Sheikh Ki Biwi Ko Naukar Registan Mein Oont Ka Doodh Pilakar Lagataar 5 Din Tak Kiya
दुबई का आसमान हमेशा की तरह चमक रहा था। हवाई अड्डे पर लोगों की भीड़, सूटकेस खींचते यात्री, एयरलाइन स्टाफ़ की चहल-पहल—यह सब मिलकर एक अलग ही तस्वीर बनाते थे। इन्हीं यात्रियों की भीड़ के बीच शेख अहमद अल-फ़ारसी भी खड़े थे। वह अरब जगत के बड़े कारोबारी थे, जिनका व्यापार यूरोप से लेकर एशिया तक फैला हुआ था। उनके चेहरे पर गंभीरता और रौब साफ झलकता था।
उनके साथ खड़ा था मनोज—दिल्ली से आया हुआ एक साधारण युवक। उम्र लगभग 28 साल, गहरी आँखें और चेहरे पर मेहनत की चमक। वह पिछले पाँच साल से शेख के घर में नौकर के रूप में काम कर रहा था। लेकिन शेख का उस पर भरोसा इतना गहरा था कि अक्सर घर की बड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी उसी के कंधों पर डाल दी जातीं।
उस दिन जब शेख यूरोप के लिए रवाना हो रहे थे, तो उन्होंने मनोज को एक तरफ खींचकर कहा—
“देखो मनोज, मैं पाँच दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ। मेरी पत्नी आयशा अकेली है, उसका ख्याल रखना तुम्हारा फ़र्ज़ है। जो वो कहे, करके देना। मुझे कोई शिकायत नहीं सुननी चाहिए।”
मनोज ने सिर झुकाकर कहा—
“ठीक है शेख साहब, आप निश्चिंत रहिए। मालकिन को कभी कोई तकलीफ़ नहीं होगी।”
शेख ने उसके कंधे पर हाथ रखा और चले गए। मनोज जीप स्टार्ट करके विला की ओर लौट पड़ा। रास्ते भर उसके मन में अजीब सी हलचल थी। शेख के शब्दों में केवल आदेश नहीं, बल्कि एक छिपा हुआ संकेत भी था।
विला पहुंचने पर उसने देखा कि आयशा बालकनी में खड़ी रेगिस्तान की ओर देख रही थीं। आयशा भारत से आई थीं और अब इस आलीशान लेकिन अकेलेपन भरे जीवन में ढल चुकी थीं। वह सुंदर थीं, लेकिन उनकी आँखों में हमेशा एक उदासी तैरती रहती थी।
मनोज ने हिचकिचाते हुए कहा—
“मालकिन, शेख साहब रवाना हो गए। आपको कुछ चाहिए?”
आयशा ने मुस्कुराने की कोशिश की और बोलीं—
“कुछ नहीं मनोज, बस अकेलापन लग रहा है।”
मनोज को शेख की बातें याद आईं—“खुश रखना है।” उसने रसोई से ठंडा पानी लाकर दिया। आयशा ने एक घूँट लिया और बोलीं—
“मनोज, कल मुझे रेगिस्तान घूमने का मन है। ले चलोगे?”
मनोज चौंका। रात को रेगिस्तान! लेकिन वह जानता था कि आदेश टालना मुमकिन नहीं। उसने सिर हिला दिया—“जैसा आप कहें मालकिन।”
अगले दिन वे जीप में रेगिस्तान की ओर निकल पड़े। मनोज ने पानी, फल और ऊँट का दूध साथ रखा। यह वही दूध था जिसे रेगिस्तान में प्यास बुझाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। आयशा ने मुस्कुराते हुए कहा—
“मनोज, मुझे ऊँट का दूध बहुत पसंद है। शेख कभी-कभी लाते थे।”
मनोज ने जवाब दिया—“इस बार मैं लाया हूँ मालकिन।”
दोनों एक छोटे से ओएसिस के पास रुके। तारे आसमान में चमक रहे थे, हवा में ठंडक थी। मनोज ने टेंट लगाया और आग जलाई। उसने दूध गरम किया और आयशा को दिया। आयशा ने मुस्कुराते हुए कहा—
“तुम बहुत अच्छे हो मनोज। शेख कभी इतना ध्यान नहीं देते।”
रात गहराने लगी। ठंडी हवाओं के बीच आयशा ने कहा—
“मुझे ठंड लग रही है… क्या हम एक ही कंबल में सो सकते हैं?”
मनोज हक्का-बक्का रह गया। पर शेख के शब्द याद आए—“जो कहे, करके देना।” और फिर उसने आयशा की आँखों में झाँका। वह आँखें उदास भी थीं और अपनापन माँग रही थीं। मनोज ने कंबल ओढ़ाया। धीरे-धीरे दोनों पास आ गए। उस रात रेगिस्तान की ठंडी हवा में एक नई गर्माहट जन्मी।
अगले कुछ दिन यही सिलसिला चलता रहा। ऊँट की सवारी, चाँदनी रातें, बातें और हँसी। आयशा की आँखों की उदासी धीरे-धीरे मिट रही थी। मनोज को लगने लगा था कि वह सिर्फ़ नौकर नहीं रहा, बल्कि आयशा के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है।
लेकिन मनोज के दिल में डर भी था। पाँच दिन बाद शेख वापस आने वाले थे। अगर उन्हें कुछ पता चला तो क्या होगा?
इसी बीच मनोज ने सुना कि आयशा किसी अनजान शख्स से फोन पर बात कर रही थीं—
“हाँ, सब ठीक है। मनोज ख्याल रख रहा है। लेकिन जल्दी आओ…”
मनोज के मन में शक बैठ गया। कौन था वह? क्या आयशा किसी राज़ को छुपा रही थीं?
तीसरे दिन एक अज्ञात नंबर से मनोज को कॉल आया। कठोर आवाज़ ने कहा—
“आयशा से दूर रहो, वरना अंजाम बुरा होगा।”
मनोज का दिल काँप गया। वह उलझन में पड़ गया—क्या शेख को सब पता चल गया है?
आयशा ने मगर हमेशा उसे भरोसा दिलाया—
“चिंता मत करो मनोज, सब ठीक रहेगा।”
लेकिन मनोज अब सतर्क हो गया। उसने एक दिन आयशा के कमरे में पड़ा एक पुराना पत्र देखा। उस पर आयशा का नाम लिखा था। कागज पीला पड़ चुका था। उत्सुकता में उसने पढ़ लिया।
पत्र में लिखा था—
“आयशा ने कभी एक छोटे से गाँव से अपनी जिंदगी शुरू की थी। उसने समाज की बंदिशों को तोड़ा और अपने दम पर आगे बढ़ी। पर अपने परिवार की खुशी के लिए उसने अपने सबसे बड़े सपनों का बलिदान दिया।”
पत्र पढ़कर मनोज स्तब्ध रह गया। आयशा की ज़िंदगी उतनी साधारण नहीं थी जितनी दिखती थी। वह एक ऐसी औरत थी जिसने संघर्षों से लड़कर खुद को साबित किया था।
पाँचवाँ दिन नज़दीक आया। शेख अहमद अचानक बिना बताए यूरोप से लौट आए। हवेली में हलचल मच गई। मनोज का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। लेकिन शेख ने मुस्कुराकर कहा—
“मनोज, तुमने मेरी गैरमौजूदगी में सब संभाल लिया। शुक्रिया।”
मनोज ने राहत की सांस ली, पर उसकी नज़रें आयशा पर थीं। वह मुस्कुराई ज़रूर, मगर उनके चेहरे पर असहजता साफ झलक रही थी।
कुछ दिनों बाद शेख ने मनोज की मेहनत और जिम्मेदारी देखकर उसे नौकर से हटाकर मैनेजर बना दिया। यह मनोज के जीवन का सबसे बड़ा बदलाव था।
आयशा ने उससे कहा—
“मनोज, तुमने मुझे सिर्फ़ खुशी ही नहीं दी, बल्कि मुझे यह याद भी दिलाया कि सच्चा इंसान वही है जो हर परिस्थिति में ईमानदार और जिम्मेदार रहे।”
मनोज ने महसूस किया कि उसकी असली जीत यही है—अपने परिश्रम और भरोसे से उसने न सिर्फ़ मालिक का दिल जीता, बल्कि अपने जीवन को एक नई दिशा दी।
Play video :
News
“Hemşire Sade Bir Kadını Görmezden Geldi — Oğlunun Hastane Direktörü Olduğunu Bilmiyordu”
“Hemşire Sade Bir Kadını Görmezden Geldi — Oğlunun Hastane Direktörü Olduğunu Bilmiyordu” . . Hemşire Sade Bir Kadını Görmezden Geldi…
Milyoner Fakir Bir Kızı oğlunu korurken yakaladı, şaşırdı ve bir karar aldı…
Milyoner Fakir Bir Kızı oğlunu korurken yakaladı, şaşırdı ve bir karar aldı… . . Milyoner, Fakir Kızı Oğlunu Korurken Yakaladı,…
“PASTANIN YEME!” MİLYONER FAKİR KIZIN KÖR KIZINI KURTARDIĞINI GÖRDÜ!
“PASTANIN YEME!” MİLYONER FAKİR KIZIN KÖR KIZINI KURTARDIĞINI GÖRDÜ! . . “Pastanın Yeme!” Milyoner Fakir Kızın Kör Kızını Kurtardığını Gördü!…
MİLYONERİN ÜÇÜZLERİ HİÇ YÜRÜMEMİŞTİ. AMA YENİ TEMİZLİKÇİ GELDİĞİNDE İMKÂNSIZ GÖRÜNEN BİR ŞEY OLDU
MİLYONERİN ÜÇÜZLERİ HİÇ YÜRÜMEMİŞTİ. AMA YENİ TEMİZLİKÇİ GELDİĞİNDE İMKÂNSIZ GÖRÜNEN BİR ŞEY OLDU . . Milyonerin Üçüzleri Hiç Yürümemişti. Ama…
CEO TEMİZLİKÇİYİ AŞAĞILAMAYA ÇALIŞTI. AMA GERÇEK KİMLİĞİNİ ÖĞRENİNCE ŞOKE OLDU
CEO TEMİZLİKÇİYİ AŞAĞILAMAYA ÇALIŞTI. AMA GERÇEK KİMLİĞİNİ ÖĞRENİNCE ŞOKE OLDU . . CEO Temizlikçiyi Aşağılamaya Çalıştı, Ama Gerçek Kimliğini Öğrenince…
Milyoner, oğlunu çöpleri karıştırırken buldu… ve nedeni onu şok etti
Milyoner, oğlunu çöpleri karıştırırken buldu… ve nedeni onu şok etti. . . Milyoner, Oğlunu Çöpleri Karıştırırken Buldu… Ve Nedeni Onu…
End of content
No more pages to load