होती है। महीने की पहली तारीख को दोपहर में रंजीत जेल प्रशासनिक बैठक में जाता है। उसी दिन मौका है बाहर निकलने का।”
भावना ने सतीश को मेडिकल के बहाने नंबर भिजवा दिया – “पहली तारीख, मेडिकल स्टोर के पीछे, सबूत तैयार।” तय दिन महिला आयोग की अधिकारी मीना चौधरी, दो पत्रकार, और एनजीओ प्रतिनिधि जेल के मुख्य गेट पर पहुंचे। सतीश ने कहा, “हमारे पास जेल के शोषण की रिकॉर्डिंग और डायरी है।” अंदर सिग्नल मिलते ही भावना को मेडिकल स्टोर के पीछे से निकाला गया। उसकी पहचान उजागर हुई – “मैं आईपीएस भावना राठौड़ हूं। पिछले 14 दिन से इस जेल में कैदी बनकर रह रही थी। जो देखा है, सब रिकॉर्ड किया है।”
रंजीत यादव को उसी वक्त गिरफ्तार किया गया। जेल स्टाफ के दो लोग सस्पेंड हुए। डायरी सार्वजनिक रूप से पेश की गई। लोकल मीडिया में खबर फैली – “आईपीएस अफसर ने विधवा बनकर जेल में खुलासा किया शोषण का रैकेट।” पहली बार किसी ने पूछा – कौन सी औरत कब से यहां है और क्यों?
भावना की बहादुरी ने जेल के भीतर बंद औरतों को आवाज दी। उनके दर्द, उनकी चीखें, अब सिर्फ दीवारों में कैद नहीं थीं। भावना ने साबित किया – कानून की असली ताकत सिर्फ वर्दी नहीं, इंसानियत है। उसके मिशन ने सिस्टम की गंदगी को उजागर किया, औरतों को न्याय दिलाया और देश को दिखाया कि एक अकेली औरत भी बदलाव ला सकती है।
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